Wednesday, December 01, 2004

यादें


कल रात को कुवैत मे काफी बारिश हुई थी....नींद खुल गयी,तो अचानक मेरे को गुलजार साहब की यह नज्म याद आयी

शाम से आंख मे नमी सी है
आज फिर आप की कमी सी है
दफन कर दो हमे कि सांस मिले
नब्ज कुछ देर से थमी सी है
वक्त रहता नही कहीं छुपकर
इसकी आदत भी आदमी सी है
कोई रिश्ता नही रहा फिर भी
एक तस्लीम लाजमी सी है
‍-गुलजार साहब
आज सुबह सुबह ही इन्टरनेट पर गुलजार साहब की यह नज्म दुबारा पढी, कई कई बार पढी,फिर कोई याद आया, फिर मौसम गमगीन हुआ,

फिर सावन रुत की पवन चली, तुम याद आये तुम याद आये
फिर पत्तो की पाजेब बजी तुम याद आये,तुम याद आये.

क्या कभी आपको भी कोई याद आता है, इस तरह....................

3 comments:

आलोक said...

आपको ये नग्म अन्तर्जाल पर कहाँ मिलते हैं?

Jitendra Chaudhary said...

आलोक भाई,
आप यहाँ पर देखेः http://www.geocities.com/sumankghai/poets.htm

यहाँ पर सुशा फोन्ट मे अच्छा संग्रह है, लेकिन ढूंढने की सुविधा नही है, कोई और जगह हो जहाँ UNICODE मे संग्रह हो तो बताइयेगा.

Dev said...

Aap ki creativity me kuchh alag hi maja hai
Aap ko sadhuvad..

http://dev-poetry.blogspot.com/