अब भइया जब बात ब्लाग से सम्बंधित टिप्पणी की हो रही है, तो हमने भी हमऊ भी कुछ लिखे
वैसे तो हमारे हिन्दी ब्लाग जगत मे टिप्पणी करने वालो ने इस सब्जेक्ट पर पीएचडी कर रखी है, एक से एक धाकड़ टिप्पणी विशेषज्ञ है हमारे यहाँ. कईयो को तो लोगो ने सलाह दे रखी है, ब्लाग लिखना छोड़कर सिर्फ टिप्पणी ही लिखा करें.ऐसे महारथियो के सामने हमारे विचार और टिप्पणियां एकदम बौनी है, फिर भी जो हमने अपनी नजर से समझा सो यहाँ आपके साथ शेयर कर रहे है. और एक विनम्र निवेदन इस टिप्पणी एनालिसिस को मस्ती मे लिया जाये, कौनो इशू ना बनाया जाय.
टिप्पणी का बहुत महत्व है, ब्लाग लिखने मे,बकौल शुक्लाजी टिप्पणी के बिना ब्लाग तो उजड़ी मांग की तरह होता है, जिस ब्लाग मे जितनी ज्यादा टिप्पणिया समझो उसके उतने सुहाग.
टिप्पणिया कई तरह की होती है, कुछ उदाहरण आपके सामने हैः
जैसेः आपका ब्लाग पढा, अच्छा लगा लिखते रहो.. आगे भी इन्तजार रहेगा.....
तात्पर्यःफालतू का टाइम वेस्ट था, पूरा पढने की इच्छा नही हुई,लिखते रहो, कभी तो अच्छा लिखोगे, फिर देखेंगे.
थोड़ी तारीफः आपका ब्लाग पढा, बहुत मजा आया, हंसते हंसते बेहाल हो गये, वगैरहा वगैरहाः
तात्पर्यः अब जाकर ठीक लिख पाये हो,थोड़ा और इम्प्रूव करो, फिर भी ठीक है, थोड़ा पढा है, समय मिला तो बाकी का फिर पढेंगे.
शिकायती तारीफः आपका ब्लाग पढा, अच्छा लगा, मजा आया... पिछले ब्लाग मे छुट्टन मिंया की दावत वाला किस्सा अच्छा था, कहाँ है आजकल छुट्टन मिंया?
तात्पर्यः अबे ये सब क्या उलजलूल लिख रहे हो, मजा नही आ रहा, जैसा पिछला ब्लाग लिखा था, वैसा लिखो, अगर अगले ब्लाग मे छुट्टन के बारे मे नही लिखा तो मै तो नही पढने वाला, बाकी तुम जानो.
थोड़ी आलोचना थोड़ी तारीफः आपका ब्लाग पढा, आपने अपने ब्लाग मे सूरज को पश्चिम से उगते हुए बताया है, यह सरासर गलत है, लेकिन आपका सूरज के उगने का वर्णन बहुत सही और सटीक था.
तात्पर्यः मैने पूरा ब्लाग पढा, अजीब अहमक आदमी हो, पूरे फन्डे क्लियर नही है, और ब्लाग लिखने बैठ गये. शुरू कंही से करते हो, खत्म कंही और जाकर होता है, कोई सिर पैर ही नही है, लेकिन फिर भी एक बात है, लिखते भले ही बकवास हो लेकिन शैली अच्छी है.
ज्यादा आलोचनाः आपके ब्लाग मे सूरज को पश्चिम से उगता दिखाया गया है, जो एकदम गलत है, बकवास है, वगैरहा.......
जोशपूर्ण आलोचनाःआपने सूरज को पश्चिम से उगता दिखाया है, आप अहमक है, कोई आपका ब्लाग नही पढना चाहता है, आप लिखते ही क्यों है? क्या जरूरत है लोगो का टाइम वेस्ट करने की, खुद तो फालतू है, दूसरो को भी समझते है. वगैरहा वगैरहा.
तात्पर्यः बात दिल को चुभ गयी, या तो ज्यादा सच्चा लिख दिये हो, या फिर अकल के अन्धे हो.
क्रोधपूर्ण आलोचनाः आपने सूरज...पश्चिम..... आपकी हिम्मत कैसे हुई यह सब लिखने की, कुछ शर्म लिहाज... उमर, बच्चो का ख्याल .......वगैरहा वगैरहा
घुमावदार तारीफ और आलोचनाः जिसमे दोहो और शेरो शायरी से तारीफ की गयी है.
तात्पर्यः सामने सामने तो तारीफ और शेरो शायरी मे शिकायत, मतलब है,अगर तारीफ करने वाला बात बात मे शेर और दोहे मार रहा है तो वह यह जताने की चेष्टा कर रहा है, जो बात वह खुद नही कहना चाहता है, उसको दोहो और शेरो शायरी से समझो.
ईष्यापूर्ण तारीफः मैने आपके ब्लाग की तारीफ, उस ब्लाग पर पढी थी, आपकी कविता का अनुवाद पढा था, बहुत अच्छा लगा, अच्छा लिखते है, लिखते रहो.
तात्पर्यः इतना वाहियात लिखते हो, फिर भी लोग तारीफ कैसे करते है?, यहाँ तो हम लिखते लिखते थक जाते है कोई घास नही डालता. लड़की है इसलिये लोग इसके ब्लाग पर टूट पड़ते है,लोगो की पसन्द का भी कुछ पता नही चलता.
तारीफ का इन्वेस्टमेंट
इन्वेस्टमेंट #1 : आपका ब्लाग अच्छा लगा, कभी हमारे विचार भी देखिये हमारे ब्लाग पर.
तात्पर्यः मै तुम्हारे पन्ने पर आया, अब तुम भी आओ.
इन्वेस्टमेंट #2 : आपका ब्लाग पढा, अच्छा लगा, सूरज के उगने के संदर्भ मे आपके और मेरे विचार मेल खाते है, जिसे मैने अपने ब्लाग link here पर लिखा है.
तात्पर्यः देखो भइया मैने तुम्हारा ब्लाग पढकर अपना फर्ज निभाया, अब तुम भी मेरा ब्लाग पढ डालो, और हाँ मेने इस सब्जेक्ट पर तुमसे अच्छा लिखा है. ना मानो तो खुद पढकर देख लो.
तो जनाब सच्ची तारीफ क्या होती है. अभी खोज जारी है.
वैसे अब तक की रिसर्च से मालूम पड़ा है कि सच्ची तारीफ वो होती है जो दिल से निकली हो, जिसमे शब्दो का ज्यादा घालमेल ना हो, तारीफ करने वाले ने ब्लाग पूरा पढा हो, भले ही समझा हो या नही, यह अलग बात है,लेकिन पूरा पढा जरूर हो. और उसने जितना समझा हो उसकी तारीफ के बारे मे लिखा हो.
और एक आखिरी बात, तारीफ पाकर आप फूल कर कुप्पा ना हो जाय, तारीफ अस्त्र भी है.ऐसा ना हो की आप तारीफ पाकर दो तीन हफ्ते लिखना ही बन्द कर दे, या फिर ऊलजलूल लिखने लगें. जैसे मै लिख रहा हूँ..........और वैसे भी ब्लाग तो दिल की भड़ास है, आपने लिख कर अपना काम तो कर दिया, अब लोग पढे या ना पढे. फिर घूम फिरकर बात वंही पर आ जाती है,क्या करे दिल है कि मानता नही वैसे भी बिना टिप्पणी के तो ब्लाग उजड़ी मांग..........................
Thursday, November 25, 2004
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
इ लो पहले तो पहले तो उजड़ी माँग संवार देते हैं। आपकी इस प्रविष्टि की बातों में जो बात है वह है कि हिन्दी ब्लॉगमंडल में ऐसा लगता है कि सभी चाशनी ले कर घूमते हैं और पूरे मन से चारों तरफ उड़ेलते हैं। कुछ अच्छा लगे तो एक आधी बात पता चल जाती हैं पर सीधे शब्दों में कोई किसी से नहीं कहता कि का है भईया का लिख रहे हो का बस लिखने के लिए ही लिखते हो। पर सोचा जाए चिट्ठे कौन सा प्रतियोगिता हैं भईया जिस के जो मन में आए लिखो आपको न अच्छा लगे तो पतली गली से निकल लो।
Post a Comment