Wednesday, October 13, 2004

छुटकी कविता

अब जब कविताओं का दौर चल ही रहा है, क्यो ना हम भी बहती गंगा मे हाथ धो ले.

हमने भी अल्हड़पन मे कविता लिखने की असफल कोशिश की थी.....
एक छुटकी हाजिर है.

अश्क आखिर अश्क है, शबनम नही
दर्द आखिर दर्द है सरगम नही,
उम्र के त्यौहार मे रोना मना है,
जिन्दगी है जिन्दगी मातम नही

1 comment:

इंद्र अवस्थी said...

चकाचक गुरू!
कविता में जीवन के उल्लास को समेटने का प्रयास सही बन पड़ा है! और लिखी हों तो डालो यहाँ पर.