Friday, December 31, 2004

ये दुकान यहाँ से बढ गयी है...


आपको नये वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें....

इस पन्ने पर यह मेरा आखिरी चिट्ठा है.....यह चिट्ठा यहाँ से उठकर अपने स्थायी पते पर पहुँच गया है...नये साल मे नये चिट्ठे नये स्थान पर ही लिखे जायेंगे.....वहाँ पहुँचने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये...
साथ ही मै धन्यवाद करना चाहूँगा, अपने गूगल भइया और ब्लागर के साथियों का, जिन्होने ब्लागर को नया जीवन दिया और हमारे दूसरे साथियों को अपनी राय व्यक्त करने के लिये एक स्थान उपलब्ध कराया....... ब्लागिंग की शुरुवात करने के लिये ब्लागर से अच्छा कोई साधन नही हे.

मेरा ब्लागिंग से सम्बन्ध सितम्बर 2004 से शुरू हुआ, सबसे पहले फ्री का माल यानि की ब्लागर से शुरुवात की...धीरे धीरे ब्लागर की कमजोरियाँ और अच्छाइयों का पता चला....और ये भी समझ मे आ गया कि दान की बछिया के दाँत नही गिने जाते... सो जनाब जेब को कुछ ढीला किया, मन को पक्का किया और निकल पड़े नये स्थान की खोज मे...... सफर के हमसफर थे,पंकज भाई, जो खुद भी कुछ समय पूर्व इस प्रक्रिया से गुजर चुके थे.
मेरे नये ब्लाग मे मैने वर्डप्रेस साफ्टवेयर का प्रयोग किया है....जो निसन्देह एक बेहतर विकल्प है, आपको नये ब्लाग पर कुछ नयी चीजे भी देखने को मिलेंगी......

आते रहियेगा..........मेरा पन्ना पर.

Monday, December 27, 2004

लालू प्रसाद यादव...

अनूगूँज चतुर्थ आयोजनAkshargram Anugunj

इस लेख के सर्वाधिकार एफ़ डी एल के तहत सुरक्षित है। इसे हिन्दी विकी पर भी पढा जा सकता है।

लालू का नाम लेते ही याद आ जाती है एक सूरत, भोला भाला गंवार का बन्दा,गोल गोल चेहरा, सफेद बाल जैसे कटोरा कट, चेहरे पे बिखरी मासूमियत और भोलापन, आँखो मे जैसे कुछ शरारत, मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत, जज्बा विरोधियो को धूल चटाने का और जबान, तो जैसे अभी कोई नया शगूफा छोड़ने ही वाली हो. यही है लालू, हम सबके प्यारे लालू प्रसाद यादव. कोई इन्हे भारत की राजनीति का मसखरा कहता है कोई इन्हे गरीबो का नेता मानता है, कोई इन्हे बिहार को बरबाद करने वाला नेता मानता है. मै तो इन्हे परिपक्व राजनीतिज्ञ मानता हूँ, जो एक एक शब्द सोच समझ के बोलता है और अपने व्यक्तित्व का पूरा पूरा फायदा उठाता है. लालू की प्रसिद्दि का यह आलम है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान मे मेरे मित्र भारत की राजनीति मे सिर्फ लालू की ही बात करना पसन्द करते है. सिर्फ पाकिस्तान ही क्यों पूरी दुनिया मे लालू मशहूर है.कुल मिलाकर लालू एक लोकप्रिय नेता है, भले ही वो कैसी भी राजनीति करते हो आप उन्हे भारतीय राजनीति मे नजरअन्दाज नही कर सकते.
Lalu Prasad Yadavबिहार के गोपालगंज मे आजादी के एक साल बाद 1948 मे एक निहायत ही गरीब परिवार मे जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूवात जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे, और बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि लालू ने वकालत भी की हुई है.1977 मे इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव मे लालू जीते और पहली बार लोकसभा पहुँचे, तब उनकी उम्र मात्र 29 साल थी. 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे. लेकिन सबसे सही समय उनके जीवन मे आया 1990 मे जब वे बाकी धुरंधर और घाघ नेताओ को छकाते और ठेंगा दिखाते हुए बिहार के मुख्यमंत्री बने. यह अत्यन्त अप्रत्याशित था तो असंतोष स्वाभाविक ही था, अनेक आंतरिक विरोधो के बावजूद वे अगले चुनाव यानि कि 1995 मे भी भारी बहुमत से विजयी रहे और अपने आपको सही साबित किया.लालू के जनाधार मे MY यानि मुस्लिम और यादवो के फैक्टर का बड़ा योगदान है, लालू ने इससे कभी इन्कार भी नही किया, और लगातार अपने जनाधार को बढाते रहे.

लेकिन जैसा कि हर राजनेता के जीवन मे कुछ कठिन पल आते है, सो 1997 मे जब सीबीआइ ने उनके खिलाफ चारा घोटाले मे आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हे मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा, लेकिन अपनी पत्नी राबड़ी देवाी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे, और अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी उनके हाथ ही रही.चारा मामले मे लालू को जेल भी जाना पड़ा, बहुत नौटंकी भी हुई और उनको कई महीने जेल मे भी रहना पड़ा, लेकिन बिहार मे लालू को हिलाने वाला अब तक पैदा नही हुआ था. फिर पिछले लोकसभा चुनाव के बाद लालू को दिल्ली की सत्ता मे योगदान करने की सूझी, लालू तो गृह मन्त्री बनना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के दबाव और काफी हीलहुज्जत के बात रेलमन्त्री बनने को राजी हो गये.यह बात और है कि विपक्ष अभी भी उनका बायकाट करता है, लेकिन लालू को कोई परवाह नही.

लालू को पता है, कि कब क्या कहना है, कितना कहना है और कैसे कहना है, किसी विस्फोटक बात को कहते समय भी लालू के चेहरे पर शिकन नही आती और वे मासूमियत का लबादा ओढे रहते है. बिहार के मामले मे लालू को पता है कि कब किस दल मे तोड़फोड़ करनी है, कब किसे और कहाँ शिकस्त देनी है.लेकिन अपनी पार्टी पर उनका एकक्षत्र राज है, मजाल है कि कोई चूँ भी कर जाये... बाकायदा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.

लालू ने काफी लेख भी लिखे है मुख्यतः राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर , उनका शौंक है बड़े बड़े आन्दोलनकारियों की जीवनिया पढना और राजनीतिक चर्चा करना.... संगीत के नाम पर लोकगीत इन्हे बहुत पसन्द है, और खेलो मे क्रिकेट मे दिलचस्पी है, वे बिहार क्रिकेट एसोसियेशन के अध्यक्ष भी है. और उनका सपुत्र एक अच्छा क्रिकेटर भी है.लालू ने एक फिल्म मे भी काम किया जिसका नाम उनके नाम पर ही है, यह बात दीगर है कि इस फिल्म का उनसे कुछ भी लेना देना नही है.
रेलवे मन्त्री रहते हुए भी लालू काफी विवादास्पद रहे.....रेलवे मे कुल्हड़ चलाने का मामला हो या विलेज ओन व्हील गाड़िया, लालू का इन सबके पीछे अपना तर्क है. लालू ने वही किया जो उनके मर्जी मे आया, सिवाय सोनिया गांधी के वे यूपीए मे किसी भी नेता को घास नही डालते, हमेशा अपनी मनमर्जी करते है.लालू के रिश्तेदार भी लालू के राजनीतिक सफर मे काफी रूकावटे खड़ी करते है, साले साधू यादव हो या परिवार के बाकी लोग, हमेशा किसी ना किसी तरह लालू के लिये आफते लाते रहे है.वैसे भी लालू हमेशा नये नये विवादो मे घिरते रहते है अभी पिछले दिनो वे बिहार मे गरीबो मे पैसे बाँटते हुए देखे गये थे..जो आचार संहिता का सीधा सीधा उल्लंघन है..... विरोधियो ने पुरजोर विरोध किया, लेकिन लालू है कि असर ही नही.
लालू के कुछ मजेदार वक्तव्यः
Lalu Prasad Yadav
"मै बिहार की सड़के हेमा मालिनी के गालों जैसी चिकनी करवा दूँगा."
"भारतीय रेलवे और रेल यात्रियो सुरक्षा की जिम्मेदारी भगवान विश्वकर्मा की है, मेरी नही" रेलवे हादसों के संदर्भ मे बोलते हुए.
"यदि हम माल भाड़ा बढाते है तो लोग सड़क द्वारा माल भेजना शुरु कर देंगे जिससे सड़को की हालत खराब हो जायेगी"
"मै बहुत काम करता हूँ, अगर मेरे को आराम नही मिलता है तो मै पगला जाता हूँ" यह पूछे जाने पर कि आप सैलून मे क्यों सफर करते है.
"मै आपको क्यों बताऊ कि रेलवे इन परियोजनाओ के लिये धन कहाँ से लायेगा....हमारे विरोधी एलर्ट ना हो जायेंगे." रेलवे बजट पर पूछे गये सवालों के जवाब मे.
"पासवान की पार्टी मे तो सब लफंगा एलिमेन्ट भरा पड़ा है"

अपनी बात कहने का लालू का खास अन्दाज है, यही अन्दाज लालू को बाकी राजनेताओ से अलग करता है, इनको देखकर मुझे स्वर्गिय नेता राजनारायण की याद आती है, जो मसखरी मे लालू से कुछ कदम आगे थे, लेकिन लालू का अन्दाज ही कुछ निराला है.पत्रकार तो इनके आगे पीछे मन्डराते रहते है, और बस इन्तजार करते है कि कब लालू कुछ बोलें और ये लोग छापे.....सीधा साधा मामला है, लोग लालू के बारे मे पढना पसन्द करते है. बिहार की सड़को को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे मे कुल्हड़ की शुरुवात, लालू हमेशा से ही सुर्खियों मे रहे.इन्टरनेट मे आप लालू के लतीफों का अलग ही सेक्शन पायेंगे.... लालू के आलोचक चाहे कुछ भी कहें मेरी नजर मे लालू एक घाघ, शातिर,आक्रामक और हाजिरजवाब राजनेता है.

लालू का एक ही सपना है, भारत का प्रधानमन्त्री बनना, अब देंखे इनका यह सपना कब पूरा होता है.

Sunday, December 26, 2004

हम जुगाड़ी हिन्दुस्तानी

हम भारतीयो के दिमाग मे विश्व मे सबसे तेज है या नही, यह विवाद का विषय हो सकता है, लेकिन हम लेटेस्ट टैक्नोलाजी का इस्तेमाल करना बखूबी जानते है...इस बारे मे कोई विवाद नही हो सकता.. नही मानते? तो सुनिये...

उत्तर प्रदेश सरकार ने अभी कल ही पूरे प्रदेश के इन्टरनेट कैफे और केन्द्रो पर छापा मारा, जानते है क्यों? क्योकि ये कैफे स्कूली छात्र छात्राओ के लिये एय्याशी के अड्डे बन गये थे. दरअसल इन कैफे मे छोटे छोटे केबिन बने हुए होते है, ताकि लोगो की प्राइवेसी बनी रहे.... लेकिन छात्रो और कैफे प्रबन्धकों ने इसका दूसरा ही इस्तेमाल किया..... छात्र अपने साथ किसी फिमेल पार्टनर को साथ लेकर आते और किसी केबिन का प्रयोग करते... यह सब कैफे प्रबन्धको की रजामन्दी से हो रहा था.......आगरा में दो इंटरनेट केंद्रों मालिकों पर आरोप है कि वे लड़के और लड़कियों को यौन संबंध बनाने के लिए कोठरियाँ मुहैया करा रहे थे और इसके लिए एक घंटे के लिए साठ रुपए लेते थे.

कुछ संचालक तो और घाघ होते है, इन्होने हर कैबिन मे खुफिया क्लोज सर्किट कैमरे लगा रखे है, और प्रेमी युगलो की तस्वीरे ‌और फिल्मे उतारते है, जिन्हे बाद मे बाजार मे बेंच दिया जाता है.देखा है ना फायेदे का सौदा.......आम तो आम गुठिलयों के भी दाम.

पुलिस का कहना है कि इन इंटरनेट केंद्रों में से ज़्यादातर कोठरियों में कंप्यूटर भी नहीं थे और वहाँ से इस्तेमाल किए गए कंडोम बरामद किए गए हैं.पुलिस ने इन इंटरनेट केंद्रों में 22 लड़के और लड़कियों को गिरफ़्तार किया जिनमें से बहुत से नग्न अवस्था में

हुआ ना टैक्नोलाजी का सही इस्तेमाल.

मेरे ख्याल से अब इन्टरनेट कैफे वाले अपने विज्ञापन इस तरह से देंगेः
"सस्ता, सुगम, सुन्दर और सुरक्षित इन्टरनेट कैफे.......हमारे यहाँ फैमिली सर्फिंग की विशेष सुविधा है.सारी सुविधाये एक ही स्थान पर उपलब्ध.हमारे यहाँ वीडियो रिकार्डिंग नही होती."

Thursday, December 23, 2004

लालू का बचाव

पिछले लोकसभा चुनाव के पहले लालजी टंडन फंसे थे..साड़ियां बाँटने मे, इस बार लालू जी फंस गये
अब ये भी कोई बात हुई........ एक टेलीविजिन चैनेल ने दिखाया है कि लालू प्रसाद सौ सौ के नोट बाँट रहे थे, गरीब जनता मे...कि जाओ मिठाई खाना और चुनावी रैला मे जरूर आना....अब लालू प्रतिद्वंदियो को मौका मिल गया घसीट लिया कि यह तो चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन है...और मामला चुनाव आयोग तक पहुँच गया है.....अब लालू से जवाब देते नही बन रहा है....पेश है कुछ जवाब, लालूजी अगर आप या आपके चाहने वाले ये ब्लाग पढ रहे हो तो इनमे से कोई भी जवाब का इस्तेमाल कर ले....और साफ छूट जाये.
चुनाव आयोग और बीजेपी वाले पूछ रहे है कि लालू सौ सौ के नोट क्यों बाँट रहे थे.....जवाब हाजिर हैः

  1. इन लोगो ने डालर के छुट्टे मांगे थे.
  2. नयी फिल्म की शूटिंग की रिहर्सल कर रहे थे.
  3. इसी टीवी चैनल वाले ने कहा था कि ऐसा करों ताकि हमारे चैनल के एक्सल्यूसिव कवरेज मिले.
  4. कई साल पहले जब मै पहली बार इस क्षेत्र मे आया था तो इन्ही लोगो के पुरखों ने मुझे दस दस रूपये दिये थे, सो मै आज सौ सौ करके लौटा रहा हूँ, सो पुराना कर्जा चुका रहा था.
  5. हमने इन गरीब लोगो के साथ मिल कर एक चिट फन्ड कम्पनी खोली है, और इन सबको लकी ड्रा निकला है, सौ सौ रूपये के इनाम का, वही बांट रहा हूँ.
  6. आजकल नकली नोट प्रचलन मे है...इसलिये नकली और असली नोटो मे फर्क बता रहा थे.
  7. चूरन वाले नोट थे......कोई घूस थोड़े ही थी.
  8. ये लोग खैनी बहुत अच्छी बनाते है... इसलिये खैनी खरीदने के लिये एडवान्स दे रहे थे.
  9. सब्जी और फूल वगैरहा सप्लाई करने का पेमेन्ट कर रहे थे.
  10. आजकल सिक्के बाजार से गायब है, इसलिये सौ सौ रूपये देकर, सिक्को के पैकैट ले रहा था.
  11. लालजी टंडन जैसा नेता, मेरे से आगे कैसे निकल सकता है, उसने साड़ी दी तो मैने पैसे दिया...क्या बुरा किया.
  12. अपनी जेब से पैसे दिये, अपनी जनता को दिये, आप लोगों के पेट मे दर्द क्यों.
  13. अशोक चक्र का महत्व समझा रहा था.
  14. मै था ही नही........मेरे जैसा कोई बहरूपिया था.
  15. और आखिरी मगर ठेठ बिहरिया जवाबः "का हो.. कमीशनबाबू......इत्ता चिल्लाये काह रहे हो....जब देखो बकर बकर...अरे सौ सौ का नोटवा हि तो दिये है, कोनौ खजाना थोड़े ही लुटाये दिये है....हम ना दैबे तो का तोहार माइ आकर बटिहै?"


आपके पास और कोई जवाब हो तो जरूर बतायें.


बुरे फंसे......

मामला कहाँ से शुरू हुआ था, और कहाँ जाकर पहुँचा है.....

कहते है 'होनहार बिरवान के होत चिकने पात!' .... यानि कि होनहार बच्चे का पता पालने मे ही चल जाता है..... आज दिल्ली के एक होनहार बच्चे का नाम अमरीका वाले भी ले रहे है.....क्यो?


मामला शुरू हुआ था दिल्ली के एक पब्लिक स्कूल के एक छात्र ने अपनी दूसरी सहपाठिनी के साथ कुछ यौन क्रिया करते हुए...अपने मोबाइल फोन से उसकी वीडियो बनायी और मस्ती मस्ती मे अपने कुछ दोस्तो को भेज दी........दोस्तो ने दूसरे दोस्तो को...और दूसरो ने तीसरे को...कुछ ने इन्टरनेट पर डाल दी और तो कुछ ने सीडी बनाकर बेच दी.... ज्यादा महत्वाकांक्षी लोगो ने फास्ट मनी बनाना चाहा....और बाजी डाट काम पर इसको बेचने के लिये भी डाल दिया....इस तरह बच्चो के क्रियाकलापों की सीडी पूरी दुनिया ने चटखारे ले लेकर देखी..............एक सच्चाई कि सिर्फ हमी चूक गये ....हमने अभी तक नही देखी...... इधर पुलिस पर दबाव पड़ा तो पहले तो पुलिस ने सबसे पहले तो आइआइटी खड़कपुर के एक छात्र को गिरफ्तार कर लिया जिसने बाजी डाट काम पर यह वीडियो क्लिप बेचने के लिये डाली थी...उसको गिरफ्तार करने के बाद, इस पूरे प्रकरण मे पुलिस को कंही भी कुछ कमाई नही दिख रही थी..सो उन्होने बाजी डाट काम के सीईओ अवनीश बजाज को भी गिरफ्तार कर लिया..... जो बेचारा विशेष तौर से अमरीका से दौड़ता आया था इस केस मे मदद करने के लिये......इसे बोलते है सांप तो निकल गया और अब पुलिस लाठिया पटक रही है...इन जनाब पर इल्जाम है कि इन्होने अपनी साइट पर बिकने वाली चीजों की वैधता को चैक नही किया....अब जनाब बाजी डाट काम तो B2B यानि कि बेचने वाले और खरीदने वाले को मिलाने वालों की साइट है...अब कम्पनी के लिये यह बहुत ही मुश्किल है कि वह बिकने वाली हर चीज के बारे मे जाँच पड़ताल करे.....रोजाना लगभग 48000 चीजों का लेनदेन होता है, इसमे किताबे, वीडियो,डीवीडी,साफ्टवेयर और ना जाने क्या क्या होता है. लेकिन नही...पुलिस वालो का कहना है कि गलती बाजी डाट काम वालों की है.... क्या इसका ये अन्दाजा लगाया जाये कि अखबार मे कुछ विज्ञापन देखकर लोग अगर कुछ गलत खरीद ले तो अखबार वालों को जेल मे डाल दिया जाय....या फिर किसी शादी के मैरिज हाल वाले यहाँ अगर कोई शादी हुई है और बाद मे कोई प्रोबलम आये तो मैरिज हाल वाले को जेल मे डाल दिया जाये... या फिर हम लोग जो ब्लागर पर आकर ऊँटपटांग लिखते है उसके लिये गूगल भइया को जेल के अन्दर डाल दिया जाय...

किसी सन्ता सिंह ने कहा कि बाजी डाट काम को अपने सामानो की लिस्ट को फिल्टर करना चाहिये जिसमे सेक्स वगैरहा जैसे आइटम लिस्ट से बाहर निकल जाये....तो उन्ही जानकार महोदय के पड़ोसी बन्ता सिंह ने बोला तब सो इस तरह से साइट के सत्तर प्रतिशत आइटम बाहर निकल जायेंगे....फिर बिकगा क्या.......तबसे सन्तासिंह का मुंह बन्द है.

यह पहला मौका नही है जब इस तरह की वैबसाइट्स किसी मामले मे घसीटी गयी है.....पहले कुछ समय पहले फ्रांस मे भी याहू बाबा का बायकाट हुआ था...इन पर इल्जाम था कि इनकी साइट पर नाजी हुकूमत को दर्शाने वाली चीजों की नीलामी हो रही थी.........इसी तरह से बाजी डाट काम की पितृ साइट इबे भी इस तरह के पचड़े मे फंस चुकी है. इसकी साइट पर किसी बाला ने अपनी कौमार्य(Virginity) की नीलामी का विज्ञापन दिया था,जिससे काफी बवाल मचा था...........बाद मे न्यायालय ने एक फैसला दिया कि साइटवाला किसी विज्ञापन के लिये दोषी नही ठहराया जा सकता..........अब बाजी वाले दोषी है या नही इन सब बातों पर बहुत गरमागरम बहस हो सकती है......इन सब मे इस साइट्स की कितनी गलती है.......लेकिन मसला ये नही है...मसला ये है कि अब अमरीका भी इस मामले मे कूद पड़ा है, क्यों? क्योंकि बाजी डाट काम के सीईओ साहब अमरीकी नागरिक है, और अमरीका ये बर्दाश्त नही कर सकता कि उसके नागरिकों के साथ दुनिया मे कंही भी किसी भी तरह की दुर्वव्यवहार हो....मामला अब काफी तूल पकड़ता दिखायी देता है....कुछ भी हो दिल्ली पब्लिक स्कूल और उसके छात्रो को तो काफी पब्लिसिटी मिल गयी. पढाई हो ना हो... बच्चो को प्रेक्टिकलस की जानकारी अच्छी है.

वैसे दूसरी तरफ से देखा जाये तो हमारा देश अब अवैध तरीके से ब्लू फिल्म के मामले मे काफी आगे है..या कहो कि स्माल स्केल इन्डस्ट्रीज की तरह से है........ कुछ समय पहले मिस जम्मू वाला कान्ड हुआ...फिर स्टार न्यूज ने भी कुछ दिखाया..कुछ छिपाया और अब दिल्ली पब्लिक स्कूल वाला कान्ड....

कुछ भी हो....... मेरे को ब्रिटेनिया का एक विज्ञापन याद आ रहा है.......ब्रिटेनिया खाओ....... उसको यहाँ इस्तेमाल किया जा सकता है.........वीडियो बनाओ और शोहरत पाओ

अपडेटः उस लड़के को भी गिरफ्तार कर लिया गया है जिसने यह वीडियो बनाया था....बजाज साहब को जमानत मिल गयी है.. और उस लड़के को भी जमानत मिल गयी है.

आपका क्या कहना है इस बारे मे?

Sunday, December 19, 2004

वर्डप्रेस को अपने वैब सर्वर पर स्थापित करना

  1. सबसे पहले तो वर्डप्रेस के लिये mySQL मे डाटाबेस क्रियेट करें.
  2. एक नया यूजर क्रियेट करे और उसको इस डाटाबेस पर पूरे राइट्स प्रदान करें.
  3. वर्डप्रेस की साइट से लेटेस्ट वर्जन डाउनलोड करें. यह डाउनलोड .tar फोरमेट मे होगा.
  4. इस फाइल को एक्सट्रेक्ट करें. जो एक wordpress डायरेक्टरी बनायेगा.
  5. इस डायरेक्टरी के अन्दर wp-config-sample.php को ढूंढे और उसकी कापी बनायें wp-config.php के नाम से.
  6. इस नयी फाइल को vi editor मे खोलकर डाटाबेस(db_database) ,यूजर(db_user) और पासवर्ड (db_password) की जानकारी को अपडेट करें.
  7. यदि आप एक डाटाबेस मे कई ब्लाग रखना चाहते है तो db_prefix को भी बदल दें.
  8. वर्डप्रेस को हिन्दी मे रूपान्तरित करने के लियेः
  9. wp-include डायरेक्टरी के अन्दर एक नयी सबडायरेक्टरी बनाये, जिसका नाम languages रखें.
  10. फिर hi.mo (यह फाइल हमारे गुरूजी पंकज नरूला जी से मुफ्त प्राप्त करें.)
  11. अब वर्डप्रेस डायरेक्टरी को अपने रूट "/www" फोल्डर मे स्थानान्तरित कर दे.
  12. अब अपने ब्राउजर मे http://yoursite.domain/yourblog/install.php लिखें.
  13. याद रखें yoursite.domain आपकी साइट का नाम है
  14. और yourblog आपके ब्लाग का नाम है, आपके रूट के उस फोल्डर का नाम जिसमे आपने वर्डप्रेस के फोल्डर को स्थानान्तरित किया था.
  15. स्क्रीन पर दिये दिशानिर्देशों का पालन कीजिये....और अपना एडमिन का लागिन और पासवर्ड पाइये और लोगिन कीजिये.
  16. वर्डप्रेस के plugins & Themes download कीजियें, उन्हे स्थापित कीजिये और वर्डप्रेस के कन्ट्रोल पैनल से उसे एक्टिवेट कीजिये.
  17. अब अपने वर्डप्रेस को अपने हिसाब से कन्फिगर कीजिये.....
  18. अपने लिंक बनाइये........ और अपने ब्लाग लिखिये......
आपका नये ब्लाग का सफर मंगलमय हो....

Friday, December 17, 2004

आतंकवाद से मुख्य धारा की राह

अनुगून्ज तीसरा आयोजनAkshargram Anugunj

आतंकवाद से मुख्य धारा की राह

जब इस मामले पर लिखने का आदेश हुआ, तो रोज सोचा कि कल लिखेंगे... यह सब करते करते आज आखिरी दिन आ गया, पेपर सब्मिट करने का.... और निबन्ध तो बहुत दूर की बात है, विचारों का अब तक तो कुछ भी अता पता नही है. चलो खैर लिखने की कोशिश करते है, आयोजकों से निवेदन है कि मेरे को ज्यादा ना धोयें......

इस विषय पर बात करने से पहले हमे देखना होगा कि आतंकवाद की जड़ें कहाँ पर है, दरअसल आतंकवादी पैदा नही होते, आतंकवादी बनते है परिस्थितयोवश या फिर पैदा किये जाते है किसी उद्देश्य के लिये,धर्म,जाति या समाज के नाम पर.............. यदि किसी क्षेत्र का लगातार शोषण या फिर अवहेलना होती है, तो लोगों मे गुस्सा पैदा होता है, जो धीरे धीरे नफरत और बाद मे विद्रोह का नाम ले लेता है, अक्सर यह विद्रोह हिंसक हो जाता है, जब विद्रोह को कुचलने के लिये सुरक्षाबल लगाये जाते है, जिनकी ज्यादियों के बारे मे लिखने बैठे तो पन्ने भर जायेंगे..........उन ज्यादितियों की वजह से ही हिंसक आन्दोलन, आतंकवाद का रूप ले लेता है...... इसके अलावा कभी कभी शासन समर्थित आतंकवाद भी होता है, जो स्वार्थी राजनेताओ के दिमाग की उपज होता है और किसी ना किसी दिन हाथ से ही निकल जाता है.और देश और दुनिया को खतरे मे डाल देता है.अगर कश्मीर का आतंकवाद देखा जाये तो यह उपेक्षा का ही नतीजा है और कुछ गलतिया हमारे पूर्वज नेताओ की है, और जो बची खुची कसर थी वो पड़ोसी देश ने पूरी कर दी. आतंकवाद तब तक पनप नही सकता जब तक उसे लोगो का कुछ साथ ना हो... लाख पड़ोसी देश चाहे.... जितने आतंकवादी भेजे, जब तक लोकल सपोर्ट नही होगा... ये पनप नही पायेंगे... और यदि आप देखेंगे तो पायेंगे कि इन आतंकवादियों को काफी लोकल सपोर्ट मिलता है, लेकिन लगातार होने वाले आतंकवादी कार्यवाहियों से लोग भी ऊब गये है, शायद यह आतंकवाद का आखिरी चरण है....पंजाब मे आतंकवाद ना सरकार ने रोका, ना सुरक्षाबलो ने,बल्कि इसका श्रेय जाता है पंजाब की जनता को जो इस आतंकवाद से ऊब गयी थी......... और समझ गयी थी....आतंकवाद का रास्ता सही रास्ता नही है.

अब सवाल उठता है कि आतंकवाद से मुख्य धारा का रास्ता क्या हो?
क्या समर्पण किये हुए आतंकवादियों को राष्ट्र की मुख्यधारा मे लाने के लिये उन्हे सेना अथवा अर्धसैनिक बलों मे लाना चाहिये?

सीधा सीधा जवाब तो है नही...................... इसके पीछे कई तर्क है, सवाल यहाँ अविश्वास का नही है, बल्कि सेना के मनोबल का है.अव्वल तो इससे सेना मे ही कंही ना कंही असंतोष फैलेगा कि उनके साथियों के कातिल उनके ही बीच है, इससे सेना के अनुशासन पर असर पड़ेगा...मेरा ख्याल से इन इख्वानियों को कश्मीर मे ही जनहित के कार्यों मे लगाना ठीक रहेगा.......या फिर इनका प्रयोग आतंकवादियों के खिलाफ किये जाने वाली कार्यवाहियों मे किया जा सकता है लेकिन सिर्फ कुछ हद तक... जानकारी जुटाने मे, अथवा आतंकवादियों के ठिकानो तक पहुँचने मे.

दूसरा रास्ता हो सकता है, कूका परे वाला, यानि कि राजनीति मे लाने का.... लेकिन हमारे घाघ राजनीतिज्ञ जानते है, अगर इनको पनपने दिया गया तो राजनीतिज्ञयो का पत्ता साफ हो जायेगा, या फिर इनको रोजगार ने नये अवसर प्रदान करके कुछ किया जा सकता है, जैसे कश्मीर मे पर्यटन को बढावा देने के लिये किसी को होटल व्यवसाय अथवा ट्रेवल एजेंसी या फिर शिकारा वगैरहा के व्यवसाय मे डाला जा सकता है, या फिर खेती बाड़ी जैसे काम मे.... लेकिन सेना मे अथवा अर्धसैनिको बलों मे लाना एक बहुत बड़ी राजनैतिक भूल होगी...जिसका खामियाजा आने वाली नस्लों को भुगतना पड़ सकता है.वैसे भी सरकार इस तरह के कार्यक्रम चलाती रहती है, लेकिन ये सब खानापूर्ति के लिये ही होते है.यदि सरकार इनका पुनर्वास ठीक तरीके से नही करती, तो कोई बड़ी बात नही है कि ये फिर अपनी पुरानी राह पर लौट जायें.लेकिन सरकार के दोहरे मापदण्ड है, चम्बल के डाकुओ का पुनर्वास तो बड़े ही सही तरीके से किया जाता है, उन्हे जमीन,सुविधाये और सामान्य जीवन जीने की आजादी दी जाती है, लेकिन आतंकवादियों के साथ ऐसा व्यवहार नही किया जाता. मेरे हिसाब से समर्पण किये आतंकवादियो के साथ भी कुछ वैसा ही व्यवहार होने चाहिये, ताकि वो भी सामान्य जिन्दगी की तरफ लौट सकें....लेकिन इसका मतलब यह कतई नही है कि उन्हे देश की रखवाली या दूसरे संवेदनशील कामो मे लगाया जाय.... यदि ऐसा होता है तो यह एक बहुत बड़ी राजनैतिक भूल होगी.

इसके अतिरिक्त सरकार को कुछ और कार्यो पर भी ध्यान देना चाहिये... कश्मीर मे मूल भूत ढांचा ठीक करना........रोजगार ने नये अवसर पैदा करना......पर्यटन को बढावा देना.....जनता को सुरक्षा और संरक्षण........शिक्षा..... लोगो के जीवन स्तर और मूलभूत सुविधावो का विकास करना वगैरहा वगैरहा. योजनओ की घोषणाये तो बहुत होती है और कई बार उसके लिये धन भी आवंटित और मुहैया कराया जाता है, लेकिन पैसे नेताओ पर ही खर्च हो जाते है और योजनाये कागजों मे ही दम तोड़ देती है....यदि ऐसा लगातार होता रहा तो सरकार ही जिम्मेदार होंगी...................नये आतंकवादी बनाने मे.


Thursday, December 16, 2004

बात निकलेगी तो फिर.....

बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
लोग बेवजह उदासी का सबब पूछेंगे
ये भी पूछेंगे कि तुम इतनी परेशां क्यूं हो
उगलियां उठेंगी सुखे हुए बालों की तरफ
इक नज़र देखेंगे गुज़रे हुए सालों की तरफ
चूड़ियों पर भी कई तन्ज़ किये जायेंगे
कांपते हाथों पे भी फिकरे कसे जायेंगे

लोग ज़ालिम हैं हर इक बात का ताना देंगे
बातों बातों मे मेरा ज़िक्र भी ले आयेंगे
उनकी बातों का ज़रा सा भी असर मत लेना
वर्ना चेहरे के तासुर से समझ जायेंगे
चाहे कुछ भी हो सवालात न करना उनसे
मेरे बारे में कोई बात न करना उनसे
बात निकलेगी तो फिर दूर तलक जाएगी
-कफील आजर

गप्प सुनो भाई गप्प

बात उन दिनो की है, जब मुम्बई को बम्बई के नाम से ही जाना जाता था. काफी साल पुरानी बात है, कि हमारे एक रिश्तेदार बम्बई से कानपुर किसी शादी मे पधारे... तब मोहल्ले मे किसी के घर भी आया मेहमान, सबका मेहमान होता था, काफी आवभगत होती थी. लोग हालचाल पूछने आते थे, अपने घर खाने के लिये भी बुलाते थे. तो हुआ यों कि इन मेहमान जनाब जिनको,सिर्फ दो ही शौँक थे, पेट भर के खाना और बम्बई की गप्पे सुना सुना कर उसका गुणगान करना और दूसरे शहरो जैसे कानपुर का मजाक उड़ाना.इनको बम्बई के अलावा पूरा भारत एक गांव जैसा लगता था, दरअसल गलती इनकी नही थे,ये मेहमान साहब शायद पहली बार अपने शहर से बाहर निकले थे.

चलो मेहमान का नाम भी रख लेते है, "रमेश बाबू".................. सर्दियों के दिन थे, हम सभी लोग अपना गुड़,गजक और मुंगफली का स्टाक लेकर ,रजाई ढोकर , रसोई से अंगीठी उठाकर हाल मे रखकर, रजाई मे बैठ गये...इनकी बाते सुनने के लिये............रमेश भाई को भी पहली बार इतना भाव मिल रहा था..... अच्छे से कोई सुनने वाला मिला था, शुरू हो गये गप्पो की दुनिया मे... बम्बई ये, बम्बई वो.....वगैरहा वगैरहा......काफी समय तक तो हम लोग झेलते रहे....माताजी का डर ना होता तो हम तो उनको घर मे ही धो दिये होते... लेकिन क्या करें......सबसे छोटे जो ठहरे परिवार मे.... सबकी सुननी पड़ती थी...हमने भी सोच लिया कि रमेश भाई को एक बार कानपुरियन मेहमाननवाजी से अवगत जरूर करवायें. तो जनाब मैने अपनी बात वानर सेना के सामने रखी, तो ये डिसाइड हुआ कि रमेश भाई को गुरदीप सरदार के यहाँ खाने पर बुलवाया जाये और वहीं पर उनकी गप्पों का मजा लिया जाये और अझेल होने पर धोया जाय.

गुरदीप के यहाँ खाने का न्योता, कोई पागल ही नकार सकता है, चाईजी के हाथ का बना बटर चिकन और मखनी दाल ते आलू दे नान, कोई भूल सका है क्या भला...सो रमेश जी जब घरवालो से खाने की तारीफ सुनी तो तुरत फुरत तैयार हो गये.... वो दिन भी आ गया. खाना निबटाने के बाद पूरी वानर सेना जम गयी और रमेश भाई से किस्से सुनने के लिये. रमेश भाई शुरू........"एक बार मै बम्बई मे सड़को पर घूम रहा था, अपने स्कूटर पर, तो मेरे को राजेन्द्र कुमार(उस समय के सुपर हिट हीरो) मिल गया उसकी गाड़ी खराब हो गयी थी...मैने उसको लिफ्ट दी, उसके घर तक तो उसने मेरे को खाना खिलाया और अपनी शूटिंग देखने का न्योता दिया... मै फिर शूटिंग देखने गया..डायरेक्टर ने मेरे को देखा और बोला, आप भी कपड़े बदलकर आ जाओ, गाने के एक शाट मे आपको भी लिया जायेगा.... सो फलानी फिल्मे के फलाने सीन मे मैने काम किया है, नारियलपानी वाले का" वगैरहा वगैरहा.....यहाँ तक तो ठीक था, लोग आंखे फाड़े और विस्मय से उनको देख रहे थे... सरदारजी की तो बांछे खिल गयी बार बार रमेश भाई को छूकर देख रहे थे और उनका हाथ चूमने लगे थे..........क्योंकि वो राजेन्द्र कुमार के बहुत बड़े पंखे यानि फैन थे. रमेश भाई अब धीरे धीरे गप्पों की गहराई मे जाने लगे....हमारे परिवार मे सबको पता था कि रमेश भाई बहुत ही नकारा किस्म के इन्सान है, किसी तरह से बम्बई मे किसी छोटी मोटी कम्पनी मे क्लर्क की नौकरी लगी है, लेकिन रमेश भाई ये बात बताकर अपनी वैल्यू नही गिराना चाहते है........सो चाईजी ने पूछ ही लिया....तुसी कि कम कन्दे हो उत्थे....... रमेश भाई की दुखती रग पर हाथ रख दिया गया था.... सो रमेश भाई ने बोलना शुरू किया......"मै आप लोगो को बताना तो नही चाहता, क्योंकि मै सरकार की सीक्रेट सर्विस मे काम करता हूँ" (ये शायद जासूसी नावेल पढने का नतीजा था, सो उन्होने यहाँ फिट कर दिया), बोले "मै सीआईडी के लिये काम करता हूँ, और कानपुर किसी सीक्रेट मिशन के लिये आया हूँ, आप लोग किसी को बताना नही....", सुनने वाले लोगों का दिमाग चकराने लगा....लोगो ने मुंगफली और गजक की डलिया उनके सामने कर दी, हाल मे एकदम सन्नाटा छा गया...., रमेश भाई को किसी की परवाह नही थी... वो बोलते रहे..."उत्तर प्रदेश मे बहुत सारे अपराधी घुस आये है, उनको ढूंढने के लिये ही मेरे को यहाँ भेजा गया है......" वगैरहा वगैरहा.

अब यहाँ पर हमसे झिला नही गया, वानर सेना तो बस हमारे नोआब्जेक्शन इशारे का इन्तजार कर ही रही थी....हमने सिगनल ग्रीन दिया, तो गुरदीप बोला...."अच्छा! तभी तो मै कंहूँ कि हमारे मोहल्ले मे पुलिस की गाड़िंया क्यों घूम रही है", रमेश भाई को शह मिल गयी...बोले...."हाँ, मेरी सुरक्षा के लिये ही..." गुरदीप ने बोला..."उस दिन मेरे से सिपाही बोल रहा था कि मोहल्ले मे कोई वीआईपी आने वाला है, इसलिये यह सब तैयारी हो रही है...." वानर सेना के बाकी वानरों ने भी गुरदीप की हाँ मे हाँ मिलाते हुए कुछ गप्पे छोड़ दी..... रमेशभाई समझे कि जनता पूरी तरह से कन्वीन्सड है, सो लगे और लम्बी लम्बी छोड़ने....अपनी बहादुरी और .चम्बल के डाकुओ के किस्से सुनाने.........."

वानर सेना ने निश्चय किया कि रमेश भाई को एक्सपोज जरूर करेंगे....... उस रात तो हमने रमेशभाई को पूरी खुल्ली छूट दी बोलने की, लेकिन अगले दिन सुबह सुबह ही हमने रामआसरे सिपाही को पकड़ा और पूरी कहानी बतायी और ये भी बताया कि रमेशभाई मेहमान है, सो पूरा ख्याल रखते हुए ही ट्रीटमेन्ट किया जाये.. योजना अनुसार, रामआसरे सिपाही हमारे घर पहुँचा और रमेश भाई के बारे मे पूछा, घरवाले परेशान कि क्या हो गया? पुलिसिया घर कैसे आ गया... खैर रमेश भाई को बुलवाया गया, रामआसरे ने रमेशभाई को देखा, परिचय लिया, रमेश भाई घबरा गये... जब तक कुछ समझते समझते, हमारे रामआसरे जो बहुत बड़े नौटंकीबाज थे... ने "सर! कानपुर मे आपका स्वागत है" बोलते हुए जबरदस्त सलाम ठोंका.... रमेशभाई को और अचम्भा हुआ... लेकिन लोगो के सामने कैसे जाहिर करते.... सो उन्होने भी जवाबी सलाम दिया, रामआसरे रमेशभाई को बोले, "मेरे को शासन से आदेश मिला है कि आपकी सेवा मे कोई कमी ना रखी जाय... आपको कोई तकलीफ तो नही है?" रमेशभाई तो बल्ले बल्ले हो गये... बोले "नही..नही.. सब ठीक है, लेकिन मेरे आने का किसी को पता नही चलना चाहिये...क्योंकि मै यहाँ पर एक सीक्रेट मिशन पर आया हूँ" रामआसरे तो जयहिन्द करके चला गया......., परिवार वालो को अचम्भे मे डाल गया....इधर रमेशबाबू मन ही मन परेशान तो थे.... कि ये कौन सी मुसीबत आ गयी... लेकिन पहले ही इतनी लम्बी लम्बी छोड़ चुके थे, कि अब वापस लौटना मुमकिन नही था.........सो परिवार वालों को भी लम्बी लम्बी सुनाने लगे, और अपने आपको सीआईडी का आफिसर बताने लगे.........परिवार वाले जो उनको अब तक नाकारा और नामाकूल समझते थे...उनकी इज्जत बढ गयी... अभी तक साग और भिन्डी खिला रहे थे...उनके लिये पनीर और मशरूम बनाया जाने लगा...और तो और अब उनकी चाय मे दूध भी ज्यादा डाला जाने लगा....सच है वक्त बदलते देर नही लगती

रामआसरे सिपाही ने तो अपना काम बखूबी किया, अब हमारा इरादा था कि इनको एक्सपोज करना, सो हमने रामआसरे को पटाया और उसने अपने सीनियर्स को, सभी को मजाक करने का बढिया टाइमपास मिल गया... सो योजना अनुसार हम लोग रमेशभाई को मोहल्ले के अड्डे........वर्माजी के घर के सामने वाला बड़ा सा चबूतरा.....पर ले गये और चाय वगैरहा पिलाई गयी... और मोहल्ले के बाकी सारे फालतू लोगो को पकड़ कर ले आये....रमेशभाई की गप्पें सुनाने के लिये......रमेशभाई शुरु थे....लोग अचम्भित और वानर सेना मन ही मन मुस्करा रही थी......रामआसरे अपने दलबल सहित पहुँच गये... इंस्पेक्टर को रमेशभाई तरफ इशारा करते हुए दिखाते हुए बोले, यही है साहब......... रमेशभाई इतने बड़े पुलिस के दलबल को देखकर किसी सम्भावित आशंका से भयभीत हो उठे.... मोहल्ले वाले भी पुलिस वालों के पीछे पीछे आने लगे... सोंचे कि कोई वारदात हो गयी है. इंस्पेक्टर ने अपना परिचय दिया.... रमेश भाई ने फिर अपने को सीआइडी.. वाला बताया... इंस्पेक्टर ने योजनानुसार पहले तो सलाम ठोंका और फिर बोला अपना परिचय पत्र दिखाइये.........अब रमेशभाई के पास परिचय पत्र होता तो ही दिखाते ना...बोले मै सीक्रेट.......वगैरहा..... तो इंस्पेक्टर ने बोला.....पूरे मोहल्ले को पता चल गया है तो अब सीक्रेसी कहाँ रह गयी.....आप अपना ठीक से परिचय दे... अन्यथा थाने चले.....वहाँ पर हम लोग आपके बारे मे पूरी जाँच पड़ताल कर लेंगे..... रमेशभाई की सिट्टी पिट्टी गुम....थाने जाने के नाम से ही थर थर कांपने लगे....इंस्पेक्टर को किनारे ले गये.... और उससे बोले.... माइबाप मै तो बस गपोड़ी और छोड़ू हूँ, कोई आफिसर वगैरहा नही हूँ.......इंस्पेक्टर अड़ गया, कि आपने झूठ बोल कर फ्राड किया है, अब तो मामला अपराध का बनता है.....रमेशभाई गिड़गिड़ाये और माफी मांगने लगे ......तब तक हमारे परिवार वाले भी पहुँच गये... जो अब तक कन्वीन्स हो चुके थे, कि रमेशभाई सीआईडी आफिसर है..........जब उनको पता चला कि रमेश लम्बी लम्बी छोड़ रहा था, तो चाचाजी ने इंस्पेक्टर को समझाया... और रमेश से माफी मंगवायी गयी...... इंस्पेक्टर ने रमेश को बोला कि मोहल्ले वालों के सामने अपनी सच्चाई बयान करो.... भीड़ तो इक्ट्ठी हो ही चुकी थी...सो रमेश ने सबसे माफी मांगी और अपनी सच्चाई बयान की और आगे से कसम खायी कि कभी भी इतनी लम्बी लम्बी नही छोड़ूंगा. और रमेशभाई अगली ट्रेन से ही बम्बई को रवाना हो गये....दुबारा कभी भी कानपुर ना आने की कसम खाकर.

इस तरह से मामला शान्त हुआ... बाद मे रामआसरे सिपाही को हमने बधाई दी, जबरदस्त एक्टिंग के लिये..........और सभी लोग अपने अपने घरों को चले गये... आपने भी बहुत लम्बी लम्बी झेल ली....अब आप भी अपने कमेन्ट डाले..................



Wednesday, December 15, 2004

गूगल सलाह

गूगल भइया अब आपके ढूंढने मे सलाह भी देने लगे है.
जरा यहाँ देखिये

http://www.google.com/webhp?complete=1&hl=en

जैसे जैसे आप टाइप करेंगे, आपको लिस्ट दिखायेगा,


है ना मजेदार चीज?

Tuesday, December 14, 2004

ब्लागर की रूसवाई

अब मै आप लोगो को क्या बताऊ, इस ब्लागर की बदमाशियां, पहले पहल तो इसने परेशान किया ब्लाग की टिप्पणी को लेकर, फिर ब्लाग की पोस्ट को लेकर, और अब परेशान कर रहा है, पोस्ट को एक्सपोर्ट को लेकर........ऊपर से तुर्रा ये कि दिन मे दो दो बार डाटाबेस बन्द करते है.........ये लोग गूगल भइया का काफी सारा माल भी पी गये और सेवा तो आप देख ही रहे है.

इसमे कोई शक नही कि ब्लाग लिखना शुरू करने के लिये इससे अच्छा तरीका कोई नही है, तुरत फुरत मे ब्लाग तैयार हो जाता है, और उससे भी अच्छी बात कि निशुल्क सेवा, यानि कि फ्री का माल डाट काम. लेकिन अगर आप सचमुच अपने लिखे को सुरक्षित रखना चाहते है, या फिर कभी किसी और जगह स्थानान्तरित होना चाहते है, तो ब्लागर से ज्यादा बदमाश आपको कोई नही मिलेगा. तो जनाब दो महीना पहले ही मै समझ गया था, कि फ्री मे सबकुछ नही मिलने वाला, सो अपना ठिकाना तलाशना शुरु कर दिया था. इसमे मदद कर रहे थे, हमारे पंकज नरूला जी, जो इस प्रोजेक्ट मे हमारे द्रोणाचार्य बने, उन्होने कुछ वैब होस्टिंग कम्पनियों के नाम सुझाये, फिर उनके बारे मे जांच पड़ताल की गयी और फिर मामला अटक गया नाम पर, पंकज जी ने दो नाम सुझाये थे, http://www.jitu.ws & http://www.jitu.info , अब भला मेरी हिम्मत कि मै उनके सुझाये नामो पर बहस करू सो थोड़ा सोच विचार कर और अन्ततः अपने क्रेडिट कार्ड पर बोझ डालते हुए अपने पल्ले से पैसे खर्च करके www.jitu.info को रजिस्टर किया गया, ये काम तो हो गया, अब मामला फंस गया वैब होस्टिंग को लेकर, जो काफी डिस्कशन के बाद जाकर http://www.linksky.com के LinkSky Ultra पर जाकर सैट हो गया, क्योंकि ये लोग ज्यादा स्पेस दे रहे थे (2000MB) और सारी की सारी स्क्रिप्ट का स्थापन भी इनके जुम्मे था, हाँ बस पैसे हमे खर्च करने थे, वो भी ज्यादा नही US$ 11 हर महीने, ये भी ठीक ही था. और अपनी औकात मे भी था, चलो जनाब ये भी हो गया. अब मामला फंसा था, अपने ब्लाग को नये पते पर ले जाने का. पंकज जी संकटमोचन के रूप मे सामने आये और एक साइट का पता दिया, जिसने बड़े ही अच्छे तरीके से समझाया था, कि कैसे अपने चिट्ठे को ब्लागर से वर्डप्रेस मे स्थानांतरित करे, हमने ट्राई की, पंकज जी भी ट्राई किये, ब्लागर था कि अड़ा हुआ था,चिट्ठे सही तरीके से भेज ही नही रहा था, फिर भी हम लोग लगे रहे, बेचारे पंकज जी की कई बार चाय काफी ठन्डी हो गयी, इन सब कामों मे, और मेरे को भी कई बार बीबी की सुननी पड़ी, बोल रही थी, "खुद तो फालतू हो ही, ऊपर से बेचारे पंकजजी को भी लपेटे मे ले लिया", और अड़ गयी की मेरे को उनकी मिसेज से बात करवाओ, तो मै उनको भी समझाऊ, किसी तरह से सीजफायर एग्रीमेन्ट हुआ, और ये डिसाइड हुआ कि ब्लागर स्थानान्तरण का काम, घर के किसी काम मे आड़े नही आयेगा और हफ्ते के आखिर मे ही किया जायेगा. फिर पंकज जी का कम्पयूटर ज्ञान और कुछ अपना भूला बिसरा ज्ञान, हमने गलती को पकड़ ही लिया, और ब्लाग नयी जगह पर स्थानांतरित होने लगे, लेकिन अब अड़ंगा था, कि ब्लागर से 36% के बाद अपने हाथ खड़े कर दिये है, बोला नही ट्रांस्फर करता क्या कर लोगे? अभी सिर्फ दिसम्बर और नवम्बर के ब्लाग ही स्थानांतरित हो पाये है, और सबसे बड़ी बात, पुरानी सारी टिप्पणियां नये मे स्थानांतरित नही हुई है, शायद बिल्लू भइया का कट एन्ड पेस्ट का तरीका काम मे लाना पड़ेगा........................................चलो इतना हो गया यह भी बहुत है, सो हमने सोचा कि चलो अब से नये पते पर ही पोस्टिंग करेंगे.


अब परेशानी आने लगी कमेन्टस की, ना जाने कहां कहां से लोग बाग आने लगे, टिप्पणियां करने, CASINO,BAR,SEX वगैरहा वगैरहा के इन्वीटेशन के साथ..... इन टिप्पणियों को SPAM COMMENTS कहाँ जाता है, उनको हटा हटा कर ही परेशान रहे, फिर कंही जाकर कुछ इलाज किया, अभी भी, कुछ टिप्पणियां है जो पंगे ले रही है, एक टिप्पणी पढकर तो बहुत हंसी आयी उसमे लिखा था....."Mother Died yesterday, may be today, Don't know.... Click here for online POKER"...........अब आप बताये... माँ के मरने पर कोई पोकर खेलने जायेगा क्या? अभी तो मैने कुछ इलाज किया है, इन कमेन्टस का फिर भी देखते है, संकटमोचन पंकजजी के पास कुछ और सही समाधान है क्या?

एक और दिक्कत थी, अपने ब्लागर भाइयों के लिंक को नये पते पर डालने की, अगर एक एक करके डालते हो फिर हो गया काम, फिर बार बार टैम्पलेट के साथ छेड़छाड़ अलग से........सो पंकज जी ने देबाशीष बाबा की लिखी OPML स्क्रिप्ट का सूझाव दिया, जो काम कर गयी, और सारे ब्लागर भाइयों के लिंक नये पन्ने पर आ गये है, बोलो देबाशीष बाबा की जय.

अभी भी नये पन्ने को पूरी तरह से सैट नही कर पाया हूँ, मेरे पास देब भइया की मेल आती ही होगी कि वैबरिंग वाली स्क्रिप्ट क्यो नही लगायी अब तक? सो पहला काम वही करता हूँ.अभी भी कुछ और परेशानिया तो है, लेकिन नये मकान मे कुछ भी ट्रायल करने के लिये हाथ खुले है और मन मे काफी जोश है, गर्दन अकड़ी हुई है, कि अपनी वैबसाइट है, लोगो को फोन कर करके बताने मे समय निकल जाता है, कि अपनी वैबसाइट बना ली है, लोग का क्या रिएक्शन है, इस पर तो पूरा ब्लाग लिखा जा सकता है.....खैर इसकी कहानी फिर कभी. आज के लिये बस इतना ही.......

अभी अभीःमैने अपने चिट्ठे की सारी पोस्ट को नये चिट्ठे http://jitu.info/merapanna पर स्थानांतरित कर लिया है, लेकिन अभी कुछ दिनो तक अपने चिट्ठे दोनो जगह पर प्रकाशित करता रहूँगा.

Sunday, December 12, 2004

बउवा पुराण:भाग दो

रोशनी के दिल मे बउवा के प्रति प्यार फिर से उमड़ने लगा......लेकिन पहलवान के डर से कुछ लिख नही पा रही थी.......बस सही समय था....तो हम लोगो ने रोशनी की तरफ से बउवा को एक प्रेम पत्र लिखा.....जिसका मसौदा कुछ इस प्रकार था..................

‍‍‍‍‍‍गतांक से आगे.



मेरे प्रिय भोलेराम,
जब से तुमको देखा है, मेरा दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो गयी है, दिल की धड़कन बढ गयी है, मुझे हर चीज मे तुम ही तुम नजर आते हो, आटा गूंथती हूँ तो तुम्हारी तस्वीर बन जाती है, रोटियां बेलती हूँ तो तुम्हारा चेहरा बन जाता है, चाट खाती हूँ तो गोलगप्पे मे तुम्हारा मुस्कराता चेहरा नजर आता है. कई दिनो से तुमसे मिलने की आस थी,लेकिन तुम तो जानते ही हो कि मै कितनी बेबस हूँ.काले सांड के आगे बन्धी हुई हूँ,मेरी बेबसी का आलम ये है कि मै अपनो से भी दूर हो गयी हूँ, बस तुम्हारी याद मे, तुम्हारे सपनों मे और तुम्हारे ख्यालो मे अपना समय काट लेती हूँ, लेकिन अब जुदा नही रहा जाता, आ जाओ, आ जाओ, बस तुम आ जाओ, दुनिया के सारे बन्धन तोड़कर, सारी रस्मे को छोड़कर, बस मेरे पास आ जाओ, हम कंही दूर चलकर अपना आशियां बनायेंगे....
इस पत्र को मिलते ही पढकर फाड़ देना, और बचे हुए पुर्जे,इस पत्र को लाने वाले को वापस दे देना. तुम्हे मेरी कसम है,

तुम्हारी, और बस तुम्हारी......तुम्हारे जीवन मे उजाला करने वाली रोशनी

बजरंगी जिसका अरोड़ा की चक्की पर रोज का आना जाना था, क्यों? अरे का पूछते हो भइया मसाले पिसवाने क्या हमारे घर पर जाता?, ने ये चिट्ठी, बउवा को डिलीवर की, और बउवा को बोला कि चिट्ठी अभी पढकर फाड़ दो, मेरे को फटे हुए पुर्जे वापस दिखाने है, अब जिसके सर पर इश्क का भूत सवार होता है, उसको भला बुरा कहाँ समझ मे आता है, बउवा ने चिट्ठी पढी,दुबारा पढी,तिबारा पढी.....पढी,पढी और फिर पढी....कई कई बार पढी.......उसका दिल तो नही था चिट्ठी को फाड़ने का, प्यार की पहली चिट्ठी,अब तक तो पिछले सारे मामले बिना चिट्ठी पत्री के ही फाइनल मे पहुँच गये थे... कैसे फाड़े, लेकिन बजरंगी के चेहरे के हर पल बदलते हाव भाव देखकर, उसको चिट्ठी फाड़नी पड़ी.इधर बजरंगी लौटा, और हमने बजरंगी को वापसी की चिट्ठी पकड़ाई, फिर वही पढकर फाड़ने वाला फन्डा....इस तरह से चिट्ठी पत्री का सिलसिला जारी रहा.......धीरे धीरे दोनो पंक्षी जाने अनजाने एक दूसरे के प्यार मे पागल हुए जा रहे थे, दोनो एक दूसरे की चिट्ठी मे लिखी बाती को सोच सोचकर और ख्यालों की उड़ानो के जहाज उड़ाकर खूश हो रहे थे. रोशनी ने चाट के बचे पैसो से, सीसामऊ बाजार मे मिलने वाला सस्ता सा परफ्यूम और धूप का काला चश्मा खरीदा, और बजरंगी को भिजवा दिया...उधर बउवा ने भी काफी सारा मेकअप का सामान और ड्रेस रोशनी के लिये भिजवाया......अब बउवा का आटे की चक्की मे ध्यान कम लग रहा था, अब उसकी आटे के टिन की हर डिलीवरी,पहलवान के घर के सामने से गुजरे बिना पूरी नही होती थी, बीच बीच मे भी वो चक्की छोड़कर रोशनी के घर के आसपास दिखने लगा था,लेकिन एक बात तो हुई, रोशनी के प्यार की वजह से बउवा अब रोशनी को छोड़कर,मोहल्ले की बाकी सभी महिलाओ को माता और बहन मानने लगा था. बस सारा का सारा दिन रोशनी के ख्यालों मे खोया रहता था. मोहल्ले के बुजुर्गो ने राहत की सांस ली, और हम लोगो को शाबासी मिली, अब इतना काम तो हमारा आफिशियल ड्यूटी मे शामिल था, हमने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया था, लेकिन हम लोगो का बदला अभी भी बाकी था. आखिर वर्मा ने हमारे बन्दे को पीटा था, सो हमने भी किसी पर जाहिर नही किया, कि हमे आगे का भी काम करना है.

इधर इतनी कहानी होने के बाद मोहल्ले मे फिर अफवाहे उड़ने लगी, तो वर्माइन ने वर्माजी को चेताया, कि फिर कुछ मामला गड़बड़ होने वाला है, और फिर कंही हमारी भद ना पिट जाये, वर्माजी भी मोहल्ले मे फैली गतिविधियों की तरफ ध्यान देने लगे, इधर मोहल्ले के कुछ बुजुर्गो ने वर्माजी से भेंटकर उन्हे बउवा की रंगरेलियों औड़ कारगुजारियों का काला चिट्ठा पेश किया, पहले तो वर्माजी मानने को तैयार नही हुए, बाद मे मोहल्ले वालों ने उनको धमकी दी कि आज के बाद अगर बउवा रंगे हाथों पकड़ा गया तो उसका सर गंजा कर,मुंह काला करके और गधे पर बिठाकर पूरे मोहल्ले मे घुमायेंगे. वर्माजी ने उन सभी से वादा किया कि आगे से ऐसा नही होगा.... वर्माजी ने बउवा को तलब किया और जोरदार पिटाई की. उधर पहलवान को भी मोहल्ले वालों ने बुलवाया और सारी बात बतायी और उसको भी ऐसी ही कोई लास्ट वार्निंग दी गयी.

अब इश्क पर पाबन्दियां लगओ तो और प्यार बंदिशे तोड़ने लगता है, और आशिक बागी हो जाते है. इधर बउवा ने मजनूं वाला रूख इख्तियार कर लिया, दाढी बड़ा ली, हमेशा रोने जैसा चेहरा बनाये रखता,काम मे मन भी नही लगता था, ऊपर से अरोड़ा जी की नजरे भी कुछ टेढी होने लगी थी..............इधर गर्मियां शुरू हो गयी थी,तपती दुपहरिया मे सभी लोग अपने अपने घर के अन्दर रहते थे, सड़के सुनसान,अब यह सही समय था, लोहा भी गरम था, और टाइमिंग भी एकदम फिट थी.हमने बजरंगी के मार्फत एक फर्जी खत बउवा को भेजा जिसमे रोशनी ने तपती दुपहरिया मे दिन के दो बजे बउवा को अपने घर पर बुलवाया..........और वैसा ही खत, चाट वाले के हाथो रोशनी को,फिर वही फन्डा चिट्ठी पढकर फाड़ने वाला...... बउवा तो वैसे ही तड़प रहा था, रोशनी से मिलने के लिये, तैयार होकर रोशनी के घर पहुँचा......इधर हम लोगों ने बाकायदा ईमानदारी से इस मुलाकात की खबर मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो मे कर दिया, और उन्होने वर्मा और पहलवान को,...... योजनानुसार यह तय हुआ कि उस दिन पहलवान अपने काम पर जाने का बहाना बनाकर जल्दी लौट आयेगा, उसके पास घर की चाभी तो थी ही.वर्माजी ने भी अपने आफिस मे अपनी पत्नी की बीमारी का बहाना बनाकर जल्दी निकलने का प्लान बनाया......वानर सेना ने लाइव टेलीकास्ट का पक्का इन्तजाम किया, और कल्लू पहलवान के घर की दोनो तरफ की छतो पर अपने बन्दे मुस्तैद कर दिये. और पुत्तन धोबी को बोलकर गधे का इन्तजाम भी तैयार रखा, और तो और रामा नाई को भी तैयार रहने के लिये बोला गया,ताकि बाद मे किसी को मुकरने का कोई बहाना ना मिले.

बउवा ने तय समय पर रोशनी के घर के तीन चक्कर लगाये, पूरी तरह से ताकीद की, कि कोई देख नही रहा है, बउवा कल्लू पहलवान के घर के अन्दर घूस गया.........हम लोगो ने पक्का किया कि बउवा घर के अन्दर घुस गया है, हमने दस मिनट तक इन्तजार किया.......हम लोगो ने जानबूझ कर दोनो को मिलने का थोड़ा समय दिया, ताकि मामला शिखर वार्ता से कुछ आगे बढे, और लोगो के आने पर बउवा भागने वाली हालत मे तो कतई ना रहे.तो जनाब बउवा अन्दर घुसा, रोशनी उसका इन्तजार कर रही थी, फिर जनाब वही हुआ, जिसका लोगों को पता था, मामला ड्राइंग रूम से बढकर बैडरूम तक पहुँचा, दोनो प्यार के समुंदर मे गोते खाने लगे, (अब मै इससे ज्यादा खुलकर तो नही लिख सकता, सो आप लोग अपने इमेजिनेशन का सहारा लें) अभी मामला प्यार की चरम सीमा तक पहुँचने ही वाला था कि पहलवान, वर्मा और मोहल्ले के बड़े बुजुर्ग,डुप्लीकेट चाभी की मदद से पहलवान के घर अन्दर पहुँचे....... इधर दोनो प्रेमियों को क्या पता था कि उन्हे पूरी तरह से फंसाया गया है, वो तो अपने आनन्द मे खोये हुए थे.दोनो आदम और हव्वा की कन्डीशन मे थे, और कामसूत्र की नयी नयी मुद्राये तलाश रहे थे, जैसी रोशनी को कुछ खटका हुआ, तो उसके तो होंश ही उड़ गये, कुछ नही समझ मे आया तो बस अपने और बउवा के ऊपर चादर ओढ ली.,इधर पहलवान का गुस्सा सातवे आसमान पर था, उसकी इज्जत जो दांव पर लगी हुई थी. बहरहाल सभी लोग रोशनी और बउवा को ढूंढते हुए ड्राइंगरूम से होकर बैडरूम तक पहुँचे जहाँ पर खुला खेल फर्रूखाबादी चल रहा था, सबसे पहले तो पहलवान ने रोशनी तो दो चार झापड़ लगाये और फिर बड़े बुजुर्गे ने रोशनी को कपड़े पहनने की इजाजत दी और उसको कमरे से बाहर ले गये.....इधर बउवा की जबरदस्त धुनाई की गयी, पिछली बार जो लोग चूक गये थे वो इस बार आये और इस सामाजिक कार्य मे अपना योगदान दिया. पिटने वाला वही था, जगह वही थी, पीटने वाली भी लोग भी लगभग वही थे, बस इस बार दिन के उजाले मे पिटाई हो रही थी, और इस बार पता था कि कौन पिट रहा है.ऊपर से बउवा अपनी छटी के दिन वाली ड्रेस मे था..... जैसे तैसे बउवा अपने को छुड़ाकर छत की तरफ भागा, मेन दरवाजे की तरफ तो लोगो की लाइन लगी हुई थी...हमको पता था कि छते मिली हुई है और बउवा वहाँ से भागने की कोशिश कर सकता है, छत पर हमारी वानर सेना डेरा जमाये हुए थी, सो वहाँ पर उसको,धूप मे जमकर धुना गया, और फिर पीटते पीटते हुए उसको फिर नीचे ले आये, जहाँ हलवाई से लेकर पनवाड़ी, चक्की वाले से लेकर धोबी और यहाँ तक कि रिक्शेवालों ने भी उसकी जमकर पिटाई की.पहलवान ने बोला कि इसको पुलिस मे दे दिया जाय, तो मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो ने समझाया कि पुलिस मे मामला देने से तुम्हारी ही इज्जत ज्यादा उछलेगे, अभी तक तो मामला मोहल्ले तक का है, अखबार मे छपने के बाद तो पूरे शहर को पता चल जायेगा, सो मामला यहीं पर निबटा देते है, तुरन्त रामा हेयर सैलून वाले को बुलवाया गया, जो पहले से ही हमारे बुलावे पर मोहल्ले मे हाजिर था, बउवा को आधा गन्जा किया गया, चेहरा ज्यादा अच्छा लगे और कालिख ठीक से पुत सके इसलिये दाढी भी बनवायी गयी, इस कार्यक्रम के दौरान भी उसकी पिटाई होती रही, नाई ने भी बचाने बचाने मे दो चार धर दिये.फिर कालिख मंगवाई गयी, और बाकायदा मोहल्ले की औरतों, जिसमे वर्माइन को सबसे आगे रखा गया, ने बउवा को कालिख पोती. फिर रोशनी को बुलाकर, बउवा को राखी बंधवायी गयी, और फिर पुत्तन धोबी के गधे पर बिठाकर बउवा को पूरे मोहल्ले मे घुमवाया गया.......बउवा के गले मे भाई लोगों ने एक तख्ती भी डाल दी, जिसपर लिखा था, "मोहल्ले के मजनूं का हाल ऐसा ही होता है"

किसी को भी नही पता था, कि बउवा के इस हाल मे हमलोगो का कितना योगदान है, यहाँ तक कि दोनो लैला मजनूं को भी नही,उस दिन के बाद से वर्माजी की फैमिली कभी भी किसी मोहल्लेवालो से अकड़कर नही बोली.....क्योंकि जब भी कुछ अकड़ते लोग बउवा कान्ड को छेड़ देते...........इस तरह से बउवा पुराण का यह अध्याय यहाँ पर समाप्त होता है, बोलो मोहल्ला पुराण की............................जय!

(पाठकों की मांग पर बउवा पुराण आगे भी जारी रहेगा, लेकिन दूसरे मामले शुरू होंगे और नये अध्याय होंगे.......)

Thursday, December 09, 2004

नयी घटनाये और मिर्जा की प्रतिक्रिया

माफी चाहूँगा, कि बउवा के प्रेम पत्र वाला किस्सा अधूरा छोड़ा है.....

लेकिन इस बीच कुछ घटनाये हुई, जिस पर लिखने के लिये हाथ मचल रहे है.अभी कल ही दो चार बाते सामने आयी है, जिस पर हमने मिर्जा साहब की प्रतिक्रिया दर्ज की है, पहली घटना था, कि बिहार के हाईकोर्ट ने बिहार की जेलो पर छापा मारने का आदेश दिया, बहुत अच्छी बात है.....जेलो से ही अपहरण और फिरौती का धन्धा चल रहा था, और बिहार सरकार यह बात मानने को तैयार ही नही थी.मिर्जा साहब का कहना है, देखो बरखुरदार! जब तक बिहार सरकार के मंत्रियो के यहाँ छापा नही पड़ता और राजनेताओ और अपराधियों के गठजोड़ का भान्डाफोड़ नही होता, तब तक कुछ नही हो सकता. वैसे भी उनके मंत्रियो और अपराधियो मे फर्क कर पाना बड़ा मुश्किल है, कई बार जेल मंत्री टीवी पर दिखा तो हम समझे कि किसी अपराधी का इन्टरव्यू दिखाया जा रहा है. इन छापों के बाद तो सरकार अपने हाथ धो लेगी, और बोलेगी कि जेल अधिकारी ही दोषी है, और एक आयोग बैठा दिया जायेगा, जो अगले दस बारह साल तक सरकार की रोटियां तोड़ेगा, पांच सितारा होटलों मे बैठके करेगा और रिपोर्ट के नाम, इक वाहियात सा चिट्ठा पकड़ा देगा, जिसको पढने के लिये एक और आयोग बनेगा.सो किसी चीज की उम्मीद करना बेकार है, हाँ अपराधियों से निपटने के लिये सामूहिक चेतना ही आवश्यकता है, पब्लिक अगर मिल कर जेल पर धावा बोले और दो चार अपराधियों को ऊपर पहुँचाये तो बात समझ मे आती है. या फिर कोर्ट मे नागपुर वाला काण्ड दोहराया जाय. तब कंही जाकर अपराधियों को डर लगेगा, नही तो बिहार से व्यापारियों,डाक्टरो और अन्य पेशेवर लोगो का पलायन तो चालू है ही....

दूसरी घटना थी, कि लैपटाप इस्तेमाल करने से पुरूषो की प्रजनन क्षमता को खतरा है....... मिर्जा का कहना है कि आज संजय गान्धी जिन्दा होता हो कितना खुश होता, अपनी माता सलाह किये बिना और बिना पूछे , लाखो करोड़ो लैपटाप का आर्डर कर देता, लोगो को जबरदस्ती लैपटाप दिया जाता, बस कन्डीशन यही होती कि चौबीस घन्टे लैपटाप, अपनी गोद मे ही रखना............कितना अजीब लगता, जब मुंगेरीलाल रिक्शे पर बैठकर लैपटाप से "मेरा पन्ना" पढता. दूसरी तरफ देखा जाये तो दरअसल पूरा मामला तो तापमान का है, इसलिये क्यो ना लोगों के घरो मे एक ताप कक्ष बनाना अनिवार्य कर दिया जाये, जब भी बन्तासिंह का मूड बने, सरदारनी को बोलेंगे , "मै हुणे अभी ताप कक्ष तो होके आन्दा हूँ, तुस्सी तैयार रहो".

तीसरी घटना थी,पिछले कुछ दिनो से अम्बानी बंधुओ मे आपसी सर फुट्टवल की, मिर्जा का कहना है मामला कुछ भी नही है, बस दिक्कत है तो दोनो भाइयो के आमने सामने बैठने की, सारा किस्सा दलालो के द्वारा सामने आ रहा है, दोनो आपस मे बैठ जाय, तो मामला चुटकियों मे सुलझ जायेगा, बशर्ते कोई बिचौलिया और चमचे आसपास ना हो. धीरूभाई ने यह कभी भी नही सोचा होगा कि उसकी औलाद ही उसके सपने को तोड़ देगी.......वैसे भी देखा जाय तो दोनो भाइयो के झगड़ने मे कइयो का फायदा है, कुछ लोग चाहते भी यही है, दोनो भाइयो को अपने दिल की बात सुननी चाहिये और अखबारबाजी से बचना चाहिये और जितनी जल्द हो सके एक मुलाकात कर लेनी चाहिये.

और आखिरी घटना थी न्यूज चैनलो द्वारा दिखाया जा रहा अपराध सम्बंधित कार्यक्रम....आजतक वालो ने एक प्रोग्राम क्या शुरू कर दिया, सारे चैनलो ने भर भर कर अपने अपराध के प्रोग्राम देने शुरु कर दिये, यहाँ तक तो ठीक ही था, मगर इन अपराध सम्बंधित कार्यक्रमो के सारे के सारे प्रस्तुतकर्ता खुद अपराधी दिखते है, बस अजीब तरह से बोलना आना चाहिये, दाढी बढी हुई हो तो सोने पे सुहागा, और चेहरे पर जरूर क्रूरता दिखनी चाहिये..........नही तो लोगो को डर कैसे लगेगा... अभी कुछ दिन पहले माँ अपने बच्चे को डरा रही थी, जल्दी से सो जाओ नही तो मै फलाने चैनल पर क्राइम प्रोग्राम के प्रस्तुतकर्ता को बुला दूंगी.


और अभी अभी मिली खबर के अनुसार, बिहार के सोनपुर के पशु मेले मे चलने वाले कैबरे डान्स को पटना हाईकोर्ट ने बन्द करवाने के आदेश दे दिये है......ये नग्न नाच काफी दिनो से चल रहा था..और सरकार,आयोजक और किसान सभी खुश थे........मिर्जा की प्रतिक्रियाः "बेचारे मेले मे आने वाले किसानो का क्या होगा, उनकी जागरूकता के लिये ही तो यह कैबरे का आयोजन कराया गया था, आयोजक तो वैसे ही परेशान थे, कि पशु मेले की लोकप्रियता दिन पर दिन घटती जा रही है, मेला तो बस अब किताबो मे ही दिखता है, असल मे खरीद फरोख्त मे काफी कमी आ गयी है, इसलिये ऐसे हथकन्डो का सहारा लिया जा रहा है, ताकि लोग मेले मे आ सके, वो सहारा भी जाता रहा". अभी इस मुद्दे पर बिहार सरकार का स्पष्टीकरण आना बाकी है.


आजकल लगता है बिहार मे शासन की जिम्मेदारी, राबड़ी सरकार से छिनकर, हाईकोर्ट के पास आ गयी है, क्योंकि राबड़ी सरकार तो हमेशा अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़कर, सोती रहती है.


Wednesday, December 08, 2004

कुवैत के नजारे

भाईलोगो ने कुवैत ने नजारों की फरमाइश की है, मैने कुछ फोटो खींची थी..जिनको मै आपको दिखाना चाहता हूँ.

कृप्या यहाँ पर क्लिक करें.
इस बारे मे आपको सुझाव और आलोचनाये सादर आमन्त्रित है.

Tuesday, December 07, 2004

बउवा पुराण


उस दिन की घटना के बाद वर्माजी ने बउवा को अपने घर पर रख तो लिया लेकिन उस बार ढेर सारी पाबन्दियां लगा दी..... साथ ही ये भी ताकीद कर दी कि मोहल्ले के लड़कों से ना उलझे और किसी भी तरह से पहलवान के घर की तरफ ना जाये. अब यहाँ पर पहलवान की बीबी का जिक्र ना करना,उसके साथ बहुत नाइन्साफी होगी...अभी तक हमने उसका नामकरण नही किया था,सो इस कमी को भी पूरा कर देते है. सभी लोग उसको रोशनी के नाम से जानते थे.तो जनाब इस घटना के बाद रोशनी के जीवन मे फिर अन्धकार छा गया...क्योंकि पहलवान ने उस पर बहुत जबरदस्त पहरेदारी शुरू कर दी थी, एक मिनट के लिये भी उसको अकेला नही छोड़ता था.......सिवाय शाम को चाट वाले ठेले के आने पर........ अरे भाई, पहलवान को चाट से बहुत चिढ थी, और रोशनी बहुत बड़ी चटोरी थी........गोलगप्पे खाने मे उसका तो कोई सानी नही था..कई बार पहलवान ने समझाया...मगर नही....रोजाना शाम को चाटवाला उसके घर से ही बोनी शुरू करता था, उसके बाद ही कंही और जाता था.

उधर बउवा की नौकरी, मोहल्ले के अरोड़ा आटा चक्की मे लग गयी, नही नही भाई ये अतुल अरोरा वाली चक्की नही थी......ये तो कोई और जनाब थे.बउवा की ड्यूटी थी, गेंहू पिसवाने वाले के लिये लोगो के घर से गेहूँ लाना, तौलवाना,पिसवाने के मशीन का सुपरविजन करना, आटा तौलवाना और आटे के टिनो को घर पर छोड़कर आना...... पहले पहल बउवा को काम पसन्द नही आया, लेकिन बाद मे जब लोगो के घर मे बहू बेटियो से मुलाकात होने लगी तो उसको इस काम मे मजा आने लगा, और वो मन लगाकर और दौड़ दौड़कर यह काम करने लगा, चक्की वाले अरोड़ा जी उसकी इस लगन को देखकर बहुत खुश थे और तरक्की के रूप मे उसको एक साइकिल भी लेकर दिये...... इधर बउवा तो पुराना खिलाड़ी था, फिर शुरु हो गया था, अपने पुराने काम धन्धे पर.....मोहल्ले मे उसकी शिकायते मिलने लगी थी, अक्सर लोगो के घरो मे घुस जाता था, अब तो उसके पास बहाना भी था...कोई भी कुछ कह नही पाता था.दूसरी तरफ मोहल्ले के लड़के भी बउवा को भुला चुके थे, जब तक हमारे कानो मे बउवा की शिकायते नही पहुँची...

बउवा तो अपने काम मे रम गया और मोहल्ले के लड़को को भूल गया , लेकिन वर्माजी चुप बैठने वालों मे कहाँ थे, एक दिन हमारे ग्रुप के लड़के को पकड़ कर जम कर पिटाई कर दी, उसका कसूर सिर्फ इतना था कि वो वर्मा की स्कूटर पर हाथ रखकर खड़ा था.. और वर्मा को शक था कि उनके स्कूटर के पंचर होने मे इस लड़के का हाथ है............अब इस पिटायी कान्ड से हमने वर्मा एन्ड कम्पनी के सारे चिट्ठे दोबारा खोलने शुरू कर दिये., और हम भी फिर इन्तजार करने लगे..... अच्छे मौके का.हमारी टीम की बैठक हुई और हमने प्रण किया कि वर्मा से बदला लेकर रहेंगे.....इधर बउवा की शिकायते ज्यादा आने लगी तो मोहल्ले के बुजुर्गो ने भी हमे चेताया कि हम लोगो के होते हुए, बउवा ऐसी हरकते कैसे कर रहा है.बस फिर क्या था....

हम लोगो ने बजरंगी चाट वाले को पटाया.....और क्योंकि वही लिंक था, रोशनी से बात करने का, इसके अलावा तो कोई और रास्ता नही था. हमने बजरंगी को बोला कि रोशनी को कुछ दिन चाट फ्री मे खिलाई जाय, और अगर रोशनी पैसे देने की कोशिश करे तो उसको बताया जाय कि बउवा ने चाट के पैसे पहले से ही दे दिये है.ऐसा लगभग एक हफ्ते तक चला...हफ्ते के आखिरी दिन चाट वाले ने हम लोगो द्वारा भेजी गयी एक पर्ची रोशनी के हाथ मे थमायी,जिसमे लिखा था

अगर कुछ कहना है तो चाट वाले को लिख कर दे देना, तुम्हारा दीवाना....................

रोशनी के दिल मे बउवा के प्रति प्यार फिर से उमड़ने लगा......लेकिन पहलवान के डर से कुछ लिख नही पा रही थी.......बस सही समय था....तो हम लोगो ने रोशनी की तरफ से बउवा को एक प्रेम पत्र लिखा.....जिसका मसौदा कुछ इस प्रकार था..................


‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍‍ शेष अगले अंक मे

Sunday, December 05, 2004

टप्पेबाजी और पुलिस का व्यवहार

आप लोग पूछेंगे ये टप्पेबाजी क्या होती है?

टप्पेबाजी एक कला है कि जिसमे लोग बातो बातो मे आपकी जेब से पैसे गायब कर लेते है, और आपको हवा तक नही लगती....यह कला कानपुर मे फली फूली और विकसित हुई, और अब पूरे देश मे अपनी जड़े फैला रही है.विश्वास नही आता ना... आइये आपको अपने साथ घटित एक सच्चा किस्सा सुनाते है, ये किस्सा करीब पांच साल पुराना है, लेकिन इसी तरह से लोग आज भी टप्पेबाजी के शिकार हो रहे है.

बात उन दिनो की है, जब मै कानपुर मे रहता था, एक दिन मोटरसाइकिल से माल रोड से वापस घर की तरफ आ रहा था, वी.आइ.पी. रोड से, अचानक मेरे साथ साथ एक स्कूटर वाला चलने लगा, जिसके पीछे एक बन्दा बैठा हुआ था, सफेद कुर्ता पजामा पहने, उसने स्कूटर पर बैठे बैठे ही मुझसे चिल्लाकर कहा कि "आप ने पान की पीक थूकी है जो मेरे कुर्ते पर लगी है, इसको साफ करिये"......मैने कभी ना पान खाने की आदत पाली ना कभी पान मसाले का पाउच खोला........मैने ड्राइव करते करते ही बोला, "मैने तो नही थूका, किसी और ने थूका होगा."...‌और गाड़ी की स्पीड बढा दी....वो जनाब भी बहुत चालू किस्म के थे, उन्होने अपनी गाड़ी की स्पीड तेक करी, और अगली बत्ती (लाल इमली वाली) पर अपनी गाड़ी मेरी गाड़ी के आगे लगा दी. अब लाल बत्ती थी तो मै क्या करता, मुझे भी गाड़ी रोकनी पड़ी....वो जनाब उतरे और यह वार्तालाप हुआः

मैः क्या बात है?
टप्पेबाजःआपने मेरे कुर्ते पर थूका है, इसको साफ कीजिये.
मैः मैने तो नही थूका है, और आपका ये दाग भी पुराना दिख रहा है.
टप्पेबाजः देखिये मै आपसे शराफत से कह रहा हूँ कि इसे साफ कर दीजिये.....नही तो आप मेरे को जानते नही है.
मैःनही साफ करता...क्या उखाड़ लोगे......तुम्हारे जैसे तीन सौ पैंसठ रोज मिलते है.
टप्पेबाजः देखिये मै बब्बन गिरोह का आदमी हूँ, देखिये (मेरा हाथ खींचकर अपनी कमर पर लगाते हुए) यहाँ कट्टा भी लगा है
मैने अन्दाजा लगाया और पाया कि वो कट्टा तो नही था, लेकिन उसके जैसा कुछ था, मेरा थोड़ा सा आत्मविश्वास बढ गया और मे बोलाः
.
मैः बेटा ये कट्टे वगैरहा खिलौने है, अपने पास रखो और पतली गली से निकल लो, मै भी रामबाग का रहने वाला हूँ, और इन्ही सब के बीच पला बढा हूँ, मेरे को कट्टे का जोर मत दिखाओ.
टप्पेबाजःअभी दो दिन पहले आप के जैसे ही एक जनाब थे, बहुत उछल रहे थे, यंही पर लिटा लिटा कर मारा था, आप जैसे ही जीन्स पहने थे(मेरी जीन्स और बेल्ट पर हाथ लगाते हुए) और (बेल्ट को दूसरे हाथ से पकड़ कर देखते हुए बोला) "आप जैसे ही बेल्ट लगये हुए थे"
काफी देर बकझक होती रही.......टाइम भी बहुत वेस्ट हो रहा था...

अब मेरे को भी गुस्सा आने लगा था....मैने खालिस कानपुरिया अन्दाज मे मैने गाड़ी को साइट स्टैण्ड पर लगाया और एक रोजमर्रा मे दी जाने वाली गाली देते हुए,उसका गिरहबान पकड़ लिया और बोलाः तुम जबान की भाषा नही समझते हो क्या?, दूँ क्या दो चार, साले कट्टा लगाकर अपने आपको दादा समझते हो, मेरे को जानते नही.........मेरा इतना कहते ही, वो ढीला पड़ गया... और
बोलाःभाईसाहब माफ कर दो, और मेरे घुटनो को पकड़ कर बोला... गलती हो गयी और हाथो को हाथो मे लेकर माफी मांगने लगा... और बोला भाईसाहब आप जाओ, लगता है कि किसी और ने ही थूका था.

मै हैरान था, कि अगला बन्दा जो अभी कट्टे का जोर दिखा रहा था, अचानक ढीला कैसे पड़ गया, और माफी कैसे मांगने लगा....मैने दिमाग पर ज्यादा जोर नही दिया, अपनी गाड़ी स्टार्ट की,वहाँ से निकला और पेट्रोल भरवाने के लिये,चुन्नीगंज वाले पेट्रोल पम्प पर रूका, , जैसे से पीछे वाली जेब मे हाथ डाला, तो पाया कि पर्स गायब.......................... मै समझ गया, उस टप्पेबाज ने मेरे को बातों मे लगाकर , मेरा पर्स छुवा दिया है, यह मेरे साथ पहली घटना थी, आज सेर को भी सवासेर मिल गया था,लेकिन अब क्या हो सकता था, मै पहले वापस उसी चौराहे पर गया, अब वो क्या मेरा इन्तजार करता होगा?... निकल चुका था, पतली गली से....

अब आगे की कहानी भी सुन लीजिये..........फिर मै पास के थाने पहुँचा.... आदत के अनुसार थानेवालो ने मुझसे ही हजार सवाल कर मारे........ कि उस रोड से क्यों जा रहे थे, पर्स मे क्या क्या था, और तो और मेरी ही तलाशी ले डाली......फिर आपस मे कहने लगे वो एरिया तो हमारे थाने मे आता ही नही है..........लगे हाथो उन्होने मेरे को सलाह भी दे डाली कि चुपचाप घर जाओ, पर्स तो अब वापस नही मिलने वाला, वैसे मेरे पर्स मे रूपये ज्यादा नही थे, लेकिन कुछ कागज और पर्चिया काम की थी.....मेरा दिमाग तो वैसे ही भन्नाया हुआ था, मैने बोला कि टप्पेबाजो को पकड़ना तो दूर और आप लोग जो रिपोर्ट दर्ज करवाने आता है उसी को परेशान करते है. पुलसिये ने मेरे को अपने कानपुरी अन्दाज मे कच्ची कच्ची गालियां सुनाई, और मेरे को थाने से जाने के लिये कहा...........मै भी अड़ गया मैने मैने पुलिसये से कहा कि मेरे को एक फोन करना है...गाड़ी मे पेट्रोल नही है, घर वालो से पैसे मंगाने है........पुलिसिये ने रूखे अन्दाज से कहा कि बाहर पीसीओ से कर के आओ, मैने बोला जेब मे एक धेला नही है, फोन कैसे करूंगा? पुलिसिये ने कहा, "ठीक है,इन्तजार करों",और थोड़ी देर बाद फोन,मेरी तरफ बढाते हुए बोला... लेकिन जल्दी कर लेना........मैने समय ना गवाते हुए फटाक से अपने रोटरी क्लब के प्रेसीडेन्ट को फोन मिलाया और उसको पूरी कथा बताई, उसने मेरे से पूरी डिटेल पूछी, थाने का नाम पूछा और बोला फोन रखो और वंही रूको हम सब वहाँ पहुँच रहे है, मेरे फोन रखने के तुरन्त बाद, प्रेसीडेन्ट ने शायद किसी वरिष्ट पुलिस अधिकारी को फोन मिलाया होगा, और उस पुलिस अधिकारी ने थाने मे फोन किया..........

अधिकारी का फोन आने के बात तो थाने की तो फिजां ही बदल गयी.......जहाँ पर सारे पुलिसिये जो मुझे देख कर गुर्रा रहे थे, अचानक स्माइल मारने लगे.........और आंखो मे जहाँ नफरत की भावना थी, वहाँ अचानक प्रेम और वात्सल्य दिखने लगा और जनाब, सारे पुलिसियों को टोन बदल गयी... अभी तक मै खड़ा था, एक पुलिसिये ने फटाफट मेरे लिये कुर्सी लगायी, साफ करते हुए बोला आपने पहले क्यों नही बताया कि आप फलाने साहब के पहचान वाले हो......वगैरहा वगैरहा...... तुरन्त मेरे लिये समोसे के साथ चाय का आर्डर हुआ, टन्न से समोसे के साथ चाय भी आ गयी.....थानेदार मेरे को अपने कमरे मे ले गया....आराम से बिठाया....और पूरी बात सुनी और मेरी रिपोर्ट दर्ज हुई, इस बीच वो पुलिस अधिकारी और रोटरी क्लब के सारे पदाधिकारी भी वहाँ पर पहुँच गये,बस फिर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का भाषण और थानेदार का यस सर,ओके सर, ठीक है सर.....वगैरहा वगैरहा..... और फिर बाकायदा थानेदार मेरे को अपनी जीप मे लेकर वारदात वाली जगह पर गया.........या कहो शहर भ्रमण करवाया............................
मेरे को पता था, होना हवाना कुछ है नही........ इसलिये मै भी पुलिस अधिकारी को अपना फोन नम्बर देकर, घर को लौट आया....

करीब दो हफ्ते बाद थाने से फोन आया...... मै थाने पहुँचा, थानेदार ने अपनी दराज से पर्स निकाल कर टेबिल पर रखते हुए पूछा, "ये आपका पर्स है?" मैने देखा, और पाया कि पर्स मे सभी चीजे सही सलामत थी, सिवाय रूपयों के... मैने कहा "हाँ जी, मेरा ही है,लेकिन इसमे से पैसे गायब है, इसमे पूरे 320 रूपये थे इसमे" , थानेदार बोला, "पर्स वापस मिल रहा है, क्या ये कम है, इसी को गनीमत समझिये.... आज तक ये पहला मौका है, कि हम किसी को बुलाकर पर्स वापस कर रहे है."

मैने भी चुपचाप पर्स को अपनी जेब मे रखा, थानेदार से हाथ मिलाया और निकल पड़ा अपने घर की तरफ.


Thursday, December 02, 2004

मिर्जा की फरमाइश

‍हमारे मिर्जा साहब की स्पेशल फरमाइशो पर इन्हे भी देखियें.....

मै रोया परदेस मे भीगा मां का प्यार
दुख ने दुख से बात की बिन चिट्ठी बिन तार
छोटा करके देखिये जीवन का विस्तार
आंखो भर आकाश है बाहों भर संसार
-निदा फाजली
पूरा यहाँ पढिये http://www.geocities.com/sumankghai/nida22.html


नज्म उलझी हुई है सीने मे
मिसरे अटके हुए है होठों पर
उड़ते फिरते है तितलियों की तरह
लफ्ज कागज पर बैठते ही नही
कब से बैठा हूँ मै जानम
सादे कागज पे लिख के नाम तेरा
बस नाम ही मुकम्मल है
इससे बेहतर भी नज्म क्या होगी

-गुलजार साहब

हाथ छूटे भी तो रिश्ते नही छोड़ा करते
वक्त की शाख से लम्हे नही तोड़ा करते
जिसकी आवाज मे सिल्वट हो, निगाहो मे शिकन
ऐसी तस्वीर के टुकड़े नही जोड़ा करते
शहद जीने का मिला करता है थोड़ा थोड़ा
जाने वालो के लिये दिल नही थोड़ा करते
लग के साहिल से जो बहता है उसे बहने दो
ऐसी दरिया का कभी रूख नही मोड़ा करते
-गुलजार साहब


Wednesday, December 01, 2004

यादें


कल रात को कुवैत मे काफी बारिश हुई थी....नींद खुल गयी,तो अचानक मेरे को गुलजार साहब की यह नज्म याद आयी

शाम से आंख मे नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफन कर दो हमे कि सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है
वक्त रहता नही कहीं छुपकर
इसकी आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तस्लीम लाजमी सी है
‍-गुलजार साहब
आज सुबह सुबह ही इन्टरनेट पर गुलजार साहब की यह नज्म दुबारा पढी, कई कई बार पढी,फिर कोई याद आया, फिर मौसम गमगीन हुआ,

फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये तुम याद आये
फिर पत्तो की पाजेब बजी तुम याद आये,तुम याद आये.

क्या कभी आपको भी कोई याद आता है, इस तरह....................

Tuesday, November 30, 2004

मोहल्ले का प्रेम प्रसंग

अब जब मित्रो ने इतना इसरार किया है तो हमने सोचा कि चलो वर्मा जी की फैमिली की दास्तान लिख दी जाय. अब यहाँ पर ऐसे कई अनकहे किस्से बयां होंगे और ऐसे कई खुलासे होंगे जिससे वर्मा जी नाराज हो सकते है, अब वर्माजी नाराज होते है तो होते रहें, लेकिन हम अपने पाठको को थोड़े ही नाराज कर सकते है.

हाँ तो जनाब, हमारे मोहल्ले मे रहता था वर्माजी का परिवार, परिवार मे कुल जमा पाँच लोग थे, वर्माजी, वर्माइन,बड़की वर्माजी की बड़ी लड़की, छुटकी वर्मा जी की छोटी बिटिया और वर्मा का साला........ नाम मेरे को याद नही.साले साहब(अभी रिफ्ररेन्स के लिये इनका नाम हम बउवा रख देते है,आगे कभी सही नाम पता चलेगा तो करैक्ट कर लेंगे), पूरे मोहल्ले मे साले साहब के नाम से ही मशहूर थे,क्यो? अब मेरे से क्यों पूछते हो, मोहल्ले के रामआधार हलवाई से पूछो, या फिर नत्थू पनवाड़ी से, या फिर किराने वाले गुप्ताजी से जहाँ से साले साहब माफ कीजियेगा बउवा, सामान तो ले आते थे, पैसे देने के नाम पर वर्मा जी का नाम टिकाय आते थे. बउवा की हरकतों से वर्माजी तो बहुत परेशान थे मगर रिश्ता ऐसा था कि कुछ कहते नही बनता था.

साले साहब के मशहूर होने के और भी कई कारण थे....एक घटना हुई की पूरा का पूरा मोहल्ला साले साहब को नही भूल पाया........

बउवा शहर आने से पहले तक गांव मे ही थे, वहाँ पर भी वो कोई तीर नही मार रहे थे. बाकायदा गाँव की लड़कियो को छेड़ा करते थे, कई बार पिट चुके थे, गाँव वालो ने अपनी बहू बेटियों को सख्त हिदायत दे रखी थी, कि इस बन्दे के आसपास भी ना फटके.......और तो और गांव वालो ने बउवा की हरकतों के कारण इनके परिवार का हुक्का पानी बन्द कर रखा था, तो परिवार वालो ने सोचा कि अब इन्हे कहाँ ठिकाने लगाया जाय, सो खूब सोच विचार कर वर्माइन को चिट्ठी लिखी गयी, वर्माइन जो अपने गांव मे पहले ही ढेर सारी ढींगे हाँक चुकी थी, कि शहर मे हमारा ये है, वो है वगैरहा वगैरहा. जब उनको चिटठी मिली तो एकदम सकपका गयी, वो अपने भाई की हरकते जानती थी, और जानती थी, अगर बउवा शहर मे आ गया तो अखबार मे नाम छपना तो तय है, लेकिन अब करें क्या वर्मा जी को कैसे पटाया जाय. आखिर उनको आइडिया मिल ही गया.शाम भयी, वर्मा साहब किसी तरह से अपने खटारा लम्ब्रेटा को खींचते खांचते या कहो धकियाते हुए घर पहुँचे, वर्माइन ने मिल कर स्कूटर चबूतरे पर चढवायी, चाय का पानी रखा, और वर्माजी को मोहल्ले की अधपकी खबरें सुनाना शुरू कर दी, कुछ सच्ची कुछ मसाला मारकर.........जैसे इसका चक्कर उससे, इसका आना जाना उसके घर वगैरहा वगैरहा.कुल मिलाकर सार ये था कि जमाना खराब है, लड़किया जवान हो रही है, आप दिन भर आफिस मे रहते हो , मै अपने काम काज मे, लड़कियों की देखभाल करने वाला कोई नही वगैरहा वगैरहा. वर्माजी समझ तो गये ही थे, दाल मे कुछ काला जरूर है, फिर भी अनजान बने रहने का ढोंग करते रहे, वर्माइन ने बात आगे बढायी और क्यो ना मै अपने भाई बउवा को शहर बुलवा लें.


बउवा का नाम सुनते ही वर्मासाहब की त्योरियां चढ गयी, दिमाग सातवें आसमान पर पहुँच गया, बोले यह नामुमकिन है, वो नालायक....वर्माजी बउवा को इसी नाम से पुकारते थे.. यहाँ नही रह सकता.......गांव मे क्या कम बदनाम है जो यहाँ बुलाकर अपनी भद पिटवायी जाय... लेकिन वर्माइन थी कि अड़ गयी तो अड़ गयी........ .अब औरतजात के आगे हम अबला मर्दो की कहाँ चलती है, दो चार दिन मे ही वर्माजी को हथियार ड़ाल देने पड़ गये. सो बऊवा शहर पधारे.

अब आप कहेंगे कि इतनी सारी कथा करने की क्या जरूरत थी, ये बात तो दो लाइनो मे कही जा सकती थी. नही समझे ना? अरे भइया अगर ये बात अगर हमे दो लाइनो मे कह देते तो फिर अगला पूरा पैराग्राफ बऊवा के चरित्र चित्रण मे ना झिलाते, उस से तो आप बच गये ना. अब बचने बचाने की छोड़ो, आगे पढो

अब जब बउवा कानपुर पधारे तो सबसे पहले उनका सामना हमीं से ही हुआ, हुआ यूँ कि हमे मोहल्ले के सारे लड़के सड़क पर खेल रहे थे, हमने देखा गांव के एक जनाब जो कि रात के समय भी काला चश्मा पहने, बालों मे चमेली का तेल, कोई घटिया सा इत्र लगाये, रंग बिरंगी शर्ट, ऊपर से अंगोछा लपेटे, बिना मैचिंग का बैलबाटम,हाथ मे टिन की अटैची लिये, हमारे ग्रुप से वर्मा जी पता पूछने लगे, वैसे वर्माजी के रिलेशन मोहल्ले मे सबसे अच्छे थे लेकिन वो वानर सेना वाला किस्सा होने के बाद, हम मोहल्ले के लड़को मे उनकी रेप्यूटेशन कोई खास अच्छी नही थी, हमने सोचा चलो, वर्मा ना सही,उसका साला सही, बैठे बिठाये मौका मिल गया,कुछ तो हिसाब किताब चुकता किया जाय, हमने इन जनाब से पूरी कहानी समझी,वर्मा परिवार से रिलेशनशिप समझी,शहर आने का अभिप्राय समझा और फिर तुरत फुरत बनी योजना अनुसार इनको मोहल्ले के कल्लू पहलवान के घर का पता बता दिया..........कल्लू पहलवान की भी कुछ अजीब दास्तां है.

कल्लू की पहली पत्नी स्वर्ग सिधार गयी थी, तो कल्लू ने दूसरी शादी की, अपने से आधी से भी कम उम्र की लड़की से, अच्छे घर की लड़की तो मिली नही, पता नही कहाँ से उठा लाया था..........लेकिन आइटम सालिड था....लैटेस्ट माडल था......शादी बेमेल थी.......सुना था लड़की ने शादी घरवालो के दबाव मे आकर की है. लड़की,लड़की को कल्लू कतई पसन्द नही था,कल्लू के सामने तो उसकी बेटी जैसी दिखती थी........लड़की चुलबुली थी, मन नटखट था और दिल शरारती....ऊपर से जवान खून......लड़की का सारा टाइम खिड़की पर ही बीतता... घन्टो घन्टो वहीं खड़ी रहती, और हर आने जाने वालो को हसरत भरी निगाहो से देखती,अब हम लोग क्यो कहे कि चरित्रहीन थी कि नही........ लेकिन मार पड़े इन मोहल्लेवाले को जो कहते थे कि लड़की का चालचलन कुछ ठीक नही था......हम तो बस आप लोगो को स्टोरी सुना रहे है, किसी का चरित्रहनन थोड़े ही कर रहे है.........खैर जनाब लोगो को तो जैसे मनोरंजन का साधन मिल गया, हमारे मोहल्ले मे दूसरे मोहल्लो के लोगो की आवाजाही बढ गयी, बात कल्लू तक पहुँची,खूब मार कुटाई, हुई, रोना धोना हुआ, आखिरकार साल्यूशन के रूप मे कल्लू ने खिड़की चुनवा दी,
अब वो इश्क ही क्या जो दीवारो मे चुनवाया जा सकें, अब जब रोक लगी तो बात हद से पार होने लगी, कुछ मनचले,जिनकी सैटिंग खिड़की बन्द होने से पहले ही हो चुकी थी.........कल्लू की बीबी का दीदार पाने के लिये, हिम्मत करके कल्लू के घर तक मे घुसे....... लोगो मे रोजाना चर्चा रहती थी कि, आज कौन कल्लू के घर कौन घुसा, और कितनी देर रहा, अब मे यहाँ कल्लू पुराण तो लिखने बैठा नही हूँ, सो कल्लू वाला किस्सा जल्दी समेटते है, तो जनाब एक बार कल्लू ने एक बन्दे को अपने घर मे रंगे हाथो (....मुझे आज तक इस मुहावरे का सही अर्थ नही समझ मे आया... ये काम काज के बीच मे रंगाई पुताई कहाँ से आ गयी) पकड़ लिया और फिर क्या था, वो बन्दा,कल्लू और उसका लट्ठ,कल्लू ने अपने तेल पिलाये लट्ठ को दे दना दे दना दन इस्तेमाल किया... तब से कल्लू बड़ा सावधान रहने लगा, और अपने घर की पूरी तरह से रखवाली रखता है.अपने घर मे घुसने वाले बन्दे को बख्शता नही है.शाम का वक्त था...कल्लू कुछ सामान लेने गुप्ता जी की दुकान पर गया हुआ था, तभी हमने बउवा को तुरत फुरत बनी योजनानुसार कल्लू के घर का पता बताया था.

अब बउवा बेचारा,गाँव का भोला भाला जवान, नासमझ, वर्मा के दुश्मनो की साजिश मे फंस गया..... उसे क्या पता कि मुसीबत उसका इन्तजार कर रही है, वो तो बेचारा अपनी बहन का घर सोच कर अन्दर दाखिल हुआ, अटैची नीचे जमीन पर रखी, उसको खोला, बहन के लिये लायी साड़ी निकाली, शायद मन मे बहन को सरप्राइज देने की सोची होगी.......और देसी इत्र का फाहा अपने कानो के पीछे लगाया और काफी सारा अपने कपड़ो पर उड़ेला,ताकि पसीने की बदबू किसी को ना आये और दरवाजा खटखटा दिया....सामने थी कल्लू पहलवान की बीबी...दोनो की नजरे मिली, दोनो ने एक दूसरे को देखा.....लव एट फर्स्ट साइट, बउवा समझा कि जीजी ने कौनो किरायेदार रखा है,सो अन्दर दाखिल हो गया... कल्लू की बीबी पर तो इत्र ने पहले से ही जादू कर रखा था...ऊपर से साड़ी हाथ मे लिये बांका गबरू जवान , सोची खुद चलकर आया है....चलो ये ही ठीक है.....जब तक कल्लू नही आता इसी को समझा जाय........वैसे भी कल्लू के जल्दी आने की उम्मीद नही थी.......... इधर वानर सेना ने गुप्ताजी की दुकान पर जहाँ कल्लू खड़ा था, उड़ती उड़ती खबर पहुचा दी कि कल्लू के घर आधे घन्टे पहले कोई घुसा है, बस फिर क्या था...आगे आगे आगबबूला कल्लू, पीछे पीछे पूरी वानर सेना......रास्ते भर हम लोग कल्लू को अन्दर घुसने वाले व्यक्ति के कद काठी और वेषभूषा के बारे मे पूरी तरह से बता दिये.......................... अब कल्लू अपने घर के दरवाजे पहुँच गया था... हम लोग भी किसी विस्फोटक घटना का इन्तजार कर रहे थे..........अन्दर का हाल भी सुन लीजिये......अब तक दोनो ही समझ चुके थे कि रांग नम्बर डायल हो चुका है, लेकिन दोनो ही अपनी अपनी आदत से मजबूर थे.... चोर चोरी से जाय हेराफेरी से ना जाय.....बउवा सोचे कि गांव की तरह शहर मे भी लाटरी लग गयी उसकी और कल्लू की बीबी भी सोची दिखने मे गंवार है तो क्या हुआ.....कोई जरूरी थोड़ी है कि हर चीज मे गंवार हो........... अभी कुछ होने ही वाला था कि बाहर खड़े कल्लू ने दरवाजा भड़भड़ाया......भड़भड़ाने की आवाज से ही कल्लू की बीबी समझ चुकी थी........ ये कल्लू ही है, उसने बउवा की ओर देखा...वो भी समझ गया.. खाया पिया कुछ नही गिलास तोड़ा बारह आना ............. लेकिन अब करे तो क्या करे....कल्लू की बीबी ने कुछ समझदारी दिखायी और बउवा को अन्धेरी कोठरिया मे रखे बिस्तरों के पीछे छुपा दिया,अब कहते है ना कि विनाशकाले विपरीत बुद्दि...दरअसल कल्लू का लट्ठ भी बिस्तरों के पीछे ही रहता था.. और फिर अपना आंचल सम्भालकर, घबराते हुए दरवाजा खोला.......... दरवाजा खोलकर देखा तो बाहर आगबबूला कल्लू पहलवान साथ मे वानर सेना...कल्लू ने पूछा....कहाँ छुपा रखा है अपने चाहने x#$%!%& वाले को..................कुछ नही बोली................... कमरे मे इत्र की सुगन्ध और टेबिल पर रखी साड़ी, पूरी बात बयां कर रही थी........................कल्लू ने इधर उधर ढूंढना शूरू कर दिया........कल्लू की बीबी को मानो सांप सूंघ गया......समझ गयी, कि बचना मुश्किल है, दिमाग लड़ाया और तुरन्त फुरन्त पाला बदला, फूट फूट कर रोने लगी और कल्लू के गले से लिपट गयी........ कल्लू ने गरजकर फिर पूछा "कहाँ है वो?" तो उसने सिसकते हुए अन्धेरी कोठरिया मे रखे बिस्तरो की और इशारा कर दिया. इधर बउवा का हाल पूछा तो ..........बउवा की हालत तो उस बकरे की तरह से थी जिसको अभी थोड़ी ही देर मे हलाल होना था.कल्लू ने सबसे पहले अपने लट्ठ को ढूंढा और अपने कब्जे मे किया... फिर बिस्तरो
को हटाना शुरू कर दिया ................तो पाया कि अपने बउवा सिमटे से, सहमे से खड़े है, कल्लू ने फिर गिना नही दे दनी दन, दे दनी दन.... वो पिटाई की बउवा की, कि हम क्या बतायें........... बउवा जब तक अपना परिचय देता, तब तक तो अनगिनत लट्ठ पड़ ही चुके थे....उसके बाद भी, वो इत्र और साड़ी का एक्सप्लेनेशन नही दे पा रहा था... .......पहले तो कल्लू ने उसे खूब कूटा उसके बाद वानर सेना भी इस नेक काम मे पीछे नही रही.........हमने भी पूरी तरह से समाज सेवा की.....बात अब तक मोहल्ले मे पहुँच चुकी थी... कि कोई एक बन्दा जम के कूटा जा रहा है, कल्लू पहलवान के घर........पूरे मोहल्ले मे हाहाकार मच गया.......जिसके हाथ जो लगा, उठाकर पीटने निकल पड़ा . वर्माजी भी अपने मित्र के साथ देखने चले आये........क्यो? अरे कोई मनाही थोड़ी थी... दुनिया जा रही थी तो वर्माजी क्यों पीछे रहते.....
मोहल्ले वालो के साथ साथ वर्मा ने भी दो चार हाथ मारकर अपना पड़ोसी धर्म निभाया........अब तक बउवा पिट पिटकर अधमरे हो चुके थे......फिर पकड़कर बउवा को रोशनी मे ले जाया गया....ताकि पहचान तो हो सके..............रोशनी मे बउवा ने अपने जीजा और जीजा ने अपने साले को पहचान लिया......पूरा भरत मिलाप हुआ....... वैसे वर्माजी मन ही मन खुशी हुई कि बउवा को पीटकर अपनी बरसों पुरानी इच्छा को पूरा भी कर लिया था और इल्जाम भी नही लगा.........जो लोग बउवा को मार रहे थे, अब उसके कपड़े ठीक करने लगे.... कुछ लोग थू थू कर अपने घर को लौट गये.......बाकी लोगो को कल्लू और वर्मा ने मिलकर विदा किया या कहो भगाया........ ... ...बउवा से पूरी कहानी सुनी........ समझ गये कि मोहल्ले के लड़को ने चिकायीबाजी की है, खैर अब क्या हो सकता था... कल्लू ने बउवा से माफी मांगी....बउवा के जख्मो पर मलहम लगायी........बउवा और कल्लू की बीबी की पहली मुलाकात सटीक रही..., दोनो के मन मे कुछ कुछ होने लगा था, दोनो पहली मुलाकात मे एक दूसरे को दिल दे बैठे............


बउवा अपने जख्मो को सहला सहलाकर सिसक रहा था, पहलवान शर्मिन्दा था.... उसकी बीबी मन ही मन मुस्करा रही थी.. कि मोहल्ले मे ही सैटिंग हो गयी, और वर्मा जी, वो क्या करते बेचारे, बउवा को हाथ पकड़, या कहो सहारा देकर अपने घर की ओर प्रस्थान कर गये..... प्रत्यक्षदर्शियों का कहना है कि बउवा और पहलवान की बीबी एक दूसरे को कनखियो से देखे जा रहे थे. और वानर सेना? आप क्या समझते है, हमे लोग पिटने के लिये मोहल्ले मे रहते....हम भी निकल लिये पतली गली से............हमारा बदला तो पूरा हो ही चुका था.



लालू पासवान की तू तू मै मै

अब लीजिये जनाब फिर से तू तू मै मै चालू हो गयी, इस बार अपने रामबिलास पासवान और लालू यादव है आमने सामने. लालू यादव जो पहले से ही पासवान से चिढे बैठे थे , और उनकी पार्टी को गुन्डो की पार्टी बताते थे, ने अब नया शगूफा छोड़ा है, कि पासवान ने क्रेन खरीद मे घोटाला किया है वो भी पूरे पूरे आठ अरब रूपये का......राम राम लालू जी ये? पासवान क्या आपसे भी आगे निकल गये क्या? ये तो बहुत सोचने वाली बात है. अरे भाई मिल बांट के खाओ, कौन पूछने वाला है आगे पीछे.तभी तो सारे बिहारी नेता रेलवे मिनिस्टर बनने की फिराक मे रहते है, बहुत मलाईदार मंत्रालय है भाई.

पासवान का जवाब बहुत ही लाजिकल है, पासवान कहते है कि जब तक पप्पू यादव लालू के साथ थे तब वो गुन्डे नही थे, पासवान के साथ आते ही गुन्डे कैसे हो गये. और चारा चोर लालू, दूसरो पर कीचड़ ना उछाले, और फिर चुनौती देते है कि अगर घोटाला साबित हो जाये तो राजनीति छोड़ देंगे, वगैरहा वगैरहा.

हमने अपने राजनीतिक एक्सपर्ट मिर्जा साहब से इस बारे मे राय जानना चाही, मिर्जा बोले, देखो बरखुरदार लालू तो वैसे ही खार खाये बैठा है, बिहार मे पासवान को "बिहार बचाओ" रैली को सफलता जो मिल गयी है.दरअसल सारा खेल मुसलमान वोट बैंक का है, पासवान और लालू दोनो MY यानि मुसलमान और यादव वोट बैंक का खेल खेलते है, अगर मुसलमान वोट बैंक हाथ से खिसक गया तो लालू को बिहार की सत्ता छोड़नी पड़ेगी और फिर लालू का क्या हल होगा, ये तो जग जाहिर है, इसलिये वो पासवान के हर वार का जवाब देने से नही चूक रहे है.उधर पासवान भी जानते और समझते है कि अकेले वो लालू का कुछ भी नही बिगाड़ सकते जब तक लालू विरोधी मोर्चा नही बनता तब तो लालू बिहार मे विजयी रहेंगे. दोनो लोग लगे पड़े है जबानी जमाखर्च करने मे.

पासवान की दिक्कतें है कि अगर नीतिश कुमार और बीजेपी से हाथ मिलाते है तो मुसलमान वोट लालू के पाले मे चले जायेंगे, और नही करते है तो अकेले तो उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो जायेंगी और मुख्यमंत्री बनने का सपना धरा का धरा रह जायेगा. इसलिये कांग्रेस को पटाने की कोशिशें जारी है. उधर लालू ये सब बहुत अच्छी तरह से जानते है, और वो जान बूझ कर पासवान को उकसा रहे है, इसे कहते है चने के झाड़ पर चढाना, ताकि पासवान अपने आपको बिहार मे बड़ी ताकत समझें और किसी से गठबन्धन ना करे, इसी मे लालू का फायदा है. सो चालू है गाली गलौच का सिलसिला...... आप भी
इन्जवाय कीजिये, हम तो कर ही रहे है.

भारतीय चैनेल्स पर विज्ञापनो का संसार

क्या कभी आपने टीवी चैनल्स पर दिखाये जाने वाले प्रोग्राम्स के बीच मे दिखाये जाने वाले विज्ञापनो (TV Commercials) पर गौर किया है? यहाँ पर मै यह बात स्पष्ट कर देना चाहता हूँ कि हमारे यहाँ कुवैत मे सारे चैनल नही दिखाये जाते, सो मेरी जानकारी मे जितने विज्ञापन है, उन्ही मे से अपनी पसन्द बता रहा हूँ.

अभी रिसेन्टली मास्टरकार्ड का एक नया टीवी विज्ञापन देखा, जो पूरे यूरोप और मिडिलईस्ट मे दिखाया जा रहा है, काफी अच्छा है.इस विज्ञापन मे एक पेटू पति को उसकी पत्नी डाइट फूड पर रखती है, पति बहुत दूखी मन से खाना खाता है.पति जब शापिंग से लौट रहा होता है तो कार मे बैठा ढेर सारा फास्ट फूड खा रहा होता है,और घर लौटने पर फिर वही डाइट फूड बड़े शौंक से खाता है, फिर बताया गया है कि मास्टरकार्ड से सब कुछ खरीदा जा सकता है. लेकिन जब मै इन्डियन चैनल्स पर पर हिन्दी के विज्ञापन(TV Commercials) देखता हूँ तो लगता है कि दुनिया के सबसे अच्छे विज्ञापन भारत मे ही बनते है, उदाहरण के लिये मास्टरकार्ड का नया हिन्दी विज्ञापन देखा. मास्टरकार्ड के टीवी कमर्शियलस पूरी दुनिया मे बनते है.लेकिन मेरे विचार से आज तक का सबसे अच्छा मास्टरकार्ड का विज्ञापन भारत मे ही बना है.

इसके अलावा आइसीआइसीआइ बैक का "हम है ना" वाला भी बहुत अच्छा है, इसके अतिरिक्त मान्टे कार्लो कार्डोगन्स और रेमन्डस "द कम्पलीट मैन" के विज्ञापन तो सदाबहार है ही.कभी कभी कुछ और भी अच्छे लगते है, जैसे एशियन पेन्टस, दूसरी पेन्टस कम्पनीज के विज्ञापन, वीआईपी फ्रेन्ची,टाइटन, डायमन्ड ज्वैलरी वाले वगैरहा वगैरहा. नापसन्द विज्ञापनों मे पान मसाले,गुटके वाले, चाय वाले, और जी टीवी पर दिखाये जाने वाले तकनीकी रूप से कुछ कमजोर विज्ञापन जैसे बनियान,बाम वगैरहा वगैरहा.
इसके अलावा यूरोप मे भी काफी मे अच्छे विज्ञापन बनते है,मुझे पसन्द है फ्रान्स के विज्ञापन,फ्रांस के विज्ञापनो मे प्रिजेन्टेशन पर ज्यादा जोर दिया जाता है और दर्शको को सरप्राइज करने का माद्दा ज्यादा होता है, एक और बात वहाँ पर कोई भी विज्ञापन ज्यादा दिन नही चलता, कम्पनियाँ विज्ञापन जल्दी जल्दी बदलती रहती है.इसके अलावा मेरे को कुछ अलग तरह के विज्ञापन पसन्द है जैसे इंग्लेण्ड मे NGOs वाले, दान मांगने वाले वगैरहा वगैरहा. कुछ विज्ञापन देख कर लोग रो पड़ते है,और तुरन्त अपना फोन उठाते है मनी ट्रान्सफर के लिये जबकि विज्ञापन या तो अफ्रीका या फिर एशिया के लोगो की स्थिति के ऊपर होता है, और दान की विनती की गयी होती है. यूके मे लोग काफी लोग, विज्ञापन देख कर दान देते है.

बकवास विज्ञापनो मे अभी तक मैने कुछ पाकिस्तानी विज्ञापन देखे है, जो पूरी तरह से बकवास तो नही कहे जा सकते, लेकिन तकनीकी रूप से इतने कमजोर होते है, कि बात दर्शको तक ठीक तरीके से नही पहुँच पाती.

प्रोडक्ट बेचने वाली कम्पनियों के विज्ञापनो का उद्देश्य होता है कि दर्शक पहली बार विज्ञापन देखकर नोटिस ले, दूसरी बारे देखे तो मुस्कराये और तीसरी चौथी बार देखे तो प्रोडक्ट के बारे मे सोंचे और लगातार देखे तो खरीदने के लिये ना सिर्फ मन बनाये, बल्कि बजट भी बनाना शुरू कर दे.लेकिन सारे विज्ञापन ऐसे नही होते, कोई कोई विज्ञापन नकारात्मक सफलता हासिल करता है, जैसे ओनिडा का. ओनिडा वालों ने शुरू से ही नकारात्मक विज्ञापन बनाये जो काफी सफल रहे और यह ट्रेन्ड आज तक चालू है.

एक पहलू और भी है, कभी कभी वही विज्ञापन बार बार देखकर गुस्सा आता है और चैनेल बदलने या आवाज म्यूट करने की इच्छा होती है. लेकिन हमारे यहाँ तो और मुसीबत है, बेगम साहिबा को प्रोग्राम देखना होता है तो बेटी सिर्फ विज्ञापनो का इन्तजार करती है.

मैने तो अपने पसन्द के विज्ञापन बता दिये, आपकी पसन्द के विज्ञापन कौन से है?

Saturday, November 27, 2004

फोटो ब्लाग का शुभारम्भ

सभी पाठको को मै अपने फोटो ब्लाग के बारे मे बताना चाहता हूँ.
इस पर जाने के लिये यहाँ पर क्लिक करें.

मेरा फोटो ब्लाग अतुल अरोरा जी और पंकज नरूला जी के सहयोग से ही सामने आ पाया. आप दोनो साथियों का हार्दिक धन्यवाद.

अभी यह फोटो ब्लाग अपने बाल्यकाल मे है, आप सभी साथियो के सूझाव और आलोचनायें सादर आमंत्रित है.

Thursday, November 25, 2004

ब्लाग पर टिप्पणी का महत्व

अब भइया जब बात ब्लाग से सम्बंधित टिप्पणी की हो रही है, तो हमने भी हमऊ भी कुछ लिखे
वैसे तो हमारे हिन्दी ब्लाग जगत मे टिप्पणी करने वालो ने इस सब्जेक्ट पर पीएचडी कर रखी है, एक से एक धाकड़ टिप्पणी विशेषज्ञ है हमारे यहाँ. कईयो को तो लोगो ने सलाह दे रखी है, ब्लाग लिखना छोड़कर सिर्फ टिप्पणी ही लिखा करें.ऐसे महारथियो के सामने हमारे विचार और टिप्पणियां एकदम बौनी है, फिर भी जो हमने अपनी नजर से समझा सो यहाँ आपके साथ शेयर कर रहे है. और एक विनम्र निवेदन इस टिप्पणी एनालिसिस को मस्ती मे लिया जाये, कौनो इशू ना बनाया जाय.

टिप्पणी का बहुत महत्व है, ब्लाग लिखने मे,बकौल शुक्लाजी टिप्पणी के बिना ब्लाग तो उजड़ी मांग की तरह होता है, जिस ब्लाग मे जितनी ज्यादा टिप्पणिया समझो उसके उतने सुहाग.


टिप्पणिया कई तरह की होती है, कुछ उदाहरण आपके सामने हैः
जैसेः‍ आपका ब्लाग पढा, अच्छा लगा लिखते रहो.. आगे भी इन्तजार रहेगा.....
तात्पर्यःफालतू का टाइम वेस्ट था, पूरा पढने की इच्छा नही हुई,लिखते रहो, कभी तो अच्छा लिखोगे, फिर देखेंगे.

थोड़ी तारीफः आपका ब्लाग पढा, बहुत मजा आया, हंसते हंसते बेहाल हो गये, वगैरहा वगैरहाः
तात्पर्यः अब जाकर ठीक लिख पाये हो,थोड़ा और इम्प्रूव करो, फिर भी ठीक है, थोड़ा पढा है, समय मिला तो बाकी का फिर पढेंगे.

शिकायती तारीफः आपका ब्लाग पढा, अच्छा लगा, मजा आया... पिछले ब्लाग मे छुट्टन मिंया की दावत वाला किस्सा अच्छा था, कहाँ है आजकल छुट्टन मिंया?
तात्पर्यः अबे ये सब क्या उलजलूल लिख रहे हो, मजा नही आ रहा, जैसा पिछला ब्लाग लिखा था, वैसा लिखो, अगर अगले ब्लाग मे छुट्टन के बारे मे नही लिखा तो मै तो नही पढने वाला, बाकी तुम जानो.

थोड़ी आलोचना थोड़ी तारीफः आपका ब्लाग पढा, आपने अपने ब्लाग मे सूरज को पश्चिम से उगते हुए बताया है, यह सरासर गलत है, लेकिन आपका सूरज के उगने का वर्णन बहुत सही और सटीक था.
तात्पर्यः मैने पूरा ब्लाग पढा, अजीब अहमक आदमी हो, पूरे फन्डे क्लियर नही है, और ब्लाग लिखने बैठ गये. शुरू कंही से करते हो, खत्म कंही और जाकर होता है, कोई सिर पैर ही नही है, लेकिन फिर भी एक बात है, लिखते भले ही बकवास हो लेकिन शैली अच्छी है.

ज्यादा आलोचनाः आपके ब्लाग मे सूरज को पश्चिम से उगता दिखाया गया है, जो एकदम गलत है, बकवास है, वगैरहा.......

जोशपूर्ण आलोचनाःआपने सूरज को पश्चिम से उगता दिखाया है, आप अहमक है, कोई आपका ब्लाग नही पढना चाहता है, आप लिखते ही क्यों है? क्या जरूरत है लोगो का टाइम वेस्ट करने की, खुद तो फालतू है, दूसरो को भी समझते है. वगैरहा वगैरहा.
तात्पर्यः बात दिल को चुभ गयी, या तो ज्यादा सच्चा लिख दिये हो, या फिर अकल के अन्धे हो.

क्रोधपूर्ण आलोचनाः आपने सूरज...पश्चिम..... आपकी हिम्मत कैसे हुई यह सब लिखने की, कुछ शर्म लिहाज... उमर, बच्चो का ख्याल .......वगैरहा वगैरहा

घुमावदार तारीफ और आलोचनाः जिसमे दोहो और शेरो शायरी से तारीफ की गयी है.
तात्पर्यः सामने सामने तो तारीफ और शेरो शायरी मे शिकायत, मतलब है,अगर तारीफ करने वाला बात बात मे शेर और दोहे मार रहा है तो वह यह जताने की चेष्टा कर रहा है, जो बात वह खुद नही कहना चाहता है, उसको दोहो और शेरो शायरी से समझो.

ईष्यापूर्ण तारीफः मैने आपके ब्लाग की तारीफ, उस ब्लाग पर पढी थी, आपकी कविता का अनुवाद पढा था, बहुत अच्छा लगा, अच्छा लिखते है, लिखते रहो.
तात्पर्यः इतना वाहियात लिखते हो, फिर भी लोग तारीफ कैसे करते है?, यहाँ तो हम लिखते लिखते थक जाते है कोई घास नही डालता. लड़की है इसलिये लोग इसके ब्लाग पर टूट पड़ते है,लोगो की पसन्द का भी कुछ पता नही चलता.

तारीफ का इन्वेस्टमेंट

इन्वेस्टमेंट #1 : आपका ब्लाग अच्छा लगा, कभी हमारे विचार भी देखिये हमारे ब्लाग पर.
तात्पर्यः मै तुम्हारे पन्ने पर आया, अब तुम भी आओ.

इन्वेस्टमेंट #2 : आपका ब्लाग पढा, अच्छा लगा, सूरज के उगने के संदर्भ मे आपके और मेरे विचार मेल खाते है, जिसे मैने अपने ब्लाग link here पर लिखा है.
तात्पर्यः देखो भइया मैने तुम्हारा ब्लाग पढकर अपना फर्ज निभाया, अब तुम भी मेरा ब्लाग पढ डालो, और हाँ मेने इस सब्जेक्ट पर तुमसे अच्छा लिखा है. ना मानो तो खुद पढकर देख लो.


तो जनाब सच्ची तारीफ क्या होती है. अभी खोज जारी है.
वैसे अब तक की रिसर्च से मालूम पड़ा है कि सच्ची तारीफ वो होती है जो दिल से निकली हो, जिसमे शब्दो का ज्यादा घालमेल ना हो, तारीफ करने वाले ने ब्लाग पूरा पढा हो, भले ही समझा हो या नही, यह अलग बात है,लेकिन पूरा पढा जरूर हो. और उसने जितना समझा हो उसकी तारीफ के बारे मे लिखा हो.

और एक आखिरी बात, तारीफ पाकर आप फूल कर कुप्पा ना हो जाय, तारीफ अस्त्र भी है.ऐसा ना हो की आप तारीफ पाकर दो तीन हफ्ते लिखना ही बन्द कर दे, या फिर ऊलजलूल लिखने लगें. जैसे मै लिख रहा हूँ..........और वैसे भी ब्लाग तो दिल की भड़ास है, आपने लिख कर अपना काम तो कर दिया, अब लोग पढे या ना पढे. फिर घूम फिरकर बात वंही पर आ जाती है,क्या करे दिल है कि मानता नही वैसे भी बिना टिप्पणी के तो ब्लाग उजड़ी मांग..........................

Wednesday, November 24, 2004

डैमेज थैरेपी

क्या आपको काम की ज्यादा टेन्शन है?
क्या आपको आपका बास बहुत परेशान करता है ?
क्या आप किसी और घरेलू समस्या से परेशान है?

ऐसे कई सवाल हो सकते है, लेकिन इनका नया और निराला जवाब है डैमेज थैरेपी यानि तोड़फोड़ कीजिये और अपने तनाव से मुक्ति पाइये. मै कोई मजाक नही कर रहा हूँ, आप यहाँ खुद ही पढ लीजिये.

यह थैरेपी स्पेन मे पापुलर है, स्पेन में एक कबाड़ख़ाने ने लोगों को खुली छूट दी है कि वे जो चाहें तोड़ें-फोडें. आप कार, कंप्यूटर, फ़ोन या टेलीविज़न जो चाहें तोड़ सकते हैं, बस आपको अपनी जेब थोड़ी सी ढीली करनी होगी लगभग ढाई हजार रूपये तक. इसके बदले मे कबाड़खाने वाले आपको हथौड़ा,चश्मा और दस्ताने उपलब्ध करवायेंगे और बैकग्राउन्ड मे बजेगा राक म्यूजिक. आप को २ घन्टे की पूरी छूट है कि आप कबाड़खाने मे रखा कोई भी सामान तोड़ सकते है.

सबसे मजेदार बात यह है कि यहाँ पर आने वाले ज्यादातर लोग अपने साथ अपने बास का फोटोग्राफ लेकर आते है और उस फोटो को सामानो के ऊपर रखकर खूब मार कुटाई करते है.कबाड़खाने के प्रबन्धको का कहना है कि लोग जाते समय बहुत रिलेक्स और तनावमुक्त महसूस करते है.

एक महिला का कहना है कि उसने कबाड़खाने मे जाकर कार के उन हिस्सो को तोड़ा जो उस महिला की कार मे रोजाना दिक्कत दे रहे थे, सामान तोड़ने के बाद महिला ने अपने को तनावमुक्त महसूस किया. लगभग ऐसी ही तनावमुक्त करने की थैरेपी जापान मे भी उपलब्ध है.

हमने मिर्जा साहब से इस बारे मे प्रतिक्रिया चाही, और जानना चाहा कि भारत मे इस थैरिपी का क्या स्कोप है,मिर्जा बोले भारत मे यह थैरेपी तभी पापुलर होगी जब कबाड़खाने मे कबाड़ की जगह राजनेताओ के बुत रखे जायेंगे, क्योंकि सबसे ज्यादा लोग इन सबसे बहुत पीड़ित है. भारत मे लोग
जब अपने बास से पीड़ित होते है तो अपना गुस्सा घर जाकर पत्नी और बच्चो पर निकाल लेते है. अब गुस्सा निकालने के लिये भी पैसे देने पड़े तो सौदा जरा मंहगा है, फिर भी नयी नयी चीज है, थोड़ा टाईम लगेगा चलने मे, वैसे सारा मामला तो भेड़‍-चाल का है.

तो फिर क्या आप तैयार है? अपने बास का फोटो लेकर, और मेरे ख्याल से भारत मे ऐसे माहौल मे बैकग्राउन्ड मे यह गाना बजेगाः
आज ना छोड़ूंगा तुझे, दन दना दन,
तूने क्या समझा है मुझे दन दना दन......

आपका क्या कहना है इस बारे मे?


शायर का सामान सड़क पर

पाकिस्तान के मशहूर शायर, अहमद फराज साहब, जिन्होने एक से बढकर एक गजले लिखी है, को सरकारी मकान से बेदखल कर दिया गया है, और उनके घर का सामान सड़क पर फेंक दिया गया है. अहमद फराज साहब जो इस समय लन्दन के दौरे पर है, ने बीबीसी को बताया कि "यह भौंडे तरीके से की गयी ज्यादती है."

उधर पाकिस्तान के आवासीय मामलो के मन्त्री ने अपने इस कदम को पूरी तरह से कानूनी कार्यवाही करार दिया.

बहरहाल कुछ भी हो, किसी विश्व प्रसिद्द शायर की इस तरह से बेइज्जती नही करनी चाहिये. शायर साहब का सामान उनके एक दोस्त ने पास के एक गेस्ट हाउस मे पहुँचा दिया है.

हमने इस बारे मे मिर्जा साहब से प्रतिक्रिया पूछी तो उन्होने मुझे अहमद फराज साहब का शेर सुना दिया, आप भी सुनिये


तुम भी खफा हो लोग भी बरहम है दोस्तो (बरहमःगुस्सा,नाराज)
अब हो चला है यकीं कि हम ही बुरे है दोस्तो
किस को हमारे हाल से निस्बत है क्या कहें (निस्बतःसम्बन्ध)
आंखे तो दुश्मन की भी पुरनम है दोस्तो (पुरनमःभीगी)

Tuesday, November 23, 2004

दिल का दुखड़ा

अपने दिल के हाल सुनाने से पहले मेरे को कैफी आजमी साहब का एक शेर याद आ रहा हैः

बस इक झिझक है यही,हाल ‍ए दिल सुनाने मे,
कि तेरा भी जिक्र आयेगा इस फसाने मे


अब का बताया जाय... बहुत दिनो से लिखने की सोच रहे थे, लेकिन क्या करे की लिखने का मूड ही नही बन पा रहा है.पाठक लोगो ने भी चोक लेनी शुरू कर दी है कि ये मिर्जा वगैरहा पर लिखने वाले, क्रिकेट अपडेट कब से लिखने लगे.अभी पिछले किये वादे ही नही निभाये हो, नयी नयी बाते लिखने लगे हो.

खैर आइये कुछ पिछले वाले वादो का जिक्र कर ले.पहला वादा था मिर्जा साहब जो स्टार न्यूज के खुलासे पर बहुत कुछ बोले थे, वो सब मिर्जा साहब के रमजान के चक्कर मे पब्लिश होने से रूक गया था.उसमे बहुत सारे अंश सम्पादित करने पड़ेंगे, अन्यथा तो यह ब्लाग मस्तराम डाइजेस्ट बन जायेगा. और देस परदेस मे मेरी बहुत पिटाई हो जायेगी. तो थोड़ा समय दे, ताकि सम्पादित करने के बाद प्रकाशित किया जा सके. दूसरा वादा था, स्वामी का इन्डियन क्रिकेट टीम के प्रति गुस्सा, मैने स्वामी का पूरा लेक्चर तो झेल लिया लेकिन उसमे कंही भी कोई नयी बात नही दिखी, इस मामले मे इतना कुछ पहले ही कहा जा चुका है, कि भारतीय टीम को और ज्यादा गालिया देना, मै उचित नही समझता, वैसे भी गालिया खाकर कौन सा वो लोग सुधर जायेंगे.

लेकिन जब से यह अनुगूँज का निबन्ध लिखने की प्रथा शुरू हुई है, तब से लिखने का मूड तभी बन पाता है, जब अनुगूँज की आखिरी तारीख की गूँज सुनायी पड़ती है. इसी कारण पिछले निबन्ध की तारीख बढवायी थी. ये तो चलो तो गनीमत है कि हम नये ब्लागरो को आखिरी तारीख तो याद रहती है, बुजुर्ग ब्लागर्स तो तारीख भी नही याद रखते, कभी इलेक्शन मे बिजी होते है तो कभी शार्टकट मारते है. जो इलेक्शन मे नही बिजी होते है, वो अन्तर्ध्यान हो जाते है, और तभी अवतरित होते है, जब उनको कोई गुरू ज्ञान मिलता है.

अब जब हमको अनुगूँज का निबन्ध लिखने का आदेश हुआ तो हम भी फटाक से टीप टाप कर निबन्ध तो लिख डाले, लेकिन समस्या थी कि पढे कौन, ये तो भला हो ब्लाग मेला वालों का, जो उन्होने आड़े समय मे मदद की, और ग्राफ को नीचे नही आने दिया, अब निबन्ध लिख लिया गया, आखिरी तारीख के पहले ब्लाग पर चिपका भी दिया गया, तो आयोजक महोदय, जिन्हे सभी के निबन्धो का निचोड़ बना कर एक उपनिबन्ध लिखना था, वो ही नदारद है, सुना है अन्तर्ध्यान हो गये है शायद आजकल कुछ कविताये पढ रहे है और अनुवाद वगैरहा मे लगे है. देखो कब तक प्रकट होते है. हमारा हाल तो उस फरियादी की तरह से है, जिसने खींच खांच कर अदालत तक तो पहुँच गया लेकिन बस तारीख पर तारीख ही मिल रही है.

इसी बीच एक मसला और हो गया, एक कन्या जिसने अंग्रेजी मे कविता लिख दी, और अपने ब्लाग पर चिपका दी, लोग बाग, सारे के सारे ठलुआ ब्लागर मुंह उठाकर सीधे उसके ब्लाग पर पहुँच गये. और लग गये तारीफ पर तारीफो के पुल बांधने, और बताने कि क्या कविता लिखी है, क्या भाव है, क्या व्याख्या है,क्या शब्द है वगैरहा वगैरहा.... कुछ उत्साही लोगो ने कविता का हिन्दी मे अनुवाद भी ठोंक दिया, और पता नही कितने लोग अन्य भाषा के अनुवाद मे लगे हुए है, फिर मसला शुरू हो गया कि अनुवाद ठीक है कि नही, सीप मे मोती, या मोती मे सीप, प्रेमी प्रेमिका या माँ बेटे का रिश्ता वगैरहा वगैरहा.....अरे भाई, इतना डीप मे हम भी नही उतरे थे, अरे भाई क्या फर्क पड़ता है, छुरा खरबूजे पर गिरे, या खरबूजा छुरे पर....हम लोग क्यो टेन्शन ले, मगर नही हमारे शुक्ला जी ने पूरा दो पन्ने का ब्लाग लिख मारा, और हिम्मत करके उस कन्या के ब्लाग पर, अपना ब्लाग देखने का निमन्त्रण पत्र भी चस्पा कर आये. अब कन्या को तारीफो से फुर्सत मिले तभी तो आलोचना वाले ब्लाग पर जायेगी, अपने शुक्ला जी समझते ही नही. वही हुआ, अगली फुर्सत मे कन्या ने टिप्पणियो की सफाई की और शुक्लाजी की आलोचना वाले निमन्त्रण पत्र को भी रद्दी की टोकरी मे डाल दिया. अब शुक्ला जी परेशान टहलते फिर रहे है.


दरअसल सारा मसला था ब्लागर का कन्या होना, अगर वही कविता हमारे जैसा कोई ठलुआ ब्लागर लिखता, तो कोई पढना तो दूर की बात है, झांकने भी नही जाता. यही सोच कर हमने भी एक आध ब्लाग किसी कन्या के नाम पर लिखने की सोची है, ताकि हमारा ब्लाग सिर्फ हमें ही ना पढना पढे.आप लोगो के दिमाग मे कोई झकास सा नाम हो तो बुझाईयेगा.अब आप भी कहेंगे कि क्या हम भी कन्या से इम्प्रेस हो गये है, तो भइया आप को एक राज की बात बता देते है कि हम इम्प्रेस तो तब होते ना जब हमने पूरी कविता पढी होती... ना हमने कविता पढी, ना इम्प्रेस होने के चक्कर मे पढे, लेकिन हाँ तारीफ तो टिप्पणी तो हमने भी लिख दी... क्यो? अरे भाई जब सब लोग तारीफ कर रहे हो और हम ना करे तो हम पिछड़ नही जायेंगे?..... सो हमने अपने आप को पिछड़ने से बचाने के लिये तारीफ तो लिख दी, यही सोच कर कि शायद कोई ज्ञानी महाज्ञानी हमारी टिप्पणी पढकर ही हमारे ब्लाग पर आ जाये... या आप कहे कि हमने एक टिप्पणी का इन्वेस्टमेन्ट किया था, अब उसका कितना फायदा हुआ, देखना बाकी है.

अब आप लोग भी चूकिये मत, टिप्पणी का इन्वेस्टमेन्ट कर डालिये, कंही देर ना हो जाय.

एक और दुखड़ा है हमारा, हमारे हिन्दी ब्लागर भाईयो के चिट्ठा समुह के हैडक्वार्टर चिट्ठा विश्व मे सारे पुराने चिट्ठाकारो के परिचय पत्र मौजूद है और कइयो के लेखो का पोस्टमार्टम करने वाला लेख मौजूद है, हम भी इस खुशफहमी मे थे कि कभी हमारा थोबड़ा भी वहाँ लटका मिलेगा या कोई बन्धु हमारे लेखो का उल्लेख कर हमारे दिन तार देगा, बहुत दिन इन्तजार करने के बाद, हमने भी अपना परिचय पत्र वहाँ के लिये रवाना कर दिया, और इसी इन्तजार मे दिन मे चार चार बार वहाँ विजिट किये.......लेकिन इतने दिन,हफ्ते,महीने गुजर गये आज तक हमारा थोबड़ा वहाँ नही दिखाई पड़ा, समझ मे नही आता, डाकिये को हमारा परिचय पसन्द आ गया और उसने पार कर दिया या फिर नये ब्लागर्स के परिचय पत्र टांगने की प्रथा ही नही है. अब ये बात तो सारे बजुर्ग ब्लागर बन्धु ही बता पायेंगे, हम अज्ञानी लोग क्या जाने इस बारे मे.

Sunday, November 21, 2004

कानपुर टेस्ट अपडेट

और लो भाई,

भारतीय क्रिकेट टीम जो दक्षिण अफ्रीकी टीम को हल्का समझ रही थी, सोच रही थी कि नये खिलाड़ियो से बनी टीम को अपने देश मे हराना आसान रहेगा. साथ ही भारत का मीडिया जगत भी इस सीरीज को भारतीय टीम की टेस्ट रेंकिग को ठीक करने का माध्यम बता रहे थे, सबके मुंह पर पहले टेस्ट के दो दिन के खेल को देखकर ताला लटक गया है.

दूसरे दिन के खेल चल रहा है, चाय के बाद का अभी तक का स्कोर 454/7 है, और सिवाय कुम्बले के बाकी सभी बालर्स बेबस नजर आ रहे है. अभी जिस विकिट पर लगभग सारे अफ्रीकी बेट्समैन जम के खेल रहे है, इसी विकिट पर कल भारतीय बल्लेबाजो की परीक्षा होना बाकी है. पिछले रिकार्डस के मद्देनजर यह अन्दाजा लगाना मुश्किल नही होगा कि कल क्या होने वाला है.

अभी कुछ भी कहना, सही नही होगा.. फिर भी इस मैच से नतीजे की उम्मीद रखना, वो भी भारत के पक्ष मे यकीनन नाइन्साफी होगी. देखते है, कल क्या होता है.

Friday, November 19, 2004

कानपुर और क्रिकेट

चलो भाई,आखिर इतने सालो बाद कानपुर मे टेस्ट मैच हो रहा है, बहुत खुशी की बात है, और मेरी सहानुभूति गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मियों से है, बेचारे सुबह सुबह तो बड़े चौकस रहते है, लेकिन धीरे धीरे थकने लगते है, और मुफ्तखोर अन्दर प्रवेश पा लेते है.

क्रिकेट के मुत्तालिक कानपुर की कुछ परम्पराये रही है, पहली कि टिकटधारी,बाहर खड़े होते है और बेटिकट वाले अन्दर मैदान मे मैच देख रहे होते है. हर बार प्रशासन तगड़े इन्तजाम करता है, और बोलता है कि कोई मुफ्तखोर इधर नही आ सकता, लेकिन फिर भी...कानपुर है..... अगर आप कानपुर मे रहते है और मेरी बात का विश्वास नही है तो कल ही एक ट्रायल मारिये और ग्रीनपार्क के बाहर टहल आइये.... आपको सैकड़ो की संख्या मे लोग अपने टिकट दिखाते हुए मिल जायेंगे और बोलेंगे कि यार इस भीड़ मे कैसे जाये.... कई बार ट्राई किया हर बार भीड़ ने वापस उछाल दिया. और हाँ वहाँ जाने से पहले अपने पर्स वगैरहा को घर पर ही रखियेगा...क्योंकि जेबकतरो का यह सीजन होता है, आपका पर्स कब पार हो जाये पता ही नही चलेगा...फिर मत कहना पहले आगाह नही किया. हर तरह के इन्क्लोजर मे बैठने के अलग पैंतरे है, पवेलियन मे बिना टिकट बैठने के लिये आप या तो अच्छा सा सफारी सूट या फिर झक सफेद कुर्ता पहने हो, आपके आगे कुछ मित्र, नेताजी की जय के नारे लगाते हुए भीड़ को हटाते रहे और आप अपने दल बल सहित अन्दर प्रवेश पा लेंगे.

थोड़े सस्ते इन्कलोजर्स मे आपको दरोगाजी या सिपाही को सैट करना होता है, ये सैटिंग, सामने लगी पान की गुमटी पर होती है, या फिर दूर लगे स्कूटर स्टैन्ड पर, सब कुछ व्यवस्थित है, इसे मजाक मत समझे, आप खुद चैक कर ले. अब बारी आती है, स्टूडेन्ट वाले इन्क्लोजर्स की, तो वहाँ पर तो आपसे कोई पूछने वाला नही होगा...बस चेहरे पर एक तो लाल काली पट्टियां पहन कर चले जाये...दाढी अगर दो तीन दिन से नही बनायी है तो सोने पर सुहागा.... वैसे भी पुलिस वाले इस इन्कलोजर्स पर अपनी ड्यूटी लगवाने से डरते है, यहाँ पर आपको थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा...क्योकि जब सारे बन्दे इकट्ठे होंगे तब ही तो एक रेला बनाकर गेट की तरफ कूच करेंगे....आप अपने आपको रेले मे बीच मे ही रखे,ताकि दोनो तरफ से अगर पुलिस वाले लाठी चलाये तो अगल बगल वाले ही घायल हो,आप नही,अपने चश्मे,घड़ी और पर्स का विशेष ध्यान रखे,कई बार तो लोगो के रूमाल, कालर और ना जाने क्या क्या गायब हुए.,जितना बड़ा रेला उतनी ज्यादा आसानी..पुलिस वाले रेले का साइज देख कर ही एक्शन लेते है, मतलब? अरे यार या तो लाठिया चलाते है या फिर गेट छोड़कर भाग जाते है.

इसके अलावा कानपुर के ग्रीन पार्क की एक और परम्परा है, कि मैच के बीच मे कम से कम एक बार आवारा कुत्ता जरूर घुसता है, चाहे जितनी ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था क्यों ना हो, तो फिर जनाब आप तैयार है ना मैच देखने के लिये..... साथ मे क्या क्या ले जाना है? अरे यार ये भी हमको बताना पड़ेगा क्या? दीवाली के बाद कुछ पटाखे बचे होंगे, वो ले जाना, गुब्बारे या कोई सब्सटिटयूट(समझ गये ना?), स्केच पेन, कागज बगैरहा, पाकेट रेडियो और हाँ टाइम पास करने के लिये ताश तो बहुत ही जरूरी है.

तो फिर आप इन्जवाय करे अपना टेस्ट मैच...... हम जा रहे है स्वामी के घर, उनकी भारतीय क्रिकेट टीम के प्रति नाराजगी को झेलने....

Tuesday, November 16, 2004

क्या है भारतीय संस्कृति?

Akshargram Anugunj
अक्षरग्राम अनुगून्ज
दूसरा आयोजन

कभी कभी मेरे अंग्रेज और अन्य अभारतीय मित्र मेरे से कई तरह के सवाल पूछते है, जैसे हमारी संस्कृति कैसी है, हमारे इतने सारे देवी देवता क्यों है, अगर हम सभी एक जैसे है तो हमारे यहाँ विभिन्न प्रकार की जातिया प्रजातिया क्यों है? वर्ण सिस्टम का क्या महत्व है? और हमारे हर त्योहारों के साथ कोई ना कोई कथा क्यो जुड़ी हुई है? भारत मे इतनी भाषाओ के बावजूद कौन सी चीज लोगो को जोड़े रखती है? जब आप लोग अपने को एक मानते हो तो फिर दंगे फसाद क्यो होते है, आपके धर्म और संस्कृति मे इतने विरोधाभास क्यों है? वगैरहा वगैरहा..... मैने उन्हे समझाने की कुछ कोशिश की है, आइये आप भी देखिये कि मै इसमे कितना सफल हो सका हूँ.

किसी भी देश का अपना इतिहास होता है, परम्परा होती है. यदि हम देश को शरीर माने तो, संस्कृति उसकी आत्मा होती है, या शरीर मे दौड़ने वाला रक्त होता है या फिर सांस.....जो शरीर को चलाने के लिये अतिआवश्यक है. किसी भी संस्कृति में अनेक आदर्श रहते हैं, आदर्श मूल्य है, और मूल्यों का मुख्य संवाहक संस्कृति होती है. भारतीय संस्कृति में मुख्य रूप से चार मूल्यों की प्रधानता दी गयी है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष लेकिन कोई भी व्यक्ति इन चारों पुरुषार्थों अथवा मूल्यो को एक ही काल में एक ही साथ चरितार्थ नहीं कर सकता है, क्योंकि व्यक्ति का जीवन सीमित होता है, इसलिए हिन्दू धर्म में वर्णाश्रम व्यवस्था एवं पुनर्जन्म पर बल दिया गया है. वर्णाश्रम व्यवस्था को यदि गुण और कर्म पर आधारित माने तो यह व्यवस्था आज भी अत्यन्त वैज्ञानिक एवं उपादेय प्रतीत होती है. अगर देखा जाय तो यह वर्णाश्रम धर्म ही है इसकी बदौलत ऊँचे से ऊँचे ब्राह्मण पैदा हुए, ब्राह्मणों ने तो अपने लिए धर्म का काम लिया दान देना लेना, विद्या पढ़ना पढ़ाना, क्षत्रियों का कर्तव्य था कि जहाँ जरूरत पड़े वहाँ जान दे लेकिन मान को न जाने दें. वैश्य का कर्तव्य था कि वेद - वेदांग पढ़े और व्यापार करता रहे और शुद्रो को कर्तव्य था कि अन्य सभी कामो को अन्जाम देना. जब शुद्रों को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था तब वेदव्यासजी ने चारों वेदों का अर्थ महाभारत में भर दिया ताकि सब प्राणी लाभ उठा सकें. यह हिन्दू संस्कृति की समानता का एक प्रतीक है.

भारत पर विदेशियो ने अनेक बार आक्रमण किया और हिन्दु संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की,लेकिन वो संस्कृति ही क्या जो मिट जाये, भारत आये अनेक आक्रमणकारियो ने भी माना कि इस देश की संस्कृति को नष्ट करना नामुमकिन है, बल्कि उनमे से कई लोग अपने साथ विभिन्न प्रकार के धर्म और सम्प्रदाय ले आये, और कई यहीं पर बस गये, जिससे गंगा जमुनी संस्कृति का जन्म हुआ,जिसे भारतीय संस्कृति ने बड़ी ही सहनशीलता के साथ स्वीकारा और गले लगाया. विभिन्न वेद शास्त्र हमारी संस्कृति का हिस्सा है, इसके अतिरिक्त भारत की अन्य परम्परायें जैसे अतिथि देवो भवः, सामाजिक आचार व्यवहार,शरणागत रक्षा,सर्वधर्म समभाव,वसुधैव कुटुम्बकम,अनेकता मे एकता जैसी प्रमुख है.

पुराने जमाने से ही हमे समझाया गया है कि घर आया अतिथि भगवान के समान है, हम खुद भले ही भूखे रह जाये,लेकिन अतिथि का पेट भरना जरूरी है.इसी तरह से हमे समाज मे कैसा व्यवहार एवं आचरण करना चाहिये,इसकी शिक्षा हमारी संस्कृति हमे देती है, विभिन्न कहानियो एव लोकोत्तियो के द्वारा, हमे बड़ो की इज्जत करनी चाहिये और छोटो के प्रति स्नेह का आचरण करना चाहिये, एवम महिलाओ और बुजुर्गो के प्रति विशेष सम्मान दिखाना चाहिये.इसके अतिरिक्त शरण मे आये व्यक्ति की रक्षा करना हमारा परम धर्म है.

भारत ही केवल एक ऐसा देश है जहाँ सर्वधर्म समभाव का पूरा पूरा ध्यान रखा गया है, जितनी इज्जत हम अपने धर्म की करते है, उतनी ही इज्जत हमे दूसरो के धर्म की करनी चाहिये.यहाँ सुबह सुबह मंदिर से मन्त्रोचार की ध्वनि,मस्जिद से अजान,गुरूद्वारे से शबद कीर्तन की आवाज और चर्च से प्रार्थना की पुकार एक साथ सुनी जा सकती है.जितनी भाषाये यहाँ बोली जाती है, विश्व मे कहीं और नही बोली जाती.बोल-चाल,खान-पान,रहन-सहन मे अनेकता होते हुए भी हम एक साथ रहते है, एक दूसरे के तीज त्योहार मे शिरकत करते है, होली,दीवाली,ईद,बाराबफात, मुहर्रम,गुरपर्ब और क्रिसमस साथ साथ मनायी जाती है. मजारो ‌और मकबरो पर हिन्दूओ द्वारा चादर चढाना, और दूसरे सम्प्रदाय के लोगो का मंदिरो और गुरद्वारो पर दर्शन करना,मत्था टेकना बहुत आम बात है. यह हमारे धर्म और लोकाचार की सहनशीलता का जीता जागता उदाहरण है.

रही बात हमारे विभिन्न प्रकार के देवी देवता होने की...तो हिन्दू धर्म मे प्रकृति को हर तरह से पूजा गया है, चाहे वह वायू,जल,पृथ्वी, अग्नि या आकाश हो. इस प्रकार से हम प्रकृति के हर रूप की पूजा करते है, चाहे वह पहाड़ हो या कोई जीव जन्तु या हमारी वन्य सम्प्रदा, हमारी संस्कृति मे इन सबको विशेष स्थान दिया गया है.दुनिया मे ऐसी कोई संस्कृति नही होगी जहाँ प्रकृति को विभिन्न रूपो और स्वरूपो में पूजा गया है, रही बात त्योहारो से जुड़ी कहानियो की तो, सामान्य जनता जो उपनिषदो और वेदो की लिखी गूढ बातो को नही समझ सकती, उनके लोक आचरण के लिये विभिन्न ऋषि मुनियो ने अनेक गाथाये लिखी और उनको विभिन्न त्योहारो से इस तरह से जोड़ा कि सामान्य जन भी उसके साथ जुड़ सके और उसे अपना सके साथ ही ईश्वर का ध्यान और मनन कर सके.

इसके अतिरिक्त और भी चीजे हमारी संस्कृति मे जुड़ती रही, सारो का उल्लेख करना तो सम्भव नही हो सकेगा.. प्रमुख रूप से क्रिकेट की संस्कृति है, यह खेल अब हमारी संस्कृति मे शामिल हो गया है, क्रिकेटरो के अच्छे बुरे प्रदर्शन पर हमे हंसते रोते है, इनको अपने बच्चो से भी ज्यादा प्यार करते है, भगवान जैसी पूजा करते है, जब जीतते है तो तालिया बचाते है, जब हारते है तो गालिया देते है.

अब समस्या यहाँ आती है कि हम अपनी संस्कृति का कितना मान रख पाते है, वेद शास्त्र आपको रास्ता दिखा सकते है, लेकिन आपको उनपर चलने के लिये बाध्य नही कर सकते....एक और बात चूंकि ये सारे शास्त्र गूढ भाषा मे लिखे गये थे, इसलिये समय समय पर अनेक स्वार्थी धर्माचार्यो ने अपने और कुछ राजनीतिज्ञो के निहित स्वार्थो के लिये, इन शास्त्रो का मनमाने ढंग से विवेचना की और अपने फायदे के लिये इस्तेमाल किया. और अपनी दुकाने चलायी ...भाई को भाई से लड़ाया और विभिन्न समुदायो मे आपस मे बैर और नफरत फैलायी......और जो आज तक जारी है.इन्ही लोगो की वजह से हमारे यहाँ कभी कभी दंगे फसाद होते है, लेकिन आपसी भाईचारा कभी खत्म नही होता.

मार्क ट्वेन ने १८५६ मे जब भारत का दौरा किया था तो उसने लिखा था, भारत सांस्कृतिक रूप से परिपूर्ण राष्ट्र है. वैसे भी समय समय पर कई विदेशी विद्वानो ने भारत का दौरा किया और यहाँ की संस्कृति को दूनिया मे सबसे उन्नत माना.यही हमारी संस्कृति है, और हम सभी भारतीयो को इस पर गर्व है.