Thursday, September 30, 2004

बीसीसीआई चुनाव

इस घटनाक्रम मे सभी लटके झटके है.प्यार,एक्शन,ड्रामा,राजनीति,वफादारी,छल और खेल भावना,सभी कुछ है.जी हाँ मै बीसीसीआई यानी देश के क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चुनाव की बात कर रहा हूँ.इस बारे मे बात करने से पहले मै आपको बीसीसीआई अध्यक्ष पद के महत्व के बारे मे बताना चाहुँगा.

भारत मे क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल है,सो खेल से जुड़े बोर्ड को कमाई भी बहुत होती होगी, कुछ साल पहले तक तो नही, भला हो जगमोहन डालमिया का जो उन्होने घाटे मे चल रहे बोर्ड को करोड़ो के मुनाफे मे ला दिया.कैसे? अब मेरे से क्या पूछते हो.. डालमिया से मिलो.आज बोर्ड करोड़ो रूपये के नकद सरप्लस पर बैठा है.पैसे से ज्यादा अध्यक्ष पद का रुतबा है.यही कारण है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राजनेता इस पद पर बैंठने के लिये लालायित रहते है.

डालमिया बोर्ड से पिछले १५ वर्षो से जुड़े हुए है,नस नस से वाकिफ है.सारे नियम कानून रटे हुए है,सो लगे बोर्ड को अपनी मर्जी से चलाने,जैसे घर की खेती हो. अब भला कोई आदमी १५ साल एक जगह बैठे तो उसे उस जगह से प्यार तो हो ही जाता है, सो उन्हे भी हो गया.लेकिन आपको तो पता ही है, बैरी जमाना प्यार को परवान नही चढने नही देता, सो कहानी मे खलनायक भी आ गये, कौन शरद पवार, नही यार अपने बिन्द्राजी और राजसिंहजी डूंगरपुर.

जब बिन्द्राजी को दिखा कि डालमिया जो अपने काम मे कम बोर्ड के काम मे ज्यादा ध्यान दे रहे है, वो भी फोकट मे, तो उन्होने नजर रखनी शुरू की, ठीक उसी तरह से जैसे एक बाप या चाचा अपनी जवान लड़की के आसपास फटकने वालो पर ध्यान रखता है,खैर जनाब धीरे धीरे दोनो मे पहले तकरार, फिर खटपट होने लगी,कहानी एक फूल दो माली हो गयी.फिर बहार आई,बोर्ड रूपी पार्क मे फूल खिलने लगे.... डालमिया रूपी माली की अच्छी देखभाल ‌‌और विपणन कुशलता के कारण.पार्क की खुशबू फैलने लगी, लोग दूर दूर से आने लगे, माली बनने की अर्जी लेकर.अब जब माली (डालमिया) के जाने का वक्त आया..... जो उसको पसन्द नही था.. तो उसने पार्क के अन्दर ही एक कुटिया की मांग कर दी, मांग मान ली गयी, क्योंकि दूसरे मालियो की ज्यादा नही चली.खैर साहब जब नये माली का चुनाव होने को आया तो , बिन्द्रा साहब ने पवार साहब को साधा और नये माली के चुनाव मे उतार दिया.अब पवार साहब भी बोले बहती गंगा मे हाथ धो ही लिया जाये. पवार साहब का पिछला रिकार्ड बताता है कि हमेशा स्लोग ओवर्स मे विकिट गंवाते है.इधर डालमिया साहब जिनकी अभी कुटिया तैयार नही हूई थी, (लानत पड़े,कुछ मद्रासी लड़को पर जिन्होने नगर निगम मे अर्जी देकर कुटिया बनना रुकवा दिया था),नही चाहते थे कि कोई नया बन्दा आये और उनकी कुटिया को लात मारे, इसलिये उन्होने भी अपना गुर्गा मैदान मे उतार दिया.

खैर जनाब, वो दिन भी आ गया, जब सभी पत्रकार लोग, नेताओ को मंझधार मे छोड़ कर, कोलकता के ताजमहल होटल मे पंहुँच गये, सबको पता था कि ढेर सारा मसाला मिलने वाला है, चैनल और अखबार के लिये. डालमिया और बिन्द्रा, दोनो तरफ के लोगो ने आपसी जबानी जमाखर्च चालू कर रखा था,बोले तो.. अरे यार गालीगलौच और क्या. माहौल वन डे मैच वाला था.. होटल मे मौजूद पुराने पत्रकार कसमे खा खा कर कह रहे थे, कि डालमिया को नीचा दिखाना मुश्किल है, दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी थे, जो शरद पवार के बारे मे पहले से जानते थे बोले कि वो हारने वाला खेल खेलते ही नही.अभी पहले ओवर की पहली गेंद भी नही पड़ी थी कि डालमिया जी ने मैच के एम्पायर को बाहर का रास्ता दिखा दिया, बोले बालिंग के साथ साथ एम्पायरिग भी वही कर लेगे, हमे याद है मौहल्ले मे क्रिकेट खेलते समय हम लोग भी ऐसा ही किया करते थे, कि बाल और बल्ला मेरा तो एम्पारिंग भी मै ही करूंगा, खेलना हो तो खेलो नही तो पतली गली से निकल लो...दूसरे तरफ वाले क्या बोलते, यहाँ तो बल्ला,बाल,विकिट,पिच सभी कुछ डालमिया का ही था.. मैच शुरू हुआ,फिर कई बार बैड लाइट की अपील हुई.. खेल रूका.. चला... फिर रूका..... ये सब तो होता ही रहता है..

आखिरकार दोनो तरफ से स्कोर पंद्रह पंद्रह से बराबरी पर रहा, सभी सोचे. मैच खतम हो गया, लेकिन अपने डालमिया ठहरे पुराने खिलाड़ी, पहले ही तैयार थे, बोले क्योकि मैने अम्पायरिग भी की है.. इसलिये मेरी २ बैटिंग होगी... कोई ऐतराज करता है तो करता रहे... सभी लोग पहले ही ये बात मानने के लिये लिखित अनुमति दे चुके थे... ठीक उसी तरह से जैसे साफ्टवेयर स्थापित करने से पहले स्क्रीन पर जो करार दिखाया जाता है(मैने तो आजतक नही पढा,हमेशा मंजूर है,क्लिक किया) फिर क्या साहब, डालमिया जी ने भी बैटिंग की, और मैच १ रन से जीता.

कुछ लोग (प्रफुल्ल पटेल साहब) जो ड्रेसिग रूम मे थे, उखड़ गये....बोले मैच गलत हुआ, हम दुबारा खेलेंगे.दनादन दो चार टी.वी.वालो को फोन कर दिया. ये तो भला हो पवार साहब का शालीनतापूर्वक अपनी हार स्वीकार कर ली....और करते भी क्या महाराष्ट्र मे चुनाव सर पर है.. कहाँ तक कोर्ट कचहरी करते फिरे... अब डालमिया जी की कुटिया भी बच गयी और दबदबा तो खैर पहले से ज्यादा हो गया.

बिन्द्राजी का क्या हुआ? होगा क्या वही डालमिया के गले मे बांहे डालकर मुस्कराते हुए फोटो खिचवायेंगे.. बोलेंगे सब कुछ लोकतांत्रिक तरीके से हुआ.. और अन्दर ही अन्दर डालमिया के पैरो के नीचे से कालीन खींचने की कोशिश करेंगे.

लेकिन इससे एक बात तो साबित हो ही गयी, क्रिकेट भले ही भद्र लोगो का खेल है, लेकिन क्रिकेट बोर्ड की भद्रता पूरे देश ने देख ली है.

Wednesday, September 29, 2004

गूगल की नयी टूलबार

जब याहू ने नया पन्ना बनाया तो गूगल भी क्यो पीछे रहता. वैसे तो टूलबार के क्षेत्र मे बहुत मारामारी है, लेकिन गूगल भइया का तो जवाब नही.

गूगल ने भी अपनी नयी टूलबार निकाली है.इसमे दो चीजे मेरे को पसन्द आयी.

  1. आप अपनी सर्च की भाषा पसन्द कर सकते है.
  2. सर्च बाइ नेम
    सर्च बाइ नेम: इस सुविधा के द्वारा आपकी सर्च आसान हो जाती है, कई बार हमे संजाल का पता तो नही होता लेकिन हम उसके नाम का आइडिया जरूर होता है.तो आपको बस इतना करना है कि आप उसका नाम Address bar मे लिख दे, बस बाकी काम गूगल का.

उदाहरण के लिये Address bar मे यह लिखे (बिना " लगाये)

Times of India
Railways
HCL
Infosys
SBI
IIT kanpur


सचमुच यह अच्छी सेवा है, एक अच्छी शुरूवात.... गूगल की नयी टूलबार यहाँ से डाउनलोड करे
http://toolbar.google.com




याहू का नया पन्ना

कल ही याहू का नया पन्ना(Beta Version) देखने का मौका मिला.
पहले से अधिक व्यवस्थित और प्यारा है.इसमे कोई खास नई सुविधा तो नही है, सिवाय Buzz Log, के जो आज की सबसे ज्यादा ढूंढी जाने वाली सामग्री के बारे मे बताता है.

फिर भी पन्ना पहले से बेहतर दिख रहा है. सही है परिवर्तन जीवन का नियम है.नया पन्ना देखने के लिये याहू के पन्ने पर जाये,अथवा यहाँ click करे.
http://www.yahoo.com/?r=1096364266

बदले की राजनीति

आखिर कांग्रेस अपने पुराने हथकन्डो को अपनाने के लिये मजबूर हो ही गयी. यूपीए सरकार ने एनडीए सरकार के समय मे हुए घोटालो की जाँच के चार मंत्रियों की एक अनौपचारिक समिति का गठन किया गया है जिसकी अध्यक्षता प्रणव मुकर्जी करेंगे और जिसमें अर्जुन सिंह, शिवराज पाटिल और ग़ुलाम नबी आज़ाद होंगे.मेरे ख्याल से लालू की कमी सबको खल रही होगी.वैसे लालू अपने तरीके से इस काम मे लगे है.

यह सस्ती राजनीति है, कांग्रेस पहले भी ऐसा करती रही है, नतीजा ढाक के तीन पात.ये सरकार विकास के कामो पर अपना ध्यान क्यो नही देती? क्या इन सब कामो के लिये लोगो ने इन्हे संसद मे भेजा था? मेरे ख्याल से इस प्रकार की राजनीति करने से, दोनो दलो (पक्ष और विपक्ष) मे एक दूसरे के काले कारनामो को उजागर करने की होड़ लग जायेगी, और विकास का मुद्दा कही पीछे छूट जायेगा.
वैसे भी कांग्रेस जो जार्ज फर्नांडिस का संसद मे बहिष्कार करती थी, आज तक ताबूत घोटाले को साबित नही कर सकी है.यह सब जबानी जमाखर्च है, जनता का ध्यान बंटाने के लिये.

अभी तक बीजेपी ने इस पर अपनी सतर्क प्रतिक्रिया दी है‍,बीजेपी के सचिव मुख़्तार अब्बास नक्वी कहते हैं, "हमारे सरकार के शासनकाल के दौरान जो इलज़ाम लगे थे यदि उसके बारे में ये लोग कोई जाँच करवाना चाहते हैं तो उसका स्वागत है." मेरे विचार से यह दबाव की राजनीति कही कांग्रेस को महंगी न पड़ जाये, क्योकि जहाँ तक भष्टाचार का सवाल है एनडीए कही भी यूपीए के सामने नही ठहरती.

नया फरमान

कल ही उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार ने नया फरमान जारी किया है कि राज्य के सभी विद्यालयो मे शिक्षको को पान,मसाला एवम धूम्रपान की आज्ञा नही होगी, यदि कोई शिक्षक ऐसा करता पाया जाता है तो उसके विरूद्ध अनुशासमत्क कार्यवाही की जायेगी.यह स्वागत योग्य निर्णय है.

लेकिन अग्रेजी मे किसी महानुभाव ने कहा है "सिगरेट पीने वालो के साथ हमे नर्मी बरतनी चाहिये, क्या पता यह सिगरेट उसकी आखिरी सिगरेट हो" (Be nice to ones who smoke...every cigarette might be their last) लेकिन हमारी उत्तर प्रदेश की मुलायम सरकार जाने क्यो राज्य के शिक्षको के पीछे पड़ी है, बोलती है कि स्कूल मे धूम्रपान करना और गुटखा,पान, पान मसाला खाना मना है.क्योकि इससे छात्रो पर बुरा असर पड़ता है, सही बात है, यूँ तो धूम्रपान बन्द कराना बहुत ही अच्छी बात है, लेकिन शिक्षको का तर्क है कि किसी भी चीज पर रोक तभी सम्भव है, जब दोनो पक्ष इस पर सहमत हो, फिर उनका कहना है कि सिर्फ हम पर ही क्यो, क्या विधान सभा मे पान,पान मसाला,गुटखा और धूम्रपान पर रोक है? क्या कानून बनाने वालो को तम्बाकू और सिगरेट नुकसान नही पहुँचाता?

बात तो वाजिब है, कहिये मुलायम सिंह जी, क्या जवाब है आपका?

Monday, September 27, 2004

पवार की पलटी

नेता वही सही जो पलटी खाने मे उस्ताद हो, बोलो और मुकर जाओ,बोलने मे क्या जाता है.अब शरद पवार को ही ले, अभी दो दिन पहले NDTV को दिये अपने इन्टरव्यू मे साफ साफ बोले कि अगर सोनिया गांधी प्रधानमन्त्री बनती तो वे मन्त्रिमंडल मे नही रहते. कल फिर पलटी खा गये ,बोले सोनिया गांधी के प्रधानमन्त्री बनने मे राकापा को कोई आपत्ति नही थी, सोनिया चुनी हुई नेता है... फिर लगे सोनिया का गुणगान करने. वही त्याग की प्रतिमूर्ति वगैरहा वगैरहा.... वैसे तो यह सब सुन सुन कर तो कान पक गये है.

शरद पवार का यह पलटना कोई नया नही है, कांग्रेस से उनके रिश्ते कभी खट्टे और कभी मीठे रहे है. क्या पता कल फिर पलट जाये.पुराने जमाने मे नेता जो बोलते थे, और जब अगले दिन अखबार छापते थे, तो नेता के लिये पलटी मारना आसान होता था कह देते थे कि खबर मनगढंत है, कोई सबूत तो होता नही था.लेकिन आजकल के आधुनिक युग मे नेता का इन्टरव्यू बाकायदा रिकार्ड होता है और टी.वी. पर दिखाया जाता है, तो बेचारो के पास खबर को गलत कहने का कोई आधार भी नही रहता. बेचारे नेताजी.

लेकिन शरद पवार वैसे राजनेता नही जो बयानबाजी मे गलती कर जाये, वो यकीनन कोई नया खेल, खेल रहे है, अब ये क्या खेल है, यह तो वक्त ही बतायेगा.

Sunday, September 26, 2004

भाई के भाई का चुनाव को Bye Bye

आज का दिन काफी अच्छा है, जो सुबह सुबह यह खबर पढी, कि दाउद भाई के छोटे भाई इकबाल कास्कर जो मुंबई जेल मे है, और उमरखाड़ी से महाराष्ट्र विधान सभा चुनाव लड़ रहे थे, ने अपना पर्चा वापस ले लिया. अब क्यो लिया ये तो वो ही जाने, लेकिन सही समय पर उन्होने अपनी आत्मा की आवाज सुनी शायद.

मै उनके निर्णय का तहे दिल से स्वागत करता हूँ.अच्छा ही हुआ, कही वो चुनाव जीत जाते, मन्त्री बन जाते तो.. सरकार जो जवाब देना मुश्किल होता.

काश हमारे कुछ राजनेता भी ऐसा कर पाते, तो हमे उनको झेलना ना पड़ता.

सबसे अच्छी नौकरी

मेरे एक पुराने मित्र है, सरकारी मुलाजिम है, पिछले १५ वर्षो से, एकदम ईमानदार,हालांकि ईमानदारी की भारी कीमत चुकायी है उन्होने, जल्दी जल्दी ट्रान्सफर मिला ,पत्नी छोड़ कर जा चुकी है, बेटे अब उतना सम्मान नही देते, जेब हमेशा खाली,महीने के आखिर मे मिल जाओ तो पैसे उधार मांग बैठे, दोस्त यार मानने को तैयार नही कि वे सरकारी मुलाजिम है, ऊपर से तुर्रा ये कि गाहे बगाहे किसी दूसरे के किये की सजा उन्हे मिलती है.लेकिन उन्होने नैतिकता का साथ कभी नही छोड़ा.हमेशा ईमानदारी के पक्षधर रहे.

अचानक फोन पर प्रकट हूए, पशचाताप करते हूए बोले, यार मैने अपने जीवन के १५ साल खराब कर दिये, नाहक ही इतनी समस्याओ का सामना किया. मै बोला हुजूर, यह ह्रदय परिवर्तन क्यो? बोले यह सब उस दया निधान की कृपा है जो उसने मेरे चछु खोले दिये. जब हमने तफ्शीश की तो पाया,दरअसल उन्होने टी.वी. पर थाणे के Excise Commissioner, पी.के.आजवाणी के घर से बरामद नोटो की गिनती देख ली थी. इस एक घटना ने उनका जीवन भर की ईमानदारी को हवा कर दिया.

उनका क्या किसी का भी दिल डोल जाये....... यह सब देख कर मै भी सोचता हूँ, नाहक ही कम्पयूटर मे आँखे गड़ाये रहे, शहर छोड़ा,देश छोड़ा, दुसरे देश मे बी क्लास सिटिजन बने,चश्मा लगा सो अलग से, सही समय पर Excise विभाग मे नौकरी कर ली होती तो पुरखे तो पुरखे आने वाली पीढी भी तर जाती.आजीवन अगर ना पकड़े जाते तो, आने वाली पीढी हमारी ईमानदारी के कसीदे पढ रही होती, अगर पकड़े जाते तो...........अब तक हमारे नाम से पल्ला झाड़ चुकी होती... किसको परवाह है, माल तो मिलता.

हर १० दिन बाद हम किसी ना किसी सरकारी कर्मचारी के यहाँ छापे की खबर पढते है, खूब सारा माल निकलता है, जिसके यहा छापा पड़ता है, वो अचानक बीमार हो जाता है,अस्पताल मे भर्ती होता है, नौकरी जाती है ,गिरफ्तार होता है, जमानत होती है,सालो केस चलता है, हारे या जीते,सब भूल जाते है,फिर.........................फिर वो चुनाव लड़ता है, भ्रष्टाचार हटाने की बात करता है, जीत जाता है..... लोग उसकी जीवनी से प्रेरित होते है.... और उसके जैसे सैकड़ो पैदा होते है.

यह कहानी कई बार दोहरायी जाती है, जनता जो सब जानती बूझती है, फिर भी फंस जाती है. आखिर ऐसा क्यो है? क्यो हम सरकारी नौकरो पर लगाम नही लगा सकते, क्यो हम हर काम के लिये घूस देते है, क्यो हम ऐसी संस्कृति को बढावा देते हे.

मै जानता हूँ, जवाब हम मे से किसी के भी पास नही है.........

मुशर्रफ मनमोहन मैच

जहाँ एक तरफ ICC ट्रोफी के मैच बदमजा हो गये थे, वही दूसरी तरफ एक और मैच शुरू हो चुका था, जी हाँ मुशर्रफ मनमोहन मैच

कभी हा कभी ना.. करते करते आखिर मनमोहन सिंह, राष्ट्रपति परवेज मुशरर्फ से मिल ही लिये, वो भी न्यूयार्क की सरजमी पर. लेकिन दोनो को हासिल क्या हुआ? देखिये पहली मुलाकात मे तो आप सब कुछ नही पा सकते है. ये अन्तर्राष्टीय कूटनीति भी बहुत संयम का काम है, जो संयमी वो ज्यादा फायदे मे. जहाँ तक मुशर्रफ साहब का सवाल है, वो मनमोहन सिंह से ज्यादा चालाक है, इस बार उनको मन की मुराद मिल ही गयी, कश्मीर को मुख्य मुद्दा बना कर, और ऊपर से संयुक्त बयान मे सीमा पार आतंकवाद का कोई जिक्र तक नही है, और तो और कश्मीरियो की इच्छा तक का जिक्र नही है. तो फिर मनमोहन ने क्या पाया? पाया ना... उनके पुराने स्कूल का नाम उनके नाम पर किया गया.... उनके दूसरे क्लास का रिपोर्ट कार्ड बड़े ही करीने से,नफासत के साथ उनको पेश किया गया..(पाकिस्तानी इस काम मे तो माहिर है ही), मनमोहन तो वैसे ही गद् गद् हुए पड़े थे तभी तो संयुक्त बयान को ध्यान से पड़ने का समय नही मिला. लेकिन नटवर सिंह को क्या हो गया था? उनके कूटनीति मे हुए सफेद बालो की कसम, इस बार हम चूक गये. लेकिन इस बार क्या ऊपर(बुश अंकल) से कोई दबाव था? यकीनन.

खैर अब जब मनमोहन सिंह ने मान लिया है कि कश्मीर मे कोई आतंकवाद ही नही है, बस आजादी की लड़ाई है और बस थोड़ा सा सीमा विवाद का मुद्दा है तो हल भी तैयार ही होगा. जैसे शिमला समझौता भारत की कूटनीतिक जीत थी, वैसे ही यह संयुक्त बयान भारत की कूटनीतिक हार है. और पाकिस्तान अपनी इस जीत को हर मंच पर बतायेगा.

चलिये देखते है आगे क्या होता है.

बीजेपी मे उठापटक

आखिरकार उमा भारती की तिरंगा यात्रा समाप्त हो ही गयी. कहते है अन्त भला तो सब भला. तिरंगा यात्रा समाप्त होने पर बीजेपी मे सभी ने राहत की सांस ली.

क्यो भाई? अरे यार उमाजी ने इसलिये कि अटळजी अमृतसर पहुँचे और उनकी यात्रा की कुछ तो इज्जत रही,वैंकयाजी ने इसलिये कि उन्होने उमाजी के कद को ज्यादा बड़ने नही दिया.अटलजी ने इसलिये कि वैंकयाजी के रोकने के बावजूद वे यात्रा के समापन पर पहूँचे. सुषमाजी ने इसलिये कि उनकी अन्डमान यात्रा को ज्यादा महत्व मिला.अब तिरंगा यात्रा तो समाप्त हो गयी लेकिन इसके औचित्य पर वाद विवाद होता ही रहेगा.

एक बात तो साफ दिखी कि अटळजी उमा से खफा थे, उन्होने पूरे समय उमा से बात नही की,लेकिन वे बहुत पुराने राजनेता है, जानते है घर का मैला सड़क पर नही धोया जाता.इसलिये मीडिया को हवा तक नही लगने दी. जाते जाते अटळजी ने उमा को तो नसीहत तो दे ही दी, कि अपनी महत्वाकान्क्षा को अपने वश मे रखे.

लेकिन बीजेपी मे बाकी लोगो को कौन समझाये.अब प्रमोद महाजन को ही ले, जो महाराष्ट्र मे अज्ञातवास भोग रहे है और जिनका अरूण जेटली से छत्तीस का आँकड़ाँ है, ने फिर अपने खुन्नस निकाली है, इस बार अरूण जेटली को महाराष्ट्र मे चुनाव प्रचार के लिये नही बुलाया गया है, क्यो? अरे भाई , ताकि जीतने पर अरूणजी सफलता मे हिस्सा न बटाँ सके................. लेकिन अगर हार गये तो..........मत बोलिये ऐसा.... प्रमोद महाजन की रातो की नींद वैसे ही गायब है, आप यह सब बोल कर उनका दिन का चैन भी छीन लेना चाहते है?

अभी बात यही पर खत्म नही होती, और भी शीत-युद्द चल रहे है बीजेपी मे.... राजनाथ Vs कल्याण,लालजी टन्डन Vs विनय कटियार,जोशी Vs अडवानी और गिनाने के लिये भी बहुत कुछ है, लेकिन फिर कभी...

बीजेपी जो कहती थी, कि हमारी पार्टी सबसे अलग है... अब कांन्ग्रेस के नक्शे कदम पर चल रही है.. वही गुटबाजी, वही शक्ति प्रदर्शन और वही टाँग खिचाई. भगवान भला करे भारतीय मतदाता का.. सचमुच उसके पास कोई च्वाइस नही है.

धन्यवाद

मै "हिन्दी चिट्ठाकारो की जालमुद्रिका" का ह्रार्दिक आभारी हूँ, विशेषकर श्री देवाशीष जी का, जिन्होने मेरे चिट्ठे को इस समुह के योग्य समझा.हिन्दी चिट्ठाकारो की जालमुद्रिका समुह के सभी साथियो से मेरा निवेदन है कि समय समय पर मेरा मार्गदर्शन करते रहे, और मेरी गलतियो के लिये मेरा कान खीचते रहे,ताकि मेरे जैसा नया लेखक भी किसी दिन उन जैसा बन सके.

मेरे दूसरे मित्र जो "हिन्दी चिट्ठाकारो की जालमुद्रिका" से वाकिफ नही है, उनको मै बताना चाहूँगा कि "हिन्दी चिट्ठाकारो की जालमुद्रिका" हिन्दी मे लिखने वाले, मेरे से ज्यादा योग्य और अनुभवी लेखको का समुह है.इनकी रचनाओ का आनन्द लेने के लिये आप मेरे पन्ने के आखिर मे दिये लिन्क का प्रयोग करे.

आशा है आपको इन सभी की रचनाये पसन्द आयेंगी. और हाँ मेरे पन्ने को भूलियेगा मत.

Thursday, September 23, 2004

फायरफाक्स

इसी हफ्ते फायरफाक्स (http://texturizer.net/firefox/) का नया वर्जन इन्टरनेट पर आया है. इस वर्जन मे कुछ बेहतर खूबिया है. जो मित्र अभी तक माइक्रोसाफ्ट का इन्टरनेट एक्सप्लोरर प्रयोग कर रहे है, उनसे निवेदन है कि कृपया करके फायरफाक्स की विशेषताओ वाले पन्ने (http://texturizer.net/firefox/features.html) पर जाये.
फायरफाक्स की सबसे बड़ी बात कि यह तीव्र है,निःशुल्क है,सुरक्षित है, और इसके लिये बहुत सारे विस्तारक (Extensions) भी उपलब्ध है, निःशुल्क? और नही तो क्या.
तो इससे अच्छी बात और क्या होगी.आज ही फायरफाक्स डाउनलोड करे.( http://texturizer.net/firefox/download.html ) यह सभी प्रकार के आपरेटिंग सिस्टम पर उपलब्ध है.
फिर जब आप अगली बार मेरी साइट पर आये तो फायरफाक्स, प्रयोग करे. तब हम इसकी नई विशेषताए के बारे मे बात करेंगे.

सपने, संताप और सवाल

राजेश प्रियदर्शी का यह लेख मुझे बहुत पसन्द आयाः यह लेख वैसे तो यूरोप मे रह रहे अप्रवासी भारतीयो के लिये लिखा गया है, लेकिन सभी पर लागू होता है.

सपने
अच्छी नौकरी, पाउंड को रूपए में बदलें तो डेढ़ लाख रूपए के क़रीब तनख़्वाह. लंदन शहर की ख़ूबसूरती, यूरोप घूमने के मज़े.
धूल नहीं, मच्छर नहीं, सभ्य-सुसंस्कृत लोग. चौकस पुलिस, आसान ट्रैफ़िक, हफ़्ते में दो दिन पक्की छुट्टी, आठ घंटे काम, बेहतर माहौल.
चार साल रहने के बाद ब्रिटेन में रहने का पक्का इंतज़ाम, अपनी गाड़ी, अपना घर और एनआरआई स्टेटस.
देश में इज़्ज़त बढ़ेगी, भाई-बंधुओं को भी धीरे-धीरे लाया जा सकता है, अगर कभी लौटे बेहतर नौकरी मिलना तय है.
पानी, बिजली, फ़ोन का बिल भरने के लिए लाइन में लगने की ज़रूरत नहीं, भ्रष्टाचार और संकीर्ण दिमाग़ वाले लोगों से मुक्ति.

संताप
आज तक किसी अँगरेज़ ने दोस्त नहीं माना, किसी ने घर नहीं बुलाया, हैलो, हाउ आर यू, सी यू के आगे बात न कोई करता है, न सुनता है. मुसीबत पड़ने पर पड़ोसी भी काम नहीं आता.
हर साल भारत जाना मुश्किल है, प्लेन का किराया कितना ज़्यादा है, माँ बीमार है. फ़ोन का बिल भी बहुत आता है.
लोग चमड़ी का रंग देखकर बर्ताव करते हैं, शरणार्थी समझते हैं, बीमार पड़ने पर डॉक्टर बीस दिन बाद का अप्वाइंटमेंट देता है और मरने पर फ्यूनरल दो हफ्ते बाद होता है.
रोज़ बर्तन धोना पड़ता है, हर संडे को वैक्युम क्लीनर चलाना पड़ता है, नौकर और ड्राइवर तो भूल ही जाओ.
मँहगाई कितनी है, कुछ बचता ही नहीं है, कोई चीज़ ख़राब हो जाए तो मरम्मत भी नहीं होती, सीधे फेंकना पड़ता है, प्लंबर पत्रकार से ज़्यादा कमाता है. आधी कमाई टैक्स में जाती है.
बच्चों के बिगड़ने का भारी ख़तरा, ड्रग्स, पोर्नोगार्फ़ी. बच्चे अपनी भाषा नहीं बोलते, ख़ुद को अँगरेज़ समझते हैं. चार अक्षर वाली गाली देते हैं जो 'एफ़' से शुरू होकर 'के' पर ख़त्म होती है.
ऐसा क्या है जो भारत में नहीं मिलता, गोलगप्पे और रसगुल्ले खाए बरसों बीत गए. धनिया पत्ता और हरी मिर्ची के लिए भटकना पड़ता है.
त्यौहार आते हैं और चले जाते हैं, पता तक नहीं चलता, पूजा कराने के लिए पंडित नहीं मिलता. गोबर, केले और आम के पत्ते के बिना भी कहीं पूजा होती, फ्लैट में हवन करो तो फायर अलार्म बज जाए.

सवाल

क्या कभी भारत लौट पाएँगे, क्या बच्चे वहाँ एडजस्ट करेंगे, हमें कहीं बहुत सुख सुविधा की आदत तो नहीं पड़ गई?

मैं तो चला जाऊँगा, घर के बाक़ी लोगों को कैसे मनाऊँगा, बसा-बसाया घर उजाड़ना कहीं ग़लत फैसला तो नहीं?

जीवन सुरक्षित नहीं, भ्रष्टाचार बहुत है, दंगे भड़कते रहते हैं, आदत छूट गई है, कैसे झेलेंगे यह सब?

लोग पहले बहुत मदद करते थे, दिल्ली, मुंबई का जीवन अब कुछ कम व्यस्त तो नहीं, लोग पहले जैसे कहाँ रहे?

दिक्क़तें यहाँ भी हैं, वहाँ भी, चलो जहाँ हैं वहीं ठीक हैं, फिर कभी सोचेंगे

खाड़ी के प्रवासी भारतीयों की समस्याये

खाड़ी के देशों में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की देश से सौतेले बर्ताव की शिकायत यूँ ही नहीं है. उनका कहना है कि जहाज़ के किराए का मसला हो या हवाई अड्डे पर जाँच का हर जगह उन्हें परेशानी उठानी पड़ रही है.

एक अनुमान के अनुसार खाड़ी देशों में रह रहे लगभग 35 लाख भारतीयों में से ज़्यादातर की आमदनी 300 डॉलर प्रति माह से अधिक नहीं है. इसके बावजूद यहाँ से भारत की उड़ान का किराया सबसे अधिक किरायों में से एक है.
प्रवासी दिवस में प्रवासी भारतीय पुरस्कार से सम्मानित ओमान के जाने-माने व्यापारी डॉक्टर पी मोहम्मद अली इन नागरिकों की भावनाओं को आवाज़ देते हुए कहते हैं, "ऐसा क्यों है कि कोलंबो होते हुए केरल जाना और कराची होते हुए मुंबई जाना ज़्यादा सस्ता है जबकि एयर इंडिया की सीधी उड़ानें कहीं महँगी हैं."

खाड़ी के देशो से भारत के लिये बजट एयरलाइंस और शिपंग सेवा आरम्भ होनी चाहिये, सच तो यह है कि प्रवासी भारतीयों के बारे में फ़ैसले वे लोग ले रहे हैं जिन्हें प्रवासी भारतीयो की समस्याओ के बारे में कुछ पता ही नहीं है

इतनी ही नहीं खाड़ी के देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों की माँग ये भी है कि उन्हें चुनाव में हिस्सेदारी मिले और संसद में प्रवासी भारतीयों का भी प्रतिनिधित्व हो. मगर इन माँगों पर भी ध्यान नहीं दिया गया.

डॉक्टर अली के अनुसार, "छोटे से छोटा श्रमिक देश के लिए एक आर्थिक सिपाही जैसा होता है और उसके हितों की रक्षा होनी चाहिए. फिर चाहे वो देश में हो या देश से बाहर."
दरअसल खाड़ी के देशों में रह रहे प्रवासियों को वहाँ की नागरिकता नहीं मिलती इसलिए उन्हें कभी न कभी लौटकर आना ही होता है. इसलिए इन लोगों की माँग है कि देश को इन्हें ख़ुद से अलग नहीं समझना चाहिए.

किराए के अलावा डॉक्टर अली कहते हैं कि कई स्तरों पर खाड़ी के देशों में रह रहे प्रवासी भारतीयों का शोषण होता है. वह कहते हैं, "खाड़ी देश के प्रवासी के साथ उसके यहाँ आने से पहले ही शोषण शुरू हो जाता है. सब उससे पैसा ऐंठना चाहते हैं. यहाँ तक कि जब वो अपने देश लौटता है तब भी हवाई अड्डे पर उतरने पर भी.

आशा है इस वर्ष के प्रवासी भारतीय दिवस मे इन समस्याओ पर ध्यान दिया जायेगा.

( साभार : BBCHindi.com)

हिन्दी मे ब्लाग

हिन्दी मे ब्लाग
मेरे कुछ मित्रो ने पूछा है कि आप हिन्दी मे लिखने के लिये कौन सा साफ्टवेयर प्रयोग करते है?
मै हिन्दी मे लिखने के लिये तख्ती ( http://www.geocities.com/hanu_man_ji/ ) का प्रयोग करता हूँ. यह साफ्टवेयर बहुत ही आसान है. आप जैसे अंग्रेजी मे लिखते है, ठीक वैसे ही आप हिन्दी मे भी लिख सकते है. और तो और आप हिन्दी मे email पत्राचार भी कर सकते है.

इसके अतिरिक्त आप गूगल मे खोज सकते है, अथवा यहाँ क्लिक करे.
http://www.google.co.in/search?ie=UTF-8&oe=UTF-8&sourceid=deskbar&q=%22%E0%A4%B9%E0%A4%BF%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%80%22

अंग्रेजी ने वैब पर बहुत दिन राज कर लिया, अब हिन्दी की बारी है. आइये हम प्रण करे कि हम हिन्दी को अपने email पत्राचार की भाषा बनायेंगे.

जय हिन्द

उमा दीदी का रूठना

अब लो.. उमा दीदी फिर रूठ गयी. बोलती है तिरन्गा यात्रा के बाद राजनीति से सन्यास ले लेंगी. ये भी कोई बात हूई, माना कि आपकी तिरन्गा यात्रा को इतना भाव नही मिल रहा है,राज्यो की बीजेपी इकाईया आपके स्वागत मे पलके नही बिछा रही, आपके चहेते प्रहलाद पटेल का टिकट कट गया है, ऊपर से वैंकया नायडू से भी मामला छत्तीस का हो रहा है और सुषमा स्वराज भी मौका तलाश रही है, मुख्यमन्त्री पद बलिदान हो गया सो अलग से....लेकिन आपको ऐसा नही बोलना चाहिये था.. महाराष्ट्र के चुनाव सर पर है..(वैसे भी चुनाव मुद्दो का टोटा है), लालू के गाँव मे भी चुनाव जल्दी होने है.. इसलिये अभी नाराज होने का समय नही है.. कम से कम बीजेपी का तो सोचो.

लेकिन दीदी क्या करे? नाराज होने की पारिवारिक प्रथा है.. भइया स्वामी प्रसाद लोधी को ही ले.... हर दो तीन दिन मे नाराज हो जाते है...और दीदी के लिये मुसीबत खड़ी कर देते है.अब दीदी की नाराजगी से भाजपा के लिये तो सरदर्द पैदा हो ही गया है.

अन्तिम समाचार मिलने तक.....प्रहलाद पटेल ने पर्चा दाखिल कर दिया है,भाजपा की तरफ से सीजफायर जैसा बयान दिया गया...

और ये क्या... दीदी फिर पलटी खा गयी.... बोली सन्यास की तो बात ही नही कही थी...मै तो २ साल के लिये भारत भ्रमण की बात कर रही थी..


तभी तो कहते है... राजनीति मे कुछ भी हो सकता है..

क्रिकेट का अर्धकुम्भ

क्या आप जानते है? न्यूजीलैन्ड,भारत,आस्ट्रैलिया,भारत और पाकिस्तान मे क्या समान है.ये सारी अच्छी क्रिकेट खेलने वाली टीमे है और ये सारी क्रिकेट के मिनी विश्व कप, यानि ICC चैम्पियन ट्राफी से बाहर हो गयी है, अब फाइनल मेजबान इंगलैन्ड और वेस्टइन्डीज के बीच शनिवार को खेला जायेगा.

अव्वल तो मेरे को चैम्पियन ट्राफी का पैटर्न ही नही समझ आता,जहाँ एक मैच हारे नही कि प्रतियोगिता से बाहर हो गये,दूसरे इस समय इंगलैन्ड मे, जहाँ मौसम का पल पल का पता नही चलता, कराने का औचित्य नही था. खैर अब जो होना था वो तो हो गया, अब देखे फाइनल मे कौन बाजी मारता है?

Wednesday, September 22, 2004

मुशर्रफ कहिन

पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ ने कहा है कि अगर अमेरिका इस्राइली-फिलिस्तीनी विवाद और दुनिया के अन्य राजनीतिक विवादों पर ध्यान नहीं देगा तो वह आतंकवाद के खिलाफ युद्ध हार सकता है, जनरल मुशर्रफ ने कहा कि मुसलमानों को लगता है कि उनके धर्म को निशाना बनाया जा रहा है, खासकर इसलिए कि वॉशिंगटन फिलिस्तीनी हितों के बजाय इस्राइल को मजबूत समर्थन दे रहा है.

क्या बात है जनरल साहब, बुश ने इस बार कोई चीज देने से मना तो नही कर दिया? वैसे परवेज़ मुशर्रफ, संयुक्त राष्ट्र मे कश्मीर मुद्दा उठाने के लिये जमीन तैयार कर रहे है.

सुरक्षा परिषदःभारत की दावेदारी

चलो भाई, अच्छा ही हुआ, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद मे भारत ने ब्राज़ील, जर्मनी और जापान के साथ मिलकर संयुक्त रूप से अपनी दावेदारी पेश की. जहाँ तक पाकिस्तान का सवाल है, उसे एतराज होना था, सो उन्होने किया. अब देखने वाली बात ये होगी कि अमरीका का इस मामले पर क्या रूख होता है.भारत को रूस,ब्रिटेन और फ्राँन्स का सहयोग तो मिलेगा, रही बात चीन की, उसका एतराज तो जग जाहिर है.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव कोफ़ी अन्नान भी सुरक्षा परिषद को और प्रभावकारी बनाने के लिए इसके विस्तार के पक्षधर रहे हैं.भारत हमेशा से ही इसके विस्तार के समर्थन मे था, जँहा तक मै समझता हूँ, इस बार स्थितिया अनुकूल है, बस कश्मीर का मसला आड़े आ सकता है.

देखते है ऊंट किस करवट बैठता है.

गूगल मेल

गूगल मेल
मेरे जिन मित्रो को Google Mail (Gmail) का निमन्त्रण न मिला हो, कृपया jitu9968@gmail.com पर सम्पर्क करे.
Gmail, एक निशुल्क अच्छी मेल सेवा है... अभी तक मेरा अनुभव तो यही कहता है. अब तो गूगल मेल पर लागिन किये बिना ही नई मेल की सूचना पाई जा सकती है. बस गूगल की साइट से यह साफ्टवेयर डाउनलोड करे.
http://toolbar.google.com/gmail-helper/

और अपने गूगल मेल का भरपूर प्रयोग करे.

Tuesday, September 21, 2004

किस्सा ए़ टेलीविजन धारावाहिक

क्या आपने टेलीवजन पर हिन्दी धारावाहिक देखे है, देख कर दिमाग का दही हो जाता है. पता नही क्या सोच कर ये सीरियल बनाये जाते है.जरा बानगी देखिये....

  • एक की पत्नी दूसरे के साथ चक्कर चला रही है,दूसरी क्यो पीछे रहे वो पहली के पति और ससूर दोनो के साथ,एक ही समय पर, चक्कर चला रही है.
  • किसी पात्र को नही पता उसका असली बाप कौन है?
  • जो पात्र १ साल पहले मर गया था,और फिर पिछले महीने जिन्दा हो गया था, अब आखिरकार इस हफ्ते मर गया. कोई गारन्टी नही कल फिर लौट आये. (बोलो बालाजी टेलि फिल्मस वाली एकता माता की जय)
  • अगर आपने २ या ३ हफ्ते सीरियल नही देखा, तो आप पहचान ही नही पायेंगे कि कौन किसका बाप है.
  • जहाँ TRP गिरी नही कि कहानी बीस साल आगे खिसक जाती है.....दर्शको को समझ आये ना आये उनकी बला से.

मै क्या कोई भी नही समझ पा रहा है कि ये सीरियल वाले दिखाना क्या चाहते है,उनको भारतीय संस्कृति से कुछ लेना देना नही..चैनल वालो को तो बस क्रीम तेल साबुन के विज्ञापनो से मतलब है,सीरियल वालो को सस्ती लोकप्रियता से,कलाकारो को मेहनताने से, और दर्शक.. वो जाये भाड़ मे.... अवैध रिश्ते दिखाने के लिये कहानी की मा..बहन... की जा रही है, उनको तोड़ा मरोड़ा जा रहा है.कहानी लिखने वाले भी न जाने कौन सा धतूरा खा कर लिखते है, कहानी है कि च्युन्ग‍-गम की तरह खिंचती ही जा रही है.

मेरे एक अध्यापक मित्र ,जो एक स्कूल मे पढाते है,बढे परेशान दिखे बोले..कल उन्होने क्लास मे दो बच्चो की बातचीत को सुना, जो पिछली रात के सीरियल के बारे मे बात कर रहे थे.जो शब्द बच्चो ने प्रयोग किये, यदि मै यहाँ लिखूंगा तो ये ब्लाग अश्लील साहित्य की श्रेणी मे आ जायेगा.लेकिन हम किसे दोष दे? उन मासूम बच्चो को जो दर्पण के समान है.. या उनके माता पिता को? ...सीरियल बनाने वालो को ? .... या टी.वी.चैनल वालो को ?

टी.वी.चैनल वाले बोलते है की जो सीरियल निर्माता बनाते है, हम वही दिखाते है.. निर्माता बोलते है, जो जनता पसन्द करती है,हम वही दिखाते है... जनता कहती है कि हम लोग खुद परेशान है.. आखिर कितनी बार चैनल बदले..हर जगह यही सब दिखाया जा रहा है, फिर मनोरंजन का कोई और साधन भी तो नही है

हर व्यक्ति अपना पल्ला झाड़ रहा है,कोई भी नही सोचता जो बच्चे स्कूल मे बात कर रहे थे, वो आपके बच्चे भी हो सकते है.

आप क्या सोचते है इस बारे मे ?

प्रेरणा

मेरे कुछ मित्रो ने पूछा है कि मेरे को चिट्ठा(Blog) लिखने का शौक क्यो चर्राया, क्या पहले से चिट्ठा लिखने वाले कम थे जो आप भी कूद गये. मेरा उनसे निवेदन है कि इस कहानी को जरूर पढे.

मैने सुना है बंगाल मे एक समाजसेवी हुए, उनका नाम राजाबाबू था, पेशे से हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश थे. सुबह के वक्त घूमने का बड़ा शौक था. आदत के मुताबिक एक दिन वो घूमने निकले, एक मकान के पास से गुजरे, अचानक उनके कानो मे एक आवाज सुनाई दी, आवाज किसी स्त्री की थी, जो अपने बेटे को नींद से उठा रही थी, उसे यह भी नही पता था कि बाहर कोई राजाबाबू उसकी बात सून रहा है,वह अपने बेटे को बोली..."उठो राजाबाबू उठो, बहुत देर हो गयी है, देखो सूरज निकल आया है, कब तक सोते रहोगे? अगर यूँ ही सोते रहे तो बहुत देर हो जायेगी"
बाहर से गुजर रहे राजाबाबू के ह्रदय पर इस बात का बहुत असर हुआ, उन्होने दरवाजे को नमस्कार किया और मन ही मन उस स्त्री का धन्यवाद किया, जिससे उनको अकस्मात ही प्रेरणा मिली.उस दिन से राजाबाबू ने समाजसेवा को ही अपना धर्म मान लिया और समाजकल्याण मे तन मन और धन से जुट गये.

कहने का मतलब है, इन्सान को प्रेरणा, कभी भी कही से भी मिल सकती है, बस आवश्यकता है तो सिर्फ दिल की आवाज सुनने की और उपयुक्त मौके की.
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ, जिससे मुझे चिट्ठा लिखने की प्रेरणा मिली.अब मै कहाँ तक सफल हो पाया हूँ, आप ही बता सकते है

Monday, September 20, 2004

यू.पी.ए.सरकार : सौ दिन का लेखा जोखा

इस लोकसभा चुनाव मे सत्ता हासिल करने के लिये कांग्रेस को तेलगू देशम,जयललिता और समाजवादी पार्टी का धन्यवाद करना चाहिये.

फिर बारी आई त्याग एवम समर्पण के नाटक की, (कम से कम मै तो इसे नाटक ही कहूँगा, आप क्या कहेंगे आप जाने.)

कांग्रेस ने चुनाव के पहले आम आदमी के बारे मे बहुत कहा था, लेकिन सत्ता मे आने के बाद, कांग्रेस अभी तक आम आदमी को ढूंढ नही सकी है,इसलिये विकास की तो दूर की बात है. वैसे भी बहुत से गम है जमाने मे विकास के सिवा.... (चचा गालिब बेअदबी के लिये माफ करे..)
आइये कुछ नजर यू.पी.ए. सरकार के मंत्रियो के कार्यो पर डाले.

संसद अखाड़ा बन गयी है, बेचारे गुलाम नबी आजाद समझ नही पा रहे है, किसे दोष दे.
अर्जुन सिंह अभी बदले चुकाने मे लगे है, और बताने मे लागे है कि हमसे Secular कौन?
चिदम्बरम जी ने तो दिखा दिया कि इस बार ज्यादा उम्मीद मत रखे.
नटवर सिंह (नाट अवैयर सिंह),इराक मे बन्धक बनाये गये भारतीयो पर सुबह शाम बयान बदलते रहे, धन्यवाद हो
के.जी.एल. कम्पनी का,जिसने पैसे(सौरी डालर) देकर भारतीयो को छुड़ाया, लेकिन
क्रेडिट लेने के समय नटवर सिंह आगे जरुर आये.
ळालू यादव अभी बयानबाजी मे ही व्यस्त है. ज्यादा कहना सूरज को दिया दिखाना है.
मणिशंकर अय्यर पहले ही महाराष्ट मे मुसीबत खङी कर चुके है.
तस्लीमुद्दीन वगैरहा पर लिखने के लिये मेरे पास समय ही नही है,फिर कभी सही.
बचे बेचारे मनमोहन सिंह जी, सही आदमी गलत जगह पर, अभी मैडम ने कुछ करने की अनुमति नही दी है.

इस सरकार मे चार चार PM है....
PM: मनमोहन सिंह जी : जो सिर्फ सुनते है
Super PM: मैडम सोनिया :जो सिर्फ हुक्म सुनाती है
Virtual PM: CPM :जो जल्दी ही सुनाने वाले है.
Ultra PM :ळालू यादव :जो किसी की नही सुनता

सरकार के आधे से ज्यादा मंत्री ,मनमोहन सिंह जी को रिपोर्ट नही करते,जो करते है, बात नही मानते.
बहुत से मसले जैसे पंजाब सरकार का बिल,मणिपुर स्थिति, अरूणाचल प्रदेश समस्या,सावरकर मुद्दा आदि, पर सरकार का रुख स्पष्ट नही है.
मंहगाई अपने उच्चतम स्तर पर जा पहुँची है,
इस पर आप की क्या राय है, जरूर लिखियेगा...................................
इन्तजार मे........................................ जितेन्दर चौधरी.

जनसंख्या

जनसंख्या समस्या और सुझाव


भारत मे जनसंख्या बढ रही है, कोई अनोखी बात नही है.हर १० वर्षौ मे जनगणना होती है, अखबार इस बारे मे लिखते है, सरकार दावा करती है कि उसके कार्यकाल मे जनसंख्या नही बड़ी, बुद्दिजीवी लोग चर्चा करते है, सेमिनार करते है, टेलिवजन वाले सबको बुला बुला कर लड़वाते है, लोगो को SMS करने को बोलते है, विरोधी पानी पी पी कर सरकार को कोसते है, सरकार नयी नयी घोषणाये करती है और आशा करती है कि बिना कुछ किये जनसंख्या नियंत्रण मे आ जायेगी. बड़े शर्म की बात है कि कोई भी राजनीतिक दल मूल समस्या के प्रति गम्भीर नही है, सबको अपने अपने वोट बैंक की चिन्ता है.
मेरे पास कुछ सुझाव है, मेरे को पता है ये सुझाव सरकार नही मानेगी, इसलिये Blog पर लिख रहा हूँ.

  • नेता समाज और जनता का प्रतिनिधित्व करते है. अतः जनसंख्या का समाधान उनसे ही शुरू होना चाहिये. अगर किसी MLA/MP के 2 से ज्यादा बच्चे है, तो उनको चुनाव नही लड़ना चाहिये, (जो घर का नही सोच सका,वो देश का क्या सोचेगा?)
  • अगर MLA/MP बन गये है तो या मन्त्री नही बनने चाहिये अन्यथा या तो पद छोड़े अथवा पद से मिलने वाला वेतन और सुविधाये.
  • एक बच्चे वाली महिलाऔ के लिये विशेष योजना और नकद पारितोषक का प्रबन्ध होना चाहिये. सामान्य जन सुविधाऔ मे आरछ्ण भी दिया जा सकता है.
  • समाज के पिछड़े वर्गो मे बड़ती जनसंख्या के प्रति जागरूकता लानी चाहिये. सिनेमा और टी.वी. इसके लिये अच्छा माध्यम हो सकते है.
  • ज्यादा बच्चे वालो पर कोई अप्रत्यछ करॆ अथवा दन्ड लगाया जा सकता है

जनसंख्या का समाधान तब तक नही हो सकता, जब तक हम अपनी जिम्मेदारी नही समझेंगे.अभी भी समय है, हम चेते, अन्यथा आने वाली पीढी हमे कभी माफ नही करेगी.

इस बारे मे आपकी क्या राय है?