बात उन दिनो की है, जब मुम्बई को बम्बई के नाम से ही जाना जाता था. काफी साल पुरानी बात है, कि हमारे एक रिश्तेदार बम्बई से कानपुर किसी शादी मे पधारे... तब मोहल्ले मे किसी के घर भी आया मेहमान, सबका मेहमान होता था, काफी आवभगत होती थी. लोग हालचाल पूछने आते थे, अपने घर खाने के लिये भी बुलाते थे. तो हुआ यों कि इन मेहमान जनाब जिनको,सिर्फ दो ही शौँक थे, पेट भर के खाना और बम्बई की गप्पे सुना सुना कर उसका गुणगान करना और दूसरे शहरो जैसे कानपुर का मजाक उड़ाना.इनको बम्बई के अलावा पूरा भारत एक गांव जैसा लगता था, दरअसल गलती इनकी नही थे,ये मेहमान साहब शायद पहली बार अपने शहर से बाहर निकले थे.
चलो मेहमान का नाम भी रख लेते है, "रमेश बाबू".................. सर्दियों के दिन थे, हम सभी लोग अपना गुड़,गजक और मुंगफली का स्टाक लेकर ,रजाई ढोकर , रसोई से अंगीठी उठाकर हाल मे रखकर, रजाई मे बैठ गये...इनकी बाते सुनने के लिये............रमेश भाई को भी पहली बार इतना भाव मिल रहा था..... अच्छे से कोई सुनने वाला मिला था, शुरू हो गये गप्पो की दुनिया मे... बम्बई ये, बम्बई वो.....वगैरहा वगैरहा......काफी समय तक तो हम लोग झेलते रहे....माताजी का डर ना होता तो हम तो उनको घर मे ही धो दिये होते... लेकिन क्या करें......सबसे छोटे जो ठहरे परिवार मे.... सबकी सुननी पड़ती थी...हमने भी सोच लिया कि रमेश भाई को एक बार कानपुरियन मेहमाननवाजी से अवगत जरूर करवायें. तो जनाब मैने अपनी बात वानर सेना के सामने रखी, तो ये डिसाइड हुआ कि रमेश भाई को गुरदीप सरदार के यहाँ खाने पर बुलवाया जाये और वहीं पर उनकी गप्पों का मजा लिया जाये और अझेल होने पर धोया जाय.
गुरदीप के यहाँ खाने का न्योता, कोई पागल ही नकार सकता है, चाईजी के हाथ का बना बटर चिकन और मखनी दाल ते आलू दे नान, कोई भूल सका है क्या भला...सो रमेश जी जब घरवालो से खाने की तारीफ सुनी तो तुरत फुरत तैयार हो गये.... वो दिन भी आ गया. खाना निबटाने के बाद पूरी वानर सेना जम गयी और रमेश भाई से किस्से सुनने के लिये. रमेश भाई शुरू........"एक बार मै बम्बई मे सड़को पर घूम रहा था, अपने स्कूटर पर, तो मेरे को राजेन्द्र कुमार(उस समय के सुपर हिट हीरो) मिल गया उसकी गाड़ी खराब हो गयी थी...मैने उसको लिफ्ट दी, उसके घर तक तो उसने मेरे को खाना खिलाया और अपनी शूटिंग देखने का न्योता दिया... मै फिर शूटिंग देखने गया..डायरेक्टर ने मेरे को देखा और बोला, आप भी कपड़े बदलकर आ जाओ, गाने के एक शाट मे आपको भी लिया जायेगा.... सो फलानी फिल्मे के फलाने सीन मे मैने काम किया है, नारियलपानी वाले का" वगैरहा वगैरहा.....यहाँ तक तो ठीक था, लोग आंखे फाड़े और विस्मय से उनको देख रहे थे... सरदारजी की तो बांछे खिल गयी बार बार रमेश भाई को छूकर देख रहे थे और उनका हाथ चूमने लगे थे..........क्योंकि वो राजेन्द्र कुमार के बहुत बड़े पंखे यानि फैन थे. रमेश भाई अब धीरे धीरे गप्पों की गहराई मे जाने लगे....हमारे परिवार मे सबको पता था कि रमेश भाई बहुत ही नकारा किस्म के इन्सान है, किसी तरह से बम्बई मे किसी छोटी मोटी कम्पनी मे क्लर्क की नौकरी लगी है, लेकिन रमेश भाई ये बात बताकर अपनी वैल्यू नही गिराना चाहते है........सो चाईजी ने पूछ ही लिया....तुसी कि कम कन्दे हो उत्थे....... रमेश भाई की दुखती रग पर हाथ रख दिया गया था.... सो रमेश भाई ने बोलना शुरू किया......"मै आप लोगो को बताना तो नही चाहता, क्योंकि मै सरकार की सीक्रेट सर्विस मे काम करता हूँ" (ये शायद जासूसी नावेल पढने का नतीजा था, सो उन्होने यहाँ फिट कर दिया), बोले "मै सीआईडी के लिये काम करता हूँ, और कानपुर किसी सीक्रेट मिशन के लिये आया हूँ, आप लोग किसी को बताना नही....", सुनने वाले लोगों का दिमाग चकराने लगा....लोगो ने मुंगफली और गजक की डलिया उनके सामने कर दी, हाल मे एकदम सन्नाटा छा गया...., रमेश भाई को किसी की परवाह नही थी... वो बोलते रहे..."उत्तर प्रदेश मे बहुत सारे अपराधी घुस आये है, उनको ढूंढने के लिये ही मेरे को यहाँ भेजा गया है......" वगैरहा वगैरहा.
अब यहाँ पर हमसे झिला नही गया, वानर सेना तो बस हमारे नोआब्जेक्शन इशारे का इन्तजार कर ही रही थी....हमने सिगनल ग्रीन दिया, तो गुरदीप बोला...."अच्छा! तभी तो मै कंहूँ कि हमारे मोहल्ले मे पुलिस की गाड़िंया क्यों घूम रही है", रमेश भाई को शह मिल गयी...बोले...."हाँ, मेरी सुरक्षा के लिये ही..." गुरदीप ने बोला..."उस दिन मेरे से सिपाही बोल रहा था कि मोहल्ले मे कोई वीआईपी आने वाला है, इसलिये यह सब तैयारी हो रही है...." वानर सेना के बाकी वानरों ने भी गुरदीप की हाँ मे हाँ मिलाते हुए कुछ गप्पे छोड़ दी..... रमेशभाई समझे कि जनता पूरी तरह से कन्वीन्सड है, सो लगे और लम्बी लम्बी छोड़ने....अपनी बहादुरी और .चम्बल के डाकुओ के किस्से सुनाने.........."
वानर सेना ने निश्चय किया कि रमेश भाई को एक्सपोज जरूर करेंगे....... उस रात तो हमने रमेशभाई को पूरी खुल्ली छूट दी बोलने की, लेकिन अगले दिन सुबह सुबह ही हमने रामआसरे सिपाही को पकड़ा और पूरी कहानी बतायी और ये भी बताया कि रमेशभाई मेहमान है, सो पूरा ख्याल रखते हुए ही ट्रीटमेन्ट किया जाये.. योजना अनुसार, रामआसरे सिपाही हमारे घर पहुँचा और रमेश भाई के बारे मे पूछा, घरवाले परेशान कि क्या हो गया? पुलिसिया घर कैसे आ गया... खैर रमेश भाई को बुलवाया गया, रामआसरे ने रमेशभाई को देखा, परिचय लिया, रमेश भाई घबरा गये... जब तक कुछ समझते समझते, हमारे रामआसरे जो बहुत बड़े नौटंकीबाज थे... ने "सर! कानपुर मे आपका स्वागत है" बोलते हुए जबरदस्त सलाम ठोंका.... रमेशभाई को और अचम्भा हुआ... लेकिन लोगो के सामने कैसे जाहिर करते.... सो उन्होने भी जवाबी सलाम दिया, रामआसरे रमेशभाई को बोले, "मेरे को शासन से आदेश मिला है कि आपकी सेवा मे कोई कमी ना रखी जाय... आपको कोई तकलीफ तो नही है?" रमेशभाई तो बल्ले बल्ले हो गये... बोले "नही..नही.. सब ठीक है, लेकिन मेरे आने का किसी को पता नही चलना चाहिये...क्योंकि मै यहाँ पर एक सीक्रेट मिशन पर आया हूँ" रामआसरे तो जयहिन्द करके चला गया......., परिवार वालो को अचम्भे मे डाल गया....इधर रमेशबाबू मन ही मन परेशान तो थे.... कि ये कौन सी मुसीबत आ गयी... लेकिन पहले ही इतनी लम्बी लम्बी छोड़ चुके थे, कि अब वापस लौटना मुमकिन नही था.........सो परिवार वालों को भी लम्बी लम्बी सुनाने लगे, और अपने आपको सीआईडी का आफिसर बताने लगे.........परिवार वाले जो उनको अब तक नाकारा और नामाकूल समझते थे...उनकी इज्जत बढ गयी... अभी तक साग और भिन्डी खिला रहे थे...उनके लिये पनीर और मशरूम बनाया जाने लगा...और तो और अब उनकी चाय मे दूध भी ज्यादा डाला जाने लगा....सच है वक्त बदलते देर नही लगती
रामआसरे सिपाही ने तो अपना काम बखूबी किया, अब हमारा इरादा था कि इनको एक्सपोज करना, सो हमने रामआसरे को पटाया और उसने अपने सीनियर्स को, सभी को मजाक करने का बढिया टाइमपास मिल गया... सो योजना अनुसार हम लोग रमेशभाई को मोहल्ले के अड्डे........वर्माजी के घर के सामने वाला बड़ा सा चबूतरा.....पर ले गये और चाय वगैरहा पिलाई गयी... और मोहल्ले के बाकी सारे फालतू लोगो को पकड़ कर ले आये....रमेशभाई की गप्पें सुनाने के लिये......रमेशभाई शुरु थे....लोग अचम्भित और वानर सेना मन ही मन मुस्करा रही थी......रामआसरे अपने दलबल सहित पहुँच गये... इंस्पेक्टर को रमेशभाई तरफ इशारा करते हुए दिखाते हुए बोले, यही है साहब......... रमेशभाई इतने बड़े पुलिस के दलबल को देखकर किसी सम्भावित आशंका से भयभीत हो उठे.... मोहल्ले वाले भी पुलिस वालों के पीछे पीछे आने लगे... सोंचे कि कोई वारदात हो गयी है. इंस्पेक्टर ने अपना परिचय दिया.... रमेश भाई ने फिर अपने को सीआइडी.. वाला बताया... इंस्पेक्टर ने योजनानुसार पहले तो सलाम ठोंका और फिर बोला अपना परिचय पत्र दिखाइये.........अब रमेशभाई के पास परिचय पत्र होता तो ही दिखाते ना...बोले मै सीक्रेट.......वगैरहा..... तो इंस्पेक्टर ने बोला.....पूरे मोहल्ले को पता चल गया है तो अब सीक्रेसी कहाँ रह गयी.....आप अपना ठीक से परिचय दे... अन्यथा थाने चले.....वहाँ पर हम लोग आपके बारे मे पूरी जाँच पड़ताल कर लेंगे..... रमेशभाई की सिट्टी पिट्टी गुम....थाने जाने के नाम से ही थर थर कांपने लगे....इंस्पेक्टर को किनारे ले गये.... और उससे बोले.... माइबाप मै तो बस गपोड़ी और छोड़ू हूँ, कोई आफिसर वगैरहा नही हूँ.......इंस्पेक्टर अड़ गया, कि आपने झूठ बोल कर फ्राड किया है, अब तो मामला अपराध का बनता है.....रमेशभाई गिड़गिड़ाये और माफी मांगने लगे ......तब तक हमारे परिवार वाले भी पहुँच गये... जो अब तक कन्वीन्स हो चुके थे, कि रमेशभाई सीआईडी आफिसर है..........जब उनको पता चला कि रमेश लम्बी लम्बी छोड़ रहा था, तो चाचाजी ने इंस्पेक्टर को समझाया... और रमेश से माफी मंगवायी गयी...... इंस्पेक्टर ने रमेश को बोला कि मोहल्ले वालों के सामने अपनी सच्चाई बयान करो.... भीड़ तो इक्ट्ठी हो ही चुकी थी...सो रमेश ने सबसे माफी मांगी और अपनी सच्चाई बयान की और आगे से कसम खायी कि कभी भी इतनी लम्बी लम्बी नही छोड़ूंगा. और रमेशभाई अगली ट्रेन से ही बम्बई को रवाना हो गये....दुबारा कभी भी कानपुर ना आने की कसम खाकर.
इस तरह से मामला शान्त हुआ... बाद मे रामआसरे सिपाही को हमने बधाई दी, जबरदस्त एक्टिंग के लिये..........और सभी लोग अपने अपने घरों को चले गये... आपने भी बहुत लम्बी लम्बी झेल ली....अब आप भी अपने कमेन्ट डाले..................
Thursday, December 16, 2004
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5 comments:
दिल पे मत ले यार!
यह किस्सा दर्शाता है कि आप अपने पुराने तेवर जिसमें मिर्जा की चतुराई, पप्पू भईया की मासूमियत और रावण दहन की खुशनुमा यादें जुड़ी थी, लौट आये हैं| एक आलोचक की निगाह से कहूँ तो कल्लू पहलवान के किस्से रसभरे जरूर थे पर राह से भटके लगते थे| मुझे लगा कि रोशनी और बऊवा सरीखे किस्से हिंदुस्तान की हर गली में होते हैं और अगर ऐसे किस्से सीधी सपाट भाषा में बखान कर दिये जायें तो मस्तराम डाईजेस्ट से होड़ लगाते नजर आते हैं| जीतू भाई आप एक सशक्त लेखक हैं और हिंदी ब्लाग जगत के बाकि लेखक भी इस बात की तसदीक करेंगे, पर जब मैंने रोशनी और बऊवा सरीखे किस्से पड़े तो मेरी छठी ईंद्रीय कह रही थी कि यह किस्सा ब्लाग मेला पर छापने में देवाषीश बाबू भी डरेंगे| पिछले दो किस्से आपने जरूर बेखुदी में लिख मारे होंगे| पर आज यह देख कर खुशी हुई कि आप अपने रंग में वापस आ गयें हैं| यह मेरी व्यक्तिगत राय है, कृपया अन्यथा न लें| मेरी बीबी का यह मानना है कि मेरी साफगोई की आदत की वजह से मेरे ज्यादा दोस्त नहीं बनें, पर मैं भी आदत से मजबूर हूँ| अच्छा,बुरा सपाट शब्दों में बक देता हूँ| अगर आपको आलोचना गलत लगें तो धृष्टता के लिए क्षमा कीजिएगा अन्यथा आपसे भी ऐसी ही टाँग खिँचाई की अपेक्षा रखूँगा|
अतुल भाई,
आपकी तारीफ और आलोचना के लिये धन्यवाद.
आपका कहना दुरुस्त है कि मुझे ऐसे किस्से बयान करने से परहेज करना चाहिये..दरअसल मै खुद भी बउवा किस्म के किस्से लिखने मे काफी असुविधा महसूस करता हूँ, मेरा उद्देश्य रोमांटिक या अश्लील किस्से लिखना नही है, वरन उन किस्से कहानियों मे से हास्य को निकालकर आप सभी के सामने लाने का प्रयास मात्र है, मैने हमेशा कोशिश की है कि किसी भी तरह के असभ्य व अश्लील भाषा के प्रयोग से दूर रहूँ.....शायद इसी वजह से कई किस्से अधूरे छोड़े है..........
लेकिन कभी कभी लेखनी पर कंट्रोल नही रहता और ऐसा हो ही जाता है, मै क्षमा चाहता हूँ यदि आप किसी को इस प्रसंग से कोई दुख हुआ हो..
सच्चा दोस्त वही होता है, जो अच्छे बुरे की पहचान कराये... रास्ता भटकने पर सही राह दिखाये....मुझे फक्र है कि मुझे आपकी दोस्त का दर्जा हासिल है....और आशा करता हूँ कि आप आगे भी मेरा मार्गदर्शन करते रहेंगे....
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