अनूगूँज चतुर्थ आयोजन
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लालू का नाम लेते ही याद आ जाती है एक सूरत, भोला भाला गंवार का बन्दा,गोल गोल चेहरा, सफेद बाल जैसे कटोरा कट, चेहरे पे बिखरी मासूमियत और भोलापन, आँखो मे जैसे कुछ शरारत, मन मे कुछ कर गुजरने की चाहत, जज्बा विरोधियो को धूल चटाने का और जबान, तो जैसे अभी कोई नया शगूफा छोड़ने ही वाली हो. यही है लालू, हम सबके प्यारे लालू प्रसाद यादव. कोई इन्हे भारत की राजनीति का मसखरा कहता है कोई इन्हे गरीबो का नेता मानता है, कोई इन्हे बिहार को बरबाद करने वाला नेता मानता है. मै तो इन्हे परिपक्व राजनीतिज्ञ मानता हूँ, जो एक एक शब्द सोच समझ के बोलता है और अपने व्यक्तित्व का पूरा पूरा फायदा उठाता है. लालू की प्रसिद्दि का यह आलम है कि पड़ोसी देश पाकिस्तान मे मेरे मित्र भारत की राजनीति मे सिर्फ लालू की ही बात करना पसन्द करते है. सिर्फ पाकिस्तान ही क्यों पूरी दुनिया मे लालू मशहूर है.कुल मिलाकर लालू एक लोकप्रिय नेता है, भले ही वो कैसी भी राजनीति करते हो आप उन्हे भारतीय राजनीति मे नजरअन्दाज नही कर सकते.
बिहार के गोपालगंज मे आजादी के एक साल बाद 1948 मे एक निहायत ही गरीब परिवार मे जन्मे लालू ने राजनीति की शुरूवात जयप्रकाश आन्दोलन से की, तब वे एक छात्र नेता थे, और बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि लालू ने वकालत भी की हुई है.1977 मे इमरजेंसी के बाद हुए लोकसभा चुनाव मे लालू जीते और पहली बार लोकसभा पहुँचे, तब उनकी उम्र मात्र 29 साल थी. 1980 से 1989 तक वे दो बार विधानसभा के सदस्य रहे और विपक्ष के नेता पद पर भी रहे. लेकिन सबसे सही समय उनके जीवन मे आया 1990 मे जब वे बाकी धुरंधर और घाघ नेताओ को छकाते और ठेंगा दिखाते हुए बिहार के मुख्यमंत्री बने. यह अत्यन्त अप्रत्याशित था तो असंतोष स्वाभाविक ही था, अनेक आंतरिक विरोधो के बावजूद वे अगले चुनाव यानि कि 1995 मे भी भारी बहुमत से विजयी रहे और अपने आपको सही साबित किया.लालू के जनाधार मे MY यानि मुस्लिम और यादवो के फैक्टर का बड़ा योगदान है, लालू ने इससे कभी इन्कार भी नही किया, और लगातार अपने जनाधार को बढाते रहे.
लेकिन जैसा कि हर राजनेता के जीवन मे कुछ कठिन पल आते है, सो 1997 मे जब सीबीआइ ने उनके खिलाफ चारा घोटाले मे आरोप पत्र दाखिल किया तो उन्हे मुख्यमंत्री पद से हटना पड़ा, लेकिन अपनी पत्नी राबड़ी देवाी को सत्ता सौंपकर वे राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष बने रहे, और अपरोक्ष रूप से सत्ता की कमान भी उनके हाथ ही रही.चारा मामले मे लालू को जेल भी जाना पड़ा, बहुत नौटंकी भी हुई और उनको कई महीने जेल मे भी रहना पड़ा, लेकिन बिहार मे लालू को हिलाने वाला अब तक पैदा नही हुआ था. फिर पिछले लोकसभा चुनाव के बाद लालू को दिल्ली की सत्ता मे योगदान करने की सूझी, लालू तो गृह मन्त्री बनना चाहते थे, लेकिन कांग्रेस के दबाव और काफी हीलहुज्जत के बात रेलमन्त्री बनने को राजी हो गये.यह बात और है कि विपक्ष अभी भी उनका बायकाट करता है, लेकिन लालू को कोई परवाह नही.
लालू को पता है, कि कब क्या कहना है, कितना कहना है और कैसे कहना है, किसी विस्फोटक बात को कहते समय भी लालू के चेहरे पर शिकन नही आती और वे मासूमियत का लबादा ओढे रहते है. बिहार के मामले मे लालू को पता है कि कब किस दल मे तोड़फोड़ करनी है, कब किसे और कहाँ शिकस्त देनी है.लेकिन अपनी पार्टी पर उनका एकक्षत्र राज है, मजाल है कि कोई चूँ भी कर जाये... बाकायदा बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है.
लालू ने काफी लेख भी लिखे है मुख्यतः राजनीतिक और आर्थिक विषयों पर , उनका शौंक है बड़े बड़े आन्दोलनकारियों की जीवनिया पढना और राजनीतिक चर्चा करना.... संगीत के नाम पर लोकगीत इन्हे बहुत पसन्द है, और खेलो मे क्रिकेट मे दिलचस्पी है, वे बिहार क्रिकेट एसोसियेशन के अध्यक्ष भी है. और उनका सपुत्र एक अच्छा क्रिकेटर भी है.लालू ने एक फिल्म मे भी काम किया जिसका नाम उनके नाम पर ही है, यह बात दीगर है कि इस फिल्म का उनसे कुछ भी लेना देना नही है.
रेलवे मन्त्री रहते हुए भी लालू काफी विवादास्पद रहे.....रेलवे मे कुल्हड़ चलाने का मामला हो या विलेज ओन व्हील गाड़िया, लालू का इन सबके पीछे अपना तर्क है. लालू ने वही किया जो उनके मर्जी मे आया, सिवाय सोनिया गांधी के वे यूपीए मे किसी भी नेता को घास नही डालते, हमेशा अपनी मनमर्जी करते है.लालू के रिश्तेदार भी लालू के राजनीतिक सफर मे काफी रूकावटे खड़ी करते है, साले साधू यादव हो या परिवार के बाकी लोग, हमेशा किसी ना किसी तरह लालू के लिये आफते लाते रहे है.वैसे भी लालू हमेशा नये नये विवादो मे घिरते रहते है अभी पिछले दिनो वे बिहार मे गरीबो मे पैसे बाँटते हुए देखे गये थे..जो आचार संहिता का सीधा सीधा उल्लंघन है..... विरोधियो ने पुरजोर विरोध किया, लेकिन लालू है कि असर ही नही.
लालू के कुछ मजेदार वक्तव्यः
"मै बिहार की सड़के हेमा मालिनी के गालों जैसी चिकनी करवा दूँगा."
"भारतीय रेलवे और रेल यात्रियो सुरक्षा की जिम्मेदारी भगवान विश्वकर्मा की है, मेरी नही" रेलवे हादसों के संदर्भ मे बोलते हुए.
"यदि हम माल भाड़ा बढाते है तो लोग सड़क द्वारा माल भेजना शुरु कर देंगे जिससे सड़को की हालत खराब हो जायेगी"
"मै बहुत काम करता हूँ, अगर मेरे को आराम नही मिलता है तो मै पगला जाता हूँ" यह पूछे जाने पर कि आप सैलून मे क्यों सफर करते है.
"मै आपको क्यों बताऊ कि रेलवे इन परियोजनाओ के लिये धन कहाँ से लायेगा....हमारे विरोधी एलर्ट ना हो जायेंगे." रेलवे बजट पर पूछे गये सवालों के जवाब मे.
"पासवान की पार्टी मे तो सब लफंगा एलिमेन्ट भरा पड़ा है"
अपनी बात कहने का लालू का खास अन्दाज है, यही अन्दाज लालू को बाकी राजनेताओ से अलग करता है, इनको देखकर मुझे स्वर्गिय नेता राजनारायण की याद आती है, जो मसखरी मे लालू से कुछ कदम आगे थे, लेकिन लालू का अन्दाज ही कुछ निराला है.पत्रकार तो इनके आगे पीछे मन्डराते रहते है, और बस इन्तजार करते है कि कब लालू कुछ बोलें और ये लोग छापे.....सीधा साधा मामला है, लोग लालू के बारे मे पढना पसन्द करते है. बिहार की सड़को को हेमा मालिनी के गालों की तरह बनाने का वादा हो या रेलवे मे कुल्हड़ की शुरुवात, लालू हमेशा से ही सुर्खियों मे रहे.इन्टरनेट मे आप लालू के लतीफों का अलग ही सेक्शन पायेंगे.... लालू के आलोचक चाहे कुछ भी कहें मेरी नजर मे लालू एक घाघ, शातिर,आक्रामक और हाजिरजवाब राजनेता है.
लालू का एक ही सपना है, भारत का प्रधानमन्त्री बनना, अब देंखे इनका यह सपना कब पूरा होता है.
Monday, December 27, 2004
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