Wednesday, October 06, 2004

भूत भगाने का इकरार नामा

धन्य हो प्रभु, काशी के पंडो का जवाब नही. मुझे याद है मेरे दादाजी कहा करते थे, जो पंडो के चक्कर मे पड़ता है, अपनी धोती भी से भी हाथ धो बैठता है.ये पंडे आपके सामने ऐसी परिस्थिति पैदा कर देते है कि आप अपनी जेब ढीली करने के लिये तैयार रहते है.

भोली भाली जनता को तो गुमराह करने मे ये सबसे आगे रहते है.अभी इनका नया कारनामा है कि ये भूत भगाने का शर्तिया दावा करते है, और तो और एक रूपये के स्टाम्प पेपर पर इकरारनामा भी कर देते है.सचमुच धोखाधड़ी का यह नायाब नमूना है.

होता यह है कि जो व्यक्ति भूत प्रेत से प्रताड़ित है उसको इन पंडा महाराज से सम्पर्क करके भूत का नाम,पता, पोस्ट, तहसील सब बताना पड़ता है, पंडा महाराज अपनी दक्षिणा लेकर भूत भगाने का काम शुरू करते है, पीड़ित पक्ष को पूरी तरह से संतुष्ट करने के लिये बाकायदा एक रूपये के स्टाम्प पेपर पर इकरारनामा तैयार होता है, इसमे तीनो पक्षो ( पीड़ित,पंडा और भूत ) का उल्लेख होता है.

इस तरह से अविश्वास का तो कोई प्रश्न ही नही उठता.अगर भूत भाग गया तो कोई बात नही, नही तो पंडा महाराज तो है ही नया नुस्खा बताने वाले.इस बात से मेरे को एक नेताजी की बात याद आ गयी,ये नेताजी बड़े प्रसिद्द नेता थे,उनके पास अपने काम करवाने वालो की भीड़ लगी रहती थी, नेताजी सबसे बड़े प्यार से मिलते और काम करवाने का पक्का आश्वासन देते, विश्वास दिलाने के लिये,उसके सामने ही, डायरी मे उनका नाम,दिन,पता और काम का विषय भी नोट कर लेते.बन्दा तो गदगद हो जाता और संतुष्ट होकर अपने घर चला जाता. मैने एक दिन नेताजी से पूछा भई, ये सब कैसे कर लेते है, इतने लोगो का काम कैसे करवा लेते है, नेताजी का जवाब चौंकाने वाला था, उन्होने बोला एक राज की बात बताऊ, मै तो कुछ करता ही नही, बस डायरी मे लिख लेता हूँ,बाद मे डायरी कभी खोल कर देखता भी नही, जिसका काम हो जाता है, वो फलो की टोकरी लेकर आता है, जिसका काम नही होता, वो कभी लौट कर ही नही आता, या जब कभी आता है तो मै फिर डायरी मे नोट कर लेता हूँ, मेरा क्या जाता है, एक डायरी और पैन, वो भी किसी काम करवाने वाले का ही दिया हुआ होता है. मै सुनकर भौचक्का रह गया....

इसी तरह से ये पंडे महाराज है, ये भी कुछ नही करते बस लिखापड़ी करते है, ठीक नेताजी की तरह से.इस इकरारनामे मे पंडा महाराज अपने एग्जिट आप्शन हमेशा तैयार रखते है.और जनता सोचती है पंडा महाराज को अपने काम पर पूरा विश्वास है इसलिये वो इकरारनामे पर भी तैयार है.बेचारी भोली भाली जनता अपना घर बार बेचकर भी भूत भगाने का खर्च करने को तैयार रहती है.

आखिर कब तक? कब तक हम इन पंडो,तान्त्रिको और ओझाओ के चन्गुल मे जकड़े रहेंगे.वैसे ही क्या राजनीतिज्ञ कम है लूटने के लिये.

1 comment:

अनूप शुक्ल said...

पंडों का तो ठीक है भाई पर ये बताओ मिर्जा जी क्या कहते हैं इस पर?कल शतरंज खेलने गये कि नहीं उनके यहां?