मेरे एक पुराने मित्र है, सरकारी मुलाजिम है, पिछले १५ वर्षो से, एकदम ईमानदार,हालांकि ईमानदारी की भारी कीमत चुकायी है उन्होने, जल्दी जल्दी ट्रान्सफर मिला ,पत्नी छोड़ कर जा चुकी है, बेटे अब उतना सम्मान नही देते, जेब हमेशा खाली,महीने के आखिर मे मिल जाओ तो पैसे उधार मांग बैठे, दोस्त यार मानने को तैयार नही कि वे सरकारी मुलाजिम है, ऊपर से तुर्रा ये कि गाहे बगाहे किसी दूसरे के किये की सजा उन्हे मिलती है.लेकिन उन्होने नैतिकता का साथ कभी नही छोड़ा.हमेशा ईमानदारी के पक्षधर रहे.
अचानक फोन पर प्रकट हूए, पशचाताप करते हूए बोले, यार मैने अपने जीवन के १५ साल खराब कर दिये, नाहक ही इतनी समस्याओ का सामना किया. मै बोला हुजूर, यह ह्रदय परिवर्तन क्यो? बोले यह सब उस दया निधान की कृपा है जो उसने मेरे चछु खोले दिये. जब हमने तफ्शीश की तो पाया,दरअसल उन्होने टी.वी. पर थाणे के Excise Commissioner, पी.के.आजवाणी के घर से बरामद नोटो की गिनती देख ली थी. इस एक घटना ने उनका जीवन भर की ईमानदारी को हवा कर दिया.
उनका क्या किसी का भी दिल डोल जाये....... यह सब देख कर मै भी सोचता हूँ, नाहक ही कम्पयूटर मे आँखे गड़ाये रहे, शहर छोड़ा,देश छोड़ा, दुसरे देश मे बी क्लास सिटिजन बने,चश्मा लगा सो अलग से, सही समय पर Excise विभाग मे नौकरी कर ली होती तो पुरखे तो पुरखे आने वाली पीढी भी तर जाती.आजीवन अगर ना पकड़े जाते तो, आने वाली पीढी हमारी ईमानदारी के कसीदे पढ रही होती, अगर पकड़े जाते तो...........अब तक हमारे नाम से पल्ला झाड़ चुकी होती... किसको परवाह है, माल तो मिलता.
हर १० दिन बाद हम किसी ना किसी सरकारी कर्मचारी के यहाँ छापे की खबर पढते है, खूब सारा माल निकलता है, जिसके यहा छापा पड़ता है, वो अचानक बीमार हो जाता है,अस्पताल मे भर्ती होता है, नौकरी जाती है ,गिरफ्तार होता है, जमानत होती है,सालो केस चलता है, हारे या जीते,सब भूल जाते है,फिर.........................फिर वो चुनाव लड़ता है, भ्रष्टाचार हटाने की बात करता है, जीत जाता है..... लोग उसकी जीवनी से प्रेरित होते है.... और उसके जैसे सैकड़ो पैदा होते है.
यह कहानी कई बार दोहरायी जाती है, जनता जो सब जानती बूझती है, फिर भी फंस जाती है. आखिर ऐसा क्यो है? क्यो हम सरकारी नौकरो पर लगाम नही लगा सकते, क्यो हम हर काम के लिये घूस देते है, क्यो हम ऐसी संस्कृति को बढावा देते हे.
मै जानता हूँ, जवाब हम मे से किसी के भी पास नही है.........
Sunday, September 26, 2004
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment