चलो भाई,आखिर इतने सालो बाद कानपुर मे टेस्ट मैच हो रहा है, बहुत खुशी की बात है, और मेरी सहानुभूति गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मियों से है, बेचारे सुबह सुबह तो बड़े चौकस रहते है, लेकिन धीरे धीरे थकने लगते है, और मुफ्तखोर अन्दर प्रवेश पा लेते है.
क्रिकेट के मुत्तालिक कानपुर की कुछ परम्पराये रही है, पहली कि टिकटधारी,बाहर खड़े होते है और बेटिकट वाले अन्दर मैदान मे मैच देख रहे होते है. हर बार प्रशासन तगड़े इन्तजाम करता है, और बोलता है कि कोई मुफ्तखोर इधर नही आ सकता, लेकिन फिर भी...कानपुर है..... अगर आप कानपुर मे रहते है और मेरी बात का विश्वास नही है तो कल ही एक ट्रायल मारिये और ग्रीनपार्क के बाहर टहल आइये.... आपको सैकड़ो की संख्या मे लोग अपने टिकट दिखाते हुए मिल जायेंगे और बोलेंगे कि यार इस भीड़ मे कैसे जाये.... कई बार ट्राई किया हर बार भीड़ ने वापस उछाल दिया. और हाँ वहाँ जाने से पहले अपने पर्स वगैरहा को घर पर ही रखियेगा...क्योंकि जेबकतरो का यह सीजन होता है, आपका पर्स कब पार हो जाये पता ही नही चलेगा...फिर मत कहना पहले आगाह नही किया. हर तरह के इन्क्लोजर मे बैठने के अलग पैंतरे है, पवेलियन मे बिना टिकट बैठने के लिये आप या तो अच्छा सा सफारी सूट या फिर झक सफेद कुर्ता पहने हो, आपके आगे कुछ मित्र, नेताजी की जय के नारे लगाते हुए भीड़ को हटाते रहे और आप अपने दल बल सहित अन्दर प्रवेश पा लेंगे.
थोड़े सस्ते इन्कलोजर्स मे आपको दरोगाजी या सिपाही को सैट करना होता है, ये सैटिंग, सामने लगी पान की गुमटी पर होती है, या फिर दूर लगे स्कूटर स्टैन्ड पर, सब कुछ व्यवस्थित है, इसे मजाक मत समझे, आप खुद चैक कर ले. अब बारी आती है, स्टूडेन्ट वाले इन्क्लोजर्स की, तो वहाँ पर तो आपसे कोई पूछने वाला नही होगा...बस चेहरे पर एक तो लाल काली पट्टियां पहन कर चले जाये...दाढी अगर दो तीन दिन से नही बनायी है तो सोने पर सुहागा.... वैसे भी पुलिस वाले इस इन्कलोजर्स पर अपनी ड्यूटी लगवाने से डरते है, यहाँ पर आपको थोड़ा इन्तजार करना पड़ेगा...क्योकि जब सारे बन्दे इकट्ठे होंगे तब ही तो एक रेला बनाकर गेट की तरफ कूच करेंगे....आप अपने आपको रेले मे बीच मे ही रखे,ताकि दोनो तरफ से अगर पुलिस वाले लाठी चलाये तो अगल बगल वाले ही घायल हो,आप नही,अपने चश्मे,घड़ी और पर्स का विशेष ध्यान रखे,कई बार तो लोगो के रूमाल, कालर और ना जाने क्या क्या गायब हुए.,जितना बड़ा रेला उतनी ज्यादा आसानी..पुलिस वाले रेले का साइज देख कर ही एक्शन लेते है, मतलब? अरे यार या तो लाठिया चलाते है या फिर गेट छोड़कर भाग जाते है.
इसके अलावा कानपुर के ग्रीन पार्क की एक और परम्परा है, कि मैच के बीच मे कम से कम एक बार आवारा कुत्ता जरूर घुसता है, चाहे जितनी ही कड़ी सुरक्षा व्यवस्था क्यों ना हो, तो फिर जनाब आप तैयार है ना मैच देखने के लिये..... साथ मे क्या क्या ले जाना है? अरे यार ये भी हमको बताना पड़ेगा क्या? दीवाली के बाद कुछ पटाखे बचे होंगे, वो ले जाना, गुब्बारे या कोई सब्सटिटयूट(समझ गये ना?), स्केच पेन, कागज बगैरहा, पाकेट रेडियो और हाँ टाइम पास करने के लिये ताश तो बहुत ही जरूरी है.
तो फिर आप इन्जवाय करे अपना टेस्ट मैच...... हम जा रहे है स्वामी के घर, उनकी भारतीय क्रिकेट टीम के प्रति नाराजगी को झेलने....
Friday, November 19, 2004
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