हम अप्रवासी भारतीयो की भी अपनी अनोखी समस्यायें रहती है, जब भी भारत जाने का प्रोग्राम बनता है, हमेशा सोचना पड़ता है, क्या ले जायें, अब क्या करें देश मे लोगो की एक्सपेक्टेशन इतनी रहती है, कि अगर सबकी माने तो साथ मे पानी वाला जहाज बुक करना पड़े और शायद वो भी कम पड़े. पहले तो अपने घरवाले,फिर नाते रिश्तेदार, फिर बेगम के घर वाले,नाते रिश्तेदार, फिर दोस्त यार, फिर अड़ोसी पड़ोसी, फिर दूर दराज के रिश्तेदार, फिर जान पहचान,फिर खामखा वोले.... अब लिस्ट तो बहुत लम्बी है, कहाँ तक गिनाये?
अब अगर आपने गलती से अपने रिश्तेदारों के लिये कुछ खरीद लिया तो लाजिम है कि बेगम भी अपने रिश्तेदारों के लिये लिस्ट थमा देंगी, ना करेंगे तो आप जानते ही है, क्या हाल होगा....बताने की जरूरत नही है...........दरअसल ये अकेली मेरी समस्या नही है, सभी प्रवासियो के साथ यही होता है. अब पप्पू भइया को ही ले.... अभी पिछले हफ्ते ही पहली बार इन्डिया से लौट कर आये है..बहुत तकलीफ मे है बेचारे ...........इनका परिचय?............हाजिर है.
दरअसल पप्पू भइया, हमारे भारतीय सामाजिक मंच के उपाध्यक्ष है, बहुत ही एक्टिव प्राणी है, कुवैत मे अभी नये नये है, भारत मे बिहार या झारखन्ड से ताल्लूक रखते है...अरे भाई ये वो वाले पप्पू यादव नही है..जो चुनाव लड़े और जीते.......ये वाले स्वभाव से बहुत सरल,हमेशा दूसरो के लिये समर्पित, ठेठ बिहरिया अन्दाज,लालू के पक्के फैन, बिहार की कभी बुराई नही सुन सकते, इनको बिहार के अलावा बाकी का भारत पिछड़ा दिखता है,चालाकी तो इनको कभी छू कर भी नही गयी है,हर आदमी इनका इस्तेमाल करके चलता बनता है......................अब कुवैत मे नये है तो संस्था के उपाध्यक्ष कैसे बने?... अरे भाई, इन संस्थाओ को नये नये मुर्गे चाहिये होते है, नये बन्दे ज्यादा एकाग्रता और तन्मयता से काम करते है, वैसे भी नया मुल्ला प्याज ज्यादा खाता है....अपना काम भले ही पिछड़ जाये, लेकिन सामाजिक मंच के काम काज मे सबसे आगे रहते है, चाहे वो लोगो को फोन करना हो, चन्दा इकट्ठा करना हो, सभा का संचालन करना हो.....अपने पल्ले से सभा का सामान लाना हो या फिर किसी विशेष कार्यक्रम के लिये कलाकारों का जुगाड़ करना हो... सारा काम इनके सर पर डाल कर लोग, कन्नी काट लेते है, बस गाहे बगाहे इनकी तारीफो के पुल बांध लेते है.सबको पता होता है,कम से कम एक दो साल तक तो इनको टोपी पहनायी ही जा सकती है.वैसे पप्पू भइया जैसे लोग तो इस तरह से जिन्दगी भर हांके जा सकते है.
तो जनाब पप्पू भइया कुवैत आने के बाद पहली बार, इन्डिया जा रहे थे, सो मेरे से उन्होने पूछा, यार बताओ क्या ले जाऊँ, मैने मन ही मन सोचा, मै खुद ही पीड़ित हूँ, यदि मैने इनको अपनी असली राय बता दी, तो शायद सम्बंध खराब हो जायेंगे, सो मैने टोपी मिर्जा के सर डाल दी, वैसे भी मिर्जा और पप्पू का छ्त्तीस का आंकड़ा है....मैने पप्पू को बोला, तुम मिर्जा से मिलो, मिर्जा इन सब चीजो मे एक्सपर्ट है, तुमको ठीक तरीके से समझा देगा.खैर जनाब शाम का समय तय हुआ, हम लोग मिर्जा के घर पहुँचे.....
पप्पू भइया ने अपना सवाल उनके सामने दोहराया.....मिर्जा ने दार्शनिक वाली मुद्रा बनायी और छूटते ही बोले... देखो बरखुरदार,मेरी राय मानो तो कुछ खानेपीने का सामान ले जाओ बस, और कुछ नही, कुवैत मे खजूर अच्छी मिलती है, वही ले जाओ,बाकी सामान से कन्नी काट लो.....कोई भी झाम टिका देना...वैसे भी आजकल हिन्दुस्तान मे हर चीज मिलती है.........अब आगे तुम्हारी मर्जी,तुम्हारा पहला विजिट है, इसलिये नाते रिश्तेदारो मे जैसी आदत डालोगे वैसा ही आगे लोग उम्मीद रखेंगे, सो कम से कम सामान ले जाओ तो ज्यादा अच्छा रहेगा. हाँ अपने घरवालो के लिये जो चाहो ले जाओ, लेकिन नाते रिश्तेदारो के लिये सोच समझकर ले जाना.पप्पू को बात समझ मे नही आयी सो वो पूछ बैठा, मिर्जा साहब आप ऐसा क्यों बोल रहे है, मै तो सबके लिये कुछ ना कुछ ले जाने की सोच रहा था, अच्छा खासा बजट भी बना रखा है, ऊपर से मैडम के रिश्तेदारो की फोन पर लिस्ट भी आ चुकी है. मिर्जा बोले बेटा मै जानता हूँ, अभी तेरे को मेरी कोई भी राय समझ मे नही आयेगी, लेकिन इस बात की गारन्टी है कि इन्डिया से लौटकर तेरे को मेरी बाते जरूर समझ आयेंगी. मिर्जा बोले..... अब जाते जाते एक गुरूमन्त्र भी लेते जाओ............देखो जब तुम इन्डिया जाते हो, लोग तुमसे कम तुम्हारी गिफ्टस से ज्यादा मिलना चाहते है, हमेशा ध्यान रखना, तुम्हारी इज्जत तुम्हारे हाथ मे है, जब तक अटैची नही खुली, लोग तुम्हारी बहुत इज्जत करेंगे,मान सम्मान देंगे,प्यार स्नेह उड़ेलेंगे,बार बार खाने के लिये पूछेंगे, मानो तुम्हारी इज्जत तुम्हारी अटैची मे बन्द है.जैसे ही तुमने उनको अटैची खोलकर गिफ्ट बाँट दी... उसके बाद समझो पानी का गिलास भी खुद उठाकर पीना पड़ेगा... और रही बात गिफ्ट की तुम जो कुछ भी ले जाओगे, चाहे आसमान के तारे भी तोड़ कर ले जाओ,हर कोई उसमे मीन मेख जरूर निकालेगा, चाहे जिन्दगी भर ब्रान्डेड परफ्यूम किसी ने इस्तेमाल ना किया हो लेकिन सबको उम्मीदें उसी की होती है,अब अगर तुम उनको सस्ती परफ्यूम भी ब्रान्डेड कहकर टिका दोगे तो खुश हो जायेंगे. मिर्जा बोले हाफ दिनार शाप (दूसरे देशो मे 100 येन या १ पौंन्ड या १ डालर शाप, पढे) मे चले जाओ सब कुछ मिलता है, जाहिर है सब कुछ मेड इन चाइना का ही होगा, किसी को सामान के रेट की कुछ समझ नही होगी, थोड़ी बहुत ढींगे हाँक देना... और हाँ जब यह सब सामान लेने जाओ तो अपनी बेगम को मत ले जाना.... नही तो बेटा सारी दुकान तो खरीदवा ही देगी, साथ ही कुछ खास खास लोगो के लिये स्पेशल शापिंग भी करवा देगी, सो पहली बार तो तुम्हे अपनी बीबी से भी झूठ बोलना पड़ेगा... नही तो गये तुम बारह के भाव से. हमने पप्पू के चेहरे के हावभाव से पढ लिया था कि पप्पू को बात समझ मे नही आयी.......पप्पू ने हमे पतली गली से निकलने का इशारा किया......हमने मिर्जा को सलाम ठोंका, निकलते निकलते मिर्जा ने हमारे कान मे बोला, जब पप्पू लौट कर आये तो उसको मेरे पास जरूर लाना......हमने गर्दन हिलायी और मिर्जा से विदा लेकर निकल पड़े.....
अब जब पप्पू भइया को मिर्जा की बात समझ मे नही आयी थी सो जाहिर है पप्पू भइया ने अपने हिसाब से शापिंग की, पप्पू भइया पहली बार जा रहे थे, सो सबके लिये ढेर सारा सामान ले गये, बाकायदा लिस्ट बना कर और टिक मारकर किसी नाते रिश्तेदार,दोस्त यार,जान पहचान वाले को नही छोड़ा... और तो और मुहल्ले के पनवाड़ी,प्रेस वाले और कल्लू हलवाई तक के लिये गिफ्ट ले गये... पैसे थोड़े कम पड़ गये तो ओफिस से सैलरी भी एडवान्स मे ले ली......शान मे कमी ना पड़े, सो मेरे से भी कुछ दीनार उधार ले गये....हालांकि मेरा पिछला अनुभव कह रहा था कि अभी कुछ महीने तक तो मेरे पैसे वापस मिलने वाले नही.ये सब तो होता ही रहता है, मै इनको दोस्ती के खामियाजे मानता हूँ.
खैर जनाब, पप्पू भइया बड़े शान से इन्डिया की यात्रा के लिये निकले.... एयरपोर्ट जाने के लिये दो गाड़ियो की व्यवस्था करनी पड़ी, सामान जो इतना ज्यादा था, ऊपर से जब सामान चैक-इन हो रहा था, तो काउन्टर पर बैठी बाला ने मुस्कराकर पप्पू से पूछा... फर्स्ट ट्रिप टू इन्डिया? पप्पू ने खीसे निपोरकर, सीना ठोंक कर जवाब दिया हाँ..... बाला ने सामान चैक-इन किया और पप्पू को यात्रा का पहला झटका देते हुए, एक्सेस लगेज के लिये एक्सट्रा पैसों की डिमान्ड कर दी......पप्पू ने हंसते हंसते पहला झटका झेला, पैसे चुकाये......बोर्डिंग पास लपकी,हमसे विदा ली और अगले लाउन्ज के लिये प्रस्थान कर गयें. हमारा साथ सिर्फ यहीं तक था.
खैर जनाब पप्पू भइया इन्डिया से लौट कर आये, हम उनको एयरपोर्ट पर रिसीव करके उन्हे उनके घर तक पहुँचाये........साथ ही मिसेज का दिया हुआ खाने का टिफिन थमाया. ये सर्विस कम्लीमेंटरी होती है और कुवैत मे बहुत ही पापुलर है.पप्पू भइया की हालत देख कर समझ मे आ रहा था कि सब कुछ ठीक ठाक नही है,कंही ना कंही कुछ पन्गा जरूर है.........पप्पू भइया भी बैचेन दिखे,अपनी आपबीती सुनाने के लिये , लेकिन हम जल्दी मे थे सो पप्पू भइया से वीकेन्ड पर मिलने का वादा करके अपने काम पर निकल लिये. पप्पू भइया की इन्डिया विजिट की दर्दनाक दासतां अगले एपिसोड मे...............पढते रहिये .... मेरा पन्ना.
Monday, October 18, 2004
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