Tuesday, November 16, 2004

क्या है भारतीय संस्कृति?

Akshargram Anugunj
अक्षरग्राम अनुगून्ज
दूसरा आयोजन

कभी कभी मेरे अंग्रेज और अन्य अभारतीय मित्र मेरे से कई तरह के सवाल पूछते है, जैसे हमारी संस्कृति कैसी है, हमारे इतने सारे देवी देवता क्यों है, अगर हम सभी एक जैसे है तो हमारे यहाँ विभिन्न प्रकार की जातिया प्रजातिया क्यों है? वर्ण सिस्टम का क्या महत्व है? और हमारे हर त्योहारों के साथ कोई ना कोई कथा क्यो जुड़ी हुई है? भारत मे इतनी भाषाओ के बावजूद कौन सी चीज लोगो को जोड़े रखती है? जब आप लोग अपने को एक मानते हो तो फिर दंगे फसाद क्यो होते है, आपके धर्म और संस्कृति मे इतने विरोधाभास क्यों है? वगैरहा वगैरहा..... मैने उन्हे समझाने की कुछ कोशिश की है, आइये आप भी देखिये कि मै इसमे कितना सफल हो सका हूँ.

किसी भी देश का अपना इतिहास होता है, परम्परा होती है. यदि हम देश को शरीर माने तो, संस्कृति उसकी आत्मा होती है, या शरीर मे दौड़ने वाला रक्त होता है या फिर सांस.....जो शरीर को चलाने के लिये अतिआवश्यक है. किसी भी संस्कृति में अनेक आदर्श रहते हैं, आदर्श मूल्य है, और मूल्यों का मुख्य संवाहक संस्कृति होती है. भारतीय संस्कृति में मुख्य रूप से चार मूल्यों की प्रधानता दी गयी है - धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष लेकिन कोई भी व्यक्ति इन चारों पुरुषार्थों अथवा मूल्यो को एक ही काल में एक ही साथ चरितार्थ नहीं कर सकता है, क्योंकि व्यक्ति का जीवन सीमित होता है, इसलिए हिन्दू धर्म में वर्णाश्रम व्यवस्था एवं पुनर्जन्म पर बल दिया गया है. वर्णाश्रम व्यवस्था को यदि गुण और कर्म पर आधारित माने तो यह व्यवस्था आज भी अत्यन्त वैज्ञानिक एवं उपादेय प्रतीत होती है. अगर देखा जाय तो यह वर्णाश्रम धर्म ही है इसकी बदौलत ऊँचे से ऊँचे ब्राह्मण पैदा हुए, ब्राह्मणों ने तो अपने लिए धर्म का काम लिया दान देना लेना, विद्या पढ़ना पढ़ाना, क्षत्रियों का कर्तव्य था कि जहाँ जरूरत पड़े वहाँ जान दे लेकिन मान को न जाने दें. वैश्य का कर्तव्य था कि वेद - वेदांग पढ़े और व्यापार करता रहे और शुद्रो को कर्तव्य था कि अन्य सभी कामो को अन्जाम देना. जब शुद्रों को वेद पढ़ने का अधिकार नहीं था तब वेदव्यासजी ने चारों वेदों का अर्थ महाभारत में भर दिया ताकि सब प्राणी लाभ उठा सकें. यह हिन्दू संस्कृति की समानता का एक प्रतीक है.

भारत पर विदेशियो ने अनेक बार आक्रमण किया और हिन्दु संस्कृति को नष्ट करने की कोशिश की,लेकिन वो संस्कृति ही क्या जो मिट जाये, भारत आये अनेक आक्रमणकारियो ने भी माना कि इस देश की संस्कृति को नष्ट करना नामुमकिन है, बल्कि उनमे से कई लोग अपने साथ विभिन्न प्रकार के धर्म और सम्प्रदाय ले आये, और कई यहीं पर बस गये, जिससे गंगा जमुनी संस्कृति का जन्म हुआ,जिसे भारतीय संस्कृति ने बड़ी ही सहनशीलता के साथ स्वीकारा और गले लगाया. विभिन्न वेद शास्त्र हमारी संस्कृति का हिस्सा है, इसके अतिरिक्त भारत की अन्य परम्परायें जैसे अतिथि देवो भवः, सामाजिक आचार व्यवहार,शरणागत रक्षा,सर्वधर्म समभाव,वसुधैव कुटुम्बकम,अनेकता मे एकता जैसी प्रमुख है.

पुराने जमाने से ही हमे समझाया गया है कि घर आया अतिथि भगवान के समान है, हम खुद भले ही भूखे रह जाये,लेकिन अतिथि का पेट भरना जरूरी है.इसी तरह से हमे समाज मे कैसा व्यवहार एवं आचरण करना चाहिये,इसकी शिक्षा हमारी संस्कृति हमे देती है, विभिन्न कहानियो एव लोकोत्तियो के द्वारा, हमे बड़ो की इज्जत करनी चाहिये और छोटो के प्रति स्नेह का आचरण करना चाहिये, एवम महिलाओ और बुजुर्गो के प्रति विशेष सम्मान दिखाना चाहिये.इसके अतिरिक्त शरण मे आये व्यक्ति की रक्षा करना हमारा परम धर्म है.

भारत ही केवल एक ऐसा देश है जहाँ सर्वधर्म समभाव का पूरा पूरा ध्यान रखा गया है, जितनी इज्जत हम अपने धर्म की करते है, उतनी ही इज्जत हमे दूसरो के धर्म की करनी चाहिये.यहाँ सुबह सुबह मंदिर से मन्त्रोचार की ध्वनि,मस्जिद से अजान,गुरूद्वारे से शबद कीर्तन की आवाज और चर्च से प्रार्थना की पुकार एक साथ सुनी जा सकती है.जितनी भाषाये यहाँ बोली जाती है, विश्व मे कहीं और नही बोली जाती.बोल-चाल,खान-पान,रहन-सहन मे अनेकता होते हुए भी हम एक साथ रहते है, एक दूसरे के तीज त्योहार मे शिरकत करते है, होली,दीवाली,ईद,बाराबफात, मुहर्रम,गुरपर्ब और क्रिसमस साथ साथ मनायी जाती है. मजारो ‌और मकबरो पर हिन्दूओ द्वारा चादर चढाना, और दूसरे सम्प्रदाय के लोगो का मंदिरो और गुरद्वारो पर दर्शन करना,मत्था टेकना बहुत आम बात है. यह हमारे धर्म और लोकाचार की सहनशीलता का जीता जागता उदाहरण है.

रही बात हमारे विभिन्न प्रकार के देवी देवता होने की...तो हिन्दू धर्म मे प्रकृति को हर तरह से पूजा गया है, चाहे वह वायू,जल,पृथ्वी, अग्नि या आकाश हो. इस प्रकार से हम प्रकृति के हर रूप की पूजा करते है, चाहे वह पहाड़ हो या कोई जीव जन्तु या हमारी वन्य सम्प्रदा, हमारी संस्कृति मे इन सबको विशेष स्थान दिया गया है.दुनिया मे ऐसी कोई संस्कृति नही होगी जहाँ प्रकृति को विभिन्न रूपो और स्वरूपो में पूजा गया है, रही बात त्योहारो से जुड़ी कहानियो की तो, सामान्य जनता जो उपनिषदो और वेदो की लिखी गूढ बातो को नही समझ सकती, उनके लोक आचरण के लिये विभिन्न ऋषि मुनियो ने अनेक गाथाये लिखी और उनको विभिन्न त्योहारो से इस तरह से जोड़ा कि सामान्य जन भी उसके साथ जुड़ सके और उसे अपना सके साथ ही ईश्वर का ध्यान और मनन कर सके.

इसके अतिरिक्त और भी चीजे हमारी संस्कृति मे जुड़ती रही, सारो का उल्लेख करना तो सम्भव नही हो सकेगा.. प्रमुख रूप से क्रिकेट की संस्कृति है, यह खेल अब हमारी संस्कृति मे शामिल हो गया है, क्रिकेटरो के अच्छे बुरे प्रदर्शन पर हमे हंसते रोते है, इनको अपने बच्चो से भी ज्यादा प्यार करते है, भगवान जैसी पूजा करते है, जब जीतते है तो तालिया बचाते है, जब हारते है तो गालिया देते है.

अब समस्या यहाँ आती है कि हम अपनी संस्कृति का कितना मान रख पाते है, वेद शास्त्र आपको रास्ता दिखा सकते है, लेकिन आपको उनपर चलने के लिये बाध्य नही कर सकते....एक और बात चूंकि ये सारे शास्त्र गूढ भाषा मे लिखे गये थे, इसलिये समय समय पर अनेक स्वार्थी धर्माचार्यो ने अपने और कुछ राजनीतिज्ञो के निहित स्वार्थो के लिये, इन शास्त्रो का मनमाने ढंग से विवेचना की और अपने फायदे के लिये इस्तेमाल किया. और अपनी दुकाने चलायी ...भाई को भाई से लड़ाया और विभिन्न समुदायो मे आपस मे बैर और नफरत फैलायी......और जो आज तक जारी है.इन्ही लोगो की वजह से हमारे यहाँ कभी कभी दंगे फसाद होते है, लेकिन आपसी भाईचारा कभी खत्म नही होता.

मार्क ट्वेन ने १८५६ मे जब भारत का दौरा किया था तो उसने लिखा था, भारत सांस्कृतिक रूप से परिपूर्ण राष्ट्र है. वैसे भी समय समय पर कई विदेशी विद्वानो ने भारत का दौरा किया और यहाँ की संस्कृति को दूनिया मे सबसे उन्नत माना.यही हमारी संस्कृति है, और हम सभी भारतीयो को इस पर गर्व है.

7 comments:

अनूप शुक्ल said...

........कार्य प्रगति पर है .यही है भारतीय संस्कृति?

Anonymous said...

arrey oy duplicate indian! you think that just by typing in Hindi and writing about indian sanskriti, you become Indian! why the hell are you still in Kuwait then? india doesn't like you? work for your country like we all do!

Anonymous said...

the last post was by true indian sunny deol. i forgot to say that.

Atul Arora said...

Let me respond to this in plain English , because coward like so called "Sunny Deol" hiding their identity under someone else name posting anonymously always do things like this. Mr Sunny Deol here are some word of wisdoms for you, read it, it will help you. And NRI community does not need a certificate from buggers like you. Who gives you right to declare somebody traitor, if he or she has left motherland for work purpose. Your name it, all patriotic organizations like HSS/VHP/IDRF (and list is endless) all have their branches abroad and they do occasional fundraisers for good causes. So who is traitor?

http://www.geocities.com/varnamala/pritish.html
http://www.gigaom.com/oldsite/archives/2004/04/the_curse_of_th.php

Jitendra Chaudhary said...

अरे मै सोने क्या गया...यहाँ तो झगड़ा शुरू हो गया......

मि.अनजान या सन्नी देऔल का नाम रखने वाले,
वैसे आपको अतुलजी ने जवाब तो दे ही दिया है, लेकिन मेरा भी कुछ फर्ज बनता है,
सबसे पहले तो आपका धन्यवाद, मेरा ब्लाग पढने का और अपनी प्रतिक्रिया देने का.आपकी नजर मे भारत मे रहकर ही भारत की सेवा की जा सकती है, मेरे को आपकी जानकारी पर तरस आता है,भारत माँ के सच्चे बेटे विश्व मे कंही भी रहकर देश की सेवा कर सकते है,लेकिन आपको नही पता, क्योंकि या तो आप घर से बाहर नही निकले है आजतक और या आपके मन मे खीज/हताशा है, देश की सेवा ना कर पाने की, जो आपने यहाँ पर निकाली है.

एक बात और भारतीय संस्कृति मे छुप कर वार करने वाले को कायर माना जाता है, अगर आपको अपने तर्को पर विश्वास है और आप कायर नही है, तो मै आपको इस विषय पर खुल कर वाद विवाद करने की चुनौती देता हूँ, अब देखते है कि कायर कौन है?

अन्त मे आप जहाँ भी रहे, ईश्वर आपको सदबुद्दि दे और आपकी खीज/हताशा दूर करे. मुझे आपका इन्तजार रहेगा.

इंद्र अवस्थी said...

ऐसी बेतुकी टिप्पणी करने वाले के ऊपर दया करनी चाहिये. थोड़ी उत्सुकता जरूर होती है कि यह महाशय भारत रहकर कौन सा पहाड़ उखाड़ रहे हैं. वहाँ भी ये अपने
पुरखों के गाँव तो नहीं ही रहते होंगे, किसी शहर में रहकर वहाँ प्रदूषण बढ़ाने में अपना अमूल्य योगदान दे रहे होंगे.
यह जरूर है कि ऐसा करने से थोड़ी सस्ता महत्व मिल जाता है सो मिल चुका. अब ये दिखाई नहीं पड़ेंगे.

अनूप शुक्ल said...

बेचारा लगता है अतुल जी की अंग्रजी पढ के डर गया.क्या हङकाया है!चूंकि डर गया लिहाजा मर गया.