Thursday, September 30, 2004

बीसीसीआई चुनाव

इस घटनाक्रम मे सभी लटके झटके है.प्यार,एक्शन,ड्रामा,राजनीति,वफादारी,छल और खेल भावना,सभी कुछ है.जी हाँ मै बीसीसीआई यानी देश के क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चुनाव की बात कर रहा हूँ.इस बारे मे बात करने से पहले मै आपको बीसीसीआई अध्यक्ष पद के महत्व के बारे मे बताना चाहुँगा.

भारत मे क्रिकेट सबसे लोकप्रिय खेल है,सो खेल से जुड़े बोर्ड को कमाई भी बहुत होती होगी, कुछ साल पहले तक तो नही, भला हो जगमोहन डालमिया का जो उन्होने घाटे मे चल रहे बोर्ड को करोड़ो के मुनाफे मे ला दिया.कैसे? अब मेरे से क्या पूछते हो.. डालमिया से मिलो.आज बोर्ड करोड़ो रूपये के नकद सरप्लस पर बैठा है.पैसे से ज्यादा अध्यक्ष पद का रुतबा है.यही कारण है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक सभी राजनेता इस पद पर बैंठने के लिये लालायित रहते है.

डालमिया बोर्ड से पिछले १५ वर्षो से जुड़े हुए है,नस नस से वाकिफ है.सारे नियम कानून रटे हुए है,सो लगे बोर्ड को अपनी मर्जी से चलाने,जैसे घर की खेती हो. अब भला कोई आदमी १५ साल एक जगह बैठे तो उसे उस जगह से प्यार तो हो ही जाता है, सो उन्हे भी हो गया.लेकिन आपको तो पता ही है, बैरी जमाना प्यार को परवान नही चढने नही देता, सो कहानी मे खलनायक भी आ गये, कौन शरद पवार, नही यार अपने बिन्द्राजी और राजसिंहजी डूंगरपुर.

जब बिन्द्राजी को दिखा कि डालमिया जो अपने काम मे कम बोर्ड के काम मे ज्यादा ध्यान दे रहे है, वो भी फोकट मे, तो उन्होने नजर रखनी शुरू की, ठीक उसी तरह से जैसे एक बाप या चाचा अपनी जवान लड़की के आसपास फटकने वालो पर ध्यान रखता है,खैर जनाब धीरे धीरे दोनो मे पहले तकरार, फिर खटपट होने लगी,कहानी एक फूल दो माली हो गयी.फिर बहार आई,बोर्ड रूपी पार्क मे फूल खिलने लगे.... डालमिया रूपी माली की अच्छी देखभाल ‌‌और विपणन कुशलता के कारण.पार्क की खुशबू फैलने लगी, लोग दूर दूर से आने लगे, माली बनने की अर्जी लेकर.अब जब माली (डालमिया) के जाने का वक्त आया..... जो उसको पसन्द नही था.. तो उसने पार्क के अन्दर ही एक कुटिया की मांग कर दी, मांग मान ली गयी, क्योंकि दूसरे मालियो की ज्यादा नही चली.खैर साहब जब नये माली का चुनाव होने को आया तो , बिन्द्रा साहब ने पवार साहब को साधा और नये माली के चुनाव मे उतार दिया.अब पवार साहब भी बोले बहती गंगा मे हाथ धो ही लिया जाये. पवार साहब का पिछला रिकार्ड बताता है कि हमेशा स्लोग ओवर्स मे विकिट गंवाते है.इधर डालमिया साहब जिनकी अभी कुटिया तैयार नही हूई थी, (लानत पड़े,कुछ मद्रासी लड़को पर जिन्होने नगर निगम मे अर्जी देकर कुटिया बनना रुकवा दिया था),नही चाहते थे कि कोई नया बन्दा आये और उनकी कुटिया को लात मारे, इसलिये उन्होने भी अपना गुर्गा मैदान मे उतार दिया.

खैर जनाब, वो दिन भी आ गया, जब सभी पत्रकार लोग, नेताओ को मंझधार मे छोड़ कर, कोलकता के ताजमहल होटल मे पंहुँच गये, सबको पता था कि ढेर सारा मसाला मिलने वाला है, चैनल और अखबार के लिये. डालमिया और बिन्द्रा, दोनो तरफ के लोगो ने आपसी जबानी जमाखर्च चालू कर रखा था,बोले तो.. अरे यार गालीगलौच और क्या. माहौल वन डे मैच वाला था.. होटल मे मौजूद पुराने पत्रकार कसमे खा खा कर कह रहे थे, कि डालमिया को नीचा दिखाना मुश्किल है, दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी थे, जो शरद पवार के बारे मे पहले से जानते थे बोले कि वो हारने वाला खेल खेलते ही नही.अभी पहले ओवर की पहली गेंद भी नही पड़ी थी कि डालमिया जी ने मैच के एम्पायर को बाहर का रास्ता दिखा दिया, बोले बालिंग के साथ साथ एम्पायरिग भी वही कर लेगे, हमे याद है मौहल्ले मे क्रिकेट खेलते समय हम लोग भी ऐसा ही किया करते थे, कि बाल और बल्ला मेरा तो एम्पारिंग भी मै ही करूंगा, खेलना हो तो खेलो नही तो पतली गली से निकल लो...दूसरे तरफ वाले क्या बोलते, यहाँ तो बल्ला,बाल,विकिट,पिच सभी कुछ डालमिया का ही था.. मैच शुरू हुआ,फिर कई बार बैड लाइट की अपील हुई.. खेल रूका.. चला... फिर रूका..... ये सब तो होता ही रहता है..

आखिरकार दोनो तरफ से स्कोर पंद्रह पंद्रह से बराबरी पर रहा, सभी सोचे. मैच खतम हो गया, लेकिन अपने डालमिया ठहरे पुराने खिलाड़ी, पहले ही तैयार थे, बोले क्योकि मैने अम्पायरिग भी की है.. इसलिये मेरी २ बैटिंग होगी... कोई ऐतराज करता है तो करता रहे... सभी लोग पहले ही ये बात मानने के लिये लिखित अनुमति दे चुके थे... ठीक उसी तरह से जैसे साफ्टवेयर स्थापित करने से पहले स्क्रीन पर जो करार दिखाया जाता है(मैने तो आजतक नही पढा,हमेशा मंजूर है,क्लिक किया) फिर क्या साहब, डालमिया जी ने भी बैटिंग की, और मैच १ रन से जीता.

कुछ लोग (प्रफुल्ल पटेल साहब) जो ड्रेसिग रूम मे थे, उखड़ गये....बोले मैच गलत हुआ, हम दुबारा खेलेंगे.दनादन दो चार टी.वी.वालो को फोन कर दिया. ये तो भला हो पवार साहब का शालीनतापूर्वक अपनी हार स्वीकार कर ली....और करते भी क्या महाराष्ट्र मे चुनाव सर पर है.. कहाँ तक कोर्ट कचहरी करते फिरे... अब डालमिया जी की कुटिया भी बच गयी और दबदबा तो खैर पहले से ज्यादा हो गया.

बिन्द्राजी का क्या हुआ? होगा क्या वही डालमिया के गले मे बांहे डालकर मुस्कराते हुए फोटो खिचवायेंगे.. बोलेंगे सब कुछ लोकतांत्रिक तरीके से हुआ.. और अन्दर ही अन्दर डालमिया के पैरो के नीचे से कालीन खींचने की कोशिश करेंगे.

लेकिन इससे एक बात तो साबित हो ही गयी, क्रिकेट भले ही भद्र लोगो का खेल है, लेकिन क्रिकेट बोर्ड की भद्रता पूरे देश ने देख ली है.

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