Sunday, December 12, 2004

बउवा पुराण:भाग दो

रोशनी के दिल मे बउवा के प्रति प्यार फिर से उमड़ने लगा......लेकिन पहलवान के डर से कुछ लिख नही पा रही थी.......बस सही समय था....तो हम लोगो ने रोशनी की तरफ से बउवा को एक प्रेम पत्र लिखा.....जिसका मसौदा कुछ इस प्रकार था..................

‍‍‍‍‍‍गतांक से आगे.



मेरे प्रिय भोलेराम,
जब से तुमको देखा है, मेरा दिन का चैन और रातों की नींद गायब हो गयी है, दिल की धड़कन बढ गयी है, मुझे हर चीज मे तुम ही तुम नजर आते हो, आटा गूंथती हूँ तो तुम्हारी तस्वीर बन जाती है, रोटियां बेलती हूँ तो तुम्हारा चेहरा बन जाता है, चाट खाती हूँ तो गोलगप्पे मे तुम्हारा मुस्कराता चेहरा नजर आता है. कई दिनो से तुमसे मिलने की आस थी,लेकिन तुम तो जानते ही हो कि मै कितनी बेबस हूँ.काले सांड के आगे बन्धी हुई हूँ,मेरी बेबसी का आलम ये है कि मै अपनो से भी दूर हो गयी हूँ, बस तुम्हारी याद मे, तुम्हारे सपनों मे और तुम्हारे ख्यालो मे अपना समय काट लेती हूँ, लेकिन अब जुदा नही रहा जाता, आ जाओ, आ जाओ, बस तुम आ जाओ, दुनिया के सारे बन्धन तोड़कर, सारी रस्मे को छोड़कर, बस मेरे पास आ जाओ, हम कंही दूर चलकर अपना आशियां बनायेंगे....
इस पत्र को मिलते ही पढकर फाड़ देना, और बचे हुए पुर्जे,इस पत्र को लाने वाले को वापस दे देना. तुम्हे मेरी कसम है,

तुम्हारी, और बस तुम्हारी......तुम्हारे जीवन मे उजाला करने वाली रोशनी

बजरंगी जिसका अरोड़ा की चक्की पर रोज का आना जाना था, क्यों? अरे का पूछते हो भइया मसाले पिसवाने क्या हमारे घर पर जाता?, ने ये चिट्ठी, बउवा को डिलीवर की, और बउवा को बोला कि चिट्ठी अभी पढकर फाड़ दो, मेरे को फटे हुए पुर्जे वापस दिखाने है, अब जिसके सर पर इश्क का भूत सवार होता है, उसको भला बुरा कहाँ समझ मे आता है, बउवा ने चिट्ठी पढी,दुबारा पढी,तिबारा पढी.....पढी,पढी और फिर पढी....कई कई बार पढी.......उसका दिल तो नही था चिट्ठी को फाड़ने का, प्यार की पहली चिट्ठी,अब तक तो पिछले सारे मामले बिना चिट्ठी पत्री के ही फाइनल मे पहुँच गये थे... कैसे फाड़े, लेकिन बजरंगी के चेहरे के हर पल बदलते हाव भाव देखकर, उसको चिट्ठी फाड़नी पड़ी.इधर बजरंगी लौटा, और हमने बजरंगी को वापसी की चिट्ठी पकड़ाई, फिर वही पढकर फाड़ने वाला फन्डा....इस तरह से चिट्ठी पत्री का सिलसिला जारी रहा.......धीरे धीरे दोनो पंक्षी जाने अनजाने एक दूसरे के प्यार मे पागल हुए जा रहे थे, दोनो एक दूसरे की चिट्ठी मे लिखी बाती को सोच सोचकर और ख्यालों की उड़ानो के जहाज उड़ाकर खूश हो रहे थे. रोशनी ने चाट के बचे पैसो से, सीसामऊ बाजार मे मिलने वाला सस्ता सा परफ्यूम और धूप का काला चश्मा खरीदा, और बजरंगी को भिजवा दिया...उधर बउवा ने भी काफी सारा मेकअप का सामान और ड्रेस रोशनी के लिये भिजवाया......अब बउवा का आटे की चक्की मे ध्यान कम लग रहा था, अब उसकी आटे के टिन की हर डिलीवरी,पहलवान के घर के सामने से गुजरे बिना पूरी नही होती थी, बीच बीच मे भी वो चक्की छोड़कर रोशनी के घर के आसपास दिखने लगा था,लेकिन एक बात तो हुई, रोशनी के प्यार की वजह से बउवा अब रोशनी को छोड़कर,मोहल्ले की बाकी सभी महिलाओ को माता और बहन मानने लगा था. बस सारा का सारा दिन रोशनी के ख्यालों मे खोया रहता था. मोहल्ले के बुजुर्गो ने राहत की सांस ली, और हम लोगो को शाबासी मिली, अब इतना काम तो हमारा आफिशियल ड्यूटी मे शामिल था, हमने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया था, लेकिन हम लोगो का बदला अभी भी बाकी था. आखिर वर्मा ने हमारे बन्दे को पीटा था, सो हमने भी किसी पर जाहिर नही किया, कि हमे आगे का भी काम करना है.

इधर इतनी कहानी होने के बाद मोहल्ले मे फिर अफवाहे उड़ने लगी, तो वर्माइन ने वर्माजी को चेताया, कि फिर कुछ मामला गड़बड़ होने वाला है, और फिर कंही हमारी भद ना पिट जाये, वर्माजी भी मोहल्ले मे फैली गतिविधियों की तरफ ध्यान देने लगे, इधर मोहल्ले के कुछ बुजुर्गो ने वर्माजी से भेंटकर उन्हे बउवा की रंगरेलियों औड़ कारगुजारियों का काला चिट्ठा पेश किया, पहले तो वर्माजी मानने को तैयार नही हुए, बाद मे मोहल्ले वालों ने उनको धमकी दी कि आज के बाद अगर बउवा रंगे हाथों पकड़ा गया तो उसका सर गंजा कर,मुंह काला करके और गधे पर बिठाकर पूरे मोहल्ले मे घुमायेंगे. वर्माजी ने उन सभी से वादा किया कि आगे से ऐसा नही होगा.... वर्माजी ने बउवा को तलब किया और जोरदार पिटाई की. उधर पहलवान को भी मोहल्ले वालों ने बुलवाया और सारी बात बतायी और उसको भी ऐसी ही कोई लास्ट वार्निंग दी गयी.

अब इश्क पर पाबन्दियां लगओ तो और प्यार बंदिशे तोड़ने लगता है, और आशिक बागी हो जाते है. इधर बउवा ने मजनूं वाला रूख इख्तियार कर लिया, दाढी बड़ा ली, हमेशा रोने जैसा चेहरा बनाये रखता,काम मे मन भी नही लगता था, ऊपर से अरोड़ा जी की नजरे भी कुछ टेढी होने लगी थी..............इधर गर्मियां शुरू हो गयी थी,तपती दुपहरिया मे सभी लोग अपने अपने घर के अन्दर रहते थे, सड़के सुनसान,अब यह सही समय था, लोहा भी गरम था, और टाइमिंग भी एकदम फिट थी.हमने बजरंगी के मार्फत एक फर्जी खत बउवा को भेजा जिसमे रोशनी ने तपती दुपहरिया मे दिन के दो बजे बउवा को अपने घर पर बुलवाया..........और वैसा ही खत, चाट वाले के हाथो रोशनी को,फिर वही फन्डा चिट्ठी पढकर फाड़ने वाला...... बउवा तो वैसे ही तड़प रहा था, रोशनी से मिलने के लिये, तैयार होकर रोशनी के घर पहुँचा......इधर हम लोगों ने बाकायदा ईमानदारी से इस मुलाकात की खबर मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो मे कर दिया, और उन्होने वर्मा और पहलवान को,...... योजनानुसार यह तय हुआ कि उस दिन पहलवान अपने काम पर जाने का बहाना बनाकर जल्दी लौट आयेगा, उसके पास घर की चाभी तो थी ही.वर्माजी ने भी अपने आफिस मे अपनी पत्नी की बीमारी का बहाना बनाकर जल्दी निकलने का प्लान बनाया......वानर सेना ने लाइव टेलीकास्ट का पक्का इन्तजाम किया, और कल्लू पहलवान के घर की दोनो तरफ की छतो पर अपने बन्दे मुस्तैद कर दिये. और पुत्तन धोबी को बोलकर गधे का इन्तजाम भी तैयार रखा, और तो और रामा नाई को भी तैयार रहने के लिये बोला गया,ताकि बाद मे किसी को मुकरने का कोई बहाना ना मिले.

बउवा ने तय समय पर रोशनी के घर के तीन चक्कर लगाये, पूरी तरह से ताकीद की, कि कोई देख नही रहा है, बउवा कल्लू पहलवान के घर के अन्दर घूस गया.........हम लोगो ने पक्का किया कि बउवा घर के अन्दर घुस गया है, हमने दस मिनट तक इन्तजार किया.......हम लोगो ने जानबूझ कर दोनो को मिलने का थोड़ा समय दिया, ताकि मामला शिखर वार्ता से कुछ आगे बढे, और लोगो के आने पर बउवा भागने वाली हालत मे तो कतई ना रहे.तो जनाब बउवा अन्दर घुसा, रोशनी उसका इन्तजार कर रही थी, फिर जनाब वही हुआ, जिसका लोगों को पता था, मामला ड्राइंग रूम से बढकर बैडरूम तक पहुँचा, दोनो प्यार के समुंदर मे गोते खाने लगे, (अब मै इससे ज्यादा खुलकर तो नही लिख सकता, सो आप लोग अपने इमेजिनेशन का सहारा लें) अभी मामला प्यार की चरम सीमा तक पहुँचने ही वाला था कि पहलवान, वर्मा और मोहल्ले के बड़े बुजुर्ग,डुप्लीकेट चाभी की मदद से पहलवान के घर अन्दर पहुँचे....... इधर दोनो प्रेमियों को क्या पता था कि उन्हे पूरी तरह से फंसाया गया है, वो तो अपने आनन्द मे खोये हुए थे.दोनो आदम और हव्वा की कन्डीशन मे थे, और कामसूत्र की नयी नयी मुद्राये तलाश रहे थे, जैसी रोशनी को कुछ खटका हुआ, तो उसके तो होंश ही उड़ गये, कुछ नही समझ मे आया तो बस अपने और बउवा के ऊपर चादर ओढ ली.,इधर पहलवान का गुस्सा सातवे आसमान पर था, उसकी इज्जत जो दांव पर लगी हुई थी. बहरहाल सभी लोग रोशनी और बउवा को ढूंढते हुए ड्राइंगरूम से होकर बैडरूम तक पहुँचे जहाँ पर खुला खेल फर्रूखाबादी चल रहा था, सबसे पहले तो पहलवान ने रोशनी तो दो चार झापड़ लगाये और फिर बड़े बुजुर्गे ने रोशनी को कपड़े पहनने की इजाजत दी और उसको कमरे से बाहर ले गये.....इधर बउवा की जबरदस्त धुनाई की गयी, पिछली बार जो लोग चूक गये थे वो इस बार आये और इस सामाजिक कार्य मे अपना योगदान दिया. पिटने वाला वही था, जगह वही थी, पीटने वाली भी लोग भी लगभग वही थे, बस इस बार दिन के उजाले मे पिटाई हो रही थी, और इस बार पता था कि कौन पिट रहा है.ऊपर से बउवा अपनी छटी के दिन वाली ड्रेस मे था..... जैसे तैसे बउवा अपने को छुड़ाकर छत की तरफ भागा, मेन दरवाजे की तरफ तो लोगो की लाइन लगी हुई थी...हमको पता था कि छते मिली हुई है और बउवा वहाँ से भागने की कोशिश कर सकता है, छत पर हमारी वानर सेना डेरा जमाये हुए थी, सो वहाँ पर उसको,धूप मे जमकर धुना गया, और फिर पीटते पीटते हुए उसको फिर नीचे ले आये, जहाँ हलवाई से लेकर पनवाड़ी, चक्की वाले से लेकर धोबी और यहाँ तक कि रिक्शेवालों ने भी उसकी जमकर पिटाई की.पहलवान ने बोला कि इसको पुलिस मे दे दिया जाय, तो मोहल्ले के बड़े बुजुर्गो ने समझाया कि पुलिस मे मामला देने से तुम्हारी ही इज्जत ज्यादा उछलेगे, अभी तक तो मामला मोहल्ले तक का है, अखबार मे छपने के बाद तो पूरे शहर को पता चल जायेगा, सो मामला यहीं पर निबटा देते है, तुरन्त रामा हेयर सैलून वाले को बुलवाया गया, जो पहले से ही हमारे बुलावे पर मोहल्ले मे हाजिर था, बउवा को आधा गन्जा किया गया, चेहरा ज्यादा अच्छा लगे और कालिख ठीक से पुत सके इसलिये दाढी भी बनवायी गयी, इस कार्यक्रम के दौरान भी उसकी पिटाई होती रही, नाई ने भी बचाने बचाने मे दो चार धर दिये.फिर कालिख मंगवाई गयी, और बाकायदा मोहल्ले की औरतों, जिसमे वर्माइन को सबसे आगे रखा गया, ने बउवा को कालिख पोती. फिर रोशनी को बुलाकर, बउवा को राखी बंधवायी गयी, और फिर पुत्तन धोबी के गधे पर बिठाकर बउवा को पूरे मोहल्ले मे घुमवाया गया.......बउवा के गले मे भाई लोगों ने एक तख्ती भी डाल दी, जिसपर लिखा था, "मोहल्ले के मजनूं का हाल ऐसा ही होता है"

किसी को भी नही पता था, कि बउवा के इस हाल मे हमलोगो का कितना योगदान है, यहाँ तक कि दोनो लैला मजनूं को भी नही,उस दिन के बाद से वर्माजी की फैमिली कभी भी किसी मोहल्लेवालो से अकड़कर नही बोली.....क्योंकि जब भी कुछ अकड़ते लोग बउवा कान्ड को छेड़ देते...........इस तरह से बउवा पुराण का यह अध्याय यहाँ पर समाप्त होता है, बोलो मोहल्ला पुराण की............................जय!

(पाठकों की मांग पर बउवा पुराण आगे भी जारी रहेगा, लेकिन दूसरे मामले शुरू होंगे और नये अध्याय होंगे.......)

3 comments:

शैल said...

मानना पड़ेगा, आपकी याददाश्त और लेखनी को.सारी बातें इस तरह लिखी हैं,जैसे आज ही घटित हुईं हैं.

अनूप शुक्ल said...

शैल से जो छूट गया लिखने को --"गोया खुद के साथ घटी हों".

तुम यार बड़े कठकरेजा लेखक हो.कहीं ऐसे पिटवाया जाता है प्रेमियों को! किसी ने यह भी नही कहा -"अरे-अरे मत मारो बिचारा बहुत पिट गया".तुम तो लगता है पूरे तुलसीदास हो गये.उनकी बीबी रत्नावली ने उनको दुत्कारा तो उन्होंने यथासंभव मियां-बीबी को मिलने नहीं दिया.राम-सीता,लक्ष्मण-उर्मिला.यह तुम्हारी व्यक्तिगत बात है यही मानकर देवाशीष ने इसे ब्लागमेला में नहीं लिया.वैसे भी वर्मा जी का बदला उनके साले से निकालना कहां तक जायज है?यह नहीं कि वर्माजी की बिटिया के हाथ पीले कराओ.बहरहाल पढ़ने में तो अच्छा लगा पर बउआ को तुमने जैसा पिटवाया तो अब समझ में आया कि लोग कैसे मजबूत देश अपनी रक्षा के बहाने कमजोर देशों पर हमला करके उनको बरबाद कर देते है.

नोट:-कठकरेजा(कठोर हृदय वाला).यह नोट आलोक के संभावित सवाल के जवाब में

इंद्र अवस्थी said...

शुकुल, अब आलोक ने नहीं पूछा तो हमीं कन्फर्म किये लेते हैं- कठकरेजा में 'कठ' का शाब्दिक अर्थ काठ है या कठोर. यानी पूरे शब्द का अर्थ काठ जैसे कलेजे वाला है या कठोर कलेजे वाला?
अब यह मत कहना कि चाहे चाकू लौकी पर गिरे या अदरवाइज.....

वैसे जितेन्दर का पुराण मस्त रहा. सारे लोग कथा सुनने के बाद पंजीरी-बतासे खा लेना. आगे बउवा का क्या हआ? अरोरा चक्की में उनकी नौकरी रही या रास्ता दिखा दिया गया? फिर मुहल्ले में रहे या नहीं? बजरंगी चाट वाले को कुछ इनाम मिला या नहीं मुँह बंद रखने के लिये? इन सब प्रश्नों का उत्तर जानते हुए भी न दोगे तो..