अभी फोन वाले वाक्ये को दो दिन भी ना हुए थे, कि मिर्जा साहब का फिर फोन आ गया, इस बार किसी सलाह के लिये नही बल्कि उनकी गाड़ी खराब हो गयी थी, बोले यार आफिस जाते समय मेरे को भी लेते चलो,मेरी कार बीच रास्ते मे धोखा दे गयी है.मिर्जा का औफिस मेरे औफिस के पास ही पड़ता था, वैसे भी कुवैत है ही कितना बड़ा....... एक आध घन्टा एक ही तरफ लगातार ड्राइव करो तो दूसरी कन्ट्री मे पहुँच जाओ.
खैर जनाब, मैने उनको रास्ते से पिक किया, मिर्जा ने अपनी गाड़ी लाक की,उसको एक लात मारी और यूपी स्टाइल मे, गाड़ी के मुत्तालिक एक भद्दी सी गाली निकाली, और फिर मेरी गाड़ी मे विराजमान हो गये. मै उन्हे लेकर उनके आफिस के रास्ते पर चल पड़ा, सारे रास्ते मै कुछ नही बोला, उन्होने ही चुप्पी तोड़ी, बोले यार, मै जानता हूँ तुम मुझसे नाराज हो,मै जुमे (Friday) वाले वाक्ये के लिये माफी चाहता हूँ, ये तो मिर्जा की पुरानी आदत थी, पहले पंगा लेते है,समझाओ तो बुरा भला बोलते है,फिर अगले दिन माफी मांग लेते है., अब तो हमे इस चीज की आदत पड़ चुकी थी.ये तो मुझे पता था फिर मैने सोचा लेकिन अगर कोई मनाना चाहता है, तो मेरा फर्ज बनता है कि रूठी हुई प्रेमिका की तरह बिहैव करू, सो मैने वही किया...मिर्जा बोलते रहे......बोले मेरे को ऐसा नही बोलना चाहिये था, इन साले BCCI वालो के चक्कर मे अपनी पुरानी दोस्ती थोड़े ही तोड़ेंगे, BCCI वालो का तो दीन ईमान ही नही है.. कल तक सोनी टीवी वालो के आगे पीछे घूम रहे थे.. आज फिर दूरदर्शन का पल्लू पकड़ लिया.... वगैरहा वगैरहा.
मै ताड़ गया कि मिर्जा कोई दूसरा टोपिक पकड़ने वाले है, मैने गाड़ी की स्पीड बढाई और मिर्जा को उनके गन्तव्य स्थान पर छोड़ा... मिर्जा उतरे.. मैने चैन की सांस ली....जाते जाते मिर्जा बोले....शाम को शतरन्ज खेलने का प्रोग्राम रखा है, उनके घर पर, आना जरूर.....मै ऊपरी तौर पर तो हाँ बोला.. लेकिन सोचता हूँ, टाल जाऊँ... इसी उधेड़बुन मे जाने कब औफिस आ गया पता ही नही चला.
शाम की शाम को देखेंगे.
Monday, October 04, 2004
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