Sunday, December 05, 2004

टप्पेबाजी और पुलिस का व्यवहार

आप लोग पूछेंगे ये टप्पेबाजी क्या होती है?

टप्पेबाजी एक कला है कि जिसमे लोग बातो बातो मे आपकी जेब से पैसे गायब कर लेते है, और आपको हवा तक नही लगती....यह कला कानपुर मे फली फूली और विकसित हुई, और अब पूरे देश मे अपनी जड़े फैला रही है.विश्वास नही आता ना... आइये आपको अपने साथ घटित एक सच्चा किस्सा सुनाते है, ये किस्सा करीब पांच साल पुराना है, लेकिन इसी तरह से लोग आज भी टप्पेबाजी के शिकार हो रहे है.

बात उन दिनो की है, जब मै कानपुर मे रहता था, एक दिन मोटरसाइकिल से माल रोड से वापस घर की तरफ आ रहा था, वी.आइ.पी. रोड से, अचानक मेरे साथ साथ एक स्कूटर वाला चलने लगा, जिसके पीछे एक बन्दा बैठा हुआ था, सफेद कुर्ता पजामा पहने, उसने स्कूटर पर बैठे बैठे ही मुझसे चिल्लाकर कहा कि "आप ने पान की पीक थूकी है जो मेरे कुर्ते पर लगी है, इसको साफ करिये"......मैने कभी ना पान खाने की आदत पाली ना कभी पान मसाले का पाउच खोला........मैने ड्राइव करते करते ही बोला, "मैने तो नही थूका, किसी और ने थूका होगा."...‌और गाड़ी की स्पीड बढा दी....वो जनाब भी बहुत चालू किस्म के थे, उन्होने अपनी गाड़ी की स्पीड तेक करी, और अगली बत्ती (लाल इमली वाली) पर अपनी गाड़ी मेरी गाड़ी के आगे लगा दी. अब लाल बत्ती थी तो मै क्या करता, मुझे भी गाड़ी रोकनी पड़ी....वो जनाब उतरे और यह वार्तालाप हुआः

मैः क्या बात है?
टप्पेबाजःआपने मेरे कुर्ते पर थूका है, इसको साफ कीजिये.
मैः मैने तो नही थूका है, और आपका ये दाग भी पुराना दिख रहा है.
टप्पेबाजः देखिये मै आपसे शराफत से कह रहा हूँ कि इसे साफ कर दीजिये.....नही तो आप मेरे को जानते नही है.
मैःनही साफ करता...क्या उखाड़ लोगे......तुम्हारे जैसे तीन सौ पैंसठ रोज मिलते है.
टप्पेबाजः देखिये मै बब्बन गिरोह का आदमी हूँ, देखिये (मेरा हाथ खींचकर अपनी कमर पर लगाते हुए) यहाँ कट्टा भी लगा है
मैने अन्दाजा लगाया और पाया कि वो कट्टा तो नही था, लेकिन उसके जैसा कुछ था, मेरा थोड़ा सा आत्मविश्वास बढ गया और मे बोलाः
.
मैः बेटा ये कट्टे वगैरहा खिलौने है, अपने पास रखो और पतली गली से निकल लो, मै भी रामबाग का रहने वाला हूँ, और इन्ही सब के बीच पला बढा हूँ, मेरे को कट्टे का जोर मत दिखाओ.
टप्पेबाजःअभी दो दिन पहले आप के जैसे ही एक जनाब थे, बहुत उछल रहे थे, यंही पर लिटा लिटा कर मारा था, आप जैसे ही जीन्स पहने थे(मेरी जीन्स और बेल्ट पर हाथ लगाते हुए) और (बेल्ट को दूसरे हाथ से पकड़ कर देखते हुए बोला) "आप जैसे ही बेल्ट लगये हुए थे"
काफी देर बकझक होती रही.......टाइम भी बहुत वेस्ट हो रहा था...

अब मेरे को भी गुस्सा आने लगा था....मैने खालिस कानपुरिया अन्दाज मे मैने गाड़ी को साइट स्टैण्ड पर लगाया और एक रोजमर्रा मे दी जाने वाली गाली देते हुए,उसका गिरहबान पकड़ लिया और बोलाः तुम जबान की भाषा नही समझते हो क्या?, दूँ क्या दो चार, साले कट्टा लगाकर अपने आपको दादा समझते हो, मेरे को जानते नही.........मेरा इतना कहते ही, वो ढीला पड़ गया... और
बोलाःभाईसाहब माफ कर दो, और मेरे घुटनो को पकड़ कर बोला... गलती हो गयी और हाथो को हाथो मे लेकर माफी मांगने लगा... और बोला भाईसाहब आप जाओ, लगता है कि किसी और ने ही थूका था.

मै हैरान था, कि अगला बन्दा जो अभी कट्टे का जोर दिखा रहा था, अचानक ढीला कैसे पड़ गया, और माफी कैसे मांगने लगा....मैने दिमाग पर ज्यादा जोर नही दिया, अपनी गाड़ी स्टार्ट की,वहाँ से निकला और पेट्रोल भरवाने के लिये,चुन्नीगंज वाले पेट्रोल पम्प पर रूका, , जैसे से पीछे वाली जेब मे हाथ डाला, तो पाया कि पर्स गायब.......................... मै समझ गया, उस टप्पेबाज ने मेरे को बातों मे लगाकर , मेरा पर्स छुवा दिया है, यह मेरे साथ पहली घटना थी, आज सेर को भी सवासेर मिल गया था,लेकिन अब क्या हो सकता था, मै पहले वापस उसी चौराहे पर गया, अब वो क्या मेरा इन्तजार करता होगा?... निकल चुका था, पतली गली से....

अब आगे की कहानी भी सुन लीजिये..........फिर मै पास के थाने पहुँचा.... आदत के अनुसार थानेवालो ने मुझसे ही हजार सवाल कर मारे........ कि उस रोड से क्यों जा रहे थे, पर्स मे क्या क्या था, और तो और मेरी ही तलाशी ले डाली......फिर आपस मे कहने लगे वो एरिया तो हमारे थाने मे आता ही नही है..........लगे हाथो उन्होने मेरे को सलाह भी दे डाली कि चुपचाप घर जाओ, पर्स तो अब वापस नही मिलने वाला, वैसे मेरे पर्स मे रूपये ज्यादा नही थे, लेकिन कुछ कागज और पर्चिया काम की थी.....मेरा दिमाग तो वैसे ही भन्नाया हुआ था, मैने बोला कि टप्पेबाजो को पकड़ना तो दूर और आप लोग जो रिपोर्ट दर्ज करवाने आता है उसी को परेशान करते है. पुलसिये ने मेरे को अपने कानपुरी अन्दाज मे कच्ची कच्ची गालियां सुनाई, और मेरे को थाने से जाने के लिये कहा...........मै भी अड़ गया मैने मैने पुलिसये से कहा कि मेरे को एक फोन करना है...गाड़ी मे पेट्रोल नही है, घर वालो से पैसे मंगाने है........पुलिसिये ने रूखे अन्दाज से कहा कि बाहर पीसीओ से कर के आओ, मैने बोला जेब मे एक धेला नही है, फोन कैसे करूंगा? पुलिसिये ने कहा, "ठीक है,इन्तजार करों",और थोड़ी देर बाद फोन,मेरी तरफ बढाते हुए बोला... लेकिन जल्दी कर लेना........मैने समय ना गवाते हुए फटाक से अपने रोटरी क्लब के प्रेसीडेन्ट को फोन मिलाया और उसको पूरी कथा बताई, उसने मेरे से पूरी डिटेल पूछी, थाने का नाम पूछा और बोला फोन रखो और वंही रूको हम सब वहाँ पहुँच रहे है, मेरे फोन रखने के तुरन्त बाद, प्रेसीडेन्ट ने शायद किसी वरिष्ट पुलिस अधिकारी को फोन मिलाया होगा, और उस पुलिस अधिकारी ने थाने मे फोन किया..........

अधिकारी का फोन आने के बात तो थाने की तो फिजां ही बदल गयी.......जहाँ पर सारे पुलिसिये जो मुझे देख कर गुर्रा रहे थे, अचानक स्माइल मारने लगे.........और आंखो मे जहाँ नफरत की भावना थी, वहाँ अचानक प्रेम और वात्सल्य दिखने लगा और जनाब, सारे पुलिसियों को टोन बदल गयी... अभी तक मै खड़ा था, एक पुलिसिये ने फटाफट मेरे लिये कुर्सी लगायी, साफ करते हुए बोला आपने पहले क्यों नही बताया कि आप फलाने साहब के पहचान वाले हो......वगैरहा वगैरहा...... तुरन्त मेरे लिये समोसे के साथ चाय का आर्डर हुआ, टन्न से समोसे के साथ चाय भी आ गयी.....थानेदार मेरे को अपने कमरे मे ले गया....आराम से बिठाया....और पूरी बात सुनी और मेरी रिपोर्ट दर्ज हुई, इस बीच वो पुलिस अधिकारी और रोटरी क्लब के सारे पदाधिकारी भी वहाँ पर पहुँच गये,बस फिर वरिष्ठ पुलिस अधिकारी का भाषण और थानेदार का यस सर,ओके सर, ठीक है सर.....वगैरहा वगैरहा..... और फिर बाकायदा थानेदार मेरे को अपनी जीप मे लेकर वारदात वाली जगह पर गया.........या कहो शहर भ्रमण करवाया............................
मेरे को पता था, होना हवाना कुछ है नही........ इसलिये मै भी पुलिस अधिकारी को अपना फोन नम्बर देकर, घर को लौट आया....

करीब दो हफ्ते बाद थाने से फोन आया...... मै थाने पहुँचा, थानेदार ने अपनी दराज से पर्स निकाल कर टेबिल पर रखते हुए पूछा, "ये आपका पर्स है?" मैने देखा, और पाया कि पर्स मे सभी चीजे सही सलामत थी, सिवाय रूपयों के... मैने कहा "हाँ जी, मेरा ही है,लेकिन इसमे से पैसे गायब है, इसमे पूरे 320 रूपये थे इसमे" , थानेदार बोला, "पर्स वापस मिल रहा है, क्या ये कम है, इसी को गनीमत समझिये.... आज तक ये पहला मौका है, कि हम किसी को बुलाकर पर्स वापस कर रहे है."

मैने भी चुपचाप पर्स को अपनी जेब मे रखा, थानेदार से हाथ मिलाया और निकल पड़ा अपने घर की तरफ.


1 comment:

आलोक said...

एक और नया शब्द - टप्पेबाज़। आजकल बङ्गलोर में भी बस स्टैण्ड पर लोग पूछते रहते हैं, हिन्दी समझते हो? सामान चोरी हो गया आदि आदि।