Sunday, October 31, 2004

जब कम्पयूटर वाले फिल्मे बनायेंगे

लाग ओन
कहो ना वाइरस है
२००२ ए बग स्टोरी
हैंग तो होना ही था
जावा वाले जौब ले जायेंगे.
मेरी डिस्क तुम्हारे पास है
आओ चैट करें.
दो प्रोसेसर बारह टर्मिनल
अब तक छप्पन (क्रैश)
प्रोग्रामर नः१
नौकर पी सी का
मि.नेटवर्क लाल
प्रोग्राम,इन्सट्रक्शन और मैथड
लौगिन करो सजना
पासवर्ड दे के देखो
पार्टीशन
हर दिन जो मेल करेगा
क्लाइंट एक नम्बरी,प्रोग्रामर १० नम्बरी
मेरा नाम डेवलपर
राजू बन गया MCSD
हम आपकी मेमोरी मे रहते है
हैकर भाई MCSE
डिबगिंग कोई खेल नही
फिर तेरी पर्ल स्क्रिप्ट याद आयी
तेरा कोड चल गया
हैकर ४२०
जिस देश मे हैकर रहते है
क्रैश से क्रैश तक
मैने डिबग किया
सर्वर से
मिशन वाइरस

Courtsey : Indiatimes.com

Saturday, October 30, 2004

हिन्दी मे कैसे लिखें?

हिन्दी मे लिखना बहुत आसान है,इसके कई तरीके हैः
१) तख्ती साफ्टवेयर के द्वारा : यह एक निशुल्क साफ्टवेयर है, यहाँ से डाउनलोड करें, इस साफ्टवेयर द्वारा आप रोमन लिपि मे लिखे, और आपके स्क्रीन पर हिन्दी मे दिखेगा. अपना लेख लिखने के बाद,इसे कट ‌और पेस्ट द्वारा, आप किसी भी साफ्टवेयर मे जा सकते है, चाहे वो ब्लाग हो,इमेल हो या किसी कमेन्ट मे.
तख्ती साफ्टवेयर को दूसरी भाषाओ के लिये भी कनफिगर किया जा सकता है. अधिक जानकारी के लिये वैबसाइट देखें.
मै अपने ब्लाग लिखने के लिये तख्ती का प्रयोग करता हूँ.
२) जाल पर उपलब्ध कीबोर्ड : यदि आप कोई भी साफ्टवेयर डाउनलोड नही करना चाहते है, तो इन पन्नो पर मौजूद हिन्दी कीबोर्डस की सहायता से भी आप हिन्दी मे टाइप कर सकते है.
http://www.chhahari.com/unicode/
http://hindikeyboard.indiapress.org/

३) अन्य उपाय : इसके अतिरिक्त आप माइक्रोसाफ्ट आफिस का हिन्दी सपोर्ट प्रयोग कर सकते है, मैने इसका प्रयोग नही किया है, इसलिये मै इस बारे मे बताने के लिये उपयुक्त व्यक्ति नही हूँ.
इस बात का ध्यान रखें कि जो हिन्दी फोन्ट आप प्रयोग करे, वो UTF-8 काम्पेटिबल हो.
मै समझता हूँ कि उपरोक्त जानकारी आपको हिन्दी मे लिखने मे सहायता करेगी.....यदि आप कोई और सहायता चाहते है तो मुझे या मेरे हिन्दी ब्लाग के साथियों को लिखे, हमे आपकी सहायता करके प्रसन्नता होगी.
तो फिर देर किस बात की है, बनाइये अपना हिन्दी ब्लाग....................मुझे अपने हिन्दी ब्लाग का एड्रेस भेजना ना भूलियेगा.

English Version

Writing in HINDI is quite easy. There are various ways to write hindi.
1) Using Takhti Software
This is a free software,can be downloaded from here
Using this software, you type in Roman,and software would show text in Hindi.The software provides on-screen keyboard also to help the users.More information is available on the website.
After completion of your text using Takhi, just copy and Paste this to anywhere, including Emails,Blogs,Comments etc.
I am using TAKTI to write my blogs.
One more thing.... Takhti Software can be configured to use for other languages, please go through readme documents.

2) If you do not like to download anything, you can use online Hindi Keyboard.....
available at :
http://www.chhahari.com/unicode/
http://hindikeyboard.indiapress.org/

3) In addition to this, you can use install MS office Hindi Support, using this you can type hindi in various applications.

I am not using this,therefore I can not tell you more about this.

Just make sure that Hindi font which you are using, must be UTF-8 compatible. For any further help you are free to contact our hindi bloggers group. We'll be happy to help you.
So Go ahead and write your first hindi blog......Do not forget to intimate us about your hindi blog address.


Thursday, October 28, 2004

क्रिकेट अपडेट

अब तीसरे दिन का खेल खत्म होने को आया, और जैसा कि लग ही रहा है, यह टेस्ट मैच अब भारत की पकड़ से बाहर है. जीतना तो बहुत दूर की बात है, ड्रा हो जाये तो गनीमत है. अब भारत की हालत देखी जाये तो बहुत ही पतली है, सारे बेट्समैन तो जैसे बैटिंग भूल चुके है, आखिरी के कुछ को छोड़ दें तो, सचिन की वापसी से भी टीम के किसी प्रकार के आत्मविश्वास मे कोई बढोतरी नही हुई है, आस्ट्रेलिया साढे चार‍-पांच सौ के आसपास का टारगेट दे कर इन्डिया को बैटिंग के लिये आमन्त्रित करेगा, और फिर वही आया राम गया राम..... ऊपर से तुर्रा ये कि दुनिया की सबसे अच्छी बैटिंग लाइनअप.

आस्ट्रैलियनस ने लक्ष्मन को तारीफ कर कर के मार डाला, ऊपर से शैन वार्न, की फिरकी, लक्ष्मन तो पूरे VVS (वैरी वैरी शर्मसार) हो गये है.

ओपनर तो पक्का है कि वन डे सोंच कर ही खेल रहे है, कोई बताये इन्हे कि ये फाइव डे मैच है.०००
द्रविद, अब तो जागो यार, नही तो ये मैच भी गया हाथ से.
सचिन, से अभी ज्यादा उम्मीदें नही रखनी चाहियें.
बाकी फिर बचा कौन, वही कैफ वगैरहा, बेचारा कितने रन बनायेगा, हर बार तो वही बना रहा है.
नतीजा शायद चौथे दिन ही निकल आये.

टीम को चाहिये, कि बैटिंग के बारे मे आराम से सोंचे और अपने सारे काम काज निबटाने के बाद ही फील्ड पर जायें, नही तो सबको लौटने की जल्दी रहती है.
सारे बैट्समैन तो वन डे की तरह से खेल रहे है, अब कोई चिपकू बैट्समैन ही इन्डिया की हार को बचा सकता है, कोई है आपकी नजर मे?

Monday, October 25, 2004

सिन्धी ब्लाग का पदार्पण

जैसा कि आपको पता ही मै हिन्दी और अंग्रेजी मे ब्लाग लिखता रहा हूँ, मेरी मातृभाषा सिन्धी है, सो मेरा कुछ कर्तव्य सिन्धी के प्रति भी है, सिन्धी भाषा के बारे मे कुछ बाते:

सिन्धी भाषा भारतीय संविधान मे उल्लेखित भाषाओ मे से एक है,इस समय पूरी दुनिया मे सिन्धी बोलने वाले लगभग २० मिलयन लोग होंगे, इसमे काफी भारत और पाकिस्तान मे रहते है.सिन्धी दो लिपियों मे लिखी जाती है, अरबी और देवनागरी. मेरे को अरबी लिपि की सिन्धी का पर्याप्त ज्ञान नही है, इसलिये मै अपने लेख देवनागिरी लिपि मे ही लिखने की कोशिश करुंगा.

आप मेरा सिन्धी ब्लाग यहाँ पर पढ सकते है.

http://sindhiblog.blogspot.com

आप सभी से निवेदन है, यदि कोई आपका मित्र सिन्धी भाषी है तो उसे इस ब्लाग का पता जरूर बताये...... इसी तरह से मेरा प्रयास रहेगा कि अन्य भारतीय भाषाओ का भी ब्लाग बने और लोग पढे.

Sunday, October 24, 2004

मोहल्ले का रावण दहन

देश मे दशहरे के समापन के साथ साथ रामलीलाओ का दौर भी समाप्त हो गया, लेकिन कल ही हमे टीवी पर रामलीला की एक झलक देखने को मिली, पुरानी यादे फिर ताजा हो गयी.... कि कैसे हम लोग रामलीला के शुरू होने का इन्तजार करते थे.. रामलीला वाले सात बजे पहुँचते थे, लेकिन हम लोग अपने साथी सखाओ के दल बल सहित बाकायदा पाँच बजे पहले वाली पंक्ति मे विराजमान हो जाते थे.साथ मे मुंगफली और लइया चने का पूरा स्टाक लेकर. मजाल है कि कोई पहली वाली लाइन मे बैंठ जाये.....लेकिन कभी कभी हमे देर हो जाती थी तो संगी साथी अपना बोरा या अंगोछा बिछा कर जगह घेर लिया करते थे. लेकिन जगह घेरने मे जो मुंहाचाई और कभी कभी हाथापाई होती थी, उसकी तो बात ही निराली है. मेले मे झूले ना हो ऐसा कैसे हो सकता है, और झूले वाला हमसे त्रस्त ना हो वो भी नही हो सकता, सो जनाब झूले वाले तो हमको झूले मे चढाने से मना कर देते थे.. कयोंकि हम तो उतरने का नाम ही नही लेते थे.....लगभग यही रवैया बाकी स्टाल्स वालों का होता था.........अब खाने पीने की बात कर ली जाये........वो बर्फ का मक्कू और गैस वाला सोडावाटर,इमली चूरन की ठिलिया,देशी आइसक्रीम या चाट पकौड़ो की गुमटी, कोई हाइजीन की प्रोबलम नही कोई फूड प्वाइजनिंग का डर नही..... जाने कहाँ गये वो दिन.

रामलीला का मौसम शुरू होते ही हम लोग स्कूल गोल करना शुरू कर देते थे....ऐसा नही था कि हम पढने मे होशियार नही थे... लेकिन मन तो मनचला होता है, इधर उधर ना भटके ऐसा कैसे हो सकता है. घर से कह कर निकलते थे कि स्कूल जा रहे है, पहुँच जाते थे, मेले वाली जगह पर, स्कूल वालों ने पहले पहले ऐतराज किया लेकिन बाद मे उनको भी पता चल गया कि, यह हफ्ता तो मै स्कूल नही जाऊंगा,इसलिये कहना छोड़ दिया था... ...... हमारा लगभग सारा समय रावण के पुतले बनाने वाले मुन्नन खाँ को देखते हुए निकलता था, कैसे उनके सधे हुए हाथ रावण और दूसरे पुतले बनाने मे जुटे रहते थे, मन ही मन ठान लिया था कि इसी को अपना कैरियर बनायेंगे, ये तो लानत पड़े कम्प्यूटर वालों को अच्छे खासे क्रियेटिव बन्दे को इस प्रोफेशन मे डाल दिया, ना होता बांस ना बजती बांसूरी., हम मुन्नन खाँ से हर बात का मतलब पूछा करते, हर सींक,सलाई और गांठ के बारे मे तब तक पूछते रहते जब तक मुन्नन खाँ झल्लाकर हड़काने के मूड मे ना आ जाते... लेकिन मजाल है कि हम अपने सवाल को छोड़ दें... फिर भी टंगे रहते थे. मुन्नन खां के सर पर, थक हार कर मुन्नन खाँ को सब बताना पड़ता.. कई बार तो हमे मुन्नन खां के असिस्टैन्ड द्वारा गुम्मा तक लेकर दौड़ाया गया.. लेकिन हमारा पुतला क्रियेशन प्रेम था कि खत्म ही नही होता.मुन्नन खाँ की दोस्ती ने ही हमे प्रेरित किया कि हम भी अपने मोहल्ले मे रावण का पुतला जलायें..

हमने मुन्नन खां से बात की..... दोस्ती का वास्ता दिया और सस्ते मे पुतला बनाने का वादा ले लिया.अब जब मुन्नन खां हमारे मित्र थे तो मजाल है कि कमेटी का अध्यक्ष कोई और बन सकें....., सो हमारे ही नेतृत्व मे कमेटी गठित हुई .. अब मसला था पैसो के जुगाड़ का, सभी लोगो ने अपने अपने जेबखर्च से पैसे बचा बचा कर रावण के पुतले के लिये पैसे एकत्र किये.., अपने अपने गुल्लक भी तोड़े,. फिर भी पूरे नही पड़े तो फिर हमने मोहल्ले मे चन्दा करने की ठानी.. कुछ लोगो ने वादे किये, कुछ ने टरकाया,कुछ ने इनकरेज किया, कुछ ने पैसे दिये... कुछ ने जुतियाया... कुछ ने हमारे घर मे शिकायत करने की धमकी दी... अब वो जज्बा ही क्या जो धमकियों से डर जाये... पड़ोस वाले वर्मा जी, जिन्होने चन्दा देने से इन्कार किया था, उनके स्कूटर की हवा रोज निकाल दी जाती थी, कुछ दिन तो उनको समझ मे नही आया कि ऐसा कैसे हो जाता है, फिर जब समझ मे आया तो एक दिन पूरी की पूरी वानर सेना की कस कर पिटाई कर दी, हमे याद है तब हम लोगो के कसम खायी थी कि वर्मा को चैन से नही जीने देंगे, और हम रोज नये नये मंसूबे बनाने लगे कि कैसे वर्मा को परेशान किया जाय.हमने वर्मा के दोस्तो और दुशमनो का पता करना शुरू किया, हमे सफलता मिल ही गयी.. मोहल्ले का एक छुटभइया दादा, जिसका एकतरफा चक्कर वर्मा की बड़ी बेटी से चल रहा था, और उसने एक लव लैटर लिख रखा था और लड़की को देने के लिये किसी तरह से वर्मा के घर मे इन्ट्री की फिराक मे था.... उसने हमे सहयोग का वादा किया. प्लान के मुताबिक वानर सेना ने वर्मा के स्कूटर की स्टेपनी गायब कर दी, वर्मा की बालकनी का बल्ब उड़ा दिया और उसकी काल बैल तक है से था कर दी... और तो और बाहर रखे गमले भी नही छोड़े गये, वर्मा को पता तो था कि यह सब काम हमारी वानर सेना का ही है, लेकिन सबूतो के अभाव मे वो कुछ भी नही कर सके... लास्ट मे उस छुटभइये दादा को हमने चन्दा लेने या कहो निगोसियेशन करने के लिये वर्मा के घर भेजा, वो धरना देकर वर्मा के घर बैठ गया, और मौका देखकर लव लैटर वर्मा की बड़ी लड़की को थमा दिया....बहुत हील हुज्जत के बाद......आखिरकार वर्मा ने भी थक हारकर और हाथ जोड़ कर उसको चन्दा दे ही दिया, चन्दा मिलते ही वर्मा का सारा सामान अपनी अपनी जगह पर वापस पहुँच गया, छुटभइये दादा ने भी अपनी सैटिंग जमा ली थी.....काफी दिनो तक वर्मा हमे टेढी नजरों से देखते रहे....हमने कुछ दिन वर्मा के घर की तरफ जाना ही छोड़ दिया..... हमे कोई परवाह नही थी.... चन्दा तो मिल ही चुका था... बाकी के बचे पैसो का जुगाड़ करके किसी तरह से रावण बनाने का सामान इकट्ठा किया गया और मुन्नन खां से सम्पर्क किया गया.

मुन्नन खां ने रावण का पुतला बनाया जो रावण का कम और मेघनाथ का ज्यादा लग रहा था.. हमने मुन्नन खां से पूछा भइया रावण के तो दस सिर होते है, आप तो एक ही बना रहे हो.. मुन्नन खां बोले इतने पैसो मे तो यही बनेगा, रावण का एक ही सर बन जाय तो गनीमत है, ज्यादा की उम्मीद मत रखना. हमे पहली बार बढती महंगाई का ऐहसास हुआ, हमने सरकार पर दस लानते भेंजी लेकिन अब हमे मोहल्ले मे अपनी बेइज्जती का गम सताने लगा, रातो की नींद और दिन का चैन जाने लगा. लगभग प्रमोद महाजन जैसी स्थिति थी, रावण दहन का आयोजन हमारी नाक का सवाल था......हमने वानर सेना से बात की, सर्व सम्मति से हमे कमेटी के हितार्थ कोई भी डिसीजन लेने का अधिकार दे दिया गया, ठीक उसी तरह जैसे राकांपा ने शरद पंवार के दे दिया है.. हमने दिमाग लड़ाया और मोहल्ले की सुषमा आन्टी को पकड़ा जो स्कूल मे टीचर थी,सुषमा आंटी जिनकी हमेशा से इच्छा थी या कहोँ कि मन मे दबी अभिलाषा थी कि किसी नाटक का निर्देशन करें... हमने उनको पूरी बात बतायी, काफी रोये धोये... साल भर उनके कपड़ो को धोबी तक पहुचाने का भी वादा किया....तो उन्होने सहयोग की हामी तो भरी, लेकिन साथ ही एक शर्त भी रख दी, कि उनके निर्देशन मे रामलीला का मंचन भी हो, साथ ही सारी तैयारी अपने सिर लेने का वादा भी किया. अन्धा क्या चाहे दो आंखे सो हमने उनकी सारी शर्ते मन्जूर की, उन्होने अपने स्कूल मे रावण का सिर बनाने का प्रोजेक्ट बच्चों को दिया, इस तरह से रावण की बाकी की नौ मुन्डियो का जुगाड़ हुआ, फिर वानर सेना ने घर घर जाकर पिछली दिवाली के पटाखों का दान इकट्ठा किया और रावण के पुतले को पटाखों से सजाया गया.

दशहरे वाले दिन हम लोगो ने बाकायदा रामलीला का मंचन किया, ये सुषमा आन्टी से डील के तहत हुआ,मुझे बताने मे थोड़ी हिचक हो रही है कि मेरे को सीता का रोल मिला, राम का रोल, पड़ोस मे रहने वाले शर्मा जी के भतीजे ने किया, क्योंकि सबसे ज्यादा चन्दा शर्मा जी ने दिया था. सारा साल मेरे को दोस्तो से सीता सीता सुनकर छिड़ना पड़ा था.....अब शर्मा अंकल के घर टेलीविजन ना होता तो मै तो शर्मा के भतीजे की तो ऐसी तैसी कर देता, मतलब? अरे यार शर्माजी से पंगा लेते तो चित्रहार और सनडे की पिक्चर फिर कहाँ देखते? ..........खैर जनाब, किसी तरह से रामलीला का मंचन हुआ, इसकी भी एक अलग कहानी है.. इस पर फिर कभी.........रावण के पुतले का दहन हुआ, हमने फक्र से अपना सिर ऊंचा किया और इस तरह हमारा नाम मोहल्ले के क्रियेटिव लफंगो मे शुमार होने लगा.. क्रियेटिव लफंगा क्यों?.. अरे भाई क्रियेटिव इसलिये कि सारा आइडिया मेरा था और लफंगा इसलिये के सब लोग वानर सेना के चन्दा कलैक्ट करने के तरीको से त्रस्त थे, सो वानर सेना के मुखिया को लफंगा नाम नही देते तो और क्या देते?


Saturday, October 23, 2004

सचिन की वापसी

अब जब सचिन नागपुर टेस्ट मैच मे खेलने के लिये फिटनेस टेस्ट पास कर चुका है, और यह पक्का हो चुका है कि वह नागपुर टेस्ट मे खेलेगा. हमने अपने क्रिकेट एक्सपर्ट स्वामी से इस बारे मे प्रतिक्रिया चाही...

स्वामी बोला... सचिन की वापसी बहुत अच्छी है, भारत की नैया जो पहले टेस्ट मे डूब गयी थी और भाग्य को दूसरे टेस्ट मे बारिश ने पूरी तरह से धो दिया था ..सचिन के आने से स्थिति कुछ बेहतर दिखायी देती है. लेकिन इस बात का जरूर ध्यान रखा जाय कि सचिन काफी टाइम बाद टीम मे वापसी कर रहा है तो उससे पहले टेस्ट मे ही ज्यादा उम्मीदे नही रखनी चाहिये.....भारतीय टीम को मनोवैज्ञानिक बढत जरूर मिलेगी इससे ज्यादा की उम्मीदे रखना अपने आप को भ्रम मे रखना है. मीडिया का क्या है...आने के पहले शोर मचायेंगे और पहले वापसी टेस्ट मे सचिन के असफल होने पर अंगुलिया उठाना चालू कर देंगे.

इसके अलावा स्वामी स्टार न्यूज के कार्यक्रम वाह क्रिकेट! के अतिथि सन्दीप पाटिल से बेहद खफा है... बोलते है कि या तो इसको हिन्दी समझ मे नही आता है या इसके पैसे पूरे नही दिये गये है...जब भी इससे सवाल पूछा जाता है तो हमेशा जवाब कुछ और देता है. शायद घर से ही सोंच कर आता है, कि सवाल कुछ भी हो .. लेकिन जवाब यही दूंगा....अब असली बात या तो स्टार न्यूज वाले जाने या संदीप पाटिल.....लेकिन झेल तो दर्शक ही रहे है, इस प्रोग्राम का नाम वाह क्रिकेट की जगह आह क्रिकेट! होना ज्यादा सही होता. मैने अभी तक यह प्रोग्राम कभी ध्यान से नही देखा है,लेकिन सोंच रहा हूँ स्वामी की बात को चैक किया जाय.....

Thursday, October 21, 2004

पप्पू भइया की इन्डिया ट्रिप

पप्पू भइया को पहला झटका तो कुवैत एयरपोर्ट पर लग ही चुका था....लेकिन उनको क्या पता था कि अभी तो बहुत सारी चीजे उनका इन्तजार कर रही है.आपको तो पता ही है, पप्पू बिहार के प्राणी है, सो सबसे करीबी इन्टरनेशनल एयरपोर्ट दिल्ली है, उनके लिये......सो सुबह सुबह दिल्ली मे उतरे...दो सवारी,ऊपर से इतना सारा सामान, एयरपोर्ट पर ही कस्टम वालों की नजर मे आ गये...पप्पू ग्रीन चैनेल से निकल रहे थे... कस्टम वाले ने रास्ते मे रोका और पूछा.... टीआर (Transfer of Residence) है क्या? .....पप्पू बोले नही... तो अधिकारी ने कहा... आ जाओ फिर किनारे... किनारे ले जा कर पूछा... क्या क्या लाये हो, अपने आप बता दो, खांमखा सामान क्यो खुलवाते हो... पप्पू पहली बार लौटे थे, सो उनको कुछ पता तो था नही, कि कितना अलाउन्स अलाउड है,पप्पू ने बड़े प्यार से उन्हे बताया कि इलेक्ट्रानिक्स,कास्मेटिक्स और ना जाने क्या क्या है, उनके पास. कस्टम अधिकारी को मोटी मुर्गी लगी.. बोले १०,००० दे दो और निकल लो, बिना कुछ चैक करवाये... पप्पू अड़ गये..बोले नही देंगे.. कस्टम वाले ने समझाया कि अगर कस्टम ड्यूटी लगाई तो १०,०० से ज्यादा बैठेगी... फिर उसको ऊँच नीच समझाई, मिसेज पप्पू बोली दे दो ना.. क्यो खामंखा मे पन्गा लेते हो.. वैसे भी कस्टम वालो से पन्गा अच्छा नही होता.....आखिरकार साढे चार हजार मे सौदा तय हुआ, और कस्टम वाले ने भी इनको टोपी पहना ही दी., अब जब फंस ही चुके थे, तो पैसे देने मे ही भलाई समझी. पप्पू के लिये यह दूसरा झटका था, पहला झटका तो मीठी मुस्कान के साथ लगा था इसलिये जोर का झटका धीरे से लगा था.... इस बार तो सामने कोई सुन्दर बाला नही थी सामने बल्कि मुच्छड़ कस्टम आफिसर था, सो इस बार उन्हे खल गयी.

पप्पू भइया ने टेक्सी ली, नयी दिल्ली स्टेशन के लिये ....टेक्सी वाले ने ढाई सौ मांगे तो पप्पू भइया फिर अड़ गये बोले मीटर से चलेंगे... टैक्सी वाले ने रास्ते मे उनसे पूरा समाचार ले लिया था, इवेन गांव देहात का पता तक नोट कर लिया था..... सारी जानकारी लेने के बाद टैक्सीवाले ने बहती गंगा मे हाथ धो लेने की सोची....और फिर वह उनको जाने कंहा कंहा से ले नयी दिल्ली स्टेशन पर जाकर पटका और मीटर का बिल पूरे साढे तीन सौ का बना... अब लुट तो चुके ही थे... चुपचाप पैसे देने मे ही भलाई समझी... टेक्सीवाला मन्द मन्द मुस्करा रहा था.. बोला साहब मै तो आपको पहले से ही बोल रहा था... अच्छा हुआ आपने मीटर चालू करवा दिया, अब से मै भी फिक्सड रेट पर नही चलाउंगा.... पप्पू ने सामान उतरवाया और रेलवे स्टेशन मे दाखिल हो गये.कुली ने भी उन्हे ठीक से पहचान लिया था, शायद टैक्सीवाले ने हिन्ट दे दी थी... उसने भी जम कर लूटा....

ट्रेन की रिजर्वेशन तो मिल गयी थी..... वो भी टीटी के हाथ गरम करने पर... अटैचियों पर एयरलाइन्स के टैग देखकर टीटी ने भी अपने भाव बढा लिये थे... सो यहाँ पर भी पप्पू भइया को पूरे भारत दर्शन हो गये थे.... पप्पू अपने गांव के करीबी रेलवे स्टेशन पर पहुँचे... घर से लगभग सभी लोग लेने आये थे.......जिस वैन मे लेने आये थे, वो तो पहले से ही भरी हुई थी,अब सामान और पप्पू की फैमिली कहाँ फिट होती... बहुत देर तक एडजस्टमेंट होता रहा.. कोई रास्ता नही निकला.....कोई भी वैन से उतरने के लिये तैयार नही था.. सबको यही डर था कि कोई अगला उसके सामान को रास्ते मे ही ना टिपिया ले, जब काफी देर तक कोई रास्ता ना निकलते देख पप्पू ने ऐलान किया कि ठीक है मै ही बैलगाड़ी मे चला जाता हूँ, तुम लोग घर पहुँचो. अब इतना सुनना था कि सारे लोग वैन से उतर आये और पप्पू भइया के लिये जगह बन गयी... किसी तरह से गांव के रास्तो पर धक्के धुक्के खाते पप्पू भइया घर पहुँचे.. फूल मालाओ और आरती से स्वागत हुआ.... इधर पप्पू का स्वागत हो रहा था, उधर वैन से सामान उतारते उतारते लोग अचरज से बड़ी बड़ी अटैचियां देख रहे थे और मन ही मन अटैचियों के अन्दर के सामान की कल्पना कर रहे थे.सभी को इन्तजार था कि कब अटैचिया खुलें और सामान पर कब्जा होये.

आखिर इन्तजार की घड़ी आ ही गयी जब पप्पू ने गिफ्ट का पहला लाट निकाला , काफी मंहगी महंगी गिफ्ट खरीदी थी, पप्पू और भौजी ने मिलकर.. सबकी पसन्द का पूरा पूरा ध्यान रखा था.... गिफ्ट की वकत समझ मे आये सो प्राइस के स्टीकर नही हटाये थे....खैर जनाब सबको गिफ्ट बांटी गयी... लेकिन कोई भी अपनी गिफ्ट से ज्यादा दूसरे के गिफ्ट मे आंखे गड़ाये था...किसी को भी गवारा नही था कि दूसरा उससे महंगी गिफ्ट ले जाये...इसलिये किसी को भी अपनी गिफ्ट पसन्द नही आयी.........सो जनाब चिल्लमपौ तो होनी ही थी... थोड़ी देरे मे ही पप्पू से सामने बहुत सारे प्रपोजल आ गये कि एक एक गिफ्ट काफी नही है... दूसरी गिफ्ट भी दी जाये...पप्पू और भौजी के होंश ही उड़ गये...सारा कैलकुलेशन बिगड़ गया... बहुत समझाया, लेकिन कोई नही माना.. आखिर पप्पू बोलो अटैची खुली पड़ी है, जिसकी जो मर्जी मे आये ले ले. गौर करने वाली बाते ये है कि सबने कई कई गिफ्ट लपकी....... ठीक उसी तरह से जैसे दंगे मे जैसे दुकाने लुटती है,बेचारी अटैचियाँ कब तक झेलती फिर प्रशासन भी तो नही था इस बार.......सबने गिफ्ट लपकी लेकिन इस बार प्राइस टैग का पूरा पूरा ध्यान रखा गया....... लल्ला के हाथ लिपिस्टक का सैट लगा तो छुटकी के हाथ शेविंग किट ...........ताई ने लपकी सिल्क की शर्ट तो ताया बेचारे नाइटी पर सन्तोष कर गये. यह सब बन्दरबाट देख कर हमारे पप्पू और भौजी को बहुत दुख हुआ... दुख माल के लुटने/बंटने का नही था...बल्कि दुख इस बात का था कि लोगो ने इन दोनो की फीलिंगस की ऐसी तैसी कर दी थी.गिफ्ट मिलने के बाद अब दौर आया उसके उपर प्रतिक्रिया देना का दौर.....सबने इम्पोर्टेड गिफ्टस की तारीफ तो की लेकिन कुछ इस तरह से जैसे सीसामऊ बजार(इसे अपने शहर के सस्ते बाजार पढे) मे मिलने वाली चीजे इन सबसे ज्यादा अच्छी हों......लोगो का व्यवहार भी गिफ्ट के पसन्द और नापसन्द आने के हिसाब से था.... पप्पू को बहुत दुख हुआ, पर अब वो कर भी क्या सकता था....कुल मिलाकर लगभग सभी का मुंह फूला हुआ था.... लोगो के प्रतिक्रिया देने के दौर को भौजी झेल नही सकी और उनका गुस्सा फूट पड़ा, सबको छाँट छाँट कर खरी खोटी सुनायी, तब कही जाकर सबका मुंह बन्द हुआ और भड़ास निकालने के बाद भौजी को भी सकून का एहसास हुआ और उनका खाना हजम हो पाया.

भौजी पप्पू से नाराज हो गयी थी, क्योंकि अब भौजी के मायके मे देने के लिये पर्याप्त गिफ्ट नही बची थी.... भौजी ने कुवैत वापस जाने की धमकी दे डाली, तब जाकर पप्पू को आश्वासन देना पड़ा कि कही किसी कस्टम वाली शाप से कुछ खरीदकर, भौजी के मायके मे बाँटेंगे..... खैर बाकी बातो से तो हमारा कोई मतलब नही है... काफी कुछ भौजी ने भी सेन्सर करवा दिया है.... अब पप्पू के ससुराल मे भी इस एपीसोड को दोहराया गया....बस करैक्टर बदले हुए थे....स्क्रीन प्ले वही था. पप्पू और भौजी जो गिफ्ट दूसरे रिश्तेदारो को अपने हिसाब से देने के लिये लाये थे.. पप्पू की सास ने उसमे से भी काफी कुछ झटक लिया था.... यह कहकर कि दूसरो को गिफ्ट देने की क्या जरूरत है ..... पप्पू दम्पत्ति को बहुत बुरा लगा कि उनके रिश्ते और इमोशन्स की रिडेफिनिशन की जा रही थी और उनके अधिकारक्षेत्र मे दखलन्दाजी की जा रही थी. यहाँ भी पप्पू दम्पत्ति को काफी दुख झेलना पड़ा.. ऊपर से पप्पू की सास ने पूछा लिया... कि कोनौ कायेदे की चीज नही मिलती का कुवैत मे.... पप्पू को तो जैसे काटो तो खून नही........किसी तरह से गुस्सा दबाय गये... बोले आपकी लिस्ट के हिसाब से तो सारा सामान लाया ही हूँ, अब क्या कमी रह गयी है..... सासूजी बोली, जो हमने लिखवाया वो तो ठीक ही ठाक है, लेकिन अपनी मर्जी से जो लाये हो वो आइटम टाप का नही है...... यहाँ गौर करने वाली बात यह है कि पप्पू ने इस बार समझदारी का परिचय देकर प्राइस टैग हटा दिये थे...जिसको सासूजी अच्छा बोल रही थी वो आइटम हाफ दिनार वाले एवरेज आइटम जैसे ही थे... और जिसको खराब बोल रही थी.. वो सब ब्रांडेड स्टफ था....... और भी कई घटनायें घटी थी इनके इन्डिया विजिट मे, लेकिन भौजी के डर के कारण हम सारी बातें छाप नही सकते........ आप तो जानते ही हो....वैसे ही धमकी मिल चुकी है...

कुल मिलाकर पप्पू ने कसम खायी कि अगली बार किसी के लिये भी कुछ नही ले जायेंगे....... लेकिन हमें पता है... जब भी दोबारा प्रोग्राम बनेगा, पप्पू वही गलती दोहरायेंगे... पप्पू क्या सभी प्रवासी लोगों की करते है... अब क्या करें फिर भी दिल है हिन्दुस्तानी..................


मिर्जा का खबरनामा

अब जब मै पप्पू भइया की कहानी बयां कर रहा था जो भौजी(मिसेज पप्पू) ने भी पढी, और मेरे को खासतौर पर बुलाकर कान उमेठते हुए समझाया कि कुछ ऐसा वैसा ना लिखें, नही तो उनसे बुरा कोई नही होगा. मै उनके रौद्र रूप से वाकिफ था अब भला मेरी हिम्मत कि मै भौजी से पंगा लूँ.इसलिये मेने जो स्टोरी ड्राफ्ट की थी उसको सम्पादित कर रहा हूँ, तब तक आप लेटेस्ट न्यूज पर मिर्जा के व्यूज झेलें.


अभी दो दिन पहले ही वीरप्पन भाई ने इस दुनिया को बाय बाय कहा....इस पर मिर्जा की राय..... वीरप्पन को आखिरी समय मे राजनैतिक नेताओ से दगा मिली, एश्योरेंस दिया था कि हमेशा ध्यान रखेंगे, लेकिन दगा दे गये....लगता है कोई हफ्ता टाइम से नही पहुँच पाया... खैर वीरप्पन दुनिया के लिये कितना ही बुरा क्यों ना हो.. लेकिन अपने एरिया के गांव वालो का पूरा ध्यान रखता था... यही उसकी सफलता का राज था.... जैसे इन्डियन राबिनहुड...फिर अब बुढापा भी आ गया था...... लेकिन पैसा बहुत बड़ी चीज होती है... इसलिये किसी साथी को लालच ले डूबा......जो अन्त का कारण बना......... वैसे वीरप्पनभाई ने अगर सही टाइम पर सरेन्डर किया होता तो आज किसी पार्टी के झन्डे तले सांसद और मन्त्री होते. खैर अब क्या सो सकता है.

मिर्जा एक और बात से दुखी है, बहुत से अपराधिक छवि वाले कुछ समाजसेवी(?) चुनाव जीत गये है, कल तक पुलिस जिनके पीछे पीछे घूमती थी,इनकाउन्टर करने का सोचती थी, अब उनके आगे आगे घूमेगी और सार्वजनिक सम्मान करने का सोचेगी..... क्या यही लोकतन्त्र है? कोई बड़ी बात नही अगर महाराष्ट्र मे मुख्य मन्त्री पद का मामला ज्यादा उलझने पर, निर्दलीय विधायक अपनी सरकार बना ले.. तो शायद ऐसे लोग मन्त्री भी बन जायें. उधर बिहार मे पप्पू भइया भी चुनाव जीत गये है..वो भी रिकार्ड मतो से...... अब तो सारा मामला उलझता जा रहा है.... कानून तोड़ने वाले ही कानून बनायेंगे..... अब कुछ भी नही हो सकता.

महाराष्ट्र के मुख्य मन्त्री के सवाल पर बोले कि कान्ग्रेस जो हर बार नये नये फार्मुले की वकालत करती है, शायद इस बार पंवार के आगे सरेन्डर कर दे...पंवार की ही जीत होगी और शायद भतीजे को मुख्यमन्त्री बनवा सकें..... अन्यथा केन्द्र मे पंवार की पार्टी को कुछ और मन्त्रीपद दिये जा सकते है.मैने पूछा मुख्यमन्त्री पद मे ऐसा क्या रखा है जो दोनो पार्टीयाँ लड़े जा रही है... मिर्जा को मेरे राजनीतिक ज्ञान पर हंसी आयी बोले बरखुरदार मुम्बई देश की बिजीनेस कैपीटल है सबसे ज्यादा कमाई वाली जगह सो राजनीतिक चन्दा(?) की उगाही भी सबसे ज्यादा यहीं से होती है, मुख्यमन्त्री जिस पार्टी का माल पर हक उसी पार्टी का, सबझे लल्लू.... मेरे ज्ञान चक्षु खुल गये और मेरे को दोनो आंखो से डालर ही डालर दिखाई देने लगे.

नवरात्री के गरबा उत्सव के बारे मे बोले... यह सब अब दिखावा हो गया है... कंही कोई धार्मिक भावना नही बची है, सबको अपनी अपनी ड्रेस,ज्वैलरी और अंग प्रदर्शन करना होता है. शुरुवात भले ही दुर्गा स्तुति से होती है, लेकिन धीरे धीरे मामला रिमिक्स से होते हुए चोली और उसके आगे तक पहुँच जाता है.मैने उनका ध्यान ज़ीटीवी की उस रिपोर्ट के बारे मे दिलाया जिसके अनुसार नवरात्री के समय गुजरात मे कन्डोम्स की बिक्री बढ जाती है और कुछ महीने के बाद गर्भपात की संख्या......मिर्जा बोले देखो रिपोर्ट के दोनो हिस्से कन्ट्राडिक्टरी है.....फिर भी मेरे को पक्का तो पता नही है.. लेकिन अगर जीटीवी कह रहा है तो बात मे कुछ तो सच्चाई होगी ही... बोले यदि ऐसा है तो लोगो को अपने बच्चो को गरबा उत्सव मे भेजने से पहले दस बार सोचना चाहिये.


अनुपम खेर वाले मामले पर मिर्जा बोले यार ये अनुपम भी खामंखा मे पिला जा रहा है... सबको पता है सरकार जब बदलती है तो हर जगह अपने अपने आदमी फिट करती है ....... इसमे कौन सी बड़ी बात है, बेकार मे ही बात दिल से लगा ली... हरकिशन सिंह सुरजीत के बारे मे बोले, बुजुर्ग है बेचारे कभी कभी कलम फिसल जाती है, वो तो लोगो के नाम ही भूल जाते है फिर काम के बारे मे थोड़े ही याद रखेंगे..... ....अनुपम भाई......छोड़ो यार, ये गन्दी राजनीति आपको रास नही आयेगी... करने दो इन नेताओ को अपनी मनमर्जी , बहुत दिनो बाद पावर मिला है ,छोड़ो आप जाओ अपना फिल्मी कामधाम सम्भालो........ ये सब बेकार की बाते है.


स्टार न्यूज के खुलासे(फिल्मी अभिनेत्रियो और माडल्स द्वारा राते गुजारने पर) मिर्जा खुलकर बोले... और बहुत सही बोले.....इसके बारे मे अगली बार....

टाइम काफी हो गया था सो मैने मिर्जा को नमन किया और आज के डोज के लिये धन्यवाद किया और निकल लिया पतली गली से.

Monday, October 18, 2004

पप्पू भइया की दुविधा

हम अप्रवासी भारतीयो की भी अपनी अनोखी समस्यायें रहती है, जब भी भारत जाने का प्रोग्राम बनता है, हमेशा सोचना पड़ता है, क्या ले जायें, अब क्या करें देश मे लोगो की एक्सपेक्टेशन इतनी रहती है, कि अगर सबकी माने तो साथ मे पानी वाला जहाज बुक करना पड़े और शायद वो भी कम पड़े. पहले तो अपने घरवाले,फिर नाते रिश्तेदार, फिर बेगम के घर वाले,नाते रिश्तेदार, फिर दोस्त यार, फिर अड़ोसी पड़ोसी, फिर दूर दराज के रिश्तेदार, फिर जान पहचान,फिर खामखा वोले.... अब लिस्ट तो बहुत लम्बी है, कहाँ तक गिनाये?

अब अगर आपने गलती से अपने रिश्तेदारों के लिये कुछ खरीद लिया तो लाजिम है कि बेगम भी अपने रिश्तेदारों के लिये लिस्ट थमा देंगी, ना करेंगे तो आप जानते ही है, क्या हाल होगा....बताने की जरूरत नही है...........दरअसल ये अकेली मेरी समस्या नही है, सभी प्रवासियो के साथ यही होता है. अब पप्पू भइया को ही ले.... अभी पिछले हफ्ते ही पहली बार इन्डिया से लौट कर आये है..बहुत तकलीफ मे है बेचारे ...........इनका परिचय?............हाजिर है.

दरअसल पप्पू भइया, हमारे भारतीय सामाजिक मंच के उपाध्यक्ष है, बहुत ही एक्टिव प्राणी है, कुवैत मे अभी नये नये है, भारत मे बिहार या झारखन्ड से ताल्लूक रखते है...अरे भाई ये वो वाले पप्पू यादव नही है..जो चुनाव लड़े और जीते.......ये वाले स्वभाव से बहुत सरल,हमेशा दूसरो के लिये समर्पित, ठेठ बिहरिया अन्दाज,लालू के पक्के फैन, बिहार की कभी बुराई नही सुन सकते, इनको बिहार के अलावा बाकी का भारत पिछड़ा दिखता है,चालाकी तो इनको कभी छू कर भी नही गयी है,हर आदमी इनका इस्तेमाल करके चलता बनता है......................अब कुवैत मे नये है तो संस्था के उपाध्यक्ष कैसे बने?... अरे भाई, इन संस्थाओ को नये नये मुर्गे चाहिये होते है, नये बन्दे ज्यादा एकाग्रता और तन्मयता से काम करते है, वैसे भी नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है....अपना काम भले ही पिछड़ जाये, लेकिन सामाजिक मंच के काम काज मे सबसे आगे रहते है, चाहे वो लोगो को फोन करना हो, चन्दा इकट्ठा करना हो, सभा का संचालन करना हो.....अपने पल्ले से सभा का सामान लाना हो या फिर किसी विशेष कार्यक्रम के लिये कलाकारों का जुगाड़ करना हो... सारा काम इनके सर पर डाल कर लोग, कन्नी काट लेते है, बस गाहे बगाहे इनकी तारीफो के पुल बांध लेते है.सबको पता होता है,कम से कम एक दो साल तक तो इनको टोपी पहनायी ही जा सकती है.वैसे पप्पू भइया जैसे लोग तो इस तरह से जिन्दगी भर हांके जा सकते है.

तो जनाब पप्पू भइया कुवैत आने के बाद पहली बार, इन्डिया जा रहे थे, सो मेरे से उन्होने पूछा, यार बताओ क्या ले जाऊँ, मैने मन ही मन सोचा, मै खुद ही पीड़ित हूँ, यदि मैने इनको अपनी असली राय बता दी, तो शायद सम्बंध खराब हो जायेंगे, सो मैने टोपी मिर्जा के सर डाल दी, वैसे भी मिर्जा और पप्पू का छ्त्तीस का आंकड़ा है....मैने पप्पू को बोला, तुम मिर्जा से मिलो, मिर्जा इन सब चीजो मे एक्सपर्ट है, तुमको ठीक तरीके से समझा देगा.खैर जनाब शाम का समय तय हुआ, हम लोग मिर्जा के घर पहुँचे.....

पप्पू भइया ने अपना सवाल उनके सामने दोहराया.....मिर्जा ने दार्शनिक वाली मुद्रा बनायी और छूटते ही बोले... देखो बरखुरदार,मेरी राय मानो तो कुछ खाने‍पीने का सामान ले जाओ बस, और कुछ नही, कुवैत मे खजूर अच्छी मिलती है, वही ले जाओ,बाकी सामान से कन्नी काट लो.....कोई भी झाम टिका देना...वैसे भी आजकल हिन्दुस्तान मे हर चीज मिलती है.........अब आगे तुम्हारी मर्जी,तुम्हारा पहला विजिट है, इसलिये नाते रिश्तेदारो मे जैसी आदत डालोगे वैसा ही आगे लोग उम्मीद रखेंगे, सो कम से कम सामान ले जाओ तो ज्यादा अच्छा रहेगा. हाँ अपने घरवालो के लिये जो चाहो ले जाओ, लेकिन नाते रिश्तेदारो के लिये सोच समझकर ले जाना.पप्पू को बात समझ मे नही आयी सो वो पूछ बैठा, मिर्जा साहब आप ऐसा क्यों बोल रहे है, मै तो सबके लिये कुछ ना कुछ ले जाने की सोच रहा था, अच्छा खासा बजट भी बना रखा है, ऊपर से मैडम के रिश्तेदारो की फोन पर लिस्ट भी आ चुकी है. मिर्जा बोले बेटा मै जानता हूँ, अभी तेरे को मेरी कोई भी राय समझ मे नही आयेगी, लेकिन इस बात की गारन्टी है कि इन्डिया से लौटकर तेरे को मेरी बाते जरूर समझ आयेंगी. मिर्जा बोले..... अब जाते जाते एक गुरूमन्त्र भी लेते जाओ............देखो जब तुम इन्डिया जाते हो, लोग तुमसे कम तुम्हारी गिफ्टस से ज्यादा मिलना चाहते है, हमेशा ध्यान रखना, तुम्हारी इज्जत तुम्हारे हाथ मे है, जब तक अटैची नही खुली, लोग तुम्हारी बहुत इज्जत करेंगे,मान सम्मान देंगे,प्यार स्नेह उड़ेलेंगे,बार बार खाने के लिये पूछेंगे, मानो तुम्हारी इज्जत तुम्हारी अटैची मे बन्द है.जैसे ही तुमने उनको अटैची खोलकर गिफ्ट बाँट दी... उसके बाद समझो पानी का गिलास भी खुद उठाकर पीना पड़ेगा... और रही बात गिफ्ट की तुम जो कुछ भी ले जाओगे, चाहे आसमान के तारे भी तोड़ कर ले जाओ,हर कोई उसमे मीन मेख जरूर निकालेगा, चाहे जिन्दगी भर ब्रान्डेड परफ्यूम किसी ने इस्तेमाल ना किया हो लेकिन सबको उम्मीदें उसी की होती है,अब अगर तुम उनको सस्ती परफ्यूम भी ब्रान्डेड कहकर टिका दोगे तो खुश हो जायेंगे. मिर्जा बोले हाफ दिनार शाप (दूसरे देशो मे 100 येन या १ पौंन्ड या १ डालर शाप, पढे) मे चले जाओ सब कुछ मिलता है, जाहिर है सब कुछ मेड इन चाइना का ही होगा, किसी को सामान के रेट की कुछ समझ नही होगी, थोड़ी बहुत ढींगे हाँक देना... और हाँ जब यह सब सामान लेने जाओ तो अपनी बेगम को मत ले जाना.... नही तो बेटा सारी दुकान तो खरीदवा ही देगी, साथ ही कुछ खास खास लोगो के लिये स्पेशल शापिंग भी करवा देगी, सो पहली बार तो तुम्हे अपनी बीबी से भी झूठ बोलना पड़ेगा... नही तो गये तुम बारह के भाव से. हमने पप्पू के चेहरे के हावभाव से पढ लिया था कि पप्पू को बात समझ मे नही आयी.......पप्पू ने हमे पतली गली से निकलने का इशारा किया......हमने मिर्जा को सलाम ठोंका, निकलते निकलते मिर्जा ने हमारे कान मे बोला, जब पप्पू लौट कर आये तो उसको मेरे पास जरूर लाना......हमने गर्दन हिलायी और मिर्जा से विदा लेकर निकल पड़े.....

अब जब पप्पू भइया को मिर्जा की बात समझ मे नही आयी थी सो जाहिर है पप्पू भइया ने अपने हिसाब से शापिंग की, पप्पू भइया पहली बार जा रहे थे, सो सबके लिये ढेर सारा सामान ले गये, बाकायदा लिस्ट बना कर और टिक मारकर किसी नाते रिश्तेदार,दोस्त यार,जान पहचान वाले को नही छोड़ा... और तो और मुहल्ले के पनवाड़ी,प्रेस वाले और कल्लू हलवाई तक के लिये गिफ्ट ले गये... पैसे थोड़े कम पड़ गये तो ओफिस से सैलरी भी एडवान्स मे ले ली......शान मे कमी ना पड़े, सो मेरे से भी कुछ दीनार उधार ले गये....हालांकि मेरा पिछला अनुभव कह रहा था कि अभी कुछ महीने तक तो मेरे पैसे वापस मिलने वाले नही.ये सब तो होता ही रहता है, मै इनको दोस्ती के खामियाजे मानता हूँ.

खैर जनाब, पप्पू भइया बड़े शान से इन्डिया की यात्रा के लिये निकले.... एयरपोर्ट जाने के लिये दो गाड़ियो की व्यवस्था करनी पड़ी, सामान जो इतना ज्यादा था, ऊपर से जब सामान चैक‍-इन हो रहा था, तो काउन्टर पर बैठी बाला ने मुस्कराकर पप्पू से पूछा... फर्स्ट ट्रिप टू इन्डिया? पप्पू ने खीसे निपोरकर, सीना ठोंक कर जवाब दिया हाँ..... बाला ने सामान चैक‍-इन किया और पप्पू को यात्रा का पहला झटका देते हुए, एक्सेस लगेज के लिये एक्सट्रा पैसों की डिमान्ड कर दी......पप्पू ने हंसते हंसते पहला झटका झेला, पैसे चुकाये......बोर्डिंग पास लपकी,हमसे विदा ली और अगले लाउन्ज के लिये प्रस्थान कर गयें. हमारा साथ सिर्फ यहीं तक था.

खैर जनाब पप्पू भइया इन्डिया से लौट कर आये, हम उनको एयरपोर्ट पर रिसीव करके उन्हे उनके घर तक पहुँचाये........साथ ही मिसेज का दिया हुआ खाने का टिफिन थमाया. ये सर्विस कम्लीमेंटरी होती है और कुवैत मे बहुत ही पापुलर है.पप्पू भइया की हालत देख कर समझ मे आ रहा था कि सब कुछ ठीक ठाक नही है,कंही ना कंही कुछ पन्गा जरूर है.........पप्पू भइया भी बैचेन दिखे,अपनी आपबीती सुनाने के लिये , लेकिन हम जल्दी मे थे सो पप्पू भइया से वीकेन्ड पर मिलने का वादा करके अपने काम पर निकल लिये. पप्पू भइया की इन्डिया विजिट की दर्दनाक दासतां अगले एपिसोड मे...............पढते रहिये ‍‍.... मेरा पन्ना.‍‍

Saturday, October 16, 2004

महाराष्ट्र चुनाव विश्लेषण

आखिरकार मिर्जा का इन्तजार खत्म हुआ, महाराष्ट्र चुनाव की आखिरी सीट के परिणाम आने तक मिर्जा ना तो खाना खा रहे थे और ना ही टीवी के आगे से हट रहे थे... छुट्टन मिंया जो अभी अभी नयी फिल्मो की डीवीडी ले आये थे.. बड़े परेशान थे.. गलती से मिर्जा के सामने ही बोल पड़े, लानत पड़े महाराष्ट्र इलेक्शन वालों पर... तब मेरे को याद है, मिर्जा ने तकिया फेंक कर मारा था.. छुट्टन मियां तो झुक गये.....और तकिया मेरी चाय पड़ गिर पड़ा था....सारे कपड़े खराब हो गये थे...छुट्टन मिंया ने धोने डाले है...और मै तौलिये मे ही खड़ा हुआ मिर्जा की चुनाव चर्चा झेल रहा हूँ, इसको बोलते है, मजबूर श्रोता.. तौलिये मे तो मै भाग भी नही सकता... अब जब मै भी झेल रहा हूँ तो आप भी सुनिये, महाराष्ट्र के चुनाव विश्लेषण, मिर्जा साहब की जबानी...., इसके पहले आपको राज्य के चुनाव नतीजे बता दें,

टोटल सीटः288
कांग्रेसः69 , राकांपाः71 आपीआई‍‌-एः01 Total : 139
शिवसेनाः62 बीजेपीः54 एसटीबीपीः01 Total : 119
अन्यः30(जिसमे सीपीआई की तीन सीटे शामिल है.)

देखो मिंया मै तो पहले ही कहता था.. ये दिन प्रमोद महाजन के लिये बहुत ही परेशानी भरे है..अब वही हुआ..अब झेलो... लोकसभा मे बीजेपी का कून्डा बिठवा दिया था, वो कम था कि महाराष्ट्र की कमान भी उसके हाथ मे दे दी..खैर जो होना था तो सो हुआ, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के खेमों मे तो जशन का माहौल है, बस शिवसेना और बीजेपी मे मायूसी छाई है.इतना अच्छा मौका था, बीजेपी के लिये वापसी का, लेकिन कोई फायदा नही, शिन्दे की सरकार, जिसने पांच साल मे कोई भी काम नही किया, वो भी जीत गयी. कोई समझ नही पा रहा है कि गलती हुई कहाँ...

दरअसल शिवसेना वाले अपनी बात लोगो को ठीक से समझा नही सके...लोगो मे शिवसेना के प्रति कुछ गुस्सा था, वही मी मुम्बइकर अभियान को लेकर, लेकिन वो गुस्सा मुम्बई तक सीमित था.. जमीन पर कार्यकर्ताओ को समझ मे नही आ रहा था कि शिवसेना जो काडर वाली पार्टी है उसमे भी पद को लेकर खींचतान शुरू हो गयी थी, राज ठाकरे,मनोहर जोशी और उद्दव ठाकरे तीनो इस हार के लिये जिम्मेदार है.अभी छीछड़े मिले नही, बिल्लियो मे पहले से लड़ाई होने लगी. बाला साहब ठाकरे का चुनाव प्रचार मे देर से उतरना भी प्रमुख कारण है, उनके अपशब्दो का प्रयोग और मराठा कार्ड का फेल होना भी ध्यान देने योग्य कारण है.शिवसेना को पहले अपना घर सुधारना चाहिये था और राज्य के मुद्दे ज्यादा गम्भीरता और समझदारी से उठाने चाहिये थे...उद्दव ठाकरे की नेतृत्व क्षमता पर भी प्रश्नचिन्ह लग रहे है.


दूसरी तरफ बीजेपी का पूरा चुनाव अभियान ही दिशाहीन था.कभी तिरन्गा, कभी सावरकर, कभी विदेशी मूल,जो गलती उन्होने लोकसभा चुनावो मे की थी, वही दोहरायी गयी.मुद्दे कई उठाये लेकिन जोर किसी भी एक पर जोर नही दे सके.बीजेपी को यह बात समझ लेनी चाहिये कि लोग अब विकास सम्बधित मुद्दो की बात करना चाहते है, इधर उधर की बात करने से कुछ नही होगा....वैसे भी राज्यो के विधानसभा के चुनावो मे राष्ट्रीय मुद्दो का रोल सीमित ही होता है. भाजपा अपने प्रमुख मुद्दो पर ध्यान केन्द्रित नही कर सकी.इसके अलावा बीजेपी को सोनिया के विदेशी मूल वाले मुद्दे को छोड़ना होगा, इसका उल्टा असर हो रहा है.किसानो की आत्महत्या का मामला, जिसके बूते कांग्रेस आन्ध्रप्रदेश मे सत्ता मे आ सकी थी.. बीजेपी महाराष्ट्र मे इसे नही भुना सकी, इसके अलावा हिन्दू वोटो का बँटना, मुस्लिम वोटो का एकजुट होना भी हार का प्रमुख कारण रहे.बीजेपी को अपने चुनाव प्रचार मे संसाधन ठीक से इस्तेमाल करने चाहिये थे और रणनीति पर चिन्तन करना प्राथिमिकता होनी चाहिये.और प्रमोद महाजन का हाल........ बताने की जरूरत है क्या?

कांग्रेस के लिये यह नतीजे देखने मे भले ही अच्छे लगे, लेकिन कांग्रेस को इन नतीजो पर खुश नही होना चाहिये, बल्कि चिन्तन करना चाहिये कि महाराष्ट्र जैसी जगह पर भी, वह छोटी पार्टी की तरह सिमट गयी है, उसकी निर्भरता दूसरे दलों पर बढ गयी है, जो कतई अच्छी खबर नही है, कंही यहाँ पर भी यूपी वाला हाल ना हो जाये.वैसे कांग्रेस के लिये यह अन्धे के हाथ बटेर लगने वाली बात है, कांग्रेस मे किसी ने भी नही सोचा था कि दुबारा सत्ता मे लौटेंगे.सुशील कुमार शिन्दे तो लगभग अपना बोरिया बिस्तर समेट चुके थे.दूसरी तरफ विदर्भ के मुद्दे ने भी कांग्रेस को पशोपेश मे डाल रखा था.कांग्रेस के लिये बस एक ही अच्छी खबर है कि सोनिया की स्वीकार्यता और लोकप्रियता बढ रही है, लोग अब सोनिया को परिपक्व राजनीतिज्ञ मानने लगे है.लेकिन यह लोकप्रियता वोटो मे तब्दील नही हो पा रही है, जिसके लिये अभी काफी मेहनत करने की जरूरत है.
सबसे ज्यादा फायदे मे रहे शरद पवार और उनकी पार्टी, जो सबसे बड़ी पार्टी बन के उभरी है, इसके अलावा राकांपा का वोट प्रतिशत बढा है जो काफी अच्छी खबर है.चुनाव के ठीक पहले रूई किसानो और गन्ना किसानो के लिये पैकेज का ऐलान करवाकर, पंवार हीरो बन गये थे... ऊपर से पंवार की लोकप्रियता और बढ गयी जब उन्होने मुख्यमंत्री पद को कांग्रेस को देने का ऐलान किया, जबकि शिवसेना मे मुख्यमंत्री पद के लिये छीना छपटी हो रही थी. इसे पंवार का त्याग माना गया और जनता मे सहानूभूति हासिल की गयी.हालांकि नतीजे आने तक पंवार की मुख्यमंत्री पद वाले त्याग की पोल खुलने लगी, लेकिन अन्ततः कोई ना कोई सौदा हो जायेगा, जो पंवार के लिये काफी फायदेमन्द रहेगा.

अब अगर मायावती की बात ना करे तो उचित नही होगा.. इसने ना जाने क्या सोंच कर अपने सारे उम्मीदवार उतार दिये,, अगर उतार दिये तो कम से कम उनको ठीक तरीके से सपोर्ट तो करती.. जो कुछ वोट मिले है, वो सब उम्मीदवारो के अपने बूते मिले है, बसपा का इसमे कोई रोल नही है.उधर मुलायम सिंह जो इस खुशफहमी मे थे कि यूपी के बाहर भी वो एक बड़ी ताकत है, उनकी भी हवा निकल गयी, अब बिहार चुनाव मे उतरने से पहले फिर सोचना होगा. मायावती और मुलायम दोनो एकदूसरे के लिये खुश होगे कि दोनो को एक भी सीट नही मिली.

अब कांग्रेस और राकांपा गठबंधन को पहले राज्य की खस्ताहाल अर्थव्यवस्था को सुधारना होगा और विकास के काम को गम्भीरतापूर्वक आगे बढाना होगा.लोगो के जानादेश का सम्मान करते हुए, राज्य को फिर नम्बर वन बनाना होगा.

अब तक मेरे कपड़े सूख चुके थे... इसलिये मैने पतली गली से निकलना उचित समझा.......लोकसभा उपचुनावो की बात फिर कभी.

Thursday, October 14, 2004

स्वामी का क्रिकेट प्रेम

पार्टी वाले दिन तो स्वामी को ज्यादा बोलने का मौका नही मिला था, मेरे को घर जाना था.. मिर्जा भी थक कर चूर हो चुका था....सो हमने स्वामी चुप कराकर अगले दिन मिर्जा के घर, दरअसल यही हमारा अड्डा था,.मे फिर से मिलने का वादा किया..... राम जाने स्वामी रात भर कैसे सो सका होगा....... ये उसकी प्रोबलम है, हम और आप क्यों परेशान हो.

स्वामी का परिचय तो आप को मिल ही चुका है, फिर भी नये पाठको के लिये हल्का सा प्रकाश डाल दे, इनके जीवन पर, पूरा नाम स्वामीनाथन, साथ मे बहुत सारे प्रिफिक्स और सफिक्स, नाम को मारिये गोली, ......................स्वामी पिछले आठ साल से कुवैत मे है, होमटाउन तमिलनाडु के कंही दूर दराज मे , जब कभी भी इन्होने अपने गांव का नाम बताना चाहा, मिर्जा ने हमेशा टापिक बदल दिया,क्यो?.. अरे यार गांव का नाम ही इतना लम्बा है.....खैर कुवैत आने से पहले दस साल दिल्ली मे रहे...... सो आधे दिल्ली वाले और आधे मद्रासी फिफ्टी फिफ्टी . दोनो जगह अजनबी माने जाते है.एक ही शौक है, क्रिकेट की जानकारी झाड़ने का......हालांकि कभी भी क्रिकेट का बल्ला हाथ मे नही पकड़ा,जब भी हम उनको इस बात की याद दिलाते है तो बोलते है, डालमियां ने कौन सा क्रिकेट खेला था, लेकिन हिन्दुस्तान की क्रिकेट मे उसी की ही चलती है, इनका एक ही सपना है, सचिन तेन्दुलकर सहित पूरी टीम को अपने घर खाने पर बुलाने का....खाने मे इडली,रसम और डोसा खिलाने का.... अब सचिन ठीक होये तो बात की जाये.. जब भी स्वामी सोचते है कि अब फोन करे तब फोन करे, हमेशा पता चलता है कि सचिन अभी भी बीमार है.अब सचिन की अपनी बीमारी है या इनके यहाँ खाना खाने का डर, ये तो सचिन ही जाने.इनका एक और शौंक है, शेयर मार्केट के बारे मे विशलेषण करना, मेरे ख्याल से इन्होने शायद ही किसी कम्पनी के शेयर खरीदे हों कभी, लेकिन शो तो ऐसा करते है कि हर्षद मेहता के बाद इनका ही शेयर का कारोबार है.अब यह हमारी खुशनसीबी कहै या बदकिस्मती, मिर्जा और छुट्टन के बाद इनको झेलना भी हमारी मजबूरी है.

हमने पहले से ही सोच लिया था कि आज स्वामी को आउट औफ फोकस नही देंगे, मिर्जा ने मेरे को इशारा किया कि आज इसको जी भर के बोलने देना,कंही कोई कसक ना रह जाये.....फिर बाद मे इसको ठीक से धोयेंगे....मैने सहमति मे गर्दन हिलायी.खैर जनाब, स्वामी बड़े सलीके से तैयार हो कर मिर्जा के अड्डे पर पहुँचा.....मिर्जा ने छूटते ही पूछा.. "स्वामी आज लुंगी नही पहनी, धोने डाली है क्या?", वैसे मिर्जा उनको कभी भी स्वामी का उदबोधन नही देते थे,हमेशा मद्रासी कह कर चिढाते थे, मै भी चौका आज मिर्जा ने इतनी नर्मी क्यो बरती..., स्वामी ने हँसते हुए जवाब दिया हाँ, धोने डाली है.... मिर्जा चुप कहाँ रहने वाले थे.. बोले "तुम लुन्गी मे स्मार्ट लगते हो.....यार कब तक एक लुंगी से काम चलाओगे.. एक आध और खरीद लो.".. बस जनाब इतना सुनते है, स्वामी का पारा हाई हो गया.... जल्दी जल्दी मे हिन्दी तमिल और अंग्रेजी मिक्स करके बोलने लगा....... ये स्वामी की दूसरी कमजोरी थी.. जब वो गुस्से मे होता था तो तीनो भाषाये मिला कर बोलता था.स्वामी ने मिर्जा को लाख लानते भेजी और ढेर सारी तमिल मे गालिया भी.. जो हमारी तो समझ मे ही नही आयीं....हाँ कुछ कुछ हिन्दी और अंग्रेजी वाली बाते हमे समझ मे आयी.....जिसके अनुसार मिर्जा किसी दानव की तरह है और स्वामी को ईश्वर ने इसका दमन करने भेजा है........ हमने दोनो को समझाया, स्वामी का गुस्सा ठन्डा कराया, उसको पानी का गिलास टिकाया और मिर्जा को चुप कराने के लिये च्विंग‍गम.

मैने मामला बदलने के लिये क्रिकेट का टापिक छेड़ दिया.... जिसमे सिर्फ और सिर्फ स्वामी की एक्सपरटाइज थी..... स्वामी ने तो सबसे पहले गांगुली के मुत्तालिक जबरदस्त भड़ास निकाली, बोले इसको हटा देना चाहिये.... एक ध्यान देने वाली बात यहाँ पर यह है कि मिर्जा हमेशा स्वामी के विपरीत बोलता है, चाहे स्वामी सही कहे या गलत, मिर्जा हमेशा, विपक्ष मे रहता है.. मेरे सामने वाद‍-विवाद प्रतियोगिता होती है, अक्सर जज मै ही बनता हूँ, इसे जज कहना ठीक नही होगा.. बाक्सिंग का रेफरी शायद सही उपमा होगी....जिसको बाक्सरो को छुड़ाने कभी कभी बहुत जोर की पड़ती है.

स्वामी बोलता रहा.. गांगुली ने पूरी टीम का बेड़ा गर्क किया है, खुद अच्छा नही खेल सकता तो दूसरे को भी ठीक से नही खेलने देता है.. हमेशा या तो खुद रन आउट होता है, या फिर दूसरे को करवा कर ही रहता है... जिन्दगी मे कभी भी टास नही जीता... मानो घर से ही सोच कर आता हो,अगर अगली टीम ने बैटिंग करने दी तो ऐसे आउट होउंगा और नही तो बालिंग मे रन पिटवाउंगा ही. मिर्जा ने मेरी तरफ देखा मै मुस्करा दिया और मिर्जा को बोलने की खुजली हो रही थी, लेकिन मैने चुप रहने का इशारा किया.

अगली बारी सहवाग की थी.. स्वामी बोला, जब से शादी की है, तब से बीबी से मिलने की जल्दी रहती है.. मानो बीबी को बोल कर आता है.. डार्लिन्ग तुम बस चाय का पानी चढाओ...मै यूँ गया और यूँ आया....कभी टिक कर खेलना तो सीखा ही नही और टीम है कि उसको झेले ही जा रही है,हटाना चाहे भी तो हटा नही सकती.. क्योंकि सचिन जो टीम से बाहर है आजकल,, हालांकि स्वामी सचिन के लिये भी कुछ बोलना चाहते थे.. लेकिन ना जाने क्या सोच कर खामोश हो गये.सचिन का गुस्सा टीम के फिजियोथैरिप्सिट पर निकला... बोले यह गधा है... इसको आज तक मर्ज ही नही समझ मे आया,पिछले दो महीने से कह रहा है, अगले हफ्ते ठीक हो जायेगा... जाने कब ठीक होगा....अब जाने ये टेनिस एलबो का कौन सा मर्ज पैदा कर दिया है.... क्या जरुरत थी टेनिस खेलने की......अब टेनिस की बाल एलबो पर लग ही गयी ना.........मिर्जा और हम स्वामी की नालेज पर मुस्करा दिये.फिर बोले अपना द्रविद ठीक है, लेकिन जब कभी मौका पड़ता है तो चूक जाता है.. फिर वीवीएस लक्ष्मन पर बरसने लगे.. बोले इसका भी यही हाल है..शादी के बाद मेहनत नही होती विकिट पर....

मामला अभी यहीं पर खतम नही हुआ था, बोले युवराज को तो खांमखा मे ही टीम मे रखा है... निकालो बाहर.. क्यो नही कैफ को खिलाते... जाने क्या सोच कर युवराज को खिलतें है... और नगमा भी लगता है फ्री बैठी रहती है... जहाँ युवराज खेलने जाता है... पहुँच जाती है...अब नगमा अगर पवैलियन मे इन्तजार कर रही हो तो कौन नामाकूल विकिट पर पसीना बहायेगा....उतनी एनर्जी बाद के लिये बचा कर नही रखेगा... हम समझ गये.. यहाँ पर सेन्सर करना पड़ेगा नही तो स्वामी तो बात बैडरूम तक ले जायेंगे.... मै बोला स्वामी कुछ बालर्स पर भी तो बोलो......स्वामी का चेहरा खिल उठा, बोले बहुत दिनो बाद बालिंग मे इन्डिया ठीक चल रहा है.. बस अपना बालाजी वापस आ जाये.. ना जाने कौन सा मर्ज है उसको.. पहले बोलते थे पेट खराब है..अब बोलते है हड्डी खिसक गयी है......भगवान जाने कौन सही है कौन गलत.

और अपना पठान सही काम कर रहा है..बाकी बौलर्स तो चार ओवर फेंक कर टैं बोल जाते है... मै समझ गया उनका इशारा नैहरा की तरफ था.बोले जाने कब ठीक रहता है, फिर जाने कब बीमार हो जाता है.. फिर ना जाने कब पता चलता है कि फिर से ठीक हो गया है.....अचानक उनको ओपनर्स की याद आयी... बोले पार्थिव को भेजना चाहिये सहवाग के साथ... और गागुंली को पार्थिव की जगह पर खेलना चाहिये.....वीवीएस अगर नही जम पा रहा है तो कुछ दिन आराम कराना चाहिये.... मै बोला गांगुली पर कभी तरस नही आता तुम्हें? बेचारे के पास च्वाइस भी तो लिमिटेड है.. स्वामी बोला... होंगी लिमिटेड.. लेकिन खिलाड़ियो मे जोश पैदा करना उसका काम है... खुद तो सारा दिन चेहरा लटका कर नाखून चबाता रहता है.. दूसरो से भी वही उम्मीद करता है, ऐसे बन्दे पर क्यो तरस खाये.

मै समझ गया आज स्वामी को हम लोग जवाब नही दे पायेंगे... मिर्जा ने कुछ फिकरे कसे थे.. लेकिन स्वामी ने सभी फिकरों का मूंहतोड़ जवाब दिया...देखा जाये तो स्वामी का क्रिकेट टीम के प्रति गुस्सा जायज है.. हम लोगो ने इन्हे भगवान सा दर्जा दे रखा है, और हमेशा ये हमे नीचा दिखाते है.


नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये.



जय अम्बे गौरी मैया जय श्यामा गौरी
जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी

तुम को निस दिन ध्यावत

मैयाजी को निस दिन ध्यावत
हरि ब्रह्मा शिवजी ।बोलो जय अम्बे गौरी ॥

आप सभी को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये.

ग्राहक सेवा

कभी कभी मोबाइल सेवा देने वालो को ऐसे ग्राहक भी मिल जाते है, जो उनका दिन खराब कर देते है.आप जानना चाहते है कैसे....
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यह पाकिस्तान मे कराची शहर के एक कस्टमर का फोन था, मोबाइल कम्पनी के सपोर्ट मैनेजर को.....
जल्दी ही सुने... ना जाने कब यह लिंक खत्म हो जाये.
एक और बात... इस वार्तालाप मे कुछ अपशब्द भी प्रयोग हुए है.. कृपया ध्यान रखे.....

Wednesday, October 13, 2004

छुटकी कविता

अब जब कविताओं का दौर चल ही रहा है, क्यो ना हम भी बहती गंगा मे हाथ धो ले.

हमने भी अल्हड़पन मे कविता लिखने की असफल कोशिश की थी.....
एक छुटकी हाजिर है.

अश्क आखिर अश्क है, शबनम नही
दर्द आखिर दर्द है सरगम नही,
उम्र के त्यौहार मे रोना मना है,
जिन्दगी है जिन्दगी मातम नही

Tuesday, October 12, 2004

पाठको की प्रतिक्रिया और मेरे जवाब

मेरा सभी पाठको से विनम्र निवेदन है कि चिट्ठे की प्रतिक्रिया कृपया करके चिट्ठे पर ही देने की कोशिश करे.अलग से इमेल ना करे. आइये अब बात करे पाठको की प्रतिक्रिया की. कई लोगो ने तारीफ कर के उत्साह बढाया है, कई लोगो ने आलोचना की है. पाठको की तारीफ और आलोचना दोनो सर माथे पर. आलोचना करने वालो ने जो बोला है, उसका मै जवाब देना चाहूँगा.मैने सवाल ज्यों के त्यों छाप दिये है... बिना किसी लाग लपेट के.


आप बीजेपी के पीछे क्यो. पड़े रहते है
ऐसा नही है, यदि आपने मेरे सारे चिट्ठे पढे हो तो आप पायेंगे कि मै समान रूप से सभी राजनीतिक पार्टीयो को धोता हूँ,वैसे मै आगे से विशेष ध्यान रखूंगा.

आप समाचारो मे बहुत Selective है.
यह सच है, मेरा चिट्ठा, विचार स्थल है, समाचार स्थल (news site) नही, समाचार के लिये बहुत सी अच्छी वैब साइट है, यहाँ मै सिर्फ अपने विचार आपके सामने रखता हूँ.

आप लम्बी लम्बी छोड़ते है
काहे भइया,कौनो लिमिट तो बन्धवाय नही हमऊ, सो छोड़ने दिया जाये.जहाँ ना झिले ऊहाँ टोका जाय.

आपके मिर्जा साहब, के.पी.सक्सेना के करैक्टर से मारे(चुराये) हुए है.
देखिये, सक्सेना साहब बहुत ही बड़े लेखक है और हमारे आदर्श भी, हमारा उनसे कोई मुकाबला नही. वैसे भी हमारे मिर्जा साहब कुवैत मे रहते है, इनकी आदते,व्यवहार और जीवनशैली सब कुछ अलग है. अब लखनवी है तो जबान तो लखनवी बोलेंगे ही ना.वैसे मै मौलिक होने की पूरी चेष्टा करता हूँ.

आपके मिर्जा साहब और छुट्टन मिंया काल्पनिक है या सचमुच के किरदार है.
क्यो भाई, अपने ट्रेड सीक्रेट आपको बता दें?, और सच बोले तो दोस्तो मे बदनाम हो, इसलिये हम तो चुप ही रहेंगे.आप तो बस मिर्जा और उनकी हरकते इन्जवाय करिये.असली नकली के चक्कर मे मत पड़िये.

अभी और कितने करैक्टर जोड़ेंगे?
शायद एक या दो और... देखिये रहिये.

आपका चिट्ठा शुरू तो हुआ था राजनैतिक विषयो पर, लेकिन आप भटक गये है.
देखिये हमे हर सब्जेक्ट पर कंसल्टेन्ट चाहिये.. इसलिये अभी करैक्टर्स का इन्टरोड्क्शन चल रहा है. जब पूरे हो जायेंगे तो हम फिर मतलब की बात पर वापस लौट आयेंगे.वैसे भी जबसे मिर्जा साहब हमारे चिट्ठे पर अवतरित हुए है, पेज हिट्स बहुत ऊपर चले गये है. सो पब्लिक डिमांड भी कोई चीज होती है, लेकिन हम अपने मुद्दे से कभी नही भटके.

आपके मिर्जा साहब सेक्स से रिलेटेड बाते नही करते क्या?
देखिये सारी बाते तो हम यहाँ छाप नही सकते.. हमारा चिट्ठा पूरा परिवार पढता है, काफी सारी मेल तो लेडीज की होती है, अब आप सेक्स की बाते छपवा कर उनको हमारे चिट्ठे से दूर करना चाहते है क्या?

आप लिखने के लिये समय कब निकालते है.
जीवन मे हास्य हमारे आस पास फैला रहता है, जरूरत है तो बस उसे देखने की.सुबह सुबह जब नित्य क्रिया मे होते है, तब आइडिया मिलते है... बीच बीच मे जब भी समय मिलता है, लिख लेते है. जब आफिस मे फ्री समय होता है, तब अपलोड कर देते है.

आप चिट्ठो को अलग अलग विषयो मे क्यो नही बाटँ देते.
मै इस पर विचार कर रहा हूँ, कोई सस्ता सुन्दर और टिकाऊ वैब साइट होस्टिंग वाला मिले तो बतायेगा.ये ब्लोगर तो बड़ा नटखट है, बहुत परेशान करता है.

आप इतना धाराप्रवाह कैसे लिख लेते है.
देखिये हम कानपुरी है, और धाराप्रवाह हिन्दी बोलते है,जैसे जैसे विचार मन मे आते जाते है, हम उन्हे ब्लाग मे उतारते जाते है.बस इतना करते है कि पहले ड्राफ्ट मे सेव करते है, खुद पढते है, जरूरी करैक्शन करते है, फिर पब्लिश कर देते है.फिर भी कुछ गलतियां तो रह ही जाती है, उसके लिये हाथ जोड़ कर क्षमा मांगते है.

आपकी उर्दू इतनी साफ कैसे है, आप मुस्लिम तो है नही?
अरे भइया, आपको किसने बोला कि उर्दू सिर्फ मुसलमान भाइयो की भाषा है, दरअसल उर्दू तो खालिस दिल की जबान है, जो मिठास उर्दू मे है, वो कंही और कहाँ, लेकिन हम हिन्दी और उर्दू को बराबर का सम्मान देते है, इसलिये जब भी उर्दू ज्यादा हो जाती है तो हम हिन्दी पर उतर आते है.और फिर हमारी मित्रता जब मिर्जा साहब से है तो वो तो उर्दू के मास्टर है.

आप शुद्द हिन्दी तो लिखते नही? फिर ये कौन सी भाषा है.
देखिये हमारा पहला उद्देश्य तो यह है, लोग हमारे ब्लाग को पढे और मुस्कराये.......हास्य का आनन्द ले, व्यंग को महसूस करे.... क्लिष्ठ हिन्दी लिखने लगे तो आप भी बिदक जायेंगे., फिर हम ब्लाग अकेले पढूंगा क्या?

अन्त मे बस इतना कहना चाहूँगा... ब्लाग को पढते रहे.... और सदा हंसते मुस्कराते रहे....जीवन मे परेशानियां तो आती रहती है, लेकिन अगर हम कुछ समय साथ मिलकर हँस सकें तो सारी परेशानियो का मुकाबला आसानी से कर सकेंगे. अगर मेरा ब्लाग पढकर किसी एक भी रोते हुए इन्सान के चेहरे पर मुस्कराहट लौट सकी तो अपना लिखा सफल मानूंगा.
अरे ये क्या हम तो बहुत ही सेन्टी हो गये है......अच्छा अब चला जाय........मिर्जासाहब इन्तजार कर रहे होंगे.

छुट्टन मिंया की पार्टी

सारा दिन अपने काम मे मशगूल रहे... पता ही नही चला कैसे पार हो गया, शाम आते आते, पार्टी की याद सताने लगी, दिल फिर धड़कने लगा...तभी मोबाइल बज उठा दूसरी तरफ मिर्जा थे... मैने पूछा मिर्जा ये सब पार्टी वार्टी क्या चक्कर है, क्यो अपना भट्ठा बिठवाने मे तुले हो...ज्यादा दीनार कमा लिये हो तो, कुछ इधर भी ट्रान्सफर करो, मेरा इतना कहना था कि. मिर्जा की आवाज मे दर्द आ गया, शायद मैने उनकी दुखती रग पर हाथ धर दिया था. बोले यार क्या बताऊ, मैने कितना समझाया छुट्टन को.... कि ये सब ना कर, फिल्म इन्डस्ट्री का साइज बढता ही जा रहा है, चिविन्गम की तरह से खिंचती जा रही है, कब तक सबका जन्मदिन मनाया जाय... कंही ऐसा ना हो ये सब करते करते अपनी जेब खाली हो जाये. और लोग हमारा मरणदिन भी भूल जाये.......लेकिन छुट्टन,उस नामुराद को तो फिल्मो का ऐसा भूत सवार है, कि किसी की नही सुनता......लालू यादव का भी बाप है... ऊपर से उसको चने के झाड़ पर चढाने वाले ये वीडीयो वाले तो है ही.....हालांकि मैने हाइकमान को भी प्रोटेस्ट किया था.. लेकिन वो भी आंखे मूंदे बैठी है, अब सैया भये कोतवाल फिर डर काहे का... अब यहाँ कोई सुप्रीम कोर्ट तो है नही जो मै स्टे ले आऊँ. मै मिर्जा की व्यथा समझ गया, और ज्यादा कुरेदना ठीक नही समझा. मैने पूछा फोन किसलिये किया था.. मिर्जा बोले यार अपने आफिस के पास वाली दुकान से एक जोड़ी इयरप्लग (हवाई यात्रा के दौरान,शोर से बचने के लिये,कानो पर लगाने वाला लगाने वाला साधन) लेते आना, लेकिन देख कर लाना, जो कान के भीतर सैट हो जाता हो और बाहर से दिखाई भी ना देता हो,मैने पूछा क्यो यार क्या काम पड़ गया इयरप्लग का, मिर्जा ने बोला ले आना फिर समझा दूंगा.अब मिर्जा का आदेश, मैने एक की जगह दो सैट इयरप्लग खरीद लिये, और मिर्जा के घर की तरफ चल पड़ा... अब जब पर पार्टी पर जा ही रहा था तो मेरा भी फर्ज बनता है मेहमान का फर्ज निभाने का, सो मैने बाजार से एक अमिताभ(AB) के नाम वाला परफ्यूम खरीदा...आनन फानन मे उसे छुट्टन के अमिताभ प्रेम को समर्पित किया .. मेरे ख्याल से उससे अच्छा गिफ्ट नही हो सकता था और फिर निकल पड़ा मिर्जा के घर की तरफ.

मिर्जा के घर के बाहर पहुँच कर देखा तो बाहर ही दो वीडियोवाले खड़े, सिगरेट फूंक रहे थे, वही छुट्टन को चने के झाड़ पर चढाने वाले...उनकी बाते सुन कर पता लगा, कि उनको अमिताभ से कुछ लेना देना नही था, बस खाना खाने आये थे. घर के भीतर, छुट्टन ने पार्टी की पूरी तैयारी कर रखी थी, दीवारो पर अमिताभ के फोटो...म्यूजिक सिस्टम पर अमिताभ की फिल्मो के गाने,...... जगह जगह अमिताभ की फिल्मो के पोस्टर और यहाँ वहाँ वीडियो कैसैट और डीवीडी के कवर फैले हुए थे.....एक तरफ बड़ा सा प्रोजेक्शन टीवी रखा था.....पूरा का पूरा माहौल अमिताभ मय था...... कुल मिलाकर अमिताभ की थीम पार्टी का पक्का जुगाड़ था. माहौल देख कर मै भी अमिताभमय हो गया...मैने इधर उधर देखकर मिर्जा और छुट्टन को ढूंढने की नाकाम कोशिश की, मै सीधे किचन मे चला गया.. बड़ी जबरदस्त खुशबू आ रही थी, बड़ी मुश्किल से कन्ट्रोल किया, मिसेज का दिया हुआ टिफिन किचन मे पटका, और बाहर निकलकर मिर्जा के कमरे मे झांका, जब नही दिखे तो तो मै भी ड्राइंगरूम मे आकर सोफे पर पसर गया.मै गाने सुनते हुए मिर्जा का इन्तजार करने लगा....तभी एक एक करके मेहमान आने लगे.....कुल मिलाकर दस बारह लोग थे.सभी को तो मै नही पहचानता था....हाँ कुछ को मैने देखा हुआ था, उनमे से एक थे अपने स्वामीनाथनजी,

आइये इनका भी परिचय करवा दूँ,स्वामीनाथन जी हमारे कौमन फ्रेन्ड है और क्रिकेट के विशेष जानकार है...भले ही बल्ला कभी हाथ मे ना पकड़ा हो.. क्रिकेट की लफ्फाजी करने मे सबसे आगे रहते है. वैसे तमिलनाडू के है लेकिन काफी साल दिल्ली मे बिताये...सो हिन्दी अच्छी बोलते है. लगभग १० साल तक वे दिल्ली के आर के पुरम मे रह चुके थे, अब उनके गांव वाले उनको दिल्ली/यूपी का भइया मानते .. और दिल्ली वाले मद्रासी....दोनो जगह अजनबी थे... बड़े तकलीफ मे थे बेचारे......पिछले आठ सालो से कुवैत मे है और इनके बस दो हो शौंक है, क्रिकेट देखना,उसके बारे मे चर्चा करना और शेयर बाजार मे निवेश करना.बहुत ही मिलनसार बन्दे है. इनकी बात करने के अन्दाज से नही लगता कि ये साउथ इन्डियन है.. हम लोग प्यार से इन्हे स्वामी कहते है.. लेकिन मिर्जा ने इनकी चोक लेने के लिये इनका नाम मद्रासी रखा है.... स्वामी को इस शब्द से काफी चिढ है.स्वामी की बातचीत थोड़ी ही देर मे शेयर बाजार से होती हुई क्रिकेट के मैदान मे पहुँच जाती है.जब तक झिलता है तब तो हम झेलते है. नही तो पतली गली से निकल लेते है या फिर मिर्जा को उन पर छोड़ देते है फिर मिर्जा का गाली गलौच और स्वामी की क्रिकेट कमेंट्री, दोनो आपस मे बिजी हो जाते थे, हमारा काम आसान हो जाता है.

स्वामी भी अकेले आये थे.. मेरे को पता था वो भी टिफिन लाये होंगे, उन्होने मेरे से पूछा कहाँ रखना है, मैने किचिन की ओर इशारा कर दिया.स्वामी की एक आदत बहुत खराब थी, चोरी छुपे खाने की, मिसेज स्वामी कई बार ये बात बता चुकी थी, कि रात मे उठकर स्वामी फ्रिज मे से चाकलेट और हाई कैलोरी वाली चीजे उठाकर खाते है..लेकिन फ्रिज का दरवाजा ठीक से बन्द करना भूल जाते है..... हालांकि यह सब डाक्टर ने खाने के लिये मना किया था.पर अब दिल है कि मानता ही नही... स्वामी किचेन मे चले तो गये, काफी देर हो गयी, मै समझ गया.. अन्दर क्या हो रहा होगा....तभी उन्होने मेरे को वही से आवाज लगायी, मै पंहुँचा तो पया, स्वामी के हाथ मे खजूर का डब्बा था, और स्वामी धकाधक लगे पड़े थे, खजूर को डब्बे से अपने मुंह तक ट्रान्सपोर्ट करने मे.मैने जाकर उनसे डब्बा छीना, बोला यार ये क्या कर रहे हो...कुछ तो लिहाज करो.. मैने डिब्बा वापस फ्रिज मे रखा और स्वामी को हाथ पकड़कर वापस ड्राइंगरूम मे ले आया, रास्ते मे स्वामी ने मेरे को पार्टी का पूरा मेनू कार्ड बता दिया, आखिर उन्होने सारे बर्तनो मे झांककर जो देखा था, शायद चखकर भी.

तभी मेनडोर से मिर्जा अवतरित हूए, हाथ मे बड़ा सा डिब्बा था जो शायद बर्थडे केक का था....उन्होने डिब्बा टेबिल पर रखा और केक कम्पनी को देसी तरीके से झाड़ना चालू किया...बोले साले पचास तो सवाल पूछते है, काम दस मिनट का पूरा एक घन्टा लगा दिया, ऊपर से पार्किंग की प्रोब्लम सो अलग.....बड़ी मुश्किल से बचते बचाते बिना भिड़े निकाल के लाया हूँ, मै समझ गया मिर्जा का मूड केक वालो ने ही खराब किया है, दरअसल केक कम्पनी बर्थडे केक बनवाने पर पर्सनलाइज्ड सर्विस देती है सो बर्थडे बेबी के बारे मे बाते जरूर करते है... और मिर्जा तो आप जानते ही है.. पहले ही चिढे बैठे थे.. ऊपर से ये केक वाले.

अब तक छुट्टन मिंया का कोई अता पता नही था.. तफ्शीश करने पर पता चला छुट्टन मिंया खाना वगैरहा बनाने के बाद से ही बाथरूम मे बन्द है, कुछ बनाव सिंगार मे लगे हुए थे.. मिर्जा ने छुट्टन को आवाज लगायी.. बोले "अबे बर्थडे अमिताभ का है या तेरा.. इतना तो वो भी तैयार नही होता होगा....चल जल्दी से बाहर निकल, अगर मै अन्दर आ गया तो तू बाहर निकलने के लायक भी नही रहेगा". छुट्टन ने अब तक उनकी बात सुन ली थी, इसलिये चुपचाप बाहर निकल आया.. हम लोग देख कर दंग रह गये.. छुट्टन हूबहू अमिताभ के गैट अप मे था.. वैसी ही ड्रेस,सफेद दाढी... शक्ल पूरी तरह से नही मिलती थी, इसलिये धूप वाला चश्मा लगा लिया था.खैर जनाब हम सब लोगो ने छुट्टन मिंया को बधाई दी...मुफ्तखोर वीडियोवालो ने छुट्टन मिंया की शान मे कसीदे पढे, कुछ ने उनको अमिताभ का सच्चा भक्त बताया, किसी ने पंखा, कुछ ने अमिताभ का छोटा भाई, वगैरा वगैरा, छुट्टन मिंया ने अमिताभ के पोर्ट्रेट पर अगरबत्ती जलायी...आलमोस्ट पूजा के तरीके से आरती वगैरहा परफार्म की... हमको क्या किसी को भी यह सब नही झिल रहा था लेकिन क्या करे... पापी पेट का सवाल था, और घर पर भी खाने का जुगाड़ नही था,इसलिये डटे रहे...छुट्टन मिंया ने अमिताभ की शान मे भाषण दिया, और बाकायदा उनकी फिल्मो के डायलाग भी बोले........छुट्टन मिंया ने अब केक की तरफ रूख किया... चलने का अन्दाज बिल्कुल अमितजी वाला था... उन्होने केक काटा... मिर्जा ने भी मदद की... वो भी इसलिये ताकि केक के बड़े हिस्से उन मुफ्तखोर वीडियोवालो के हिस्से मे ना चले जाये.मिर्जा को छुट्टन के ये मुफ्तखोर दोस्त कतई पसन्द नही थे,खैर जनाब सबने केक गटका और दुबारा बधाई दी..

मिर्जा अड़ गये कि अब तुरन्त खाना लगाया जाये.. क्योंकि दिन मे भी खाना ठीक से नही खाया था, छुट्टन मिंया के कुछ और ही इरादे थे, बोले इस बार फिल्म नही देखेंगे,हमे लोग अमितजी के गाने देखेंगे... सभी को ये सस्ता सौदा लगा... तुरन्त सब राजी हो गये..मै बोला गाने चलते रहे तब तक स्टार्टर्स तो लगवा दो.. छुट्टन मिंया ने पूरी तैयारी कर रखी थी... तुरन्त किचेन मे गये.. और कबाब,पकौड़े,स्प्रिंगरोल,पापड़ और दूसरे स्टार्टर्स की प्लेटे लेकर हाजिर हुए, जब वो प्लेटे ला रहे थे ,तो लगातार स्वामी को तीखी नजरो से घूरे जा रहे थे...हम समझ गये स्वामी ने इन प्लेटो के माल को भी कुछ कुछ चखा है, अब स्वामी की तो यह आदत ही थी, खैर प्लेटे लग गयी... और हम सभी लोग गिद्द भोज मे शामिल हो गये.....सबकी यही कोशिश थी तो सामने वाला उससे ज्यादा ना खा पाये.आखिरकार प्लेटे भी कब तक सस्टेन करती.

सो मामला खात्मे तक पहुँचे इससे पहले ही छुट्टन ने गानो की डीवीडी लगा दी..... लोग गाने देखते रहे और बार बार किचन की तरफ आशा भरी निगाहो से देखते रहे.क्योंकि स्टार्टस ने भूख और बड़ा दी थी. इधर छुट्टन मिंया, वो तो गानो मे खो गये थे..... आंखे बन्द और मानो योगी महाराज गहरे ध्यान मे मग्न हो. मिर्जा ने हमे इशारा किया और थोड़ी देर मे हम और मिर्जा किचन के अन्दर थे.. मिर्जा ने मेरे को प्लेट थमाई बोले, गुरू अब फटाक से निपट लो, क्योकि बाहर तो साले पक्के गिद्द बैठे, हम लोग इनसे पार नही पा पायेंगे....मिर्जा ने पहले मेरे और स्वामी के टिफिन भरे, फिर हम दोनो ने अपनी अपनी प्लेटे भरी, और मिर्जा के कमरे की तरफ प्रस्थान किया.. मै बोला यार स्वामी को भी बुला लो.. मिर्जा ने कहा अगर स्वामी भी निकल आयेगा तो सबको शक हो जायेगा.. इसलिये तुम निबटो और स्वामी को भेजो, मेरे से रहा नही गया, मैने स्वामी को SMS मारा और मिर्जा के कमरे मे आने के लिये बोला.स्वामी भी तुरन्त अपनी प्लेट बना लाया, हम ने छक कर चिकन,मटन और बिरयानी खायी... सब्जियो की तरफ हाथ भी नही डाला.आराम से खाने के बाद, मिर्जा बोला, तुम इयरप्लग तो लाये हो ना.. मै बोला हाँ, बोला जल्दी से लगा लो, और बाहर आ जाओ, हम दोनो ने इयरप्लग लगाया..बाहर निकले और आराम से सोफे पर पसर गये.. और आंखे बन्द करके ऐसी एक्टिंग करने लगे कि जैसे म्यूजिक मे बहुत मजा आ रहा हो.स्वामी अभी भी मिर्जा के कमरे मे डटा हुआ था.खटाखट चीजो पर हाथ साफ कर रहा था, कुछ देर बाद जब उसके पेट ने भी जवाब दिया तो वो भी बाहर आ गया.

सात आठ गानो के बाद मुफ्तखोर वीडियो वालो मे खलबली मचने लगी.. लेकिन मिर्जा के खौफ के कारण कोई भी किचन की तरफ जाने की हिमाकत नही कर पा रहा था, और छुट्टन, वो तो ध्यान मग्न था ही.... हम तीनो इस स्थिति का पूरी तरह से मजा ले रहे थे.मिर्जा,जो इस डीवीडी का पूर्वावलोकन कर चुके थे, बोले इस डीवीडी मे लगभग अस्सी गाने है,तब तो सालो को तड़पने दो. डीवीडी खत्म होते ही मिर्जा बोला यार गानो की दूसरी डीवीडी भी लगा दो, वीडियोवालो के तो होंश ही उड़ गये.. बोले यार खाना लगवा दो, घर भी पहुँचना है, हम लोगो ने भी सहमति दी, क्योंकि स्वीट डिश तो अभी बाकी थी, सबने खाना खाया,स्वीट डिश ली..अपने अपने टिफिन उठाये.. छुट्टन को फिर बधाई दी.... अगले कलाकार के जन्मदिन की तारीख के बारे मे पूछा.. और पतली गली से निकल लिये.

मिर्जा बाहर तक छोड़ने आये तो स्वामी ने क्रिकेट टीम का मामला छेड़ दिया...... वो अगली बार....इतना सब झेलने के लिये आपका शुक्रिया.

Monday, October 11, 2004

दावतनामा

दावतनामा

सुबह सुबह अभी आँख भी नही खुली थी कि फोन घनघना उठा, मेरा मानना है कि यदि फोन सुबह सुबह, नित्य क्रिया से पहले आया हो तो हमेशा फालतू होता है और यह मेरे नित्य कर्मो को बाधित करने का षड़यन्त्र होता है, अक्सर इसमे विदेशी हाथ होता है.जब भी सुबह सुबह फोन आता है, मेरे को कोंसिपेशन की प्रोब्लम हो जाती है, फिर सारा दिन कैसा निकलता है, यह सिर्फ मै ही जानता हूँ.फिर भी जनाब फोन रखने का खामियाजा तो भुगतना ही पड़ता है, दूसरी तरफ से किसी अरबी महिला का फोन था, जो अपने बेटे के स्कूल मिला रही थी ‌और उसने बिना नम्बर कन्फर्म किये मेरे से पूछा बस कितने बजे आयेगी,दिमाग तो वैसे ही टन्नाया हुआ था सो मै भी चिकाई के मूड आ गया..., मै बोला अभी बस वाला सोकर नही उठा है, सो बस लेट हो जायेगी.महिला का पारा सातवें आसमान पर पहुँच गया, वो गुस्से मे भन्नाती हुई,लेट होने को लेकर लटक गयी लगी, और झाड़ने लगी भाषण वो भी अरबी मे, नयी नयी तरह की अरबी गालिया सुनाने लगी...........सुबह सुबह का समय उस पर अरबी मे भाषण, मेरे से नही झिला मै बोला बस नही आयेगी, बोलो क्या उखाड़ लोगी..... महिला से बर्दाश्त नही हुआ उसने अपने पति को हड़काते हुए फोन टिका दिया.. पति ने पहले अपने रिश्तेदारो की पहुँच का हवाला दिया,फिर थोड़ी हाई क्लास परिष्कृत गालिया निकाली, जो महिला देना भूल गयी थी... फिर मेरा नाम पता पूछा, तब मैने उल्टा सवाल किया, तुमने फोन कहाँ मिलाया है?... उसने स्कूल का नाम बताया, तो मै बोला, कि अपनी पत्नी को बोलो पहले नम्बर कन्फर्म कर लिया करे फिर हड़काया करे. फोन अभी होल्ड पर ही था दोनो मिंया बीबी झगड़ने लगे.. सारे गिले शिकवे मेरे सामने निकालने लगे.... मामला एक दूसरे के बाप तक पहुँच चुका था.....मै बोला मेरे बाप मेरे को तो छोड़ दो... आखिरकार तकरार के बाद उसकी पत्नी लाइन पर आयी और माफी मांगी.मैने फोन रखा.... तब तक मेरा प्रेशर खत्म हो चुका था.. समय भी काफी खराब हो चुका था.... सो मैने सीधे बाथरूम का रूख किया और नहाने के बाद ही बाहर निकला.

कपड़े पहनते हुए फिर फोन आ गया, मैने फोन उठाते ही बोला, बस आज लेट आयेगी, दूसरी तरफ छुट्टन मिंया थे, मेरी आवाज पहचानते थे.. पूछा "बस को मारो गोली.........कार कब बेची? और बस कब खरीदी? ऐसे बुरे दिन आ गये है क्या, ड्राइवरी करनी पड़ रही है?" मै चौंका, मुझे गलती का एहसास हुआ, उनको अपने पिछले फोन वाले वाक्ये के बारे मे बताया.. छुट्टन मिंया बोले, "आज शाम को क्या कर रहे है?" मै बोला बस थोड़ा मार्केट जाना था, कुछ काम था, बोले कल चले जाना,आज बड़े भाई का जन्मदिन है, इसलिये स्पेशल खाना बनाया है, सो दावतनामा कबूल कर शाम को घर पर पधारो....फैमिली सहित.. , मै चौंका ये बड़ा भाई कहाँ से पैदा हो गया, मैने दावतनामे पर स्वीकृति देते हुए पूछा बड़ा भाई कौन सा है?.. जहाँ तक मेरी जानकारी थी छुट्टन मियाँ अपने घर मे सबसे बड़े थे...बाकी की बची खुची फैमिली भी बांग्लादेश मे थी... कोई आसपास का कुवैत मे नही था........ फिर भी सीरियल देख देख कर आजकल पता नही चलता, कि कभी भी,कोई भी कंही से पैदा हो जाता है,बड़ा भाई तो छोटी बात है, नये नये बाप तक पैदा हो जाते है.... सो मैने बड़े भाई के बारे मे जानकारी चाही, छुट्टन मिंया बोले अरे यार , अपने बड़े भाई मतलब, अमिताभ बच्चनजी.... आज उनका जन्मदिन है,अब मेरा माथा ठनका......... अब हाँ तो मै बोल ही चुका था... अब ना कर नही सकता था... छुट्टन मिंया के यहाँ किसी सिनेमा कलाकार का जन्मदिन का मतलब था कि पहले तो उसकी एक दो फिल्मे झेलो, जो छुट्टन मिंया की पसन्द की हों.......फिर छुट्टन मिंया की रनिंग कमेन्ट्री उस फिल्म के बारे मे और विशेषकर उस कलाकार के बारे मे... अमिताभ का जन्मदिन तो ठीक है, मगर पिछली बार मै छुट्टन मिंया के यहाँ,मिथुन चक्रवर्ती के जन्मदिन पार्टी मे फंस चुका था..... कई दिन तक तो मिथुन दा आंखो के सामने से नही उतरे...... तब से आलम ये है कि मिथुन जब भी किसी चैनल पर दिखाई देता है मै टीवी बन्द कर देता हूँ या चैनल बदल देता हूँ.

मैने पत्नी से पूछा तो उसने साफ इन्कार कर दिया...बोली तुम्हारी फिल्मी पार्टी तुम्हे मुबारक, मै अपने सीरियल मे खुश हूँ, वैसे भी आज तुलसी की बहू को बच्चा होने वाला है, और उधर देश मे निकला होगा चाँद की कहानी भी भटक गयी है,उसे समझना है इसलिये मै कही नही जाऊंगी..... लेकिन मामला छुट्टन मिंया के लजीज जायकेदार खाने की दावत का था तो मिसेज ने टिफिन पकड़ा दिया बोली खाना पैक करवा कर ले आना मै छुट्टन से बात कर लूंगी..... अब जनाब एक तरफ छुट्टन मिंया और उनके चाहने वाले(कौन?, अरे वही नामुराद मुफ्तखोर वीडियोवाले, फ्री का खाना कौन छोड़ता है) और दूसरी तरफ मै अकेला..... मिर्जा इस मामले मे कुछ भी नही बोलते, बस दर्शक की तरह से बैठे रहते है..वैसे भी बोल कर क्या उखाड़ लेंगे....परमीशन हो हाइकमान देती है........ मेरा दिल तो अभी से धकधक करने लगा था. जैसे तैसे मैने दिल को समझाया और आफिस जाने के लिये तैयार होने लगा... ......................मन ही मन सोच रहा था, कौन सा बहाना बनाया जाय.....इसी उधेड़बुन मे, घर से आफिस के लिये निकल पड़ा.

शाम की दासतां अगली पोस्ट मे.....................

Sunday, October 10, 2004

जो लौट नहीं सके....

यह लेख हमारे मिर्जा साहब का पसन्दीदा लेख है


जो लौट नहीं सके....
लेखकःअचला शर्मा,प्रमुख, बीबीसी हिंदी सेवा

बहुत साल पहले मैंने एक नाटक लिखा था- ‘जो लौट नहीं सके....’. जिसमें यहाँ बसे प्रवासी भारतीयों की मजबूरियों को समझने की कोशिश की थी.
आज सोचती हूँ कि क्या वे वाक़ई लौटना चाहते थे? क्या लौटने के लिए ही अपना देश छोड़कर, बेहतर जीवन की तलाश में बाहर निकले थे?
मैं बात कर रही हूँ उन प्रवासी भारतीयों की जो एक, दो, तीन या चार दशक पहले भारत छोड़कर पश्चिमी देशों में आ बसे थे. मैं चूँकि ब्रिटेन में रहती हूँ इसलिए अपनी बात अपने अनुभव और आँखों देखी के आधार पर ही कहूँगी.
जेब में भारतीय पासपोर्ट और मन में विलायती सपने! दोनों के मेल से एक नए देश, नई ज़मीन, नए माहौल में बसने की प्रक्रिया अपने आप में लंबी और जटिल है.
वतन छूटा, गलियाँ छूटीं, लोग छूटे, मौसम छूटे, पहचान छूटी. शुरू-शुरू के वर्षों में छोटी से छोटी हर छूटी हुई चीज़ का दर्द सालता रहा.
यहाँ तक कि लोगों को मुहल्ले का पनवाड़ी याद आता है जो उनके नाम के साथ-साथ ये भी जानता है कि उन्हें कैसा पान पसंद है और कितने नंबर का तंबाकू!
गली के किनारों पर उपेक्षित पड़े कूड़े को सम्मान देतीं गाय-भैंसें याद आती रहीं, बेघर कुत्ता याद आता रहा, जो रात देर से लौटने पर भौंकता हुआ पीछे दौड़ता और घर के दरवाज़े पर पहुँचाकर विदा लेता.
माँ के हाथ की बनाई दाल-सब्ज़ी याद करके दिल रोता रहा. हाय! वो स्पेशल छौंक. हाय वो लज़ीज़ कबाब, जिन्हें कल्लू खाँ टपकते पसीने के बीच जब प्याज़ के लच्छे और तीखी चटनी के साथ देते तो लोग उँगलियाँ चाटते रह जाते.....
यादों का एक हुजूम था जो अँधड़ की तरह आता रहा और विदेश में बसने को कभी मुश्किल तो कभी आसान बनाता रहा.
मगर मेमोरीचिप की भी एक सीमा है. फिर नई आकाँक्षाओं को पूरा करने के लिए नए संघर्ष ज़रूरी हैं. व्यावहारिकता का तक़ाज़ा है कि अतीतजीवी बनकर यह संभव नहीं! घर ख़रीदना है, कार ख़रीदनी है, बच्चों को प्राइवेट स्कूल भेजना है.
‘बच्चे कुछ बड़े हो जाएँ तो देश वापस चले जाएँगे. यहाँ रहकर तो वो अपने संस्कार भूल जाएँगे. चार पैसे हों तो अपने मुल्क से अच्छी कोई जगह नहीं......’
मगर फिर
लौटने की इच्छा मन के किसी कोने में अब भी दबी है. मगर इस अर्से में कहीं कुछ बदल भी गया है.
‘गर्मी और धूल में एलर्जी शुरू हो जाती है.’
‘क्या पूछते हैं, पॉल्यूशन इतना है कि इंडिया पहुँचते ही साँस लेना मुश्किल हो जाता है. जगह-जगह गंदगी. जिधर देखो गाय-भैंसें कूड़ा चरती नज़र आती हैं.’
‘पानी? बस सुबह-शाम एक-आध घंटा. पीने के पानी की तो कोई गारंटी नहीं. बिजली? जब चाहे लोडशेडिंग हो जाती है.’
‘जी नहीं, बाज़ार का खाना तो सिस्टम को बिल्कुल सूट नहीं करता. कल्लू खाँ के कबाब? इतना फ़ैट और मिर्च मसाला होता है कि उन्हें देखना भी पाप है.’
भारत कितना ही बुरा क्यों न हो, अपने वतन, अपनी ज़मीन से नाता कैसे तोड़ लें.
‘सोचते हैं एक फ़्लैट या फिर ज़मीन का टुकड़ा ख़रीदकर डाल दें. बुढ़ापे में वहीं जाकर रहेंगे.’
.....कई फ़्लैटों में ताले पड़े हैं. कुछ के दरवाज़े-खिड़कियों को दीमक चाट रही है. डरते हैं, किसी को किराए पर दिया तो कहीं कब्ज़ा न कर ले!
ज़मीनों के कई टुकड़े, ‘लौटें कि न लौटें’ की दुविधा और अनिश्चय में आबाद होने का इंतज़ार कर रहे हैं.
एनआरआई अब भी प्रवास में हैं. आधा इधर-आधा उधर. और अगर प्रवासी होते हुए वह हिंदी का छोटा-मोटा लेखक भी है तो समझ लीजिए उसकी क़लम जब भी उठती है, अपने जीवन को अभिशाप ही कहती है.
अपनी रचनात्मक ऊर्जा का स्खलन करते समय वह जिस डाल पर बैठता है- उसे सिर्फ़ गालियाँ देता है. वतन की याद में आँसू तोड़ कविताएँ रचता है, मगर लौटता नहीं.
बड़ी मजबूरियाँ रही हैं, प्रवासी भारतीय की. जिस देश को छोड़कर आया है, वहाँ लौटने से डरता है. और जिस देश में आकर बसा है, उसे पूरी तरह अपना नहीं पाया.
यहाँ वो अजनबी है, वहाँ वो अजनबी है.
उसके दिल से पूछिए तो उसे वह भारत चाहिए जिसे वह छोड़कर आया था.
और उस भारत में भी उसे वो सब चाहिए जो उसने प्रवासी जीवन व्यतीत करते हुए अर्जित किया है.
वह एनआरआई है.... जी हाँ.. Non Returnable Indian.
फिर सच यह है कि इस बीच बहुत कुछ बदल भी तो गया है.
भारत के टेलीविज़न चैनल चौबीसों घंटे भारत के समाचारों का निर्यात करते हैं, टीवी सीरियल बदलते भारत का सामाजिक चेहरा पेश करते हैं, भारतीय फ़िल्मों के लिए अब बिल्कुल भी तरसना नहीं पड़ता.
भारतीय चावल, दालें, मसाले, पापड़, बड़ियाँ, राजनीति, मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे, संस्कार आदि-आदि... सब यहाँ उपलब्ध है- Export Quality.
कौन जाए ज़ौक़ अब विलायत की गलियाँ छोड़कर?

साभारःबीबीसी हिन्दी.कोम

मेरी टिप्पणीः हमारे मिर्जा साहब इस लेख को पढ कर बार बार रोते है......... हर बार हम उनको समझाने की कोशिश करते है, लेकिन फिर अन्त मे हमारा भी वही हाल होता है.सच है हम उस डाल के पन्क्षी है जो चाह कर भी वापस अपने ठिकाने पर नही पहुँच सकते या दूसरी तरह से कहे तो हम पेड़ से गिरे पत्ते की तरह है जिसे हवा अपने साथ उड़ाकर दूसरे चमन मे ले गयी है,हमे भले ही अच्छे फूलो की सुगन्ध मिली हो, या नये पंक्षियो का साथ, लेकिन है तो हम पेड़ से गिरे हुए पत्ते ही, जो वापस अपने पेड़ से नही जुड़ सकता.

Thursday, October 07, 2004

किस्सा ए रिमोट

मैने आपको अपने पिछले लेख मे छुट्टन मिंया के बारे मे बताया था, आइये इस बार उनके करैक्टर पर भी कुछ रोशनी डाले.छुट्टन मिंया बहुत ही भले आदमी है, हमेशा सेवा मे तत्पर,उम्दा खाना बनाने मे उस्ताद,सौ फीसदी वफादार,काम मे कुशलता और ना जाने क्या क्या...... .. अरे ये क्या मै कोई छुट्टन पर निबन्ध लिखने बैठा हूँ क्या......

छुट्टन पहले कंही और टंगे हुए थे, मिर्जा साहब की बेगम की सहेली के घर... जब वो लोग अमेरिका टरक गये तो मिसेज मिर्जा छुट्टन मिंया को अपने घर उठा लायी, तब से वो फैमिली मेम्बर की तरह से रहते है, इनको वो पूरे हक मिले हुए है जो घर के दूसरे मेम्बर्स को मिले हुए है.पहले मिर्जा छुट्टन को पसन्द नही करते थे.. कहते थे बेगम का चमचा है और मेरी सारी खबरे उन तक पंहुँचाता है.बात सही भी थी, बेगम साहिबा का लाडला था,छुट्टन, और खबरे इधर उधर करने मे भी उसका जवाब नही. लेकिन एक बार मिर्जा बीमार पड़ गये, तो छुट्टन ने उनकी इतनी सेवा की, कि मिर्जा की सारी नाराजगी दूर हो गयी, तब से छुट्टन उनके बेटे की तरह से है.फिर बेगम साहिबा बच्चो की पढाई के चक्कर मे कनाडा चली गयी, तब से छुट्टन मिंया पर घर और मिर्जा दोनो की जिम्मेदारी आ गयी. अपने मिर्जा साहब ने कनाडा जाने इन्कार कर दिया था,बोले जिन्दगी के तीस साल कुवैत मे गुजार लिये, सारे दोस्त यार यंही है,अब कंहाँ फिर से ठिकाना बदलते फिरे.बस यंही पर गलती हो गयी... कनाडा वाले बच गये और कुवैत वाले तो खैर झेल ही रहे है, मिर्जा अभी तक कुवैत मे अटके है और छुट्टन लगा पड़ा है.. यहाँ के लाइव अपडेट कनाडा भेजने मे.मजाल है जो एक भी खबर मिस हो जाये.....

छुट्टन मिंया को एक ही शौक है, हिन्दी फिल्मे देखने का, कुवैत का ऐसा कोई वीडियो पार्लर नही होगा जहाँ छुट्टन मिंया के पांव ना पड़े हो.वीडियो पार्लर वाले तो उन्हे देखते ही, बाकी कस्टमर को किनारे करके उन्हे अटैण्ड करते है.उनका फिल्मी ज्ञान भी हम सबसे बेहतर है....अच्छा है हमे हिन्दी सिनेमा पर भी एक कंसलटैन्ट मिल गया. और छुट्टन मिंया गाना तो इतना अच्छा गाते है कि कई बार धोखा हो जाता है कि पीछे सीडी चलाकर,कही छुट्टन मिंया सिर्फ लिप्स मूवमेंट ही तो नही कर रहे है.हाँ छुट्टन मिंया फिल्म मे इतना खो जाते है कि गाने के बीच बीच मे कई बार आंखे बन्द कर लेते है, एक खराब आदत भी है...पिछली देखी फिल्म के हीरो की नकल करने की,और सामने वाले पर डायलाग मारने की....अब चाहे हीरो सलमान खान हो या शाहरूख विक्टिम बेचारे मिर्जा हो जाते है.............. मिर्जा ने उन पर मार‍धाड़ वाली फिल्मे जैसे अक्षय कुमार वाली फिल्मे देखने पर रोक लगा रखी है....क्यों.?....... अरे भाई एक बार छुट्टन मिंया ने अपने को अक्षय कुमार और मिर्जा को अमरीश पुरी समझ कर, पूरा एक्शन सीन शूट कर दिया था,बाद मे मिर्जा के कमर मे तीन हफ्ते तक दर्द रहा था, बेगम का ख्याल ना होता तो छुट्टन मिंया की छुट्टी हो चुकी होती......... .........फिर भी कभी कभी छुट्टन मिंया छिपते छुपाते एक्शन मूवी देख ही लेते है, अब छुट्टन मिंया के इरादे जैकी चान की फिल्मे देखने का है, और हमेशा एक्शन मूवी की एक दो डीवीडी अपने पास रखते ही है....जैकी चान वाली कहानी फिर कभी... ..हम जब भी छुट्टन मिंया से मिलते है तो पूछना नही पड़ता कि आसपास कौन सी फिल्म देखी है.. उनके एक्शन देख कर ही पता चल जाता है.

छुट्टन मिंया और मिर्जा दोनो हिंदी फिल्मे साथ साथ बैठ कर देखते है, पहले रिमोट मिर्जा के हाथ रहता था.. फिर एक दिन सब कुछ बदल गया, तब से फिल्म देखने की पहली कन्डीशन होती है कि वीडियो का रिमोट छुट्टन मिंया रखेंगे.. उस बदलाव के दिन हुआ यों कि दोनो लोग एक साथ फिल्म देख रहे थे...बहुत ही सही सीन चल रहा था.... डायरेक्टर के कहे मुताबिक हीरो को हिरोइन के पास गाना गाता हुए आना था, गले मे बांहे डाल कर, एक जोरदार चुम्बन लेना था, फिल्म का हीरो गाना गाता हुआ हिरोइन के पास आया.. मिर्जा का दिल धड़कने लगा,हीरो आगे बढ,मिर्जा यहाँ तक तो बर्दाश्त कर गये.. अब हीरो ने अपनी बांहे हिरोइन के गले मे डाल दी... मिर्जा यहाँ तक भी खून का घूंट पी गये.. जैसे ही मामला चुम्बन की तरफ बढा.. मिर्जा ने उठाया रिमोट और रिवाइन्ड कर दिया.. हीरो फिर गाना गाता हुआ आया... हीरो...गाना...हिरोइन....बांहे.... फिर रिवाइन्ड, हीरो.....गाना.... हिरोइन.....बांहे.......रिवाइन्ड. हीरो.....गाना.... हिरोइन.....बांहे.......रिवाइन्ड.

ये चलता रहा चलता रहा...मिर्जा हीरो को हिरोइन के पास जाने ही नही दे रहे थे.चुम्बन तो वो क्या खाक लेता.छुट्टन मिंया जो गाने के बीच मे आंखे बन्द कर चुके थे.. अचानक नींद से जागे.....पहले तो उन्हे कुछ माजरा समझ मे नही आया...फिर जब कुछ पल्ले पड़ा तो खटाक से रिमोट पर कूदे, जेब के हवाले किया या कहो हथिया लिया, मिर्जा ने ऐतराज किया तो छुट्टन मिंया ने एक्शन मूवी चलाने की धमकी दे डाली, मिर्जा ने हथियार डाल दिये.......उधर हीरो ने भी चैन की सांस ली, बहुत थक गया था, लौट लौट कर...... इधर मिर्जा से भी बर्दाश्त नही हुआ, उन्होने आंखे बन्द कर ली, हीरो ने बाकी बचा खुचा काम जल्दी जल्दी निबटाया......छुट्टन मिंया फिर फिल्म मे रम गये.......रही बात रिमोट की तब से रिमोट छुट्टन के ही पास रहता है.

छुट्टन मिंया ने इस परिवार को अपने परिवार से भी ज्यादा चाहा...हमेशा ध्यान रखा, हाँ कभी कभी मिर्जा जब ज्यादा परेशान करने लगते है तो हाई कमान को खबर कर देते है, वहाँ से फरमान जारी होता है जो दोनो पक्षो को मान्य होता है... अगर राजनीतिक तरीके से देखा जाये तो मिर्जा का घर पंजाब की सरकार की तरह से है....
मिर्जा साहब :कैप्टन अरमिन्दर सिंह
छुट्टन :भट्टल
मिसेज मिर्जा. : मैडम सोनिया



आपको यह सब कैसा लगा... और बताइयेगा आप और क्या पढना चाहते है..

जरूर लिखियेगा............... वरना मै मिर्जा को आपका ईमेल एडरैस दे दूंगा, फिर आप जानो और मिर्जा....बाद मे मत बोलना.
जीतेन्द्र चौधरी
jitu9968@gmail.com

Wednesday, October 06, 2004

मिर्जा का बुलावा

मिर्जा का बुलावा

मेरे कई मित्रो ने मिर्जा के बारे मे और जानकारी मांगी है,और लिखा है कि मिर्जा के बारे मे जरूर लिखे. लगता है उनको मिर्जा साहब पसन्द आये है.चलिये साहब पब्लिक डिमान्ड पर ही सही... मिर्जा साहब फिर हाजिर है.उस दिन हमारी इच्छा तो नही थी, मिर्जा साहब के यहाँ जाने की, लेकिन फिर पाठक मित्रो का ख्याल आ गया और लगा कि चलो शायद कुछ मसाला ही हाथ लग जाये.

मिर्जा साहब के बुलावे पर मै पहुँच तो, गया, लेकिन मन ही मन यह सोच कर गया था कि इस बार किसी भी चर्चा मे नही पड़ूंगा. लेकिन भला ऐसा कैसे हो सकता था, मिर्जा के घर से बुलावा और राजनीतिक चर्चा ना हो.

खैर जनाब हम जा पहुँचे उनके द्वारे, काल बैल को पुश किया, कौनो आवाज नाही सुनाई पड़ी, हम फिर कालबैल का बटन दबाय दिये, मिर्जा अलसियाते हुँए बाहर निकले, स्वागत किया,बहुत ही सुस्त दिखाई पड़ रहे थे, मैने पूछा का बात है, तबियत तो ठीक है, वैसे ही बदलते मौसम मे सभी बीमार पड़े है, छूटते ही बोले, बीमार हो हमारे दुश्मन,हम तो भले चंगे है, बस थोड़ा मूड खराब है, वो भी उस नामुराद अमर सिंह की वजह से, अपना वजन का ध्यान रखते नही, लद लेते है हर हिरोइन के साथ,लालू सही कह रहा था.इसका कुछ करैक्टर ठीक नही दिखता. अब लो,हमारी जया प्रदा के साथ नागपुर की रैली मे मंच तोड़ डाला, हाय हाय हमारी नाजुक सी जया प्रदा का क्या हाल हुआ होगा.अब हमारा माथा ठनका, हम समझ गये, इस बार भी राजनीतिक चर्चा का आगाज करने की पूरी प्लानिंग करे बैठे है मिर्जा साहब.

मिर्जा साहब की पत्नी कनाडा जाने से पहले उनके लिये एक बांग्लादेशी नौकर का इन्तजाम कर गयी थी, यह नौकर भी अजीब करैक्टर है, इसका खुलासा फिर कभी...., इनका नाम मोहम्मद रफीक है,अपने दोस्त जैसा है. हम लोग इन्हे प्यार से छुट्टन मिंया कहते है,छुट्टन मिंया कोआपरेटिव(मोहल्ले का Shopping Center) गये थे, हमारे लिये कुछ खाने पीने का इन्तजाम करने.

अब जहाँ तक मिर्जा का फिल्मी प्रेम की बात है, वैसे तो मिर्जा की वफादारी किसी एक हिरोइन मे कभी नही रही.. बाकायदा नर्गिस,मीनाकुमारी से लेकर ऐश्वर्या राय,अम्रता राव तक को समान रूप से चाहते रहे , उनके खुशी गम मे हँसे रोये,....सिन्सीरियली सब पर पूरा मालिकाना हक जताते रहे,मजाल थी जो हीरो किसी हिरोइन को छू ले..... तुरन्त चैनल बदल देते ....शायद मिर्जा की बदौलत ही ऐश्वर्या और सलमान का इश्क परवान नही चढ पाया.....अभी रामपुर के चुनाव मे जया प्रदा की कैम्पेनिंग देखकर, उसके मुरीद हो गये थे... बार बार आहे भरते रहते थे. हाँ जब रानी मुखर्जी डांस कर रही हो तो मिर्जा की हालत देखने जैसी होती है, मुंह खुला का खुला,आंखे फटी हुई,और लार जैसे टपकने ही वाली हो.खैर इस विषय पर फिर कभी......

हमने मिर्जा से कहा, जल्दी से शतरन्ज बिछाई जाये..... ताकि गेम शुरू किया जाये, मिर्जा ने छुट्टन मिंया (जो इस बीच लौट चुके थे)को आवाज दी, शतरंज लग गयी...छुट्टन मिंया ने हमे चुपके से बताया, जब से जया प्रदा वाली खबर आयी है, मिर्जा बड़े चिढचिढे हो गये है, बात बात पर पंगा लेते है.जरा ध्यान रखना.....अब हम क्या बोले बस मिर्जा के अमर सिंह के कंमेन्ट पर मुस्करा दिया,बस फिर क्या था, मिर्जा को तो शह मिल गयी, लग पड़े अमर सिंह की सातो पुश्तो को गालिया निकालने, मै बोला मिर्जा तुम्हारे घर से क्या गया, वैसे न तो जया प्रदा तुम्हारे गांव की तो है नही और वो है भी तो तुम्हारी बेटी की उम्र की, तुम क्यो किसी के फटे मे टांग अड़ा रहे हो? मिर्जा ने मेरे को टेढी नजर से देखा, मै सोचा, आज भी पंगा हुआ समझ लो. ना जाने मिर्जा ने क्या सोचा और अचानक मिर्जा मे बदलाव आ गया, ठीक वैसे ही, जब नेताजी चुनाव के लिये वोट मांगने मोहल्ले मे आते है,और किसी ने बुरा भला या गालिया दे दी हो, तब भी खून का घूंट पीकर भी मुस्करा कर जवाब देते है, या शायद मिर्जा साहब ने अवधी तहजीब का लिहाज किया होगा..... लेकिन मिर्जा और लिहाज....नामुमकिन

मिर्जा ने फिर महाराष्ट्र चुनावो की बात छेड़ दी, लगे बहन मायावती को खरी खोटी सुनाने,बोले इस #$X#*&()~ (Censored) मायावती ने तो कान्ग्रेस और बीजेपी दोनो के वोटो की गणित बदल दी है, क्या जरूरत थी महाराष्ट्र चुनाव मे कूदने की, सुना है हर एक कैन्डीडेट से टिकट के बदले एक करोड़ लिये है, मै बोला मिर्जा ये सब चन्डूखाने की न्यूज तुम्हारे पास कंहाँ से आ जाती है, तुम तो समुन्दर पार बैठे हो , तुम्हे क्या पता कौन कितने की टिकट बेच रहा है....... मिर्जा मुस्कराकर इस सवाल को टाल गये, और अपने शतरंज के गेम मे खो गये.थोड़ी देर मे फिर मिर्जा ने गियर बदला इस बार मुलायम की बारी थी, उसको भी खरी खोटी सुनाई, बोले अपना प्रदेश तो सम्भलता नही, चले है, दूसरे प्रदेश मे चुनाव लड़ने.. क्या महाराष्ट्र को भी यूपी जैसा बनायेंगे, वगैरहा वगैरहा, अब यदि मै पूरी बाते यहा छाप दूंगा तो मुलायम सिंह नाराज हो जायेंगे.... इसलिये मैने बाकी बाते सेंसर कर दी है.क्यो सेंसर की..... अरे भइया हम यहाँ ब्लाग लिखने बैठे है या गालियां?............चर्चा के साथ साथ शतरंज का खेल चल रहा था... मानना पड़ेगा... मिर्जा शतरंज मे हमसे ज्यादा माहिर है, हमने लाख उलझाने की कोशिश की,लेकिन मजाल है कि बातो के चक्कर मे एक भी गलत चाल चल दे.

फिर पवार और मैडम की बात पर लटक गये. बोले कुछ तो है .. पवार और मैडम खिंचे खिंचे से है. जबसे ये BCCI वाला काण्ड हुआ है तब से आपस मे पंगा चल रहा है, मैडम के बूते ही पवार ये मैच नही जीत पाये, यह बात न पंवार भूले है ना मैडम. दोनो मुस्कराकर वोट तो मांग रहे है, लेकिन मन ही मन सोंच रहे है, बेटा ये चुनाव हो जाने दे, फिर तुमको देख लेंगे. सौ फीसदी कोई खिंचड़ी जरूर पक रही है.अब हम क्या बोलते... बस एक ही काम कर सकते थे.. मुस्कराना सो हम अपनी खींसे निपोरकर, मुस्कराने की कोशिश कर रहे थे.मिर्जा ने ठाकरे और अटल को भी नही छोड़ा, बोले इस बार बंटाधार हुआ तो ठींकरा नये नेताओ के सर डालने की वजह से ही चुनाव सभाये नही कर रहे है.मै एक अच्छे बच्चे की तरह से मिर्जा का मसला ए महाराष्ट्र , का भाषण सुन रहा था.

अचानक हमारे मोबाइल की घंटी टनटना उठी, दूसरी तरफ श्रीमतीजी थी.. ...जिनको सीरियल के कमर्शियल ब्रेक मे हमारी याद आ गयी थी, बोली कंहाँ पर हो.. जल्दी घर पर पहुँचो, बहुत सारा काम पड़ा है,दूसरी तरफ से हुक्म की तामील का फरमान देकर, फोन रख दिया गया.मैने मिर्जा को फरमान के बारे मे बताया.. मिर्जा बोले, शर्त लगा लो, जब तक ये सारे सीरियल खत्म नही होते तब तक दुबारा फोन नही आयेगा.तब तक तो तुम आजाद हो,ऐसा ही हुआ,आखिरी सीरियल के लास्ट कमर्शियल ब्रेक मे अल्टीमेटम आ ही गया, हम समझ गये अब टालना मुश्किल होगा.हम भी अपनी दुकान समेट कर, मिर्जा से मा सलामा किया, और निकल पड़े घर की तरफ.


भूत भगाने का इकरार नामा

धन्य हो प्रभु, काशी के पंडो का जवाब नही. मुझे याद है मेरे दादाजी कहा करते थे, जो पंडो के चक्कर मे पड़ता है, अपनी धोती भी से भी हाथ धो बैठता है.ये पंडे आपके सामने ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते है कि आप अपनी जेब ढीली करने के लिये तैयार रहते है.

भोली भाली जनता को तो गुमराह करने मे ये सबसे आगे रहते है.अभी इनका नया कारनामा है कि ये भूत भगाने का शर्तिया दावा करते है, और तो और एक रूपये के स्टाम्प पेपर पर इकरारनामा भी कर देते है.सचमुच धोखाधड़ी का यह नायाब नमूना है.

होता यह है कि जो व्यक्ति भूत प्रेत से प्रताड़ित है उसको इन पंडा महाराज से सम्पर्क करके भूत का नाम,पता, पोस्ट, तहसील सब बताना पड़ता है, पंडा महाराज अपनी दक्षिणा लेकर भूत भगाने का काम शुरू करते है, पीड़ित पक्ष को पूरी तरह से संतुष्ट करने के लिये बाकायदा एक रूपये के स्टाम्प पेपर पर इकरारनामा तैयार होता है, इसमे तीनो पक्षो ( पीड़ित,पंडा और भूत ) का उल्लेख होता है.

इस तरह से अविश्वास का तो कोई प्रश्न ही नही उठता.अगर भूत भाग गया तो कोई बात नही, नही तो पंडा महाराज तो है ही नया नुस्खा बताने वाले.इस बात से मेरे को एक नेताजी की बात याद आ गयी,ये नेताजी बड़े प्रसिद्द नेता थे,उनके पास अपने काम करवाने वालो की भीड़ लगी रहती थी, नेताजी सबसे बड़े प्यार से मिलते और काम करवाने का पक्का आश्वासन देते, विश्वास दिलाने के लिये,उसके सामने ही, डायरी मे उनका नाम,दिन,पता और काम का विषय भी नोट कर लेते.बन्दा तो गदगद हो जाता और संतुष्ट होकर अपने घर चला जाता. मैने एक दिन नेताजी से पूछा भई, ये सब कैसे कर लेते है, इतने लोगो का काम कैसे करवा लेते है, नेताजी का जवाब चौंकाने वाला था, उन्होने बोला एक राज की बात बताऊ, मै तो कुछ करता ही नही, बस डायरी मे लिख लेता हूँ,बाद मे डायरी कभी खोल कर देखता भी नही, जिसका काम हो जाता है, वो फलो की टोकरी लेकर आता है, जिसका काम नही होता, वो कभी लौट कर ही नही आता, या जब कभी आता है तो मै फिर डायरी मे नोट कर लेता हूँ, मेरा क्या जाता है, एक डायरी और पैन, वो भी किसी काम करवाने वाले का ही दिया हुआ होता है. मै सुनकर भौचक्का रह गया....

इसी तरह से ये पंडे महाराज है, ये भी कुछ नही करते बस लिखापड़ी करते है, ठीक नेताजी की तरह से.इस इकरारनामे मे पंडा महाराज अपने एग्जिट आप्शन हमेशा तैयार रखते है.और जनता सोचती है पंडा महाराज को अपने काम पर पूरा विश्वास है इसलिये वो इकरारनामे पर भी तैयार है.बेचारी भोली भाली जनता अपना घर बार बेचकर भी भूत भगाने का खर्च करने को तैयार रहती है.

आखिर कब तक? कब तक हम इन पंडो,तान्त्रिको और ओझाओ के चन्गुल मे जकड़े रहेंगे.वैसे ही क्या राजनीतिज्ञ कम है लूटने के लिये.

Monday, October 04, 2004

मिर्जा की माफी

अभी फोन वाले वाक्ये को दो दिन भी ना हुए थे, कि मिर्जा साहब का फिर फोन आ गया, इस बार किसी सलाह के लिये नही बल्कि उनकी गाड़ी खराब हो गयी थी, बोले यार आफिस जाते समय मेरे को भी लेते चलो,मेरी कार बीच रास्ते मे धोखा दे गयी है.मिर्जा का औफिस मेरे औफिस के पास ही पड़ता था, वैसे भी कुवैत है ही कितना बड़ा....... एक आध घन्टा एक ही तरफ लगातार ड्राइव करो तो दूसरी कन्ट्री मे पहुँच जाओ.

खैर जनाब, मैने उनको रास्ते से पिक किया, मिर्जा ने अपनी गाड़ी लाक की,उसको एक लात मारी और यूपी स्टाइल मे, गाड़ी के मुत्तालिक एक भद्दी सी गाली निकाली, और फिर मेरी गाड़ी मे विराजमान हो गये. मै उन्हे लेकर उनके आफिस के रास्ते पर चल पड़ा, सारे रास्ते मै कुछ नही बोला, उन्होने ही चुप्पी तोड़ी, बोले यार, मै जानता हूँ तुम मुझसे नाराज हो,मै जुमे (Friday) वाले वाक्ये के लिये माफी चाहता हूँ, ये तो मिर्जा की पुरानी आदत थी, पहले पंगा लेते है,समझाओ तो बुरा भला बोलते है,फिर अगले दिन माफी मांग लेते है., अब तो हमे इस चीज की आदत पड़ चुकी थी.ये तो मुझे पता था फिर मैने सोचा लेकिन अगर कोई मनाना चाहता है, तो मेरा फर्ज बनता है कि रूठी हुई प्रेमिका की तरह बिहैव करू, सो मैने वही किया...मिर्जा बोलते रहे......बोले मेरे को ऐसा नही बोलना चाहिये था, इन साले BCCI वालो के चक्कर मे अपनी पुरानी दोस्ती थोड़े ही तोड़ेंगे, BCCI वालो का तो दीन ईमान ही नही है.. कल तक सोनी टीवी वालो के आगे पीछे घूम रहे थे.. आज फिर दूरदर्शन का पल्लू पकड़ लिया.... वगैरहा वगैरहा.

मै ताड़ गया कि मिर्जा कोई दूसरा टोपिक पकड़ने वाले है, मैने गाड़ी की स्पीड बढाई और मिर्जा को उनके गन्तव्य स्थान पर छोड़ा... मिर्जा उतरे.. मैने चैन की सांस ली....जाते जाते मिर्जा बोले....शाम को शतरन्ज खेलने का प्रोग्राम रखा है, उनके घर पर, आना जरूर.....मै ऊपरी तौर पर तो हाँ बोला.. लेकिन सोचता हूँ, टाल जाऊँ... इसी उधेड़बुन मे जाने कब औफिस आ गया पता ही नही चला.

शाम की शाम को देखेंगे.

Sunday, October 03, 2004

मिर्जा का मचलना

छुट्टी वाले दिन सुबह सुबह जब मै चाय की चुस्किया ले रहा था, अचानक फोन की घंटी बजी, वैसे तो अक्सर मै ही फोन उठाता हूँ, लेकिन छुट्टी वाले दिन(शुक्रवार और शनिवार) यह पुनीत कार्य मै अनावश्यक कार्यो की लिस्ट मे मानता हूँ, खैर जनाब पत्नी जी ने फोन उठाया, बात की, और मेरे को आवाज दी, और बड़े ही अनमने भाव से, फोन हमे टिका दिया.एक तो पत्नी का तमतमाया चेहरा ऊपर से छुट्टी वाले दिन सुबह सुबह फोन, मै किसी आशंका से भयभीत हो उठा, फिर भी हिम्मत करके फोन का चोंगा उठाया, दूसरी तरफ मिर्जा साहब थे. मै पहले इनका परिचय करवा दूँ, मिर्जा जी, का पूरा नाम तो शायद ही किसी को मालूम हो, अपने हिन्दुस्तान से है, और नवाबो के शहर लखनऊ से वास्ता रखते है.अब चूँकि हिन्दुस्तान मे लखनऊ कानपुर के सबसे नजदीक पड़ता है,इसलिये मिर्जा कुवैत मे मेरे को अपना ज्यादा करीबी मानते है और शायद इसलिये मै ही इनका हर बार विक्टम बनता हूँ,मिर्जा साहब की पत्नी तो बच्चो की पढाई का बहाना टिकाकर कनाडा प्रस्थान कर गयी है,और मिर्जा नाम की मुसीबत हमारे लिये छोड़ गयी है.हमारे ग्रुप मे मिर्जा जी का शुमार टाइम वेस्टिंग व्यक्तियो मे होता है,लिहाजा इनका फोन लेने से पहले हम दस बार सोचते है, सारे काम निबटाने के बाद फोन लेते है, क्योंकि बाद मे तो समय बचता ही नही है.हमने कुछ जरूरी खाने पीने का सामान उठाया,फोन के पास रखा,दिल मजबूत किया,पत्नी से आँखो ही आँखो मे मजबूरी जताई और फोन उठाया. हाँ एक बात और, कुवैत मे लोकल काल फ्री है, इसलिये मिर्जाजी के हाथ जो लगा, वो तो खैर गया बारह के भाव. खैर जनाब, वक्त का तकाजा कहै,अवधी तहजीब का लिहाज या फिर किस्मत का खेल, आज हमारी बारी थी, सो हमे फोन रिसीव करना पड़ा.

"अमा मिया ये फोन उठाने ने देरी कैसी,अभी तक सो रहे हो क्या?" मिर्जा जी ने दनदनाते हूए, सवाल दे मारा. मै बोला बस जरा, दूसरे कमरे मे था, माफी मांगकर,फोन पर ही मैने सलाम वाले कुम ठोका, जवाब नही मिला शायद मिर्जा साहब किसी दूसरे ही मूड मे ही थे, बोले "सुना आपने गजब हो गया, क्या जमाना आ गया है,ये तो आजतक नही हुआ,हद है शराफत की, ", मै चहका. "क्या? कहाँ?" , अब तो हमारी भी उत्सुकता बढ गयी थी, हालांकि हमारा पिछला अनुभव बताता है, कि मिर्जा साहब, हर बात मे इसी तरह से उत्सुकता पैदा करते थे, ताकि सामने वाला फोन रखने की जहमत ना उठाये. वैसे भी फालतू की गपशप मे समय व्यर्थ करना हम सबका जन्मसिद्द अधिकार है, सो हम भी लटके रहे,इसी उम्मीद मे शायद कुछ काम की बात हो. मिर्जा साहब बोलते रहे. क्या जमाना आ गया है, अपने गांगुली,तेदुलकर,द्रविद और दूसरे लड़के, जिनको अपने बच्चो से ज्यादा प्यार करते थे,जान छिड़कते थे,हम समझते थे, कि वो देश के लिये खेलते है, इत्ते सालो बाद पता चला कि वो तो एक किसी कम्पनी (BCCI) के लिये खेलते है.हम लोग खांमखा ही हर मैच पर टीवी पर टकटकी लगाये, उल्लुओ की तरह से देखते रहे...और.हारने जीतने पर पाकिस्तानियो से पंगे लेते रहे, क्या जरुरत थी?" अब जब सवाल दग ही चुका था तो, हमे जवाब की उम्मीद भी उनसे ही थी, यूँ भी जब मिर्जा साहब बोलते थे, तो किसी की मजाल है जो बीच मे बोल जाये, यह तो बातचीत का पहला सिद्दान्त था कि पूरा समय मिर्जा साहब ही बोलेंगे.खैर जनाब इस बार मै फंसा था, तो मेरे ऊपर ही शब्दो की बौछार हो रही थी.

अब धीरे धीरे बात साफ हो रही थी,अब जाकर मेरी समझ मे आया कि मिर्जा साहब क्यो तनतनाये हुए थे,बोले अभी आज ही अखबार मे पढा कि BCCI ने अदालत मे हलफनामा दिया है कि वो सरकार के अधीन नही है,और जो क्रिकेट खिलाड़ी मैच खेलते है, वो भारत के लिये नही, बल्कि BCCI के लिये खेलते है.इस विषय पर मिर्जा साहब लगभग बीस मिनट तक बोलते रहे, अनवरत, जैसे बच्चे गाय पर निबन्ध बोलते है.

अब जब मेरी बोलने की बारी आई,मैने मिर्जा को समझाया कि ये सब तकनीकी बाते है, आप इन पर ध्यान मत दो, मिर्जा इमोशनल हो गये, फैल गये,बोले आपको अपने देश की परवाह तो है नही , लेकिन मेरे को है, वगैरहा वगैरहा.......फिर मुगले आजम अकबर की तरह से ऐलान किया,इसलिये मैने डिसाइड किया है, कि मै BCCI पर मुकदमा दायर करूंगा, आप मेरा साथ देंगे या नही? मैने सवाल को इग्नोर मारा, उनको ठन्डा करने की कोशिश की,फिर लगा समझाने.

मै बोला, कि देखिये वैसे ही BCCI की मुश्किले कम नही हो रही है, अभी जुम्मा जुम्मा चार दिन हुए है महिन्द्रा को काम सम्भाले हुए, काम सम्भालते ही, कुछ पुराने खिलाड़ियो ने कमेन्ट पास करना शुरू कर दिया है, ऊपर से कोर्ट कचहरी का मामला चल रहा है सो अलग.आस्ट्रेलिया बोर्ड भी हत्थे से उखड़ा हुआ है,ICC भी चढा पड़ा है, और धमकिया दे रहा है.जहाँ तक कोर्ट कचहरी की बात है तो हर ऐरा गैरा केस ठोके दे रहा है, जी टीवी और स्टार वालो का मामला अभी सलटा ही नही था, कि प्रसार भारती ने भी केस ठोक दिया है.बेचारे डालमिया पर भी कुछ लोगो ने केस ठोक रखा है, सो अलग से. अब ये BCCI ना हो गयी, सड़क पर पड़ी फुटबाल,..... हर आने जाने वाला लात मार रहा है

मैने मिर्जा को समझाया, अगर आप भी केस ठोक देंगे तो बोर्ड पर क्या फर्क पड़ेगा, जहा इतने केस वहाँ एक और सही.और फिर आप कोई ऐरे गैरे नत्थू खैरे तो हो नही, आपकी भी कोई क्लास है, कोई इज्जत है.वगैरहा वगैरहा....

दरअसल मेरे को ना तो BCCI से कुछ लेना देना था, ना ही मिर्जा से, लेकिन अगर मिर्जा को इस तरह यंही पर नही रोकते, तो एक आध घन्टा उनको और झेलना पड़ता.सो मैने बिस्कुट को मुंहँ के हवाले करते हुँए,बातचीत को अन्त की तरफ बढाया और उनको समझाया, कि ये सब बाते दिल पर मत लिया करे, इन सब बातो मे कुछ भी नही रखा है.इसलिये केस करने का ख्याल दिमाग से निकाल दे.शायद मेरी राय मिर्जा की समझ मे ठीक तरीके से नही आई, वे भड़क उठे मेरे को उन्होने BCCI का एजेन्ट बोला,बुरा भला कहा, मा सलामा (अरबी मे Good Bye) किया,फोन रखा और शायद किसी दूसरे मुर्गे की तलाश मे निकल गये. ये मेरा टाइम टैस्टेड नुस्खा था, मिर्जा से पीछा छुड़ाने का, वैसे भी मिर्जा साहब से सभी की बातचीत अक्सर इसी नोट पर समाप्त होती थी.

मैने मिर्जा को तो समझा दिया लेकिन बोर्ड़ का हलफनामा मेरे दिल को भी विचलित कर गया...... क्या सचमुच अपने खिलाड़ी देश के लिये नही खेलते..आपका क्या सोचना है इस बारे मे.