Friday, December 31, 2004

ये दुकान यहाँ से बढ गयी है...


आपको नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें....

इस पन्ने पर यह मेरा आखिरी चिट्ठा है.....यह चिट्ठा यहाँ से उठकर अपने स्थायी पते पर पहुँच गया है...नये साल मे नये चिट्ठे नये स्थान पर ही लिखे जायेंगे.....वहाँ पहुँचने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये...
साथ ही मै धन्यवाद करना चाहूँगा, अपने गूगल भइया और ब्लागर के साथियों का, जिन्होने ब्लागर को नया जीवन दिया और हमारे दूसरे साथियों को अपनी राय व्यक्त करने के लिये एक स्थान उपलब्ध कराया....... ब्लागिंग की शुरुवात करने के लिये ब्लागर से अच्छा कोई साधन नही हे.

मेरा ब्लागिंग से सम्बन्ध सितम्बर 2004 से शुरू हुआ, सबसे पहले फ्री का माल यानि की ब्लागर से शुरुवात की...धीरे धीरे ब्लागर की कमजोरियाँ और अच्छाइयों का पता चला....और ये भी समझ मे आ गया कि दान की बछिया के दाँत नही गिने जाते... सो जनाब जेब को कुछ ढीला किया, मन को पक्का किया और निकल पड़े नये स्थान की खोज मे...... सफर के हमसफर थे,पंकज भाई, जो खुद भी कुछ समय पूर्व इस प्रक्रिया से गुजर चुके थे.
मेरे नये ब्लाग मे मैने वर्डप्रेस साफ्टवेयर का प्रयोग किया है....जो निसन्देह एक बेहतर विकल्प है, आपको नये ब्लाग पर कुछ नयी चीजे भी देखने को मिलेंगी......

आते रहियेगा..........मेरा पन्ना पर.

Monday, December 27, 2004

लालू प्रसाद यादव...

अनूगूँज चतुर्थ आयोजनAkshargram Anugunj

इस लेख के सर्वाधिकार एफ़ डी एल के तहत सुरक्षित है। इसे हिन्दी विकी पर भी पढा जा सकता है।

लालू का नाम लेते ही याद आ जाती है एक सूरत, भोला भाला गंवार का बन्दा,गोल गोल चेहरा, सफेद बाल जैसे कटोरा कट, चेहरे पे बिखरी मासूमियत और भोलापन, आँखो मे जैसे कुछ शरारत, मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत, जज्बा विरोधियो को धूल चटाने का और जबान, तो जैसे अभी कोई नया शगूफा छोड़ने ही वाली हो. यही है लालू, हम सबके प्यारे लालू प्रसाद यादव. कोई इन्हे भारत की राजनीति का मसखरा कहता है कोई इन्हे गरीबो का नेता मानता है, कोई इन्हे बिहार को बरबाद करने वाला नेता मानता है. मै तो इन्हे परिपक्व राजनीतिज्ञ मानता हूँ, जो एक एक शब्द सोच समझ के बोलता है और अपने व्यक्तित्व का पूरा पूरा फायदा उठाता है. लालू की प्रसिद्दि का यह आलम है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान मे मेरे मित्र भारत की राजनीति मे सिर्फ लालू की ही बात करना पसन्द करते है. सिर्फ पाकिस्तान ही क्यों पूरी दुनिया मे लालू मशहूर है.कुल मिलाकर लालू एक लोकप्रिय नेता है, भले ही वो कैसी भी राजनीति करते हो आप उन्हे भारतीय राजनीति मे नजरअन्दाज नही कर सकते.
Lalu Prasad Yadavबिहार के गोपालगंज मे आजादी के एक साल बाद 1948 मे एक निहायत ही गरीब परिवार मे जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूवात जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे, और बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि लालू ने वकालत भी की हुई है.1977 मे इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव मे लालू जीते और पहली बार लोकसभा पहुँचे, तब उनकी उम्र मात्र 29 साल थी. 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे. लेकिन सबसे सही समय उनके जीवन मे आया 1990 मे जब वे बाकी धुरंधर और घाघ नेताओ को छकाते और ठेंगा दिखाते हुए बिहार के मुख्यमंत्री बने. यह अत्यन्त अप्रत्याशित था तो असंतोष स्वाभाविक ही था, अनेक आंतरिक विरोधो के बावजूद वे अगले चुनाव यानि कि 1995 मे भी भारी बहुमत से विजयी रहे और अपने आपको सही साबित किया.लालू के जनाधार मे MY यानि मुस्लिम और यादवो के फैक्टर का बड़ा योगदान है, लालू ने इससे कभी इन्कार भी नही किया, और लगातार अपने जनाधार को बढाते रहे.

लेकिन जैसा कि हर राजनेता के जीवन मे कुछ कठिन पल आते है, सो 1997 मे जब सीबीआइ ने उनके खिलाफ चारा घोटाले मे आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हे मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा, लेकिन अपनी पत्नी राबड़ी देवाी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे, और अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी उनके हाथ ही रही.चारा मामले मे लालू को जेल भी जाना पड़ा, बहुत नौटंकी भी हुई और उनको कई महीने जेल मे भी रहना पड़ा, लेकिन बिहार मे लालू को हिलाने वाला अब तक पैदा नही हुआ था. फिर पिछले लोकसभा चुनाव के बाद लालू को दिल्ली की सत्ता मे योगदान करने की सूझी, लालू तो गृह मन्त्री बनना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के दबाव और काफी हीलहुज्जत के बात रेलमन्त्री बनने को राजी हो गये.यह बात और है कि विपक्ष अभी भी उनका बायकाट करता है, लेकिन लालू को कोई परवाह नही.

लालू को पता है, कि कब क्या कहना है, कितना कहना है और कैसे कहना है, किसी विस्फोटक बात को कहते समय भी लालू के चेहरे पर शिकन नही आती और वे मासूमियत का लबादा ओढे रहते है. बिहार के मामले मे लालू को पता है कि कब किस दल मे तोड़फोड़ करनी है, कब किसे और कहाँ शिकस्त देनी है.लेकिन अपनी पार्टी पर उनका एकक्षत्र राज है, मजाल है कि कोई चूँ भी कर जाये... बाकायदा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

लालू ने काफी लेख भी लिखे है मुख्यतः राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर , उनका शौंक है बड़े बड़े आन्दोलनकारियों की जीवनिया पढना और राजनीतिक चर्चा करना.... संगीत के नाम पर लोकगीत इन्हे बहुत पसन्द है, और खेलो मे क्रिकेट मे दिलचस्पी है, वे बिहार क्रिकेट एसोसियेशन के अध्यक्ष भी है. और उनका सपुत्र एक अच्छा क्रिकेटर भी है.लालू ने एक फिल्म मे भी काम किया जिसका नाम उनके नाम पर ही है, यह बात दीगर है कि इस फिल्म का उनसे कुछ भी लेना देना नही है.
रेलवे मन्त्री रहते हुए भी लालू काफी विवादास्पद रहे.....रेलवे मे कुल्हड़ चलाने का मामला हो या विलेज ओन व्हील गाड़िया, लालू का इन सबके पीछे अपना तर्क है. लालू ने वही किया जो उनके मर्जी मे आया, सिवाय सोनिया गांधी के वे यूपीए मे किसी भी नेता को घास नही डालते, हमेशा अपनी मनमर्जी करते है.लालू के रिश्तेदार भी लालू के राजनीतिक सफर मे काफी रूकावटे खड़ी करते है, साले साधू यादव हो या परिवार के बाकी लोग, हमेशा किसी ना किसी तरह लालू के लिये आफते लाते रहे है.वैसे भी लालू हमेशा नये नये विवादो मे घिरते रहते है अभी पिछले दिनो वे बिहार मे गरीबो मे पैसे बाँटते हुए देखे गये थे..जो आचार संहिता का सीधा सीधा उल्लंघन है..... विरोधियो ने पुरजोर विरोध किया, लेकिन लालू है कि असर ही नही.
लालू के कुछ मजेदार वक्तव्यः
Lalu Prasad Yadav
"मै बिहार की सड़के हेमा मालिनी के गालों जैसी चिकनी करवा दूँगा."
"भारतीय रेलवे और रेल यात्रियो सुरक्षा की जिम्मेदारी भगवान विश्वकर्मा की है, मेरी नही" रेलवे हादसों के संदर्भ मे बोलते हुए.
"यदि हम माल भाड़ा बढाते है तो लोग सड़क द्वारा माल भेजना शुरु कर देंगे जिससे सड़को की हालत खराब हो जायेगी"
"मै बहुत काम करता हूँ, अगर मेरे को आराम नही मिलता है तो मै पगला जाता हूँ" यह पूछे जाने पर कि आप सैलून मे क्यों सफर करते है.
"मै आपको क्यों बताऊ कि रेलवे इन परियोजनाओ के लिये धन कहाँ से लायेगा....हमारे विरोधी एलर्ट ना हो जायेंगे." रेलवे बजट पर पूछे गये सवालों के जवाब मे.
"पासवान की पार्टी मे तो सब लफंगा एलिमेन्ट भरा पड़ा है"

अपनी बात कहने का लालू का खास अन्दाज है, यही अन्दाज लालू को बाकी राजनेताओ से अलग करता है, इनको देखकर मुझे स्वर्गिय नेता राजनारायण की याद आती है, जो मसखरी मे लालू से कुछ कदम आगे थे, लेकिन लालू का अन्दाज ही कुछ निराला है.पत्रकार तो इनके आगे पीछे मन्डराते रहते है, और बस इन्तजार करते है कि कब लालू कुछ बोलें और ये लोग छापे.....सीधा साधा मामला है, लोग लालू के बारे मे पढना पसन्द करते है. बिहार की सड़को को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे मे कुल्हड़ की शुरुवात, लालू हमेशा से ही सुर्खियों मे रहे.इन्टरनेट मे आप लालू के लतीफों का अलग ही सेक्शन पायेंगे.... लालू के आलोचक चाहे कुछ भी कहें मेरी नजर मे लालू एक घाघ, शातिर,आक्रामक और हाजिरजवाब राजनेता है.

लालू का एक ही सपना है, भारत का प्रधानमन्त्री बनना, अब देंखे इनका यह सपना कब पूरा होता है.

Sunday, December 26, 2004

हम जुगाड़ी हिन्दुस्तानी

हम भारतीयो के दिमाग मे विश्व मे सबसे तेज है या नही, यह विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन हम लेटेस्ट टैक्नोलाजी का इस्तेमाल करना बखूबी जानते है...इस बारे मे कोई विवाद नही हो सकता.. नही मानते? तो सुनिये...

उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी कल ही पूरे प्रदेश के इन्टरनेट कैफे और केन्द्रो पर छापा मारा, जानते है क्यों? क्योकि ये कैफे स्कूली छात्र छात्राओ के लिये एय्याशी के अड्डे बन गये थे. दरअसल इन कैफे मे छोटे छोटे केबिन बने हुए होते है, ताकि लोगो की प्राइवेसी बनी रहे.... लेकिन छात्रो और कैफे प्रबन्धकों ने इसका दूसरा ही इस्तेमाल किया..... छात्र अपने साथ किसी फिमेल पार्टनर को साथ लेकर आते और किसी केबिन का प्रयोग करते... यह सब कैफे प्रबन्धको की रजामन्दी से हो रहा था.......आगरा में दो इंटरनेट केंद्रों मालिकों पर आरोप है कि वे लड़के और लड़कियों को यौन संबंध बनाने के लिए कोठरियाँ मुहैया करा रहे थे और इसके लिए एक घंटे के लिए साठ रुपए लेते थे.

कुछ संचालक तो और घाघ होते है, इन्होने हर कैबिन मे खुफिया क्लोज सर्किट कैमरे लगा रखे है, और प्रेमी युगलो की तस्वीरे ‌और फिल्मे उतारते है, जिन्हे बाद मे बाजार मे बेंच दिया जाता है.देखा है ना फायेदे का सौदा.......आम तो आम गुठिलयों के भी दाम.

पुलिस का कहना है कि इन इंटरनेट केंद्रों में से ज़्यादातर कोठरियों में कंप्यूटर भी नहीं थे और वहाँ से इस्तेमाल किए गए कंडोम बरामद किए गए हैं.पुलिस ने इन इंटरनेट केंद्रों में 22 लड़के और लड़कियों को गिरफ़्तार किया जिनमें से बहुत से नग्न अवस्था में

हुआ ना टैक्नोलाजी का सही इस्तेमाल.

मेरे ख्याल से अब इन्टरनेट कैफे वाले अपने विज्ञापन इस तरह से देंगेः
"सस्ता, सुगम, सुन्दर और सुरक्षित इन्टरनेट कैफे.......हमारे यहाँ फैमिली सर्फिंग की विशेष सुविधा है.सारी सुविधाये एक ही स्थान पर उपलब्ध.हमारे यहाँ वीडियो रिकार्डिंग नही होती."

Thursday, December 23, 2004

लालू का बचाव

पिछले लोकसभा चुनाव के पहले लालजी टंडन फंसे थे..साड़ियां बाँटने मे, इस बार लालू जी फंस गये
अब ये भी कोई बात हुई........ एक टेलीविजिन चैनेल ने दिखाया है कि लालू प्रसाद सौ सौ के नोट बाँट रहे थे, गरीब जनता मे...कि जाओ मिठाई खाना और चुनावी रैला मे जरूर आना....अब लालू प्रतिद्वंदियो को मौका मिल गया घसीट लिया कि यह तो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है...और मामला चुनाव आयोग तक पहुँच गया है.....अब लालू से जवाब देते नही बन रहा है....पेश है कुछ जवाब, लालूजी अगर आप या आपके चाहने वाले ये ब्लाग पढ रहे हो तो इनमे से कोई भी जवाब का इस्तेमाल कर ले....और साफ छूट जाये.
चुनाव आयोग और बीजेपी वाले पूछ रहे है कि लालू सौ सौ के नोट क्यों बाँट रहे थे.....जवाब हाजिर हैः

  1. इन लोगो ने डालर के छुट्टे मांगे थे.
  2. नयी फिल्म की शूटिंग की रिहर्सल कर रहे थे.
  3. इसी टीवी चैनल वाले ने कहा था कि ऐसा करों ताकि हमारे चैनल के एक्सल्यूसिव कवरेज मिले.
  4. कई साल पहले जब मै पहली बार इस क्षेत्र मे आया था तो इन्ही लोगो के पुरखों ने मुझे दस दस रूपये दिये थे, सो मै आज सौ सौ करके लौटा रहा हूँ, सो पुराना कर्जा चुका रहा था.
  5. हमने इन गरीब लोगो के साथ मिल कर एक चिट फन्ड कम्पनी खोली है, और इन सबको लकी ड्रा निकला है, सौ सौ रूपये के इनाम का, वही बांट रहा हूँ.
  6. आजकल नकली नोट प्रचलन मे है...इसलिये नकली और असली नोटो मे फर्क बता रहा थे.
  7. चूरन वाले नोट थे......कोई घूस थोड़े ही थी.
  8. ये लोग खैनी बहुत अच्छी बनाते है... इसलिये खैनी खरीदने के लिये एडवान्स दे रहे थे.
  9. सब्जी और फूल वगैरहा सप्लाई करने का पेमेन्ट कर रहे थे.
  10. आजकल सिक्के बाजार से गायब है, इसलिये सौ सौ रूपये देकर, सिक्को के पैकैट ले रहा था.
  11. लालजी टंडन जैसा नेता, मेरे से आगे कैसे निकल सकता है, उसने साड़ी दी तो मैने पैसे दिया...क्या बुरा किया.
  12. अपनी जेब से पैसे दिये, अपनी जनता को दिये, आप लोगों के पेट मे दर्द क्यों.
  13. अशोक चक्र का महत्व समझा रहा था.
  14. मै था ही नही........मेरे जैसा कोई बहरूपिया था.
  15. और आखिरी मगर ठेठ बिहरिया जवाबः "का हो.. कमीशनबाबू......इत्ता चिल्लाये काह रहे हो....जब देखो बकर बकर...अरे सौ सौ का नोटवा हि तो दिये है, कोनौ खजाना थोड़े ही लुटाये दिये है....हम ना दैबे तो का तोहार माइ आकर बटिहै?"


आपके पास और कोई जवाब हो तो जरूर बतायें.


बुरे फंसे......

मामला कहाँ से शुरू हुआ था, और कहाँ जाकर पहुँचा है.....

कहते है 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात!' .... यानि कि होनहार बच्चे का पता पालने मे ही चल जाता है..... आज दिल्ली के एक होनहार बच्चे का नाम अमरीका वाले भी ले रहे है.....क्यो?


मामला शुरू हुआ था दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल के एक छात्र ने अपनी दूसरी सहपाठिनी के साथ कुछ यौन क्रिया करते हुए...अपने मोबाइल फोन से उसकी वीडियो बनायी और मस्ती मस्ती मे अपने कुछ दोस्तो को भेज दी........दोस्तो ने दूसरे दोस्तो को...और दूसरो ने तीसरे को...कुछ ने इन्टरनेट पर डाल दी और तो कुछ ने सीडी बनाकर बेच दी.... ज्यादा महत्वाकांक्षी लोगो ने फास्ट मनी बनाना चाहा....और बाजी डाट काम पर इसको बेचने के लिये भी डाल दिया....इस तरह बच्चो के क्रियाकलापों की सीडी पूरी दुनिया ने चटखारे ले लेकर देखी..............एक सच्चाई कि सिर्फ हमी चूक गये ....हमने अभी तक नही देखी...... इधर पुलिस पर दबाव पड़ा तो पहले तो पुलिस ने सबसे पहले तो आइआइटी खड़कपुर के एक छात्र को गिरफ्तार कर लिया जिसने बाजी डाट काम पर यह वीडियो क्लिप बेचने के लिये डाली थी...उसको गिरफ्तार करने के बाद, इस पूरे प्रकरण मे पुलिस को कंही भी कुछ कमाई नही दिख रही थी..सो उन्होने बाजी डाट काम के सीईओ अवनीश बजाज को भी गिरफ्तार कर लिया..... जो बेचारा विशेष तौर से अमरीका से दौड़ता आया था इस केस मे मदद करने के लिये......इसे बोलते है सांप तो निकल गया और अब पुलिस लाठिया पटक रही है...इन जनाब पर इल्जाम है कि इन्होने अपनी साइट पर बिकने वाली चीजों की वैधता को चैक नही किया....अब जनाब बाजी डाट काम तो B2B यानि कि बेचने वाले और खरीदने वाले को मिलाने वालों की साइट है...अब कम्पनी के लिये यह बहुत ही मुश्किल है कि वह बिकने वाली हर चीज के बारे मे जाँच पड़ताल करे.....रोजाना लगभग 48000 चीजों का लेनदेन होता है, इसमे किताबे, वीडियो,डीवीडी,साफ्टवेयर और ना जाने क्या क्या होता है. लेकिन नही...पुलिस वालो का कहना है कि गलती बाजी डाट काम वालों की है.... क्या इसका ये अन्दाजा लगाया जाये कि अखबार मे कुछ विज्ञापन देखकर लोग अगर कुछ गलत खरीद ले तो अखबार वालों को जेल मे डाल दिया जाय....या फिर किसी शादी के मैरिज हाल वाले यहाँ अगर कोई शादी हुई है और बाद मे कोई प्रोबलम आये तो मैरिज हाल वाले को जेल मे डाल दिया जाये... या फिर हम लोग जो ब्लागर पर आकर ऊँटपटांग लिखते है उसके लिये गूगल भइया को जेल के अन्दर डाल दिया जाय...

किसी सन्ता सिंह ने कहा कि बाजी डाट काम को अपने सामानो की लिस्ट को फिल्टर करना चाहिये जिसमे सेक्स वगैरहा जैसे आइटम लिस्ट से बाहर निकल जाये....तो उन्ही जानकार महोदय के पड़ोसी बन्ता सिंह ने बोला तब सो इस तरह से साइट के सत्तर प्रतिशत आइटम बाहर निकल जायेंगे....फिर बिकगा क्या.......तबसे सन्तासिंह का मुंह बन्द है.

यह पहला मौका नही है जब इस तरह की वैबसाइट्स किसी मामले मे घसीटी गयी है.....पहले कुछ समय पहले फ्रांस मे भी याहू बाबा का बायकाट हुआ था...इन पर इल्जाम था कि इनकी साइट पर नाजी हुकूमत को दर्शाने वाली चीजों की नीलामी हो रही थी.........इसी तरह से बाजी डाट काम की पितृ साइट इबे भी इस तरह के पचड़े मे फंस चुकी है. इसकी साइट पर किसी बाला ने अपनी कौमार्य(Virginity) की नीलामी का विज्ञापन दिया था,जिससे काफी बवाल मचा था...........बाद मे न्यायालय ने एक फैसला दिया कि साइटवाला किसी विज्ञापन के लिये दोषी नही ठहराया जा सकता..........अब बाजी वाले दोषी है या नही इन सब बातों पर बहुत गरमागरम बहस हो सकती है......इन सब मे इस साइट्स की कितनी गलती है.......लेकिन मसला ये नही है...मसला ये है कि अब अमरीका भी इस मामले मे कूद पड़ा है, क्यों? क्योंकि बाजी डाट काम के सीईओ साहब अमरीकी नागरिक है, और अमरीका ये बर्दाश्त नही कर सकता कि उसके नागरिकों के साथ दुनिया मे कंही भी किसी भी तरह की दुर्वव्यवहार हो....मामला अब काफी तूल पकड़ता दिखायी देता है....कुछ भी हो दिल्ली पब्लिक स्कूल और उसके छात्रो को तो काफी पब्लिसिटी मिल गयी. पढाई हो ना हो... बच्चो को प्रेक्टिकलस की जानकारी अच्छी है.

वैसे दूसरी तरफ से देखा जाये तो हमारा देश अब अवैध तरीके से ब्लू फिल्म के मामले मे काफी आगे है..या कहो कि स्माल स्केल इन्डस्ट्रीज की तरह से है........ कुछ समय पहले मिस जम्मू वाला कान्ड हुआ...फिर स्टार न्यूज ने भी कुछ दिखाया..कुछ छिपाया और अब दिल्ली पब्लिक स्कूल वाला कान्ड....

कुछ भी हो....... मेरे को ब्रिटेनिया का एक विज्ञापन याद आ रहा है.......ब्रिटेनिया खाओ....... उसको यहाँ इस्तेमाल किया जा सकता है.........वीडियो बनाओ और शोहरत पाओ

अपडेटः उस लड़के को भी गिरफ्तार कर लिया गया है जिसने यह वीडियो बनाया था....बजाज साहब को जमानत मिल गयी है.. और उस लड़के को भी जमानत मिल गयी है.

आपका क्या कहना है इस बारे मे?

Sunday, December 19, 2004

वर्डप्रेस को अपने वैब सर्वर पर स्थापित करना

  1. सबसे पहले तो वर्डप्रेस के लिये mySQL मे डाटाबेस क्रियेट करें.
  2. एक नया यूजर क्रियेट करे और उसको इस डाटाबेस पर पूरे राइट्स प्रदान करें.
  3. वर्डप्रेस की साइट से लेटेस्ट वर्जन डाउनलोड करें. यह डाउनलोड .tar फोरमेट मे होगा.
  4. इस फाइल को एक्सट्रेक्ट करें. जो एक wordpress डायरेक्टरी बनायेगा.
  5. इस डायरेक्टरी के अन्दर wp-config-sample.php को ढूंढे और उसकी कापी बनायें wp-config.php के नाम से.
  6. इस नयी फाइल को vi editor मे खोलकर डाटाबेस(db_database) ,यूजर(db_user) और पासवर्ड (db_password) की जानकारी को अपडेट करें.
  7. यदि आप एक डाटाबेस मे कई ब्लाग रखना चाहते है तो db_prefix को भी बदल दें.
  8. वर्डप्रेस को हिन्दी मे रूपान्तरित करने के लियेः
  9. wp-include डायरेक्टरी के अन्दर एक नयी सबडायरेक्टरी बनाये, जिसका नाम languages रखें.
  10. फिर hi.mo (यह फाइल हमारे गुरूजी पंकज नरूला जी से मुफ्त प्राप्त करें.)
  11. अब वर्डप्रेस डायरेक्टरी को अपने रूट "/www" फोल्डर मे स्थानान्तरित कर दे.
  12. अब अपने ब्राउजर मे http://yoursite.domain/yourblog/install.php लिखें.
  13. याद रखें yoursite.domain आपकी साइट का नाम है
  14. और yourblog आपके ब्लाग का नाम है, आपके रूट के उस फोल्डर का नाम जिसमे आपने वर्डप्रेस के फोल्डर को स्थानान्तरित किया था.
  15. स्क्रीन पर दिये दिशानिर्देशों का पालन कीजिये....और अपना एडमिन का लागिन और पासवर्ड पाइये और लोगिन कीजिये.
  16. वर्डप्रेस के plugins & Themes download कीजियें, उन्हे स्थापित कीजिये और वर्डप्रेस के कन्ट्रोल पैनल से उसे एक्टिवेट कीजिये.
  17. अब अपने वर्डप्रेस को अपने हिसाब से कन्फिगर कीजिये.....
  18. अपने लिंक बनाइये........ और अपने ब्लाग लिखिये......
आपका नये ब्लाग का सफर मंगलमय हो....

Friday, December 17, 2004

आतंकवाद से मुख्य धारा की राह

अनुगून्ज तीसरा आयोजनAkshargram Anugunj

आतंकवाद से मुख्य धारा की राह

जब इस मामले पर लिखने का आदेश हुआ, तो रोज सोचा कि कल लिखेंगे... यह सब करते करते आज आखिरी दिन आ गया, पेपर सब्मिट करने का.... और निबन्ध तो बहुत दूर की बात है, विचारों का अब तक तो कुछ भी अता पता नही है. चलो खैर लिखने की कोशिश करते है, आयोजकों से निवेदन है कि मेरे को ज्यादा ना धोयें......

इस विषय पर बात करने से पहले हमे देखना होगा कि आतंकवाद की जड़ें कहाँ पर है, दरअसल आतंकवादी पैदा नही होते, आतंकवादी बनते है परिस्थितयोवश या फिर पैदा किये जाते है किसी उद्देश्य के लिये,धर्म,जाति या समाज के नाम पर.............. यदि किसी क्षेत्र का लगातार शोषण या फिर अवहेलना होती है, तो लोगों मे गुस्सा पैदा होता है, जो धीरे धीरे नफरत और बाद मे विद्रोह का नाम ले लेता है, अक्सर यह विद्रोह हिंसक हो जाता है, जब विद्रोह को कुचलने के लिये सुरक्षाबल लगाये जाते है, जिनकी ज्यादियों के बारे मे लिखने बैठे तो पन्ने भर जायेंगे..........उन ज्यादितियों की वजह से ही हिंसक आन्दोलन, आतंकवाद का रूप ले लेता है...... इसके अलावा कभी कभी शासन समर्थित आतंकवाद भी होता है, जो स्वार्थी राजनेताओ के दिमाग की उपज होता है और किसी ना किसी दिन हाथ से ही निकल जाता है.और देश और दुनिया को खतरे मे डाल देता है.अगर कश्मीर का आतंकवाद देखा जाये तो यह उपेक्षा का ही नतीजा है और कुछ गलतिया हमारे पूर्वज नेताओ की है, और जो बची खुची कसर थी वो पड़ोसी देश ने पूरी कर दी. आतंकवाद तब तक पनप नही सकता जब तक उसे लोगो का कुछ साथ ना हो... लाख पड़ोसी देश चाहे.... जितने आतंकवादी भेजे, जब तक लोकल सपोर्ट नही होगा... ये पनप नही पायेंगे... और यदि आप देखेंगे तो पायेंगे कि इन आतंकवादियों को काफी लोकल सपोर्ट मिलता है, लेकिन लगातार होने वाले आतंकवादी कार्यवाहियों से लोग भी ऊब गये है, शायद यह आतंकवाद का आखिरी चरण है....पंजाब मे आतंकवाद ना सरकार ने रोका, ना सुरक्षाबलो ने,बल्कि इसका श्रेय जाता है पंजाब की जनता को जो इस आतंकवाद से ऊब गयी थी......... और समझ गयी थी....आतंकवाद का रास्ता सही रास्ता नही है.

अब सवाल उठता है कि आतंकवाद से मुख्य धारा का रास्ता क्या हो?
क्या समर्पण किये हुए आतंकवादियों को राष्ट्र की मुख्यधारा मे लाने के लिये उन्हे सेना अथवा अर्धसैनिक बलों मे लाना चाहिये?

सीधा सीधा जवाब तो है नही...................... इसके पीछे कई तर्क है, सवाल यहाँ अविश्वास का नही है, बल्कि सेना के मनोबल का है.अव्वल तो इससे सेना मे ही कंही ना कंही असंतोष फैलेगा कि उनके साथियों के कातिल उनके ही बीच है, इससे सेना के अनुशासन पर असर पड़ेगा...मेरा ख्याल से इन इख्वानियों को कश्मीर मे ही जनहित के कार्यों मे लगाना ठीक रहेगा.......या फिर इनका प्रयोग आतंकवादियों के खिलाफ किये जाने वाली कार्यवाहियों मे किया जा सकता है लेकिन सिर्फ कुछ हद तक... जानकारी जुटाने मे, अथवा आतंकवादियों के ठिकानो तक पहुँचने मे.

दूसरा रास्ता हो सकता है, कूका परे वाला, यानि कि राजनीति मे लाने का.... लेकिन हमारे घाघ राजनीतिज्ञ जानते है, अगर इनको पनपने दिया गया तो राजनीतिज्ञयो का पत्ता साफ हो जायेगा, या फिर इनको रोजगार ने नये अवसर प्रदान करके कुछ किया जा सकता है, जैसे कश्मीर मे पर्यटन को बढावा देने के लिये किसी को होटल व्यवसाय अथवा ट्रेवल एजेंसी या फिर शिकारा वगैरहा के व्यवसाय मे डाला जा सकता है, या फिर खेती बाड़ी जैसे काम मे.... लेकिन सेना मे अथवा अर्धसैनिको बलों मे लाना एक बहुत बड़ी राजनैतिक भूल होगी...जिसका खामियाजा आने वाली नस्लों को भुगतना पड़ सकता है.वैसे भी सरकार इस तरह के कार्यक्रम चलाती रहती है, लेकिन ये सब खानापूर्ति के लिये ही होते है.यदि सरकार इनका पुनर्वास ठीक तरीके से नही करती, तो कोई बड़ी बात नही है कि ये फिर अपनी पुरानी राह पर लौट जायें.लेकिन सरकार के दोहरे मापदण्ड है, चम्बल के डाकुओ का पुनर्वास तो बड़े ही सही तरीके से किया जाता है, उन्हे जमीन,सुविधाये और सामान्य जीवन जीने की आजादी दी जाती है, लेकिन आतंकवादियों के साथ ऐसा व्यवहार नही किया जाता. मेरे हिसाब से समर्पण किये आतंकवादियो के साथ भी कुछ वैसा ही व्यवहार होने चाहिये, ताकि वो भी सामान्य जिन्दगी की तरफ लौट सकें....लेकिन इसका मतलब यह कतई नही है कि उन्हे देश की रखवाली या दूसरे संवेदनशील कामो मे लगाया जाय.... यदि ऐसा होता है तो यह एक बहुत बड़ी राजनैतिक भूल होगी.

इसके अतिरिक्त सरकार को कुछ और कार्यो पर भी ध्यान देना चाहिये... कश्मीर मे मूल भूत ढांचा ठीक करना........रोजगार ने नये अवसर पैदा करना......पर्यटन को बढावा देना.....जनता को सुरक्षा और संरक्षण........शिक्षा..... लोगो के जीवन स्तर और मूलभूत सुविधावो का विकास करना वगैरहा वगैरहा. योजनओ की घोषणाये तो बहुत होती है और कई बार उसके लिये धन भी आवंटित और मुहैया कराया जाता है, लेकिन पैसे नेताओ पर ही खर्च हो जाते है और योजनाये कागजों मे ही दम तोड़ देती है....यदि ऐसा लगातार होता रहा तो सरकार ही जिम्मेदार होंगी...................नये आतंकवादी बनाने मे.


Thursday, December 16, 2004

बात निकलेगी तो फिर.....

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उगलियां उठेंगी सुखे हुए बालों की तरफ
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फिकरे कसे जायेंगे

लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
-कफील आजर

गप्प सुनो भाई गप्प

बात उन दिनो की है, जब मुम्बई को बम्बई के नाम से ही जाना जाता था. काफी साल पुरानी बात है, कि हमारे एक रिश्तेदार बम्बई से कानपुर किसी शादी मे पधारे... तब मोहल्ले मे किसी के घर भी आया मेहमान, सबका मेहमान होता था, काफी आवभगत होती थी. लोग हालचाल पूछने आते थे, अपने घर खाने के लिये भी बुलाते थे. तो हुआ यों कि इन मेहमान जनाब जिनको,सिर्फ दो ही शौँक थे, पेट भर के खाना और बम्बई की गप्पे सुना सुना कर उसका गुणगान करना और दूसरे शहरो जैसे कानपुर का मजाक उड़ाना.इनको बम्बई के अलावा पूरा भारत एक गांव जैसा लगता था, दरअसल गलती इनकी नही थे,ये मेहमान साहब शायद पहली बार अपने शहर से बाहर निकले थे.

चलो मेहमान का नाम भी रख लेते है, "रमेश बाबू".................. सर्दियों के दिन थे, हम सभी लोग अपना गुड़,गजक और मुंगफली का स्टाक लेकर ,रजाई ढोकर , रसोई से अंगीठी उठाकर हाल मे रखकर, रजाई मे बैठ गये...इनकी बाते सुनने के लिये............रमेश भाई को भी पहली बार इतना भाव मिल रहा था..... अच्छे से कोई सुनने वाला मिला था, शुरू हो गये गप्पो की दुनिया मे... बम्बई ये, बम्बई वो.....वगैरहा वगैरहा......काफी समय तक तो हम लोग झेलते रहे....माताजी का डर ना होता तो हम तो उनको घर मे ही धो दिये होते... लेकिन क्या करें......सबसे छोटे जो ठहरे परिवार मे.... सबकी सुननी पड़ती थी...हमने भी सोच लिया कि रमेश भाई को एक बार कानपुरियन मेहमाननवाजी से अवगत जरूर करवायें. तो जनाब मैने अपनी बात वानर सेना के सामने रखी, तो ये डिसाइड हुआ कि रमेश भाई को गुरदीप सरदार के यहाँ खाने पर बुलवाया जाये और वहीं पर उनकी गप्पों का मजा लिया जाये और अझेल होने पर धोया जाय.

गुरदीप के यहाँ खाने का न्योता, कोई पागल ही नकार सकता है, चाईजी के हाथ का बना बटर चिकन और मखनी दाल ते आलू दे नान, कोई भूल सका है क्या भला...सो रमेश जी जब घरवालो से खाने की तारीफ सुनी तो तुरत फुरत तैयार हो गये.... वो दिन भी आ गया. खाना निबटाने के बाद पूरी वानर सेना जम गयी और रमेश भाई से किस्से सुनने के लिये. रमेश भाई शुरू........"एक बार मै बम्बई मे सड़को पर घूम रहा था, अपने स्कूटर पर, तो मेरे को राजेन्द्र कुमार(उस समय के सुपर हिट हीरो) मिल गया उसकी गाड़ी खराब हो गयी थी...मैने उसको लिफ्ट दी, उसके घर तक तो उसने मेरे को खाना खिलाया और अपनी शूटिंग देखने का न्योता दिया... मै फिर शूटिंग देखने गया..डायरेक्टर ने मेरे को देखा और बोला, आप भी कपड़े बदलकर आ जाओ, गाने के एक शाट मे आपको भी लिया जायेगा.... सो फलानी फिल्मे के फलाने सीन मे मैने काम किया है, नारियलपानी वाले का" वगैरहा वगैरहा.....यहाँ तक तो ठीक था, लोग आंखे फाड़े और विस्मय से उनको देख रहे थे... सरदारजी की तो बांछे खिल गयी बार बार रमेश भाई को छूकर देख रहे थे और उनका हाथ चूमने लगे थे..........क्योंकि वो राजेन्द्र कुमार के बहुत बड़े पंखे यानि फैन थे. रमेश भाई अब धीरे धीरे गप्पों की गहराई मे जाने लगे....हमारे परिवार मे सबको पता था कि रमेश भाई बहुत ही नकारा किस्म के इन्सान है, किसी तरह से बम्बई मे किसी छोटी मोटी कम्पनी मे क्लर्क की नौकरी लगी है, लेकिन रमेश भाई ये बात बताकर अपनी वैल्यू नही गिराना चाहते है........सो चाईजी ने पूछ ही लिया....तुसी कि कम कन्दे हो उत्थे....... रमेश भाई की दुखती रग पर हाथ रख दिया गया था.... सो रमेश भाई ने बोलना शुरू किया......"मै आप लोगो को बताना तो नही चाहता, क्योंकि मै सरकार की सीक्रेट सर्विस मे काम करता हूँ" (ये शायद जासूसी नावेल पढने का नतीजा था, सो उन्होने यहाँ फिट कर दिया), बोले "मै सीआईडी के लिये काम करता हूँ, और कानपुर किसी सीक्रेट मिशन के लिये आया हूँ, आप लोग किसी को बताना नही....", सुनने वाले लोगों का दिमाग चकराने लगा....लोगो ने मुंगफली और गजक की डलिया उनके सामने कर दी, हाल मे एकदम सन्नाटा छा गया...., रमेश भाई को किसी की परवाह नही थी... वो बोलते रहे..."उत्तर प्रदेश मे बहुत सारे अपराधी घुस आये है, उनको ढूंढने के लिये ही मेरे को यहाँ भेजा गया है......" वगैरहा वगैरहा.

अब यहाँ पर हमसे झिला नही गया, वानर सेना तो बस हमारे नोआब्जेक्शन इशारे का इन्तजार कर ही रही थी....हमने सिगनल ग्रीन दिया, तो गुरदीप बोला...."अच्छा! तभी तो मै कंहूँ कि हमारे मोहल्ले मे पुलिस की गाड़िंया क्यों घूम रही है", रमेश भाई को शह मिल गयी...बोले...."हाँ, मेरी सुरक्षा के लिये ही..." गुरदीप ने बोला..."उस दिन मेरे से सिपाही बोल रहा था कि मोहल्ले मे कोई वीआईपी आने वाला है, इसलिये यह सब तैयारी हो रही है...." वानर सेना के बाकी वानरों ने भी गुरदीप की हाँ मे हाँ मिलाते हुए कुछ गप्पे छोड़ दी..... रमेशभाई समझे कि जनता पूरी तरह से कन्वीन्सड है, सो लगे और लम्बी लम्बी छोड़ने....अपनी बहादुरी और .चम्बल के डाकुओ के किस्से सुनाने.........."

वानर सेना ने निश्चय किया कि रमेश भाई को एक्सपोज जरूर करेंगे....... उस रात तो हमने रमेशभाई को पूरी खुल्ली छूट दी बोलने की, लेकिन अगले दिन सुबह सुबह ही हमने रामआसरे सिपाही को पकड़ा और पूरी कहानी बतायी और ये भी बताया कि रमेशभाई मेहमान है, सो पूरा ख्याल रखते हुए ही ट्रीटमेन्ट किया जाये.. योजना अनुसार, रामआसरे सिपाही हमारे घर पहुँचा और रमेश भाई के बारे मे पूछा, घरवाले परेशान कि क्या हो गया? पुलिसिया घर कैसे आ गया... खैर रमेश भाई को बुलवाया गया, रामआसरे ने रमेशभाई को देखा, परिचय लिया, रमेश भाई घबरा गये... जब तक कुछ समझते समझते, हमारे रामआसरे जो बहुत बड़े नौटंकीबाज थे... ने "सर! कानपुर मे आपका स्वागत है" बोलते हुए जबरदस्त सलाम ठोंका.... रमेशभाई को और अचम्भा हुआ... लेकिन लोगो के सामने कैसे जाहिर करते.... सो उन्होने भी जवाबी सलाम दिया, रामआसरे रमेशभाई को बोले, "मेरे को शासन से आदेश मिला है कि आपकी सेवा मे कोई कमी ना रखी जाय... आपको कोई तकलीफ तो नही है?" रमेशभाई तो बल्ले बल्ले हो गये... बोले "नही..नही.. सब ठीक है, लेकिन मेरे आने का किसी को पता नही चलना चाहिये...क्योंकि मै यहाँ पर एक सीक्रेट मिशन पर आया हूँ" रामआसरे तो जयहिन्द करके चला गया......., परिवार वालो को अचम्भे मे डाल गया....इधर रमेशबाबू मन ही मन परेशान तो थे.... कि ये कौन सी मुसीबत आ गयी... लेकिन पहले ही इतनी लम्बी लम्बी छोड़ चुके थे, कि अब वापस लौटना मुमकिन नही था.........सो परिवार वालों को भी लम्बी लम्बी सुनाने लगे, और अपने आपको सीआईडी का आफिसर बताने लगे.........परिवार वाले जो उनको अब तक नाकारा और नामाकूल समझते थे...उनकी इज्जत बढ गयी... अभी तक साग और भिन्डी खिला रहे थे...उनके लिये पनीर और मशरूम बनाया जाने लगा...और तो और अब उनकी चाय मे दूध भी ज्यादा डाला जाने लगा....सच है वक्त बदलते देर नही लगती

रामआसरे सिपाही ने तो अपना काम बखूबी किया, अब हमारा इरादा था कि इनको एक्सपोज करना, सो हमने रामआसरे को पटाया और उसने अपने सीनियर्स को, सभी को मजाक करने का बढिया टाइमपास मिल गया... सो योजना अनुसार हम लोग रमेशभाई को मोहल्ले के अड्डे........वर्माजी के घर के सामने वाला बड़ा सा चबूतरा.....पर ले गये और चाय वगैरहा पिलाई गयी... और मोहल्ले के बाकी सारे फालतू लोगो को पकड़ कर ले आये....रमेशभाई की गप्पें सुनाने के लिये......रमेशभाई शुरु थे....लोग अचम्भित और वानर सेना मन ही मन मुस्करा रही थी......रामआसरे अपने दलबल सहित पहुँच गये... इंस्पेक्टर को रमेशभाई तरफ इशारा करते हुए दिखाते हुए बोले, यही है साहब......... रमेशभाई इतने बड़े पुलिस के दलबल को देखकर किसी सम्भावित आशंका से भयभीत हो उठे.... मोहल्ले वाले भी पुलिस वालों के पीछे पीछे आने लगे... सोंचे कि कोई वारदात हो गयी है. इंस्पेक्टर ने अपना परिचय दिया.... रमेश भाई ने फिर अपने को सीआइडी.. वाला बताया... इंस्पेक्टर ने योजनानुसार पहले तो सलाम ठोंका और फिर बोला अपना परिचय पत्र दिखाइये.........अब रमेशभाई के पास परिचय पत्र होता तो ही दिखाते ना...बोले मै सीक्रेट.......वगैरहा..... तो इंस्पेक्टर ने बोला.....पूरे मोहल्ले को पता चल गया है तो अब सीक्रेसी कहाँ रह गयी.....आप अपना ठीक से परिचय दे... अन्यथा थाने चले.....वहाँ पर हम लोग आपके बारे मे पूरी जाँच पड़ताल कर लेंगे..... रमेशभाई की सिट्टी पिट्टी गुम....थाने जाने के नाम से ही थर थर कांपने लगे....इंस्पेक्टर को किनारे ले गये.... और उससे बोले.... माइबाप मै तो बस गपोड़ी और छोड़ू हूँ, कोई आफिसर वगैरहा नही हूँ.......इंस्पेक्टर अड़ गया, कि आपने झूठ बोल कर फ्राड किया है, अब तो मामला अपराध का बनता है.....रमेशभाई गिड़गिड़ाये और माफी मांगने लगे ......तब तक हमारे परिवार वाले भी पहुँच गये... जो अब तक कन्वीन्स हो चुके थे, कि रमेशभाई सीआईडी आफिसर है..........जब उनको पता चला कि रमेश लम्बी लम्बी छोड़ रहा था, तो चाचाजी ने इंस्पेक्टर को समझाया... और रमेश से माफी मंगवायी गयी...... इंस्पेक्टर ने रमेश को बोला कि मोहल्ले वालों के सामने अपनी सच्चाई बयान करो.... भीड़ तो इक्ट्ठी हो ही चुकी थी...सो रमेश ने सबसे माफी मांगी और अपनी सच्चाई बयान की और आगे से कसम खायी कि कभी भी इतनी लम्बी लम्बी नही छोड़ूंगा. और रमेशभाई अगली ट्रेन से ही बम्बई को रवाना हो गये....दुबारा कभी भी कानपुर ना आने की कसम खाकर.

इस तरह से मामला शान्त हुआ... बाद मे रामआसरे सिपाही को हमने बधाई दी, जबरदस्त एक्टिंग के लिये..........और सभी लोग अपने अपने घरों को चले गये... आपने भी बहुत लम्बी लम्बी झेल ली....अब आप भी अपने कमेन्ट डाले..................